माम्मिरेक्सिया :प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ .
कवि रसलीन ने नारी के नैसर्गिक दैहिक सौन्दर्य को निहारते हुए ही लिखा होगा -
"कनक छड़ी सी कामिनी ,कति काहे को क्षीण ,
कति को कंचन काटी विधि ,कुचन मध्य धर दीन्हिं।
इसी दैहिक सौन्दर्य से विमुग्ध हो कवि दिनकर ने कहा होगा-'" सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता, कुसुम या कामिनी हो ."।
बच्चे का माँ के गर्भ में आना भी एक अध्यात्मिक चमत्कार ही है .और बच्चा गर्भ में आता भी इसी आश्वस्ति भाव के साथ है कि-माँ का गर्भालय एक पोषण आगार है .प्राथमिक स्रोत है भ्रूण के पोषण और दोहन का .गर्भ नाल कड़ी बनता है इस पोषण की .माँ बनना कितने सौभाग्य की बात होती है .यह उनसे पूछो जिन्हें यह आध्यात्मिक वरदान नसीब नहीं है .सम्पूर्णता का उत्कर्ष है मातृत्व औरत की ,सौन्दर्य की ।
इधर मम्मी -रेक्सिया -जो एक पश्चिमी सोच की विकृति से और ज्यादा कुछ नहीं है -सौन्दर्य के अपने प्रतिमान गढ़ रहा है ।
कुछ रूपसियाँ हैं जो रसलीन की कामिनी बने रहने के फेर में गर्भ काल में "बेबी वेट "से निजात पाना चाहतीं हैं .गर्भ काल में वजन न बढे इसके लिए यह बहु -विध उपाय आजमा रहीं हैं ,जिम जाने से लेकर ,खाकर वमन करने तक .दुश्चिंता यही है इनकी कहीं देह यष्टि विरूप न हो जाए .फिगर का जादू चुक न जाए .बस यही है -मोम्मी -रेक्सिया (मम्मी -रेक्सिया )।
पोषण के आगार से भ्रूण को वंचित रखने का हक़ इन्हें किसने दे दिया .यह गर्भस्थ के भावी जीवन से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ,जब की गर्भस्थ की स्वास्थ्य की नव्ज़ गर्भ काल में माँ के खान -पान से सीधे सीधे जुडी रहती है .
हमारा मानना है इन गौरान्गियों के खिलाफ एक क़ानून बनना चाहिए जो गर्भ काल में गर्भस्थ के पोषण को सुनिश्चित करे ।
विज्ञानियों की चिंता यही है कहीं इन रूपसियों का "स्किनी प्रेग्नेट फ्रेम "गर्भ काल का रोल मोडल ही न बन जाए आधी दुनिया के लिए ।
कुछ नाम चीन अदाकारों में बेथेंन्य फ्रंकेल तथा विक्टोरिया बैखेम का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने गर्भ -काल के नकली सौन्दर्य के ये प्रतिमान गढ़ें हैं .एक्सट्रीम पोस्ट बेबी वेट लोस के उपाय अपना के .गर्भ काल के दौरान बेबी वेट को मुल्तवी रख के .इनके शिशुओं का वैज्ञानिक अध्धयन होना चाहिए .क्या होता है आगे चलके इनकी सेहत के साथ ।
इन रूप -गर्विताओं को अगर फिगर का इतना ही ओब्सेसन है तो अपनी मामी बनवाके रख लेनी चाहिए .फ्रेम करवा लेना चाहिए इन ममीज़ को नित निहारने के लिए .
इन्हें प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था में हस्तक्षेप की इजाज़त आइन्दा नहीं मिलनी चाहिए .अगर इतना ही है तो कोई ऐसा उपाय सोचा जाए बच्चा मुंह से बाहर आ जाए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?cid=cnnrss&hpt=he_ब्न
"कनक छड़ी सी कामिनी ,कति काहे को क्षीण ,
कति को कंचन काटी विधि ,कुचन मध्य धर दीन्हिं।
इसी दैहिक सौन्दर्य से विमुग्ध हो कवि दिनकर ने कहा होगा-'" सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता, कुसुम या कामिनी हो ."।
बच्चे का माँ के गर्भ में आना भी एक अध्यात्मिक चमत्कार ही है .और बच्चा गर्भ में आता भी इसी आश्वस्ति भाव के साथ है कि-माँ का गर्भालय एक पोषण आगार है .प्राथमिक स्रोत है भ्रूण के पोषण और दोहन का .गर्भ नाल कड़ी बनता है इस पोषण की .माँ बनना कितने सौभाग्य की बात होती है .यह उनसे पूछो जिन्हें यह आध्यात्मिक वरदान नसीब नहीं है .सम्पूर्णता का उत्कर्ष है मातृत्व औरत की ,सौन्दर्य की ।
इधर मम्मी -रेक्सिया -जो एक पश्चिमी सोच की विकृति से और ज्यादा कुछ नहीं है -सौन्दर्य के अपने प्रतिमान गढ़ रहा है ।
कुछ रूपसियाँ हैं जो रसलीन की कामिनी बने रहने के फेर में गर्भ काल में "बेबी वेट "से निजात पाना चाहतीं हैं .गर्भ काल में वजन न बढे इसके लिए यह बहु -विध उपाय आजमा रहीं हैं ,जिम जाने से लेकर ,खाकर वमन करने तक .दुश्चिंता यही है इनकी कहीं देह यष्टि विरूप न हो जाए .फिगर का जादू चुक न जाए .बस यही है -मोम्मी -रेक्सिया (मम्मी -रेक्सिया )।
पोषण के आगार से भ्रूण को वंचित रखने का हक़ इन्हें किसने दे दिया .यह गर्भस्थ के भावी जीवन से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ,जब की गर्भस्थ की स्वास्थ्य की नव्ज़ गर्भ काल में माँ के खान -पान से सीधे सीधे जुडी रहती है .
हमारा मानना है इन गौरान्गियों के खिलाफ एक क़ानून बनना चाहिए जो गर्भ काल में गर्भस्थ के पोषण को सुनिश्चित करे ।
विज्ञानियों की चिंता यही है कहीं इन रूपसियों का "स्किनी प्रेग्नेट फ्रेम "गर्भ काल का रोल मोडल ही न बन जाए आधी दुनिया के लिए ।
कुछ नाम चीन अदाकारों में बेथेंन्य फ्रंकेल तथा विक्टोरिया बैखेम का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने गर्भ -काल के नकली सौन्दर्य के ये प्रतिमान गढ़ें हैं .एक्सट्रीम पोस्ट बेबी वेट लोस के उपाय अपना के .गर्भ काल के दौरान बेबी वेट को मुल्तवी रख के .इनके शिशुओं का वैज्ञानिक अध्धयन होना चाहिए .क्या होता है आगे चलके इनकी सेहत के साथ ।
इन रूप -गर्विताओं को अगर फिगर का इतना ही ओब्सेसन है तो अपनी मामी बनवाके रख लेनी चाहिए .फ्रेम करवा लेना चाहिए इन ममीज़ को नित निहारने के लिए .
इन्हें प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था में हस्तक्षेप की इजाज़त आइन्दा नहीं मिलनी चाहिए .अगर इतना ही है तो कोई ऐसा उपाय सोचा जाए बच्चा मुंह से बाहर आ जाए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?cid=cnnrss&hpt=he_ब्न
4 टिप्पणियां:
लग तो ऐसा रहा है। अब बच्चे भी मशीनों से पैदा होया करेंगे।
इन 'मम्मियों' को प्रेरित करने में 'पापाओं' की भी तो आकांक्षा और भूमिका है. इनकी कामनाओं की भेंट भावी संतति चढेगी.
Right approach
हाँ मातृत्व के आगे सब बोध दो कौड़ी के हैं -सहमत !
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