के जी बी पेपर्स बतलातें हैं ,गांधी परिवार ने "पोलिटिकल पे ऑफ्स"लियें हैं इस संस्था से जो सीधे -सीधे देश द्रोह का मामला बनता है .एक रुसी खोजी पत्रकार के अनुसार -१९८२ में एन्द्रोपाव को के जी बी के मुखिया पद से हटाकर विक्टर शेब्रिकोव को यह पद भार सौंपा गया था ,उनके द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र में साफ़ ज़िक्र है , उल्लेखित है -"यु एस एस आर" "के जी बी "प्रधान मंत्री राजीव गांधी के पुत्र से बराबर संपर्क बनाये हुए है .प्रिंस (आर गांधी )ने बाकायदा एहसान माना है ,उस फ़र्म का जिसे सोवियत विदेश व्यापार संघों के सहयोग से आर गांधी चलाये हुएँ हैं .आर गांधी इस बात को बाकायदा लेकिन गुप्त रूप अन्दर खाने स्वीकार करते हैं ,इस फंड का एक बड़ा हिस्सा उस राजनीतिक दल की बेहतरी के लिए लगाया गया है जिसे अब उनकी अम्मा चलातीं हैं ।
दिसंबर २००५ में विक्टर शेब्रिकोव ने रूस के साम्यवादी दल की सेन्ट्रल कमिटी से इस बात की इजाज़त भी मांगी थी ,राजीव गांधी के परिवारियों को सोनिया गांधी ,राहुल गाँधी और सोनिया की माँ पाओला मैनो को भुगतान डॉलर में किया जाए ।
अभी उल्लेखित पत्रकार की कलम का लिखा छानकर बाहर भी नहीं आया था ,रूसी जन -संचार माध्यमों ने पे -ऑफ्स की सारी पोल खोल दी थी ।
इन्हीं ख़बरों को आधार बनाके राष्ट्रीय अखबार "हिन्दू "ने ४जुलाई १९९२ को लिखा ,इस बात की गुंजाइश है ,रशियन फोरिन इंटेलिजेंस सर्विस भी जिसे मानती है ,जिस कम्पनी का नियंत्रण गांधी परिवार के हाथों में है उसे लाभ के सौदे दिलवाने में के जी बी ने मदद की है ।
अगली किश्त में पढ़िए :भारतीय जन संचार माध्यम इस विषय में क्या कहते थे ?
(ज़ारी ...).
गुरुवार, 16 जून 2011
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