मोटापे की एक और वजह बन रहा है सोशल जेट लेग
क्या आपने लोगों को काम के वक्त अपनी सीट पर थका मांदा देखा है ?
और क्या ये लोग मुटियाने भी लगें हैं?
और क्या ये लोग मुटियाने भी लगें हैं?
सोशल जेट लेग जीवन की आपा धापी कटु यथार्थ दैनिकी का टाइम टेबिल और हमारी बायो -रिदम का .परस्पर असंगत हो जाना है .दोनों का तालमेल टूट जाना है .
म्यूनिख यूनिवर्सिटी में माहिरों की एक टीम के मुताबिक़ यह असंगति लोगों को उनींदा ही नहीं ओबीस भी बना रही है .बढ़ रहा है इनका वजन .
यह आधुनिक समाज का एक ऐसा संलक्षण बनके उभरता एक ऐसा सिंड्रोम धीरे धीरे बन रहा है जिसका किसी को कोई इल्म ही नहीं था .
हमारी दैनिक जैव घडी फिजियोलोजिकल क्लोक के समय और हमारे काम करने के समय ,कामकाजी टाइम टेबिल का परस्पर ताल मेल टूट गया है .दफतरी घडी जैविक घडी से मेल नहीं खाती .बे -मेल बनी हुई है .बौस की अपनी सनक है .शरीर की अपने लय ताल है जो सूरज के उगने और डूबने से ताल्लुक रखती है .
हमारी शरीर क्रिया वैज्ञानिक जैव घड़ियाँ और सोशल क्लोक अलग अलग समय बतलाने लगीं हैं .रोज़- बा- रोज़ ऐसा हो रहा है .
इसी सोशल जेट लेग का नतीजा है कामकाजी लोग ठीक से नींद नहीं ले पा रहें हैं .नींद आने की शिकायत ला -इलाज़ होती जा रही है .पुरानी या क्रोनिक कह कर इसको बर तरफ नहीं किया जा सकता है
इसीलिए लोगों की सिगरेट और शराब नोशी की आदत और संभावना दोनों ही बढती जा रहीं हैं .केफीन की बहुविध खपत भी ..यह विचार जोर पकड़ने लगा है की सोशल जेट लेग या सोशल ड़ी -सिंक्रो -नाइ -जेशन हमारी सेहत की नवज से जुड़ने लगा है लोग मोटापे की जद में आने लगें हैं .
हम अपनी जैविक घडी को जो एक प्राकृत चक्र के तहत चलती है कामकाजी चक्र से यूं नहीं मिला सकते मनमाफिक जैसे हाथ घडी को मिला लेतें हैं .
हमारी प्रकृति प्रदत्त घडी हमें ही नहीं जीव जगत को भी दिन और रात का एहसास करा देती है .मुर्गे की बांग और प्रात :कालीन पक्षियों का कलरव कौवों की कांव कांव (यदि आपके शहर में हैं तो ) इसी से संचालित हैं .
और इसीलिए भरपूर सोना और जागना एक स्वयं चालित क्रियाएं बनती आईं हैं .पौ फटने पर हम उठ जाते हैं .अन्धेरा होने पर पक्षी सो जाते हैं .हमें जागना पड़ता है .काम के वक्त के मुताबिक़ .बोस के मूढ़ के मुताबिक़ .कम्पनी की ज़रूरीयात के अनुरूप .
आधुनिक जीवन में हम जैव घडी की टिक टिक सुनना भूल गएँ हैं .इसीलिए वैसा ही मति भ्रम रहता है जैसा हवाई जहाज के लम्बे सफ़र में खासकर जब सफ़र लंबा हो आपको कई टाइम जोंस से गुज़रना हो .आपकी घडी जहां से आप चले थे वहां के स्थानीय समय के मुताबिक़ चले जा रही है और यात्रा में आये पडावों पर वक्त कुछ और .जहां आपकी जैव घडी के मुताबिक़ दिन होना चाहिए था वहां रात है और रात की जगह दिन .
असंगत हो गए दोनों समय .ऐसे ही आपकी फिजियोलोजिकल क्लोक और ऑफिस शेड्यूल के बीच हो रहा है .होता आ रहा है .आपको खबर ही नहीं है .,
इस सोशल जेट लेग समस्या की गंभीरता का आकलन करनें के लिए साइंसदान रूनेबर्ग की टीम ने हमारे सोने और जागने की क्रियाओं ,सोने जागने की आदतों के बाबत एक आंकडा बैंक तैयार किया है .इसके आधार पर एक वर्ल्ड स्लीप मैप तैया किया जा रहा है .
साइंस डेली ने इसकी रिपोर्ट छापी है .गत दस सालों से ये काम ज़ारी है .खासी सूचना इस बाबत जुटा ली गई है .
भागीदारों की तौल ,लम्बाई और स्लीप पैटर्न का पूरा हिसाब जुटाया गया है .
पता चला जो जितना ज्यादा सोशल जेट लेग की चपेट में है उसके मुटियाने की संभावना उतनी ही प्रबल बनी हुई है .ओवर वेट ज्यादा हैं ये लोग .
बात साफ़ है -यह सब जैव घडी को धता बताके सांस लेते चले जाने का नतीजा है .सोशल जेट लेग का तौहफा है .
8 टिप्पणियां:
बहुत उपयोगी पोस्ट!
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मातृदिवस की शुभकामनाएँ!
भाई जी ,आजकल सब उल्टा हो रहा है ....
आज की पीढ़ी.पौ फटने पर सोती है ...और अँधेरा
होने पर जगती है ...अब क्या होगा ?
आभार! दर्शन दो ...घनशाम जी !:-)
सही कहा घर और काम में एक सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है. जैव घड़ी को भूलने के दुष्परिणाम दूरगामी हो सकते हैं.
कमाल की सूचनाएं देते हो आप ....
राम राम भाई !
जैवीय लय-ताल सामाजिकता के दबावों में टूट रही है -लिहाजा सोशल जेट लैग की संस्ययाएँ भी सर उठा रही हैं ..अछूता विषय !
शरीर बदला लेता है..
समस्या का सही विश्लेषण किया है .
आधुनिक जीवन की देंन है यह स्वास्थ्य समस्या .
लेकिन वीरुभाई जी , हल भी तो मिलना चाहिए .
मोटापे का इलाज तो कर लेंगे पर मोटापे के इस कारण का क्या इलाज है ? यह तो बस जीवन शैली को सुधार कर ही ठीक किया जा सकता है |
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