मंगलवार, 22 मई 2012

ये बोम्बे मेरी जान (भाग -5)

ये बोम्बे मेरी जान (भाग -5)


HOSPITAL  DISTRESS    




मुंबई के गली कूचे सड़कें बाजारें ही नहीं अस्पताल भी भीड़ भाड से भरें हैं . यही वह माहौल है वह जगह जो   दवा प्रति -रोधी जीवाणु के पनपने के सर्वथा अनुकूल है .


Haffkine  Institute के निदेशक डॉ .अभय चौधरी इस बात की हामी भरते हैं ,हमारे अस्पतालों में आज आम चर्चा का विषय बना हुआ है Methicillin -Resistant Staphylococcus Aureus (M R  S A).चमड़ी के पीड़ा दायक संक्रमण की वजह बनता यह दवा प्रति -रोधी जीवाणु .अन -उपचारित रह जाने पर यही रक्त और अंग संक्रमण का सबब बन जाता है,मृत्यु का भी .

बेशक आज स्थिति फिर भी नियंत्रण में है .भविष्य के गर्भ में क्या है इसका कोई निश्चय नहीं .इसका (इससे पैदा बीमारी ) का प्रकोप एक महामारी का क्या ,विश्व -मारी (आलमी रोग )की वजह बन सकता है .

यदि डॉ और नर्सिंग स्टाफ अन्य स्वास्थ्य कर्मी  कठोरता से संक्रमण से  बचाव के परम्परा गत उपाय भी अपनाए तो संक्रमण की दर तकरीबन 80% कम हो सकती है .

(1)हाथ नियमित और नियमानुसार धोना  भले स्पिरिट्स से विसंक्रमित करना एक सहज उपाय है .आखिर आप एक मरीज़ का जायजा लेने के बाद दूसरे  की जांच के लिए जा रहें हैं उससे सम्पर्कित हो रहे हैं .लेकिन जहां यह जागरूकता है भी वहां स्टाफ लेक्स है उच्च मानकों के मामले में ढीला है शिथिल है उदासीन है .क्या कीजिएगा ऐसे में ?


बेशक BMC के मर्जों से ठसाठस भरे अस्पतालों में जहां अतिरिक्त बेड्स लगाने के बाद ज़मीन पर भी बेड लगाए गए हैं यह मानवीय तरीके से मुमकिन भी नहीं है .ऐसे में साफ़ सफाई कैसे रखी  जाए ?दो हज़ार के पीछे बा -मुश्किल एक स्वास्थ्य कर्मी है यहाँ क्या पूरे हिन्दुस्तान में ही .


TB TERROR 

    For a country that has the highest TB cases and a quarter of the world's pneumonia patients , India's antibiotic fixation is worrisome.

लेकिन साहब प्रति -जैविकी पदार्थों के प्रति असामान्य रूचि और लगाव यहाँ है तो है .मैं और आप क्या कर लेंगें ?

अमरीका आधारित एक हालिया शोध (US -based Disease Dyanics)ने इस तथ्य का खुलासा किया है ,गत छ :वर्षों में ही भारत में एक आखिरी उपाय के रूप में आजमाया जाने वाला बेहद शक्तिशाली 'Last -resort antibiotic 'Carbapenems बे -हिसाब भकोसा गया है .


Quinolones ,तपेदिक के खिलाफ फस्ट लाइन लेकिन एक दम से ज़रूरी लाइन ऑफ़ डिफेन्स के बतौर  खाया जाता है .यहाँ यह बिना डॉक्टरी पर्ची (नुस्खे ,प्रिस्क्रिप्शन )के न सिर्फ उपलब्ध  है ,बुखार और कोमन फ्ल्यू में भी खाया जा रहा है .बिना प्रिस्क्रिप्शन के इसकी धड़ल्ले से बिक्री ज़ारी है .

इसी मनमाने विवेकहीन बेहद के बिना सोचे विचारे बेदर्दी के साथ  इस्तेमाल किये जाने के कारण ही यह तपेदिक के खिलाफ अब बेअसर सिद्ध हो रहा है . 

Multiple Drug Resistance (M D R):

       हिंदुजा अस्पताल के एक तपेदिक रोग के माहिर डॉ .ज़रीर उद्वाडिया साहब ने व्यापक तौर पर MDR टोटल ड्रग रेजिस्टेंस (TDR) तपेदिक रोग  का अध्ययन विश्लेषण किया है .व्यापक शोध  की है रोग की इस किस्म पर .

बकौल आपके जहां Flouroquinolones के प्रति प्रतिरोध (रेजिस्टेंस )1996 में 3%ही था ,2004 में बढ़कर 35 % हो गया .

ये आंकड़े हमें साफ़ चेतावनी देतें हैं ,इन दवाओं का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ उन इलाकों तक सीमित रखा जाए जहां यह नियमित रूप से पैर पसारे रहता है बना रहता है एक ENDEMIC के रूप में .यानी TB -endemic areas  तक ही इस दवा की पहुँच हो .

धारावी क्षेत्र का सर्वे क्या कहता है 

     यहाँ तकरीबन 106 लिस्टिड कायां चिकित्सकों (फिजीशियंस ) का एक सर्वे किया गया यह पता लगाने के लिए ,तपेदिक के लक्षणों वाले मरीजों को यह कैसे एंटी -बायटिक तजवीज़ करतें हैं .कैसे क्या और कितना नुस्खे पे लिखते हैं इन प्रति जैविकी  पदार्थों को ?

इनमे से केवल 46 बाकायदा योग्यता प्राप्त मान्य चिकित्सक थे .बाकी वैकल्पिक चिकित्सा यथा होमिओपैथी ,आयुर्वेद या फिर यूनानी चिकित्सा पद्धति का प्रशिक्षण प्राप्त थे .लेकिन इनका बहुलांश धड़ल्ले से अलोपिथिक चिकित्सा पद्धति को प्रेक्टिस  के बतौर अपनाए हुए था .

इनमे से केवल पांच ही सही नुस्खे लिख सके थे .निर्धारित और सिफारिश की गई  अवधि के लिए खुराक और दवा इन्होनें सही सही लिखी थी नुस्खे पर .

शेष ने या तो दवा गलत लिखी थी या उसकी अवधि या फिर खुराक की मात्रा .

डॉ कटोच  कहतें है बहुत मुमकिन है ड्रग रेजिस्टेंस से पार पाना .

1982 में leprosy multi- drug resistance 
20%  से भी ज्यादा था लेकिन बाद के सालों में जब यही मरीज़ मान्य चिकित्सकों के पास इलाज़ के लिए पहुंचे और उन्होंने सिर्फ दो ही एंटी -बाय्तिक्स काम में लिए यह काबू में आगया और कालान्तर में विलुप्त हो गया .

ALWAYS THERE IS A SILVER LINING 

(ज़ारी.. ) 














   

7 टिप्‍पणियां:

Kunwar Kusumesh ने कहा…

very informative and useful.

रविकर ने कहा…

आमंत्रित सादर करे, मित्रों चर्चा मंच |

करे निवेदन आपसे, समय दीजिये रंच ||

--

बुधवारीय चर्चा मंच |

G.N.SHAW ने कहा…

भाई साहब अस्पतालों में साफ -सुथरेपन जरुरी है !इसे अस्पतालों को ध्यान में रखनी चाहिए !सुन्दर प्रस्

कुमार राधारमण ने कहा…

चिकनाईयुक्त पदार्थ चाहे जितने स्वादिष्ट हों,वे सुपाच्य नहीं होते और आगे चलकर समस्या ही पैदा करते हैं।

सदा ने कहा…

बेहतरीन प्रस्‍तुति।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कभी कभी तो ऐसी चीजें पढ़ के रोंगटे खड़े हो जाते हैं ... हालांकि पूरी बातें समाख नहीं आतीं ...
राम राम ...

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत उपयोगी जानकारी...आभार