आदमी के खून से रोशन होता है यह भूतहा लैम्प
एक अमरीकी अन्वेषक माइक टामसन(थोमसन ) ने एक ऐसा भूतहा लैम्प तैयार किया है जो आदमी के ताज़ा खून से चलता है .इसे ' Dracula lamp ' कहा जा रहा है .
इसके काम करने का तरीका बड़ा आसान है बस किसी धार दार कंटीली चीज़ में किसी आरी या कटे हुए कांच में अपना कोई अंग फंसाओ और रिसने दो खून को उस जगह जहां लैम्प में कुछ रसायन रखें हैं .चंद टेबलेट्स रखीं हैं .
यही रसायन खून में कौजूद तत्वों से संयुक्त होने पर नीला प्रकाश रुक रुक के छोड़ते हैं .तब सृष्टि होती है एक रहस्य रोमांच की .भूतहा रोशनियों की .आप चाहे तो इसकी तुलना संदीप्ति और उत्तर संदीप्ति प्रभाव (flourescence and phosphorescence ) से कर सकतें हैं .
टामसन ने एक विडीयो भी तैयार किया है जिसमें एक अँधेरे सीलन भरे कमरे में एक युवती अँधेरे में बैठी है .एक धारदार आरी जैसी कोई चीज़ रखी है जिसके सिरे को महिला अपनी ऊंगली से परे सरकाती है . एक महीन धारा खून की फूटती है और लैम्प भूतहा रोशनियों के साथ रोशन हो जाता है .
यह कोई विज्ञान गल्प नहीं है अधुनातन समाज का रूपक है जहां व्यक्ति एक इस्तेमाल करके फैंक देने वाले समाज में ज़िंदा है फिर वह चीज़ चाहे व्यक्ति हो या कोई जिंस .
सन्देश यह है कि क्या बे तहाशा ऊर्जा का उपभोग करने के लिए यदि आपको अपने शरीर से खून निकालना पड़े तो क्या आप हर बार ऐसा करेंगे ?आप खून को बेहद नहीं रिसने देंगें मौत के खौफ से लेकिन पर्यावरण की जीवन से जुडी नव्ज़ को आप लगातार बेहिसाब तोड़ रहें हैं .
थामसन अमरीकी समाज के दैनंदिन ऊर्जा उपभोग के आकड़ें प्रस्तुत करतें हैं .
एक औसत अमरीकी एक बरस में 3385 kilo watt hr ऊर्जा उड़ा देता है .इससे हमारा पर्यावरण लगातार छीज रहा है .पर्यावरण की लय ताल टूट रही हैं .इको सिस्टम (पारितंत्र ) एक एक करके टूट रहें हैं .
यदि जीवन इसी रफ़्तार यूज़ एंड थ्रो अंदाज़ में चलता रहा तो एक दिन पर्यावरण ही जीवन को लील जाएगा .
लेकिन भारत के सन्दर्भ में यहाँ एक संकट और भी बड़ा है .यहाँ हरेक नेता खून चूसने वाला एक विशालकाय चमकादड है जो ६५ सालों से गरीब जनता का खून चूस रहा है .
उसके लिए इस लैम्प को सुलगाये रहना कोई नै बात नहीं होगी .
अलबत्ता लालू प्रसाद जी से सावधान रहना होगा जिनको खून से लालटेन जलाने की जुगत हाथ लग सकती है .फिलवक्त उनकी लालटेन खुदा का फजल है बुझी हुई है .
अभी तक तो बात चारे तक ही सीमित थी .
कपिल सिब्बल भी मानव के विकास के लिए एक अप्रतिम संसाधन के रूप में इस लैम्प को इस्तेमाल कर सकतें हैं जिन्हें अपने मंत्रालय की अवधारणा ही स्पस्ट नहीं है जिसका नाम है
मानव संसाधन मंत्रालय .पूछा जा सकता है -
क्या मानव एक संसाधन है बैल और आदमी और पेट्रोल में क्या कोई फर्क नहीं है उस पर तुर्रा यह कि शिक्षा मंत्रालय को इस मंत्रालय की कोख में बतलाया जा रहा है .जबकि यह कोख शिक्षा को वैसे ही लील चुकी है जैसे विकसित कोख कन्या भ्रूण का शमशान बनी हुई उन्हें प्रसव पूर्व ही लील रही है .
यह मंत्रालय मानव के विकास के लिए तो संसाधनों का विकास नहीं कर रहा जैसा अभी पेट्रोल का एक संसाधन के रूप में हुआ है .और अगर यह मानव के लिए विकास के संसाधन जुटा रहा है तो बाकी इतने सारे मंत्रालयों की कहाँ ज़रुरत है .ज़ाहिर है सरकार की नीतियाँ इसी तरह अस्पष्ट हैं जैसे इस मंत्रालय का अस्पष्ट नामकरण .परिणाम भी वही होना था जो हुआ है .
क्या पेत्र्ल म्कम्पनियाँ इस देश को चला रहीं है मानव विकास की आड़ में यदि नहीं तो सरकार क्या कर रही है ?
काबिना मन्त्रियों की वैम्पायर फौज ऐसे में क्यों और कहाँ ज़रुरत है .
ये तमाम सवाल भी इस भूतहा लैम्प से जुड़ें हैं जुदा नहीं है .
6 टिप्पणियां:
बहुत रोचक और सटीक प्रस्तुति...
बहुत रोचक और सटीक प्रस्तुति...
आपकी हर प्रस्तुति का विषय अनोखा और जानकारी अद्यतन होता है।
अन्ततः विचारणीय प्रश्न ही उठा जाता है यह विषय।
पहली बार जाना इस बारे में .... विचारणीय
बहुत रोमांचक अनोखी प्रस्तुति,,,,,,,,
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