ऊंचा वही है जो गहराई लिए है
जो गहरा है वही ऊंचा है
अब समुन्दर को ही लो अपने आकार को मन माफिक घटा बढा लेता है .कितना बड़ा संसार है समुन्दर के अन्दर यदि वह सतह पर आजाये तो समेटे न समेटा जाए .शार्क , वेळ तो बस एक प्रतीक भर हैं उस संघर्ष और जिजीविषा के जो अनवरत सतह के नीचे चलता रहता और सतह पर उस संघर्ष का कोई चिन्ह नहीं कोई संकेत नहीं यदा कदा सुनामी आती है तो उसकी वजह भी खुद समुन्दर नहीं होता सब -डकशन अर्थ कुएक (Subduction earthquake) होता है .समुन्दर के नीचे 10 -11 किलोमीटर की गहराई पर अधिक दाब पर उच्चतर तापमान ४५०सेल्सियस पर उबलते पानी में भी जीव हैं ..इतना समोने की आदत है समुन्दर में है तो समेटने की भी है आकार को चाहे तो आणविक क्या नेनो स्केल पर लेकर चला आये .लेकिन समुन्दर की असल चीज़ उसकी गहराई है जो उसे विशाल हृदय बनाती है पनाह का दया का करुणा का सागर बनाती है .खाद्य का भी सागर है समुन्दर यदि एल्गी को ही खाद्य बना दिया जाए तो सारे जहां का पेट भर जाए .
अपने मृत जीवों को भी पारसियों से आगे निकलके समुन्दर पेट्रोलियम पदार्थों में बदल देता है .और इसीलिए ऊंचा भी वही है जो गहरा है ,जो ऊंचा दिखता है या अपने को ऊंचा कहता समझता है वह ऊंचा यथार्थ में है नहीं .
एक बहुत बड़ी बात हुई है जापान ने देखते ही देखते अपने सारे एटमी बिजली घर बंद कर दिए हैं .एक फुकुसीमा त्रासदी और बस .
अतीत में भी एटमी तबाही से नष्ट होकर जापान एक बार फिर खड़ा हो गया था . जहां संकल्प है वहां सब कुछ है .अमरीका में सबसे ज्यादा घंटा प्रतिदिन काम करने वालों में जापानी शीर्ष पर है .और वही एटमी अश्त्र रखने के भी शायद अधिकारी हो सकते थे लेकिन उन्होंने अमरीकी न्यूक्लियर अम्ब्रेला को ही अपने लिए पर्याप्त समझा बूझा .
बात साफ़ है जो समुन्दर की तरह गहरा है ,ऊंचा है फिर चाहे वह कोई देश हो या कोई शख्शियत वह एटमी अश्त्र रखे .
बौने क्या कर रहें हैं इन अश्त्रों का .?
क्या यह नहीं हो सकता पहले चरण में सभी एटमी असलाह को डिफ्यूज करके संवर्धित युरेनियम एटमी भट्टियों में प्रयुक्त किया जाए और कालान्तर में इसके विकल्प खोज लिए जाए .पृथ्वी को भी सांस लेने दिया जाए .
समुन्दर की विरा -ट -त़ा का भी नाजायज़ फायदा न उठाया जाए .एटमी कचरा गहराई में दफन करके .जहाज़ों में चोरी छिपे भेजके गरीब देशों को .समुन्दर सब देख रहा है .ऊंचाई से सब दिखाई देता है लेकिन वह ऊंचाई समुन्दर वाली होनी चाहिए .
किसी देश को आज यह हक़ हासिल नहीं है वह एटमी अश्त्र रखे शेष को हडकाए .ईरान की तरह .बेहतर हो समुन्दर के हवाले कर दें .वही मार्ग दर्शक बनेगा .
किसी ने देखा है समुन्दर को अपना आपा खोते .अपनी सहनशीलता खोते .
17 टिप्पणियां:
सही फ़रमाया आपने
सच है, भवन जितना ऊँचा होता है, नींव उतनी ही गहरी बनानी होती है।
ऊँचा-ऊँचा बोल के, ऊँचा माने छूँछ |
भौंके गुर्राए बहुत, ऊँची करके पूँछ |
ऊँची करके पूँछ, मूँछ पर हाथ फिराए |
करनी है यह तुच्छ, ऊँच पर्वत कहलाये |
किन्तु लील ले लाख, समन्दर इन्हें समूचा | |
जो है गहरा शांत, सभी पर्वत से ऊँचा ||
किन्तु सके सौ लील, समन्दर इन्हें समूचा | |
पर्वत की गर्वोक्ति पर, धरा धरे ना धीर |
चला सुनामी विकटतम, सागर समझे पीर |
सागर समझे पीर, किन्तु गंभीर नियामक |
पाले अरब शरीर, संभाले सब बिधि लायक | |
बड़वानल ले थाम, सुनामी की यह हरकत |
करे तुच्छ एहसास, दहल जाता वो पर्वत |
तथाकथित उस ऊँच को, देता थोडा क्लेश |
शान्त समन्दर भेजता, मानसून सन्देश |
मानसून सन्देश, कष्ट में गंगा पावन |
जीव-जंतु हलकान, काट तू इनके बंधन |
ब्रह्मपुत्र सर सिन्धु, ऊबता मन क्यूँ सबका ?
अपना त्याग घमंड, दुहाई रविकर रब का ||
तप्त अन्तर है भयंकर |
बहुत ही विक्षोभ अन्दर |
जीव अरबों है विचरते-
शाँत पर दिखता समंदर ||
पारसी छत पर खिलाते |
सुह्र्दजन की लाश रखकर |
पर समंदर जीव मृत से -
ऊर्जा दे तरल कर कर ||
बढ़ी समस्या खाद्य की, लूट-पाट गंभीर |
मत्स्य एल्गी के लिए, चलो समंदर तीर |
चलो समंदर तीर, भरे भण्डार अनोखा |
बुझा जठर की आग, कभी देगा ना धोखा |
सागर अक्षय पात्र, करेगा विश्व तपस्या |
सचमुच हृदय विशाल, मिटाए बढ़ी समस्या ||
जो गहरा है वही ऊंचा है,,,,,,,,
आपने सही कहा ........अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
MY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
लम्बी-चौड़ी हाँकते, बौने बौने लोग |
शोषण करते धरा का, औने-पौने भोग |
औने-पौने भोग, रोग है इनको लागा |
रखता एटम बम्ब, दुष्टता करे अभागा |
रविकर कर चुपचाप, जलधि के इन्हें हवाले |
आफत के परकाल, रखे गहराई वाले ||
धरती भरती जा रही, बड़ी विकट उच्छ्वास |
बरती मरती जा रही, ले ना पावे साँस |
ले ना पावे साँस, तुला नित घाट तौलती |
फुकुसिमी जापान, त्रासदी रही खौलती |
चेतो लो संकल्प, व्यर्थ जो आपा खोते |
मिले कहाँ से आम, अगर बबुरी-बन बोते ||
मान्यवर ,रविकर जी ,गद्य तो मात्र पृथ्वी की ही परिक्रमा है लेकिन पद्य धरती और आकाश दोनों की परिक्रमा है .आपने एक महत काम किया है यह काव्य -रूपांतरण करके .वागीश मेहता जी को तमाम कुंडलियाँ सुनाईं.आप तक उनकी प्रशंशा पहुंचा रहा हूँ .स्वीकार करें और मेरा नेहा और सलाम .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
समुन्दर गहरा है सो ऊँचा भी है..बहुत सार्थक सोच.आभार!
आलेख (रविकर जी के छन्द भी) बहुत विचारपूर्ण और आँखें खोलनेवाले, लेकिन जिसे समझना है वही आँखें बंद किये रहे तो कोई उसका क्या कर लेगा !
वीरुभाई, कृपया सुधार करें :
' अस्त्र ' होना चाहिए न कि ' अश्त्र ' |
और ' विराटता ' शब्द भी कुछ अटपटा लगा |
बेशक आईदा अस्त्र ही लिखा जाएगा .धन्यवाद .
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