शुक्रवार, 2 अगस्त 2013

कर्मों का खाता (भाग सात ):

कर्मों का खाता (भाग सात ):

EFFECT OF AWARENESS ON ACTIONS


संगम युग पर कैसे बदलते हैं बाप तुम्हारा स्वभाव संस्कार ?बाप पूछते  हैं क्या मैं कभी तुम्हारी कमजोरियों की चर्चा करता हूँ?तुम्हारे दोषों की बात करता हूँ तुम्हें दुराचारी कहता हूँ ?तुम्हें गंदा बच्चा कहा है मैं ने कभी ?मैं तो हमेशा तुम्हें मीठा बच्चा कहता हूँ। मैं तो बस तुम्हारे उस निज स्वरूप की ही तुम्हें याद दिलाता हूँ जिसे तुम कभी का भूल चुके हो। बतलाता हूँ तुम्हें -

इस देह से न्यारी और प्यारी तुम एक आत्मा हो। शांत स्वरूप। आनंद स्वरूप प्रेम स्वरूप। ज्ञान स्वरूप। तुम मुझ परमपिता की संतान हो जो सदा ही चैतन्य स्वरूप है। इसलिए सच्चिदानंद है। जो आकार में तुम्हारी ही तरह  ज्योति बिंदु और गुणों में सिन्धु है। यह सजगता ,यह आत्म बोध यह जानकारी ही तुम्हें शक्ति देती है बदलने लगती है तुम्हारे स्वभाव संस्कार को। तुम्हारे देह भान और देह -अभिमान को ले उड़ती है। 

मनुष्य जीवन की पहचान होशवान होना है। सतर्क होना है। स्वयं के अच्छे या बुरे कर्म का उसे ज्ञान (भान )होना है। मनुष्य अंत :करण  का शुद्ध होना है। मनुष्य की यही चेतना उसके ऊंचे ते ऊंचे कर्मों का आधार बनती है। तुम्हारे मुख से ऐसा होने पर ही मीठे से मीठे बोल निकलते हैं। सोच को ऊर्ध्वाधर (ऊर्ध्वगामी ,ऊर्ध्वमुखी )दिशा मिलती है। ऊंचा उड़ते हो तुम। आत्मा ही सबसे तेज़ रोकेट है। 

तुम्हारी सोच तुम्हारी अन्तश्चेतना तुम्हारी दिलचस्पी की तरह ही बनती है तुम्हारी सजगता जीवन और जगत के प्रति तुम्हारे तमाम रुझानों को पलक झपकते ही बदल देती है। तुम्हारा पूरा मानस (चित्त )ही बदल जाता है। इसीलिए कहा  गया -जैसी  जिसकी चेतना वैसा वाको संसार। 

जाकी रही भावना जैसी ,सब मूरत देखि जिन तैसी। 

मैं तुम बच्चों को केवल संगम युग पर ही आकर यह ज्ञान देता हूँ। तुम सिर्फ देह नहीं हो ये देह के सब साधन सारे कार्य व्यापार सारी इन्द्रियाँ तुम्हारी दास दासियाँ हैं। मालिक तुम हो। ये सब तुम्हारे मातहत हैं। तुम इनके मातहत नहीं हो। ये भान होते ही तुम आत्माभिमान में आ जाते हो। स्वाभिमान से भर जाते हो। 

I with self respect is 'soul -consciousness'. I with self arrogance is 'body -consciousness'.

इस अमृत वेले ही तुम्हें बाप से वर्सा मिलता है। दिव्य गुण और आधाय्त्मिक शक्ति की पुनर्प्राप्ति होती है। संगम युग पर ही मैं आकर रोज़ रोज़ तुम्हें पढ़ाता हूँ। तुम सृष्टि के आदि मध्य और अंत  के ज्ञान को जान लेते हो। अब तुम इस तरह प्राप्त शक्तियों से विश्व आत्माओं का कल्याण करो। अपने कर्मों से इन गुणों का दान करो। दूसरों की पीर हरो। कल्याण से भरे रहो। करूणा  से संसिक्त रहो। सर्व के प्रति शुद्ध चित्त शुभ भावना रखो। तुम्हारी अभिवृत्ति सोच ,सोचने का तरीका ,ऊंच  ते भी ऊंचा हो। तुम्हारे होने मात्र से औरों पर ये गुण प्रगट हों। 

ELEVATED ATTITUDE 

What is an elevated attitude ?You know this very well .An elevated attitude is that of brotherhood ,an attitude of soul conscious -love.It is an attitude of acceptance ,co-operation ,selflessness ,and pure thoughts .It is an attitude of mind that does not discriminate against others .As is your attitude ,such will be your vision .Your attitude will color the way you look at others .No matter what the other is like ,you will see that person according to the attitude you have toward him .If someone is wearing glasses of a certain color ,what will she see .She will see the world in the same color .Attitude works in the same way .Your attitude changes your vision ,and your vision will change the world .So check that the foundation of your attitude is constantly elevated.

जिन्हें तुम मेरे अपने कहते हो उन अपनों में से ही किसी बहुत अपने को भी तुम स्वीकार

कहाँ कर पाते हो। आग्रहमूलक (पूर्वाग्रह ग्रस्त) बनी रहती है तुम्हारी दृष्टि अपने ही परिवार में किसी एक के

प्रति। क्या तुम बिना भेदभाव किये सबको देख पाते हो। या अपने अपने चश्मे लिए घूमते  हो। घर से बाहर

क्या सबके प्रति तुम्हारा भाई चारा है ?सबको उसी आत्मभाव से देख पाते हो तुम- बाप पूछते हैं ?निस्स्वार्थ

भाव और शुद्ध मन से (चित्त से )सर्व की सेवा कर पाते हो। इस चित्त से ही दृष्टि का निर्माण होता है और दृष्टि

से फिर सृष्टि बनती है। अपने आसपास का संसार सुन्दर और सुखमय बनाया है तुमने ?


आर्क्मिडीज़ ने कहा था -'Give me a place to stand and with a lever I will move the whole world.

मीठे बच्चों तुम भी ऐसा कर सकते हो।

PURE FEELINGS 

जब तुम्हारा मन केवल एक नहीं विश्व की सर्वआत्माओं  के प्रति पवित्र और शुभ भावना से भरा रहता है

,उसका लाभ सबको मिलने लगता है। इस पुरुषोत्तम संगम युग को यह वरदान है जो भी आत्मा यहाँ प्रयत्न

(पुरुषार्थ )करती है पवित्रता और शुभ भाव से भरकर सबके प्रति प्रेमपूर्ण होने का उसे तुरता फल प्राप्ति भी

होती है। पवित्रता की इस अनुभूति का अनुभव हो तो तुम्हारे कर्म भी श्रेष्ठ हों। तुम्हारे संग साथ होने  पर फिर

हरेक आत्मा शान्ति और आनंद का अनुभव आपसे आप करेगी।


तुम्हारा  ये प्रेमपूर्ण व्यवहार प्रेमभावना ही तुम्हारा  स्वभाव तुम्हारे निज स्वरूप को रूपांतरित कर देगी। तुम्हें

खबर भी न होगी।  आत्मा की इस ऊर्ध्व गति की।

कर्म करते वक्त तुम्हारे कर्म बोलते हैं अच्छा या बुरा प्रभाव पैदा करते हैं तो इसके मूल में यही प्रेमभावना या

फिर दुर्भावना होती है। जब तुम्हारे इरादे तुम्हारी सोच ठीक नहीं होती है कर्मों से बदी टपकती है इरादे नेक

भावना साफ़ सुथरी होने पर कर्मों से भी नेकी रिसती बरसती है। नेक सोच और शुभ संकल्प स्विच की तरह

बन जाते हैं प्रकाश की गति भी उसके सामने कोई मायने नहीं रखती है।



KARMA AND TIME 

Keep the importance and this time in your awareness .Every second of the Confluence Age is the time to create your reward for the whole time cycle (the world drama wheel ,the world human tree ).Take every  step while constantly understanding the importance of time .Time is auspicious .Time is a treasure and also a power .You have already received from Me the inheritance to become a great soul .You are great .Therefore ,create every thought ,speak every word ,and perform every action while understanding your own greatness as well as the importance of time .

ॐ शान्ति 

सन्दर्भ -सामिग्री :The Story of Immortality 

A Return to Self -Sovereignty

Copyright @2008 Brahma Kumaris World Spritual Organization

 (USA)

Global Harmony House ,46 South Middle Neck Road ,Great Neck 

,NY 11021 

516.773 .0971 

www.bkswu.org


The Story of Immortality: A Return to Self Sovereignty [Hardcover]

Mohini Panjabi 
Available from these sellers.



Posted: 31 Jul 2013 10:37 PM PDT
View- 01-08-2013@@ KI MURLI HINDI ME
View- 01-08-2013@@ MURLI IN ENGLISH



English Murli

Essence: Sweet children, this confluence age is the land of Brahmins in which you become the children of Brahma. You have to claim your inheritance from the unlimited Father and also enable others to claim it.
Question: What type of intellect do you need in order to understand this knowledge very well?
Answer: Those with business intellects will understand this knowledge very well. This is an unlimited business. The Father continues to show you children many different methods to earn an income. The task of you children is to make effort. You should invent such methods that you continue to accumulate an income for yourselves and in which there is also benefit for others. The remembrance of the Father and service are the means to earn an income.
Song: O traveller of the night don’t be weary! Your days of happiness are about to come.
Essence for dharna:
1. In order to become the first ones in the rosary of Rudra, stay in constant remembrance of the Father. Make yourself pure by remembering the Father and the sweet home.
2. Become a spiritual guide and take everyone on the true pilgrimage. Follow the shrimat of the one Father and make yourself double crowned.
Blessing: May you have a right to double fruit and serve by considering yourself to be a server while carrying out any duty.
While carrying out any task, going to your office or doing business, have the awareness that you are performing that duty for service. “I am doing this service as an instrument” and service will automatically come to you. Then, however much service you do, that much your happiness will increase. Of course you will accumulate for your future, and you will also receive the instant fruit of happiness. So you will have a right to double fruit. When your intellect is busy in remembrance and service, you will then constantly continue to eat the fruit of service.
Slogan: Those who remain constantly happy are loved by the self and by everyone.

Hindi Murli

मुरली सार:- “मीठे बच्चे-यह संगमयुग है ब्राह्मणों की पुरी, इसमें तुम ब्रह्मा के बच्चे बने हो, तुम्हें बेहद के बाप का वर्सा लेना है और सभी को दिलाना है”
प्रश्न:- इस ज्ञान को अच्छी रीति समझने के लिए किस प्रकार की बुद्धि चाहिए?
उत्तर:- व्यापारी बुद्धि वाले ही इस ज्ञान को अच्छी रीति समझेंगे। यह है बेहद का व्यापार। बाप बच्चों को भिन्न-भिन्न कमाई की युक्तियां बताते रहते हैं। बच्चों का काम है मेहनत करना। ऐसी युक्ति निकालनी चाहिए जिससे स्वयं की भी कमाई जमा होती रहे और सर्व का भी कल्याण हो। बाप की याद और सेवा ही कमाई का साधन है।
गीत:- रात के राही थक मत जाना……
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) रूद्र माला में पहला नम्बर आने के लिए निरन्तर बाप की याद में रहना है। बाप और स्वीट होम की याद से स्वयं को पावन बनाना है।
2) रूहानी पण्डा बन सबको सच्ची यात्रा करानी है। एक बाप की श्रीमत से स्वयं को डबल सिरताज बनाना है।
वरदान:- कोई भी ड्युटी बजाते हुए स्वयं को सेवाधारी समझ सेवा करने वाले डबल फल के अधिकारी भव
कोई भी कार्य करते, दफ्तर में जाते या बिजनेस करते – सदा स्मृति रहे कि सेवा के लिए यह ड्युटी बजा रहे हैं। सेवा के निमित्त यह कर रहा हूँ – तो सेवा आपके पास स्वत: आयेगी और जितनी सेवा करेंगे उतनी खुशी बढ़ती जायेगी। भविष्य तो जमा होगा ही लेकिन प्रत्यक्षफल खुशी मिलेगी। तो डबल फल के अधिकारी बन जायेंगे। याद और सेवा में बुद्धि बिजी होगी तो सदा ही फल खाते रहेंगे।
स्लोगन:- जो सदा खुशहाल रहते हैं वह स्वंय को और सर्व को प्रिय लगते हैं।

"स्वदेशो भुवनत्रयम्‌"

इस जगत में जो लोग भी अपना अस्तित्व संसार से मानते हैं, उनके लिये ये संसार कभी ना कभी बेवफा, बेगाना अवश्य हो जायेगा, परन्तु जो अपना अस्तित्व एक मात्र भगवान से मानते हैं, उनके लिये तो यह बेगाना संसार भी भगवान का ही एक स्वरुप बन जाता है ।

"मामनुष्मर युद्ध्य च"

सांसारिक बाह्य भौतिक विषयों में यह सामर्थ्य नहीं है कि... वह किसी भी मनुष्य के मन को क्षुब्ध या लुब्ध बना सके, व्यक्ति के मन में विक्षेप या हलचल का होना तो उन विषयों का हमारे मन के आसक्ति पूर्ण सम्बन्धों पर ही निर्भर करता है । मन के द्वारा विषयों का राग पूर्वक चिन्तन किये जाने पर ही, ये विकार मनुष्य के ऊपर  शासन कर पाने में समर्थ हो पाते हैं ।
अतएव मन में चिन्तन तो केवल मायापति का ही होना चाहिये.....माया का नहीं । "मामनुष्मर युद्ध्य च"

Yogi Anand Ji










3 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

मीठा बच्चा /
शांत स्वरूप आत्मा-
सबसे तेज राकेट -
बहुत बढ़िया परिचर्चा-
आभार आदरणीय-

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सुखकर जानकारी.

रामराम.

Anita ने कहा…

जैसी जिसकी चेतना वैसा वाको संसार।

ज्ञान ही हमें मुक्त करता है..आभार!