सोमवार, 30 अप्रैल 2012

जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा

जल्दी   तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा 

अपनी एक अग्रगामी शोध के तहत Sheffield  University  के  रिसर्चरों  ने  विज्ञान पत्रिका 'स्ट्रक्चर ' में ओबेसिटी रिसेप्टर को बूझकर परिभाषित किया है .समझा जाता है यह अभिग्राही शरीर की चर्बी के नियंत्रण में एक एहम भूमिका में आता है .

यहीं से मोटापे और क्षुधा -नाशी रोग एनेरेक्सिया के इलाज़ के लिए दवा तैयार करने का रास्ता  साफ़ हो जाता है .अब मोटापे और एनेरेक्सिया के प्रबंधन में आने वाली जटिलताओं से इन्ही दवाओं की मदद से  से पार   पाया जा सकेगा . 


यह दवाएं ओबेसिटी हारमोन लेप्टिन के अभिग्राही को अवरुद्ध भी कर सकेंगी और उत्तेजित भी .ताकि ज़रुरत के अनुरूप हारमोन के उत्पादन को नियंत्रित किया जा सके .

गौर तलब है एनेरेक्सिया का मरीज़ यह भ्रम पाले रहता  है की वह मोटा हो रहा है और बस रोटी पानी से छिटकने लगता है .खायेगा भी तो आधी अधूरी रोटी वह भी जलाके   और दाल में ऊपर से और पानी खूब मिलाके ताकी पाने में बस दो  चार दाने दाल के भी दीखते रहें , ताकि खाए गए भोजन का पोषक मान कम हो जाए .यह वही जीरो साइज़ का चक्कर है .जिसके चलते कई मांसल सौन्दर्य की धनी बोलीवुड नायिकाएं अब बे -नूर हो स्किनी रह गईं  हैं .आज यह सौन्दर्य के प्रतिमानों पर सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के पैमाने पर खरी नहीं उतरतीं हैं .

 वास्तव में इस रिसर्च के तहत एक बड़ा काम किया गया है .अभिग्राही के लेप्टिन से बंधन बनाने वाले प्रभुत्व क्षेत्र को एक्स रे -संरचना लेखन की मदद से बूझ लिया गया है .पूर्णतया परिभाषित भी किया गया है. 

Scientist have solved the challenging crystal structure of the leptin -binding domain of the obesity receptor using state of the art X-ray crystallography,helping them to work out how to block or stimulate the receptor. 

इस  अभिग्राही  को  अवरुद्ध  करने  का  मतलब  इसके  काम की रफ़्तार  को  मंदा  करना  है लेप्टिन के अतरिक्त काम करने को रोकना है .इससे मोटापे की जटिलताओं से पार पाई जा सकेगी .और उत्तेजन का मतलब  फर्टिलिटी को बढ़ाना है ,तथा प्रतिरक्षण अनुक्रिया ,इम्यून रेस्पोंस को मजबूती देना है .

अब मोटापे से चस्पां हो चुकीं मेडिकल कंडीशंस यथा मल्तिपिल स्केलेरोसिस ,डायबितीज़ और दिल की बीमारियों की जटिलताओं को किनारे किया जा सकेगा .बस थोड़ा इंतज़ार और .

सन्दर्भ -सामिग्री :-Soon ,a drug that can help treat obesity, anorexia/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,APRIL 30 ,2012 ,P15.


सावधान !आगे ख़तरा है

सावधान !आगे ख़तरा है 
भारत   सरकार  ने   जलवायु   परिवर्तन  के दूरगामी  प्रभावों  के प्रति  चेता  दिया  है . जल्दी  ही सरकार यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र को प्रेषित कर देगी .रिपोर्ट में कच्छ और राजस्थान के कुछ हिस्सों में आगामी दशक तक अधिकतम तापमानों में चार सेल्सियस की वृद्धि तक हो जाने की प्रागुक्ति की है .
बतलादें आपको पृथ्वी का ताप बजट एक नाज़ुक मसला है इसमें चार फीसद की घट बढ़ का मतलब एक छोर पर हिमयुग की शुरुआत होता है तो दूसरे पर जलप्लावन ,हिम चादरों का पिघलाव .गनीमत है पृथ्वी का औसत तापमान (१४.५ -१५ .५) सेल्सियस के बीच ही बना रहता है .चार सेल्सियस एक जादुई . अंक है जिसका भौतिकी में विशेष अर्थ है.  चार सेल्सियस पर जल सबसे ज्यादा भारी रहता है इसका घनत्व अधिकतम हो जाता है .चार से ऊपर गर्म करने पर भी और चार सेल्सियस से नीचे जल को ठंडा करने पर भी दोनों ही स्थितियों में जल फैलता है अपना आयतन बढ़ा लेता है ज्यादा जगह घेरने लगता है .गनीमत है यहाँ वायु मंडलीय तापमानों का ज़िक्र है .पृथ्वी के तापमान का नहीं .
सवाल यह है की सरकार जलवायु परिवर्तन के परिणामों से बचने के लिए क्या कर रही है ?सरकारें अक्सर भ्रष्ट होतीं हैं बे -ईमान होतीं हैं .
कंप्यूटर निदर्श बतलातें हैं विश्व -व्यापी तापमानों में वृद्धि ,भूमंडलीय तापन अल्पावधि में बाढ़ों और दीर्घावधि में सूखे की वजह बनेगा .पानी की किल्लत आलमी स्तर पर पैदा होगी .
मानसून की अवधि कमतर होने की संभावना जतलाई गई है .जबकी भारत का ५०%कृषि रकबा (कृषि क्षेत्र )मानसून के आसरे ही रहता है .यहीं से जलप्रबंधन महत्वपूर्ण हो जाता है जिसका फिलवक्त भारत में नितांत लचर प्रबंध है .
कृषि कर्म के ढंग में पैट्रन में बेहद असंतुलन बना हुआ है .कृषि प्रोद्योगिकी को राज्य सहायता धकिया रही है .मुफ्त बिजली, मुफ्त या ना मालूम सी दरों पर पानी की उपलब्धता ,सघन सिंचाई वाली फसलों को बढ़ावा देती आई है .बेतहाशा नलकूपों से पानी उलीचा गया है .रीत गए है भूजल स्रोत वाटर एकविफायर्स.कौन करेगा   इनकी री- -चार्जिंग ,पुनर भरण,पुनर भरपाई  ?कौन दूर   करेगा मिटटी    से अतिरिक्त  लवण को .
यकीनन भू जल का स्तर गिर  गया है . 
दूसरे छोर पर कृषि का बुनियादी आधार लचर है .अभाव है कृषि  के बुनियादी ढाँचे ,इन्फ्रा -स्ट्रक्चर का . हर बीतते बरस के साथ यह छीजता जा रहा है .
इन दो  छोरों के बीच पिस रहा है कृषि क्षेत्र .इसी का नतीजा है  प्रति एकड़ कम उपज प्राप्ति ,रख रखाव की बेहद खराब व्यवस्था .(अनाज का एक बड़ा हिस्सा सड़ जाता है,चूहे खातें हैं इनमे गणतंत्री चूहे भी शामिल है ) परिवहन संशाधनों की तंगी .आगे आगे हालात बदतर ही होने हैं .

जबकि  आज भी ७० % आबादी कृषि कर्म पर पल रही है .'बढती आबादी अंत बर्बादी' को टालने के लिए प्रति एकड़ उत्पाद बढ़ाना ही होगा .

जल पर से राज्य सहायता तात्कालिक प्रभाव के साथ हटानी पड़ेगी .वर्षा जल का प्रबंधन भवन निर्माण में लाजिमी प्रावधान के रूप में करना होगा .

जल कर इसके इस्तेमाल को तार्किक बनाने के लिए आयद करना पडेगा एक सीमा से ऊपर खर्च करने वालों पर .

कृषि को बेहतर बुनियादी ढांचा चेक डेम्स आदि देने होंगें .
अधिकाधिक जल उपचार संयंत्र ,जल का पुनर चक्रण करने वाले  जल संयंत्र लगाने पड़ेंगें .
खारे जल को मीठा करना होगा .पानी से लवण की मात्रा  कम करने के लिए भी कुछ करना होगा उत्तम खेती  उत्तम  बीज (बान )ने खासा कबाड़ा कर दिया है . ऊपर से एक ही फसल जीवन भर में  देने वाले टर्मिनेटर  सीड्स  को कृषि से बे -दखल करना होगा .
सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़ के भी निश्चित नहीं हुआ जा सकता है .जल संरक्षण मृदा संरक्षण वृक्षा रोपण के लिए जन प्रयास भी ज़रूरी हैं .यह एक सतत यज्ञ है .


परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब

एक बार और सारे पाठ्यक्रम को परीक्षा से पहले दोहराने के लिए अक्सर छात्र रात रात भर जागतें हैं .लेकिन क्या इसका फायदा भी है 
?कहीं ऐसा तो नहीं की अगली सुबह सब कुछ गुड गोबर हो जाए एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाए और याद किया याद ही न आये एन वक्त पर परीक्षा की घडी में ?


स्कूल  आफ लाइफ साइंसिज़ जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने अपने एक अध्ययन में यह खुलासा किया है कि दिन भर में पढ़ी याद की गई सूचना को इस तरह रूपांतरित करने में कि वह मौके पर दिमाग को याद आ सके संगठित   करके  रखने  में नींद एक विधाई   भूमिका   निभाती   है .

लेकिन रात भर नींद से  महरूम   रहने   पर ऐसा हो ही यह कतई  ज़रूरी  नहीं है .हो सकता  है आप  पढ़ी याद की गई सामिग्री  का  बहुत  कम  अंश  ही याद रख  पायें  .

अपने प्रयोगों में डॉ .सुशील झा ने पाया कि जो चूहे एक काम को सीखने के फ़ौरन बाद छ :घंटा नींद से महरूम रखे गए वे अगले दिन उसी काम को दोहरा नहीं सके .

जबकी चूहों  के जिस समूह ने नींद भर सोया था ,पर्याप्त नींद ले ली थी  उन्हें वह काम याद रहा .

लेब अब इस बात की पड़ताल कर रही है कि क्या पाठ सीखने की क्रिया ,लर्निंग सोने के अंदाज़ ,स्लीप पैट्रन को भी तबदील करती है ? 

बिला शक यदि  आपने किसी तरह का प्रशिक्षण लिया है ,आपने कोई लर्निंग का ढंग सीखा है तब आप अधिक सोयेंगे .

ज़ाहिर है आप थकके नहीं सोयें हैं ,याददाश्त को पुख्ता, पक्का करने के लिए  ,प्राप्त प्रशिक्षण के तहत सोयें हैं .


अलावा  इसके नींद हमारे दिमाग की प्रोटीन  संश्लेषण करने वाली  मशीनरी  ,प्राविधि  को सक्रीय कर देती है .इसका फायदा याददाश्त को पक्का करने में मिलता है .

अलावा  इसके नींद दिमागी विकास में सहायक सिद्ध होती है .यही वजह है कि शिशु ज्यादा सोतें हैं क्योंकि इस दरमियान दिमागी विकास की रफ़्तार सर्वाधिक होती है .डॉ झा अशोशियेट प्रोफ़ेसर हैं न्यूरो -साइंसिज़  विभाग में .आप स्कूल को लाइफ साइंसिज़ से जुड़ें हैं . 


परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब सहायक ही हो यह ज़रूरी नहीं है .


3 टिप्‍पणियां:

udaya veer singh ने कहा…

प्रयोग धर्मी व व्यावहारिक आलेख ,सर्वग्राही व युगीन है स्वास्थ्य प्रहरी की भूमिका ,सराहनीय है ,शुभकामनायें जी

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जी भर कर मेहनत कर लें दिन भर में।

शेखचिल्ली का बाप ने कहा…

achha likha ,

likho khub likho.