ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -२ )
एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस है क्या ?
Antibiotic resistance ,the Achilles Heel of modern medicine ,is the ability of bacteria to become immune to a drug that once stalled them or killed them .
जी हाँ आधुनिक चिकित्सा का कमज़ोर पक्ष दुखती नस है दवा प्रति -रोध .वही दवा जो कभी असरदार होती है कालान्तर में निष्प्रभावी हो जाती है जीवाणु उससे बे असर रहना सीख जाता है .आखिर सृष्टि का पहला जीव जीवाणु ही तो है जो आज भी सर्वोत्तम की सर्व -श्रेष्ठता सिद्धांत का अनुगामी अनुचर बना हुआ है .वही बात है तू डाल डाल मैं पात पात .एक तरफ एक के बाद नै पीढ़ी के एंटी -बायोटिक्स आ रहें हैं दूसरी तरफ जीवाणु अपना रूप विधान तेज़ी से बदल लेता है म्युतेट हो जाता है . निष्प्रभावी कर देता है दवा को .
दरअसल जीवाणु कुछ जीवन इकाइयां (जींस )संजोता है ताकि दवा पे हल्ला बोल सके मुलायम यादवी हल्ला बोल .बस घुस पैंठ होने की देर है कुनबा परस्ती, द्विगुणित होना शुरु कर देता है जीवाणु .अब या तो अपना रूप (प्रोटीन आवरण )ही बदल लेता है या फिर अपने कुनबे के तमाम लोगों को तमाम जीवाणुओं को प्रति रोधी जींस थमा देता है भागे दारी करता है उनके साथ रेज़ीस्तेंट जींस की .
देर से चेत रहा है मुंबई जो कभी पुरसुकून बे -फिकरी और खुशमिजाजी के लिए जाना जाता था जबकि इस महा -नगरी को इस खतरे को पहले भांपना था .
आसानी से इल्म नहीं होता है ड्रग रेजिस्टेंस का
वो तो जब अचानक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता बीमारी से उबरता शख्श यकायक रोग जटिलता ,पेचीला पन प्रदर्शित करता है लक्षणों से तब चिकित्सकों को शक होता है कि यह ड्रग रेजिस्टेंस हैं .
यही कहना है डॉ .पंजाबी का .आप लेप्रास्कोपिक सर्जन हैं फोर्टिस अस्पताल में .
क्या कहतें हैं डॉ अल्ताफ पटेल साहब इस बाबत
हमारे अस्पताली माहौल में एंटी -बायोटिक्स (प्रति -जैविकी पदार्थ /दवाएं ) लगातार अपनी धार खोकर बे -असर हो रहीं हैं .सारा माहौल ही संक्रमित है .अस्पताल खुद बीमार हैं .
आप एक मर्तबा दिल के दौरे से उबर आयेंगे .प्रबंधन कर लिया जाएगा हार्ट अटेक का .लेकिन यदि गहन देखभाल कक्ष में न्युमोनिया संक्रमन लग गया तब -तुझको रख्खे राम तुझको अल्लाह रख्खे .मौत हो सकती है आपकी .
BIG CITY BIG TROUBLE
महानगर में होती है बड़ी समस्याएं ,महा -रोग
जीवाणुओं को द्विगुणित होने का पूरा माहौल मुहैया करवाती है मुंबई नगरिया .ये है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ -
उमस भरा होता है यहाँ मौसम बे -मिजाज़ .साफ़ सफाई और स्वास्थ्य विज्ञान का यहाँ नितांत तोड़ा है .राज ठाकरे साहब से पूछ देखो क्या होती है - POOR HYGIENE .पुरबियों ,उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर ठीकरा फोड़ देंगें टेक्सी ऑटो वालों की पिटाई कर देंगें कहते हुए इन्हीं लोगों ने मुंबई को गंदा किया है .मारो सालों को .
गैर -भरोसे मंद स्ट्रीट फ़ूड यहाँ इफरात से है .पेय जल अपेय है .अपने खतरे पे पियो .निर -जीवाणुक हो इसकी कोई गारंटी नहीं है .शौचालयों का अभाव है .यहाँ भी खुले में जंगल जातें हैं लोग .पूरे मरीन द्राव वे पर एक शौचालय /मूत्रालय है .जय हो वृहन (महानगर) पालिका .जय बी .एम् .सी .अस्पताल यहाँ खचाखच भरे हैं .बचावी उपाय अस्पताली संक्रमण के नदारद हैं .हैं भी कहीं कहीं तो उन्हें अपनाना मुमकिन नहीं .हेल्थ प्रोवाइदर्स कम मरीज़ ज्यादा ऐसे में एक से दूसरे मरीज़ को टीका लगाने के लिए पहुँचने से पहले हाथ धोना भी हमेशा मुमकिन नहीं होता.जबकि बहुत सारे मामले संक्रमण के इस सरल उपाय से टाले जा सकतें हैं .यहाँ कौन किसको दोष दे . एक अनार सौ बीमार वाली बात है .
इसमें आप जोड़ दीजिये उन फ्लाई -बाई -नाईट ,बे -ईमान लालची अल्पकालिक चिकित्सकों को जो कम समय में अधिक से अधिक लाभ कमाने के लालच में बिना सोचे समझे नुश्खे लिख देतें हैं ,जबकि इन्हें दवा के औषध विज्ञान फार्मा -कोलोजी का जरा भी इल्म नहीं है न दवा की डोज़ का न ली जाने वाली अवधि का .न इस बात का कौन सी दवा कब दी जाए . लेकिन सब चलता है साहब पचास फीसद निजी प्रेक्टिशनर ऐसे ही (इच) है .
मरीज़ भी जल्दी में है .उसे ठीक होने की जल्दी है काम पे दिहाड़ी कट जायेगी ..डॉ .तो पहले ही करिश्मा दिखाने को तैयार बैठा है .ऐसी ही एक कमसिन मोहतरमा २३ वर्षीय छात्रा (घाटकोपर वासी )अपने पारिवारिक चिकित्सक द्वारा दवा लिखी गई माइल्ड डोज़ को परे करके एक भकुए के पास पहुंची उन्होंने इसे दस दिन के एंटी -बायोटिक इंजेक्शन कोर्स पर डाल दिया .उसे लगा ठीक हो गई दवा बंद करते ही यह छात्रा मष्तिष्क तंतु शोथ (मेनिंजाईतिस, Meningitis) की चपेट में आगई .फिलवक्त ये घाटकोपर अस्पताल में भरती हैं इन्हें रोग से उबरने में खासा वक्त लग रहा है .रिकवरी स्लो है .
गत तीन सालों में मुंबई नगरिया एंटी -बायोटिक्स के एक विषमय चक्र में फंस गई है जिसे देखो एंटी -बायोटिक लिख रहा है सर्दी जुकाम में भी .पूछो तो कहता है भाई साहब यह सेकेंडरी इन्फेक्शन मुल्तवी रखने के लिए है .
बकौल डॉ अमोल मनेरकर -मरीज़ आता विषाणु संक्रमण लेकर है और दवा दे जाती है उसे जीवाणु रोधी एंटी -बायोटिक .ये सरासर गलत है .आप कोहिनूर अस्पताल से सम्बद्ध हैं .वायरस के खिलाफ जबकि बे -असर रहतीं हैं एंटी -बायोटिक दवाएं फिर भी धडल्ले से लिखी जा रहीं हैं .
(ज़ारी.... )
13 टिप्पणियां:
रोचक अंदाज में उपयोगी जानकारियां। आभार।
क्या बात है!!
आपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 21-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-886 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
आज तो आपने मेरे शहर के बारे में लिखा है सर||||
ध्यान देनेवाली उपयुक्त जाकारी से भरी बेहतरीन पोस्ट:-)
सबको सचेत करती उपयोगी प्रस्तुति,...अच्छी प्रस्तुति,,
RECENT POST काव्यान्जलि ...: किताबें,कुछ कहना चाहती है,....
hame sachet karti hain aapki ye jankariyan.
aabhar.
बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....
इंडिया दर्पण की ओर से आभार।
आभार |
बढ़िया प्रस्तुति ||
रोचक अंदाज ..... उपयोगी जानकारियां, आभार...
बहुत ही उपयोगी जानकारियां रोचक अंदाज में..बहुत सुन्दर...
उपयोगी एवं सार्थक जानकारियां....
हमारे देश में “आधे डाक्टर” क्वैक्स भी “ला रजिजटेन्स” हो गए हैं... यह भी उतनी ही चिंता की बात है....
सार्थक जानकारी देती हुई शृंखला...
सादर आभार सर...
baut hee rochak jaankari...aaj to kafi bistrit tareeke se padhne ko mila
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बहुत मेहनत से बेहद उपयोगी जानकारियों का खजाना भर दिया है आपने। पाठकों से निवेदन है एक-एक पंक्ति ध्यान से पढ़ें। बहुत अहम् जानकारी दी गयी है। आजकल लोग antibiotics को टॉफी की तरह खाते हैं , बिना उसके साइड इफेक्ट्स के बारे में जाने हुए। इस कदर मन-मर्जी , जबरदस्ती के प्रयोग करने से pathogens रेसिस्टेंट हो जाते हैं , फिर वह antibiotic बे-असर हो जाती है उस व्यक्ति पर।
उम्दा एवं उपयोगी आलेखों की श्रंखला के लिए आभार।
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