मंगलवार, 1 मई 2012

डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन

डिमैंशा ओरगेनिक दिमागी रोग या आघात से उत्पन्न एक गंभ्भीर मानसिक विकार है जो हमारी सोचने ,याद रखने और रोजमर्रा के सामान्य व्यवहार की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है .प्रभाव भी ऐसा जो समय के साथ बढ़ता ही जाता है .और धीरे धीरे सोचने समझने याद रखने की क्षमता को ले उड़ता है और इसीलिए इसे लाइलाज या क्रोनिक कहा जाता है जिसमें  व्यवहार के साथ- साथ बोध सम्बन्धी प्रकार्य दिमाग का छीजता चला जाता है .यह इसीलिए एक न्यूरो-दिजेंरेतिव डिसऑर्डर भी कहाता है .याद रहे   महज़  सठियाना  नहीं है डिमेंशा .दिमाग  का  एक  अप  -विकासी  रोग  है  .
क्या है भारत की स्थिति इस लाइलाज रोग की बाबत एल्ज़ाइमर्स जिसका सहज उदाहरण है ? 
विश्वस्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट 'Dementia - a public health priority ' के  अनुसार     भारत में     तकरीबन     37 लाख    लोग   इस मर्ज़   के   साथ रह  रहें हैं .आगामी  बीस  बरसों  में ही यह संख्या दोगुनी  हो सकती  है . 
टूटते बिखरते न्यूक्लीयर परिवार  इसके मरीजों के प्रबंधन में एक बड़ी बाधा बनने जा रहें हैं .इसी के चलते जहां गाँवों  में इसके मरीजों की देखभाल करने वालों में फिलवक्त 70%बच्चे  और जीवन साथी हैं वहीँ शहरों में केवल ४०%ही ऐसा कर पा रहें हैं .
शहरों  में इनकी  देखभाल करने  वालों  में जहां  27 %जीवन   साथी  लगे  हें   वहीँ ग्रामीड़ क्षेत्रो में 23% ही ऐसा कर  पा रहें  है.
बुढापे का अकेलापन  उसी अनुपात में बढ़ता जा  रहा है जिस  अनुपात में न्यूक्लीयर परिवारों  की संख्या फ़ैल रही है .जबकि  इससे  ग्रस्त  उम्र  दराज़  लोगों  को चौबीसों  घंटा  देखभाल की ज़रुरत  रहती  है इसके बिना  गुज़ारा  ही नहीं  है .कालान्तर में न तो ये शौच आदि से खुद अपने आप निवृत्त हो सकतें हैं और न ही इन्हें अपनी स्थिति का बोध रहता है इन्हें नहीं पता रहता ये कब कहाँ हैं आस पास कौन है इनके .ये हैं रोग की बढ़ी हुई अवस्था के चंद लक्षणों की एक झलक .
योरोप में डिमेंशा की देखभाल  के लिए अनेक   सुविधाएं  सामने  आ गई  हैं .प्रोद्योगिकी का इसके प्रबंधन में बड़ा सहारा मिल रहा है .
सबके  पास  मोबाइल्स  हैं .इन्हें  सोफ्ट  वेयर  दे दिया जाता है मरीज़ को याद दिलाते  रहने  के वास्ते  .भारत में भी ऐसा आसानी से हो सकता है .
प्रेशर स्विचिज़ भी इन रोगियों की मदद के लिए हाज़िर हैं जब ये मरीज़ बैठतें हैं ,लाईट खुद बा खुद अपने से ही जल जाती है .   
pill dispensars खाने की मेज़ पर इन मरीजों को खाना खाने के बाद की दवा लेने को कहतें हैं उन्हें यह पूर्व रिकार्ड किया मेसेज दे दिया जाता है :भाई साहब दवाई खालो .
लाईट एमिटिंग डायोड आधारित लाइटें हैं जब आप दरवाज़े पर ताला  जड़तें हैं यही   LED  BASED LIGHTS आपको  याद दिलातीं हैं -भाई साहब चाबी निकाल लो . 
क्या है रोग का आलमी परिदृश्य ?
दुनिया भर में इस वक्त इसके तीन करोड़ छप्पन लाख मरीज़ हैं .२०३० तक इसके दोगुना हो जाने का अनुमान है ,२०५० तक तीन गुना .
हर बरस इसके सतत्तर 
 लाख नए मरीज़ सामने आरहें  हैं . 
एक सेकिंड में चार  नए मामले रोग के सामने आरहें हैं . 
भारत और चीन जैसे देशों के लिए जहां जीवन शैली (डायबिटीज़ और हाइपर -टेंशन ) रोग उफान पर हैं शकुन  अच्छा नहीं है .मधुमेह की तो भारत आलमी राजधानी ही बना हुआ है .
यहाँ सर्क्युलेशन सम्बन्धी रोगों के चलते डिमेंशा के रोगी और भी ज्यादा तेज़ी से बढ़ सकतें हैं .
एल्जाई -मार्स  के प्रबंधन के लिए फौरी तौर पर गाइड लाइंस की मांग माहिर कर रहें हैं करते रहें हैं .
माहिरों के अनुसार सहज सरल रोग नैदानिक उपकरणों की उपलब्धता वक्त की मांग है .रोग निदान जल्दी हो जाए तो प्रबंधन  भी आसान हो जाए .
भारत में गिनती के ही प्रोफेशनल सेंटर्स हैं .जरा मुल्क का साइज़ देखो और उपलब्ध सेंटर्स देखो दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा .
रुरल एम्प्लोय्मेंट गारंटी स्कीमों (नरेगा ,मरेगा )के मार्फ़त ग्रामीड़ों को प्रशिक्षण इस बाबत दिया जाना चाहिए . 
अभी कुछ ख़ास नहीं बिगड़ा है बेटी बाप के घर में ही है .टालू रवैया   घातक सिद्ध होगा . 
सन्दर्भ -सामिग्री :-TECH HELP TO DEAL WITH
DEMENTIA        PRESSURE SWITCHES , PILL DISPENSERS TO ASSIST ELDERLY /TIMES NATION /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,MAY1,2012 ,P12 

5 टिप्‍पणियां:

SM ने कहा…

yes in India its possible but may be Indians will do corruption in this also.

Arvind Mishra ने कहा…

डिमेंशिया -यानी स्मृति लोप .....?

virendra sharma ने कहा…

डॉ .अरविन्द भाई ! दिमेंशा के लिए हिंदी में एकाधिक शब्द प्रयोग हैं (चित्त विक्षेप ,उन्माद ,,पागलपन ,मनोभ्रंश ,यह एक ब्रोद्स्पेक्त्रम टर्म है ) है बेहतर है दिमेंशा लिखा जाना (Oxford ENGLISH-ENGLISH-HINDI Dictionary,OXFORD UNIVERSITY PRESS).

डॉ टी एस दराल ने कहा…

अच्छी जानकारी लाए हैं वीरुभाई जी .
अफ़सोस यह है --यहाँ हम अभी बेसिक रोगों से ही जूझ रहे हैं . अस्पताल में आने वाले हजारों मरीज़ों को बेसिक दवाएं नहीं दे पा रहे हैं . फिर भला इस तरह की सुविधाएँ कहाँ मुहैया करा पाएंगे !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी विस्तृत व उपयोगी जानकारी।