बुधवार, 23 मई 2012

ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )

ये है बोम्बे मेरी जान (अंतिम भाग )

THE DRUG DILEMMA     

एंटी -बायटिक हाँ या न एक दुविधा 

महकमे के अनुरूप  व्यवस्था और विवेकपूर्ण निर्णय किसी भी स्थिति में ज़रूरी होता है 

अकसर यह निर्णय पीड़ा से कराह रहे मरीज़ केकिसी रिश्तेदार के  हाथों में खिसक आता है उसकी अधीरता इसके लिए उत्तरदाई बन जाती है .डॉ कृष्णकांत कहतें हैं -कई मर्तबा आप डॉ पर तोहमत नहीं लगा सकते यदि वह जो भी अपने पास उपलब्ध  अस्त्र   हैं उन्हें आजमाने के लिए तैयार हो जाता है रोग के खिलाफ .


डॉ मंरेकर एक कदम आगे निकलके खुद अपना दृष्टांत प्रस्तुत करतें हैं दो टूक बेलाग बिंदास अंदाज़ में -

'बावजूद इस तथ्य के कि मैं क्या कहता हूँ और अपनाता हूँ अपनी( निजी )प्रेक्टिस में एक पिता की बैचैनी मुझे उतावला व्यग्र बना देती है और मैं अपने दो साला बेटे को फट एंटी -बायटिक देने की सोचने लगता है तब जब उसका ज्वर एक दम  ऊपर चला जाता है .

तब मेरी मदद को मेरी डॉ पत्नी यह कहते हुए आगे आतीं हैं -"इसकी कोई ज़रुरत नहीं है "

बदलाव और इन प्रति -जैविकी पदार्थों के प्रति एक अनुराग एक ओबसेशन को बदलने की हम सभी को  फौरी ज़रुरत है .

आखिर में दुष्यंत जी के शब्दों में यही कहना मुनासिब और  स्थिति के अनुरूप लगता है -

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं है  ,लेकिन ये सूरत बदलनी चाहिए ,

अब तो इस तालाब का पानी बदल दो ,सब कमल के फूल मुरझाने लगें हैं .

(संपन्न ) 



ये बोम्बे मेरी जान (भाग -5)

ये बोम्बे मेरी जान (भाग -5)


HOSPITAL  DISTRESS    




मुंबई के गली कूचे सड़कें बाजारें ही नहीं अस्पताल भी भीड़ भाड से भरें हैं . यही वह माहौल है वह जगह जो   दवा प्रति -रोधी जीवाणु के पनपने के सर्वथा अनुकूल है .


Haffkine  Institute के निदेशक डॉ .अभय चौधरी इस बात की हामी भरते हैं ,हमारे अस्पतालों में आज आम चर्चा का विषय बना हुआ है Methicillin -Resistant Staphylococcus Aureus (M R  S A).चमड़ी के पीड़ा दायक संक्रमण की वजह बनता यह दवा प्रति -रोधी जीवाणु .अन -उपचारित रह जाने पर यही रक्त और अंग संक्रमण का सबब बन जाता है,मृत्यु का भी .

बेशक आज स्थिति फिर भी नियंत्रण में है .भविष्य के गर्भ में क्या है इसका कोई निश्चय नहीं .इसका (इससे पैदा बीमारी ) का प्रकोप एक महामारी का क्या ,विश्व -मारी (आलमी रोग )की वजह बन सकता है .

यदि डॉ और नर्सिंग स्टाफ अन्य स्वास्थ्य कर्मी  कठोरता से संक्रमण से  बचाव के परम्परा गत उपाय भी अपनाए तो संक्रमण की दर तकरीबन 80% कम हो सकती है .

(1)हाथ नियमित और नियमानुसार धोना  भले स्पिरिट्स से विसंक्रमित करना एक सहज उपाय है .आखिर आप एक मरीज़ का जायजा लेने के बाद दूसरे  की जांच के लिए जा रहें हैं उससे सम्पर्कित हो रहे हैं .लेकिन जहां यह जागरूकता है भी वहां स्टाफ लेक्स है उच्च मानकों के मामले में ढीला है शिथिल है उदासीन है .क्या कीजिएगा ऐसे में ?


बेशक BMC के मर्जों से ठसाठस भरे अस्पतालों में जहां अतिरिक्त बेड्स लगाने के बाद ज़मीन पर भी बेड लगाए गए हैं यह मानवीय तरीके से मुमकिन भी नहीं है .ऐसे में साफ़ सफाई कैसे रखी  जाए ?दो हज़ार के पीछे बा -मुश्किल एक स्वास्थ्य कर्मी है यहाँ क्या पूरे हिन्दुस्तान में ही .


TB TERROR 

    For a country that has the highest TB cases and a quarter of the world's pneumonia patients , India's antibiotic fixation is worrisome.

लेकिन साहब प्रति -जैविकी पदार्थों के प्रति असामान्य रूचि और लगाव यहाँ है तो है .मैं और आप क्या कर लेंगें ?

अमरीका आधारित एक हालिया शोध (US -based Disease Dyanics)ने इस तथ्य का खुलासा किया है ,गत छ :वर्षों में ही भारत में एक आखिरी उपाय के रूप में आजमाया जाने वाला बेहद शक्तिशाली 'Last -resort antibiotic 'Carbapenems बे -हिसाब भकोसा गया है .


Quinolones ,तपेदिक के खिलाफ फस्ट लाइन लेकिन एक दम से ज़रूरी लाइन ऑफ़ डिफेन्स के बतौर  खाया जाता है .यहाँ यह बिना डॉक्टरी पर्ची (नुस्खे ,प्रिस्क्रिप्शन )के न सिर्फ उपलब्ध  है ,बुखार और कोमन फ्ल्यू में भी खाया जा रहा है .बिना प्रिस्क्रिप्शन के इसकी धड़ल्ले से बिक्री ज़ारी है .

इसी मनमाने विवेकहीन बेहद के बिना सोचे विचारे बेदर्दी के साथ  इस्तेमाल किये जाने के कारण ही यह तपेदिक के खिलाफ अब बेअसर सिद्ध हो रहा है . 

Multiple Drug Resistance (M D R):

       हिंदुजा अस्पताल के एक तपेदिक रोग के माहिर डॉ .ज़रीर उद्वाडिया साहब ने व्यापक तौर पर MDR टोटल ड्रग रेजिस्टेंस (TDR) तपेदिक रोग  का अध्ययन विश्लेषण किया है .व्यापक शोध  की है रोग की इस किस्म पर .

बकौल आपके जहां Flouroquinolones के प्रति प्रतिरोध (रेजिस्टेंस )1996 में 3%ही था ,2004 में बढ़कर 35 % हो गया .

ये आंकड़े हमें साफ़ चेतावनी देतें हैं ,इन दवाओं का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ उन इलाकों तक सीमित रखा जाए जहां यह नियमित रूप से पैर पसारे रहता है बना रहता है एक ENDEMIC के रूप में .यानी TB -endemic areas  तक ही इस दवा की पहुँच हो .

धारावी क्षेत्र का सर्वे क्या कहता है 

     यहाँ तकरीबन 106 लिस्टिड कायां चिकित्सकों (फिजीशियंस ) का एक सर्वे किया गया यह पता लगाने के लिए ,तपेदिक के लक्षणों वाले मरीजों को यह कैसे एंटी -बायटिक तजवीज़ करतें हैं .कैसे क्या और कितना नुस्खे पे लिखते हैं इन प्रति जैविकी  पदार्थों को ?

इनमे से केवल 46 बाकायदा योग्यता प्राप्त मान्य चिकित्सक थे .बाकी वैकल्पिक चिकित्सा यथा होमिओपैथी ,आयुर्वेद या फिर यूनानी चिकित्सा पद्धति का प्रशिक्षण प्राप्त थे .लेकिन इनका बहुलांश धड़ल्ले से अलोपिथिक चिकित्सा पद्धति को प्रेक्टिस  के बतौर अपनाए हुए था .

इनमे से केवल पांच ही सही नुस्खे लिख सके थे .निर्धारित और सिफारिश की गई  अवधि के लिए खुराक और दवा इन्होनें सही सही लिखी थी नुस्खे पर .

शेष ने या तो दवा गलत लिखी थी या उसकी अवधि या फिर खुराक की मात्रा .

डॉ कटोच  कहतें है बहुत मुमकिन है ड्रग रेजिस्टेंस से पार पाना .

1982 में leprosy multi- drug resistance 
20%  से भी ज्यादा था लेकिन बाद के सालों में जब यही मरीज़ मान्य चिकित्सकों के पास इलाज़ के लिए पहुंचे और उन्होंने सिर्फ दो ही एंटी -बाय्तिक्स काम में लिए यह काबू में आगया और कालान्तर में विलुप्त हो गया .

ALWAYS THERE IS A SILVER LINING 

(ज़ारी.. ) 

यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )

यह बोम्बे  मेरी जान  (चौथा भाग ) 

यह बोम्बे  मेरी जान  (चौथा भाग ) 

THE FAMILY DOCTOR

गिर्गौम में एक क्लिनिक ९० सालों से सेवा रत है यहाँ आपको मिलेंगे डॉ .कृष्णकांत ढेबरी .इनके पिता श्री आर पी ढेबरी साहब जनरल प्रेक्टिशनर संघ के संस्थापक थे .वह दौर १९६० के दशक का था .बकौल डॉ .कृष्ण कान्त मुंबई नगरी के तकरीबन तकरीबन ५०%चिकित्सक या तो पूरी तरह योग्यता प्राप्त नहीं हैं अंडर क्वालिफाइड हैं या फिर नीम हकीम .संघ का आशय इन प्रेक्टिश साहब जादों की समस्याओं को हल करना था .एहम सवालों पर एक आम राय कायम करना भी था चिकित्सा से जुड़े होते थे ये तमाम सवाल .इन सवालों में ड्रग रेजिस्टेंस भी शुमार था .

अब इन पर किसी का जोर नहीं है ये क्या नुस्खा लिखते हैं इस मामले में किसी का कोई दखल नहीं है .और ऐसा आप यूं ही नहीं कहते उस दौर के तमाम दस्तावेजों को खंगालने के बाद साक्ष्य प्रस्तुत करते हुए कहते हैं .

६२० अरब रुपयों का धंधा करता  है भारत का औषध उद्योग ,फार्मासितिकल इंडस्ट्री .एक ही मकसद एक ही इरादा रहता है इस उद्योग का कैसे अपने ब्रांड को  आगे किया जाए .आम प्रेक्टिशनर झट मंहगे ब्रोड स्पेक्ट्रम एंटी -बायोटिक का नुस्खा लिख देता है जबकि तीस रूपये की दस गोलियों का एक पत्ता भी वही काम करता है .

जिस जीवाणु ,रोगकारक  को आप एक साधारण (फोर्मूलेशन )गोली से मार सकते हैं उस पर ब्रोड स्पेक्ट्रम इंटर -कोंतिनेंतल मिसाइल(स्ट्रोंग एंटी -बायोटिक ) आजमाने की कहाँ ज़रुरत है ?

डॉ मंरेकर इस विचार का समर्थन करते हुए कहते हैं -

        सर्दी के संग आने वाले बुखार मलेरिया में मैं एक रूपये की एक गोली CHLOROQUINE ही तजवीज़ करता हूँ .दो तीन दिन में आप के पैरों में फिर से जान आजाती है .डॉ मनरेकर अपने एक मरीज़ का किस्सा कुछ यूं बयान करतें हैं -'डॉ साहब आप मुझे वह २०० रूपये वाला इंजेक्शन क्यों नहीं लगाते हैं .मेरे उससे असहमति व्यक्त करने पर वह मुझे छोड़कर वहीँ चला जाता है .

तो ज़नाब मरीज़ भी माशा अल्लाह हैं .एक से बढ़कर एक .

OH CARP!

स्ट्रोंग  एंटी  -बायोटिक  का  इस्तेमाल  करने  का  मतलब  है  हम  स्थिति में कोशिश तो सुधार लाने की कर रहें हैं लेकिन सत्या नाश बुरे के साथ लाभदायक अच्छी नेक बेक - टीइरिया का भी कर रहें हैं .

GOOD BACTERIA OR GUT FLORA 

     हमारा तमाम पाचन क्षेत्र २,२ किलोग्राम जीवाणुओं को पनाह दिए हुए है .इस HUMAN DIGESTIVE TRACT की  प्रकृति प्रदत्त महिमा अपार है  . 

लेकिन एंटी -बायोटिक का गैर ज़रूरी सैलाब अपने साथ तमाम दोश्त जीवाणुओं को भी बहा  लेजा है .ऐसे में रोग कारकों की पौ बारह हो जाती है खुलके खेलतें हैं  पैथोजंस .

यही कहना  है माइक्रो -बायो -लोजिस्ट (सूक्ष्म जैविकी विद )डॉ .प्रीती मेहता का .आप KEM अस्पताल  से  सम्बद्ध  हैं  .


दुखद और घातक पहलु एक और भी है 

शहर की अंतड़ियों(सीवरेज सिस्टम ) को देखिये बेहाल हैं .वहां बिलबिला रहें हैं अरबों खरब दवा प्रति -रोधी जीवाणु .उत्परिवर्तित हो रहें हैं .यह म्युटेंट फॉर्म और भी ज्यादा घातक होती चली जाती है .खुले में शौच के लिए निकलने वालों का भी इसमें बड़ा योगदान है .यही गत ६५ सालों का हासिल है .लोगों के पास शौचालय नहीं हैं .खुले में जंगल जाना पड़ता है .पोखर गंदे नालों से मल साफ़ करना पड़ता है .

ऐसे घटाटोप में इन जीवाणुओं को पनपने खुलके खेलने का मौक़ा खूब मिलता है .ये कब हमारी हवा में आजातें हैं इसका पता ही  नहीं चलता .बा -रास्ता भू -जल ये हमारी खाद्य श्रृंखला में भी निस्संकोच  चले आतें हैं .देख भाल के खाइए स्ट्रीट फ़ूड .


बरसात आने वाली है और तब और भी कहर ढातें हैं ये जीवाणु .

प्रति -वर्ग किलोमीटर ज्यादा लोगों का ज़माव फिर चाहे वह लोकल हो या अस्पताल ,बाज़ार हो या फ़ूड पार्क संक्रमण को और सहज सम्प्रेश्नीय बना देता है .

(ज़ारी ...).



कब असरकारी सिद्ध होता है एंटी -बायटिक : ये है बोम्बे मेरी जान (तीसरा भाग ):

कब असरकारी सिद्ध होता है एंटी -बायटिक 


   ये है बोम्बे मेरी जान (तीसरा भाग ):कैसे इस्तेमाल में लिया गया है प्रति -जैविकी पदार्थ ? क्या ज़रूरी होने पर ही या ...?

क्या हर मामले में सही डोज़ का निर्धारण हो सका है ?

क्या सही अवधि तक दवा तजवीज़ की गई है ?

क्या दवा का निर्धारण करते वक्त शरीर की तौल और रोगी की उम्र को मद्दे नजर रखा गया है ?

यदि इन तमाम सवालों के ज़वाब सकारात्मक हैं 'हाँ 'में है तब और केवल तब ही एंटी -बायोटिक अपना पूरा असर दिखा पायेगा .यह कहना है डॉ शिवकुमार साहब का .Dr Shiv kumar Utture  महाराष्ट्र चिकित्सा परिषद् के सदस्य तथा तथा भारतीय चिकत्सा संघ के पूर्व मुखिया भी रह चुकें हैं . 


KEM अस्पताल के डॉ.ए के ग्वालानी क्या कहतें हैं इस बाबत ?


जो लोग दवाओं के औषध   विज्ञान से ही वाकिफ नहीं हैं ,जीवाणु विज्ञान की जिन्हें समझ नहीं है ऐसे तमाम लोग धड़ल्ले से तजवीज़ कर देतें हैं एंटी -बायोटिक .और इसी अभिज्ञता से जीवाणु को पनपने में बड़ी मदद मिलती है .जब भी और जितनी मर्तबा आप जीवाणु -प्रति -रोधी  दवाओं एंटी -बायोटिक्स का कोर्स करतें हैं .जीवाणु की कमज़ोर किस्म ज़रूर नष्ट हो जाती हैं लेकिन ताकत दार किस्म घात लगाके शरीर में ही छिप जाती है अगले हमले की ताक में .

जब आप कोर्स पूरा भी नहीं करतें हैं बीच से ही भाग खड़े होतें हैं 

बेक्टीरिया एंटी -बायटिक से लड़ने की रणनीति बना लेता है और डटके मुकाबला करता है .द्विगुणित होने लगता दोबारा .तब ऐसा ही प्रतीत होता है हम हारी हुई लड़ाई ही लड़ रहें हैं .वर्तमान में  कुछ ही शेष बचे असरकारी एंटी -बायोटिक का इस्तेमाल ही  हो पा रहा है .

चिकित्सा विज्ञान का बी. ए पास बाकायदा डिग्री सुशोभित MBBS डॉक्टरों  ने भी इस स्थिति को लाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी हैं .बहुलांश में दोषी  वही हैं प्रति -जैविकी पदार्थों के मनमाने इस्तेमाल के लिए .नीम हकीम तो छोटी मछली हैं .जिन्हें दवा कम्पनियों की तरफ से कोई तोहफे भी नहीं मिलतें हैं .

केवल यदि विषाणु से पैदा रोगों में एंटी -बायोटिक दवाओं का चलन बंद हो जाए तो एक तरफ बे -तहाशा इनकी बिक्री का ग्राफ नीचे आजाये दूसरी तरफ वर्तमान स्थिति और दुरावस्था को प्राप्त न होवे .

ज्यादा - तर माहिर मानते ,बूझतें हैं : यदि संक्रमण को अपना चक्र पूरा करने दिया जाए और लक्षणों के आधार पर यानी लक्षनात्मक, रोग सूचक,SYMPTOMATICALLY   ही मरीज़ का उपचार किया जाए तो यह एक बेहतर स्थिति होगी बढ़िया रणनीति होगी .लेकिन ?

और इस लेकिन का कोई ज़वाब नहीं है 

क्योंकि यहाँ हर शख्श  जल्दी में है. हर कोई पहले ही दाव में  पहले ही मौके में रोग मुक्त होना चाहता है .

ऐसे में जब डॉ को कुछ समझ नहीं आता .मर्ज़ का ठौर नहीं ले पाता वह एंटी -बायोटिक आजमाता है .रामबाण समझ लिया गया है इन प्रति -जैविकी पदार्थों को .करिश्मा दिखाने का दवाब जो है उस पर .डॉ मनरेकर  का यही कहना है .

डॉ विश्व मोहन  कटोच कहतें हैं यह मामला कुछ यूं हैं बहुत बड़ी संख्या है ऐसे  डॉक्टरों की जो  बहुत सारे एंटी -बायोटिक आजमा रहें हैं . 

आप भारतीय  चिकित्सा शोध परिषद् के महा -निदेशक हैं .

फौरी ज़रुरत है आज की : इन गोलियों का बे -हूदा चलन रोका जाए .लोगों को छोटा मोटा संक्रमण बर्दाश्त भी करना चाहिए .

A SMAAL DOSE OF BACTERIA WARDS OFF A BIGGER INFECTION .

(ज़ारी ...).


ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -२ )

ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -२ )

एंटीबायोटिक्स  रेजिस्टेंस है क्या ?

Antibiotic resistance ,the Achilles  Heel  of modern medicine ,is the ability of bacteria to become immune to a drug that once stalled them or killed them .

जी  हाँ  आधुनिक चिकित्सा का कमज़ोर पक्ष दुखती नस है दवा प्रति -रोध .वही दवा जो कभी असरदार होती है कालान्तर में निष्प्रभावी हो जाती है जीवाणु उससे बे असर रहना सीख जाता है .आखिर सृष्टि का पहला जीव जीवाणु ही तो है जो आज भी सर्वोत्तम  की सर्व -श्रेष्ठता सिद्धांत  का अनुगामी अनुचर बना हुआ है .वही बात है तू डाल डाल मैं पात पात .एक तरफ एक के बाद नै पीढ़ी के एंटी -बायोटिक्स आ रहें हैं दूसरी तरफ जीवाणु अपना रूप विधान तेज़ी से बदल लेता है म्युतेट हो जाता है . निष्प्रभावी कर देता है दवा को .

दरअसल जीवाणु कुछ जीवन इकाइयां (जींस )संजोता है ताकि दवा पे हल्ला बोल सके मुलायम यादवी हल्ला बोल .बस घुस पैंठ होने की देर है कुनबा परस्ती, द्विगुणित होना शुरु कर देता है जीवाणु .अब या तो  अपना रूप (प्रोटीन आवरण )ही बदल लेता है या फिर अपने कुनबे के तमाम लोगों को तमाम जीवाणुओं को प्रति रोधी जींस थमा देता है भागे दारी करता है उनके साथ रेज़ीस्तेंट जींस की .

देर से चेत रहा है मुंबई जो कभी पुरसुकून बे -फिकरी और खुशमिजाजी के लिए जाना जाता था जबकि इस महा -नगरी को इस खतरे को पहले भांपना था .

आसानी से इल्म नहीं होता है ड्रग रेजिस्टेंस का 

वो तो जब अचानक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता बीमारी से उबरता शख्श यकायक रोग जटिलता ,पेचीला पन प्रदर्शित करता है लक्षणों  से तब चिकित्सकों को शक होता है कि यह ड्रग रेजिस्टेंस  हैं .

यही कहना है डॉ .पंजाबी का .आप लेप्रास्कोपिक सर्जन हैं फोर्टिस अस्पताल में .

क्या कहतें हैं डॉ अल्ताफ पटेल साहब इस बाबत 

       हमारे अस्पताली माहौल में एंटी -बायोटिक्स (प्रति -जैविकी पदार्थ /दवाएं ) लगातार अपनी  धार खोकर बे -असर हो रहीं हैं .सारा माहौल ही संक्रमित है .अस्पताल खुद बीमार हैं .

आप एक मर्तबा दिल के दौरे से उबर आयेंगे  .प्रबंधन कर लिया जाएगा हार्ट अटेक का .लेकिन यदि गहन देखभाल कक्ष  में न्युमोनिया संक्रमन लग गया तब -तुझको रख्खे राम तुझको अल्लाह रख्खे .मौत हो सकती है आपकी .

BIG CITY BIG TROUBLE 
  
महानगर में होती है बड़ी समस्याएं ,महा -रोग 

जीवाणुओं को द्विगुणित होने का पूरा माहौल मुहैया करवाती है मुंबई नगरिया .ये है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ -

उमस भरा होता है यहाँ मौसम बे -मिजाज़ .साफ़ सफाई और स्वास्थ्य विज्ञान का यहाँ नितांत तोड़ा है .राज ठाकरे साहब से पूछ देखो क्या होती है - POOR HYGIENE .पुरबियों ,उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों पर ठीकरा फोड़ देंगें टेक्सी ऑटो वालों की पिटाई कर देंगें कहते हुए इन्हीं लोगों ने मुंबई को गंदा किया है .मारो सालों को .

गैर -भरोसे मंद स्ट्रीट फ़ूड यहाँ इफरात से है .पेय जल अपेय है .अपने खतरे पे पियो .निर -जीवाणुक हो इसकी कोई गारंटी नहीं है .शौचालयों का अभाव है .यहाँ भी खुले में जंगल जातें हैं लोग .पूरे मरीन द्राव वे पर एक शौचालय /मूत्रालय है .जय हो वृहन (महानगर) पालिका .जय बी .एम् .सी .अस्पताल यहाँ खचाखच भरे हैं .बचावी उपाय अस्पताली संक्रमण के  नदारद हैं .हैं भी कहीं कहीं तो उन्हें अपनाना मुमकिन नहीं .हेल्थ प्रोवाइदर्स कम मरीज़ ज्यादा ऐसे में एक से दूसरे मरीज़ को टीका लगाने के लिए पहुँचने से पहले हाथ धोना भी हमेशा मुमकिन नहीं होता.जबकि बहुत सारे मामले संक्रमण के  इस सरल उपाय से टाले जा सकतें हैं .यहाँ कौन किसको दोष दे . एक अनार सौ बीमार वाली बात है .

इसमें आप जोड़ दीजिये उन फ्लाई -बाई -नाईट ,बे -ईमान लालची अल्पकालिक चिकित्सकों को जो कम समय में अधिक से अधिक लाभ कमाने के लालच में बिना सोचे समझे नुश्खे लिख देतें हैं ,जबकि इन्हें  दवा के औषध विज्ञान फार्मा -कोलोजी   का जरा भी इल्म नहीं है न दवा की डोज़ का न ली जाने वाली अवधि का .न इस बात का कौन  सी दवा कब दी जाए . लेकिन सब चलता है साहब पचास फीसद निजी प्रेक्टिशनर ऐसे ही (इच) है .

मरीज़ भी जल्दी में है .उसे ठीक होने की जल्दी  है काम पे दिहाड़ी कट जायेगी ..डॉ .तो पहले ही करिश्मा दिखाने को तैयार बैठा है .ऐसी ही एक कमसिन  मोहतरमा २३ वर्षीय छात्रा (घाटकोपर वासी )अपने पारिवारिक चिकित्सक द्वारा  दवा लिखी गई माइल्ड डोज़ को परे करके एक भकुए के पास पहुंची उन्होंने इसे दस दिन के एंटी -बायोटिक इंजेक्शन कोर्स पर डाल दिया .उसे लगा ठीक हो गई दवा बंद करते ही यह छात्रा मष्तिष्क  तंतु शोथ (मेनिंजाईतिस,  Meningitis) की चपेट  में  आगई  .फिलवक्त  ये घाटकोपर अस्पताल में भरती हैं इन्हें रोग से उबरने में खासा वक्त लग रहा है .रिकवरी स्लो है .

गत तीन सालों में मुंबई नगरिया  एंटी -बायोटिक्स के एक विषमय चक्र में फंस गई है जिसे देखो एंटी -बायोटिक लिख रहा है सर्दी जुकाम में भी .पूछो तो कहता है भाई साहब यह सेकेंडरी इन्फेक्शन मुल्तवी रखने के लिए है .

बकौल डॉ अमोल मनेरकर -मरीज़  आता विषाणु संक्रमण लेकर है और दवा दे जाती है उसे जीवाणु रोधी एंटी -बायोटिक .ये सरासर गलत है .आप कोहिनूर अस्पताल से सम्बद्ध हैं .वायरस के खिलाफ जबकि बे -असर रहतीं हैं एंटी -बायोटिक दवाएं फिर भी धडल्ले से लिखी जा रहीं हैं .

(ज़ारी....  )


'ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -१ )

'ये है बोम्बे मेरी जान (भाग -१ )

Antibiotic Armageddon : Mumbai nerve centre of drug resistance 

Pill that's killing  us  

Mumabi's suffocating crowds , muounting filth  ,and the rampant abuse of antibiotics are creating deadly bacteria too strong for our medicines /SUNDAY Mumbai Mirror ,may 20,2012 ,LEAD STORY FRONT PAGE 

एक  सुबह  जब बुजुर्ग रामचन्द्रन साहब बिस्तर से उठे तो क्या देखतें हैं उनकी एडी खून से लथपथ है फोड़ा जो था वह फूट गया है आपसे आप .घरु चिकित्सा कई दिन आजमाने के बाद उनकी पत्नी ने देखा कि एडी का जख्म भरना तो दूर उससे बदबू दार मवाद रिस रहा है .६९ वर्षीय रामचन्द्र घबरा गए क्योंकि आप मधुमेह से भी पीड़ित हैं .अपने चिकित्सक डॉ रमेश पंजाबी साहब के पास दौड़े जिन्होनें संक्रमित ऊतक की साफ़ सफाई कर दी .हटा दिए इन्फेक -टिड  टिशुज़ .

काली पड़ चुकी चमड़ी से स्वाब (फाहे से कुछ इसी चमड़ी के ऊतक लेकर ) बारीकी से जांच की .तथा कुछ  Genric antibiotics नुस्खा लिख   तजवीज़  कर  दिए  ..Bacterial culture  तथा  antibiotic sensitivity  की भी जांच की गई .सब कुछ खुदा का शुक्र है .नोर्मल था .


लेकिन जिस जख्म को तकरीबन दस दिन में ही भर जाना चाहिए  उसकी हालत बद से बदतर होती गई .

छ : हफ्ते बाद एक और जांच की गई .पता चला यह सारी करामात उस सुपर बग Pseudomonas  aeruginosa  की है जो अपने दवा प्रतिरोध (Drug resistance) के लिए कुख्यात रहा है .क्षिप्रता   से  यह  उत्परिवर्तित  हो  जाता  है  अपना  रूप  -विधान  बदल  लेता  है  .   

यही जीवाणु तमाम तरह के एंटी -बायोटिक्स का प्रति -रोध कर रहा था .उनसे निष्प्रभावित बना रामचन्द्र की एडी में अपना कुनबा बढा रहा था .नतीज़न एडी के घाव को भरने में पूरे ९० दिन लग गए .रामचन्द्रन हतप्रभ है उसे कोई इल्म नहीं है कहाँ से उसे इस खतरनाक सुपर बग जनित संक्रमण की छूत लगी .साथ ही ईश्वर का शुक्र गुज़ार है .उसे अब आराम है  और कोई बड़ी कीमत उसे नहीं चुकानी पड़ी .जबकि उसकी एडी में यह ड्रग रेज़ीस्तेंट बेक -टीरिया अपना घर ही बना चुका था .

लेकिन क्या मुंबई में हर कोई रामचन्द्रन जैसे ही नसीबों  वाला है ??

स्वप्न नगरी मुंबई  के अस्पतालों में ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है जो ड्रग रेज़ीस्तेंट से जूझ रहें हैं ,ड्रग रेज़ीस्तेंट भोगते भोगते कुछ चल बसे हैं .

Mumbai's public hospital -acquired infections 


 माहिरों    के  अनुसार अस्पताल जनित संक्रमण के मामले ही कमसे कम १०% हैं तमाम संक्रमण के मामलों के बरक्स .इनका  एक बड़ा हिस्सा ड्रग  रेज़ीस्तेंट संक्रमण है .

नंबर वन सिटी बन रहा है मुंबई ड्रग रेज़िसतेंट के मामले  में 

ड्रग रेज़ीस्तेंट बेक -टीरिया के खिलाफ आखिरी लड़ाई लड़ी जानी अभी बाकी है जबकि  भारत 
कुख्यात हो चुका है एंटी -बायतिक्स के दुरोपयोग के मामले में .

While India gains notoriety for its abuse of antibiotics ,Mumbai is emerging as the numero uno city cut out for serious trouble .It has everything it takes to bring on antibiotic Armageddon -a 1.25 crore plus crowd ,staggering numbers of unqualified doctors ,lack of sanitation and health care ,among other things.Doctors agree that it has come to  be the hyperactive nerve centre of drug resistance.  

(ज़ारी )


     



11 टिप्‍पणियां:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

ये है बोम्बे मेरी जान की सभी ५ भागो की बेहतरीन प्रस्तुति,,,,,,,

MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,

SM ने कहा…

सब कमल के फूल मुरझाने लगें हैं
says everything

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बेहतरीन ... एंटी बैओटिक कों लेकर बहुत से तथ्य खोले हीं आपने ... कुछ समझ आए कुछ नहीं ...

Satish Saxena ने कहा…

काश इतने महत्वपूर्ण लेख को हम ध्यान से पढ़ें और समझ सकें ..
ईश्वर हमें सदबुद्धि दे !
आभार आपका !

Satish Saxena ने कहा…

पूतना की याद दिलाने को आभार ...
गीत वाकई शक्तिशाली हो गया वीरू भाई !
आभार !

Satish Saxena ने कहा…

एक टिपण्णी स्पैम खा गयी ...
कृपया देखें

अशोक सलूजा ने कहा…

वीरू भाई राम-राम ....
ज़रा हट के ...ज़रा बच के ..ये है मुंबई मेरी जां
जानकारियों से भरी पोस्टों का शुक्रिया ....

संजय भास्‍कर ने कहा…

जानकारियों से भरी पोस्ट सर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

पहले दर्द थोड़ा सहते हैं, तभी एण्टीबायोटिक कहते हैं।

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


हैल्थ इज वैल्थ
पर पधारेँ।

India Darpan ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन और प्रशंसनीय प्रस्तुति....


हैल्थ इज वैल्थ
पर पधारेँ।