चाटुकार चमचे करें ,नेता की जयकार ,
चलती कारों में हुई ,देश की इज्ज़त तार .
छप रहे अखबार में ,समाचार सह बार ,
कुर्सी वर्दी मिल गए भली करे करतार ।
बाबा को पहना दीनि ,कल जिसने सलवार ,
अब तो बनने से रही ,वह काफिर सरकार ।
है कैसा यह लोकतंत्र ,है कैसी सरकार ,
चोर उचक्के सब हुए ,घर के पहरे -दार ,
संसद में होने लगा यह कैसा व्यापार ,
आंधी में उड़ने लगे नोटों के अम्बार ।
मध्य रात पिटने लगे ,बाल वृद्ध लाचार ,
मोहर लगी थी हाथ पर ,हाथ करे अब वार ।
और जोर से बोल लो उनकी जय -जय कार ,
सरे आम लुटने लगे इज्ज़त ,कौम परिवार ,
जब से पीज़ा पाश्ता ,हुए मूल आहार ,
इटली से चलने लगा ,सारा कारोबार ।
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ).,डॉ .नन्द लाल मेहता .
बुधवार, 8 जून 2011
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4 टिप्पणियां:
सच है साहित्य समाज का दर्पण है -यह कविता प्रमाणित करती है
समसामयिक, विचारोत्तेजक रचना।
अर्विन्द जी से सहमत।
आज के दौर में ऐसे दोहों की सख़्त ज़रुरत है| इस सत्कर्म के लिए साधुवाद आदरणीय| समस्या पूर्ति मंच पर पधारने की कृपा करें
http://samasyapoorti.blogspot.com/
कटु सत्य दो टूक तरीके से कह डाला आपने...
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