ज्वर या फीवर :तकनीकी तौर पर हालाकि शरीर के तापमान का ९८.६फ़ारेन -हाईट (३७ सेल्सियस )के पार चले जाना ज्वर (फीवर )माना जाता है .लेकिन आम तौर पर बुखार को बुखार तब माना जाता है जब यह १००.४ फारेन्हाईट से ज्यादा हो जाए .शरीर का अपना एक इंतजाम है बीमारियों को मार भगाने के लिए ज्वर भी उसी शस्त्रागार का एक अस्त्र है .शरीर का बढ़ता हुआ तापमान कई रोग कारकों (डिजीज फाइटिंग ओर्गेनिज्म )का खात्मा करने की क्षमता रखता है .इसीलिए निम्न तापमानों का अकसर इलाज़ तब तक नहीं करना चाहिए जब तक कोई और कायिक लक्षण इसके साथ न चले आयें हों ,मुखर हों ,मसलन सॉर -थ्रोट .
लेकिन फीवर के १०४ फारेन्हाईट या इसके भी पार चले जाने के अवांछित परिणाम खासकर बच्चों में सामने आ सकतें हैं .इनमे डिलिरियम और कन्वल्शन आम है .इस प्रकार के ज्वर का पहले फ़ौरन घरेलू प्रबंधन करना चाहिए .चिकित्सा तो होनी ही होनी चाहिए जिसमें बडो के लिए एस्पिरिन भी शामिल हो सकती है लेकिन बच्चों में नॉन -एस्पिरिन मेडिकेशन चाहिए .इनमे कूल बाथ्स के अलावा एसिटा -मीना -फेन ,स्पोंजिंग कुछ भी शामिल हो सकतें हैं ज्वर को नीचे लाने के लिए ट्रीट मेंट के लिए प्रबंध अपनी जगह है .
ज्वर वास्तव में किसी भी बीमारी केसंक्रमण ( इन्फेक्शन )से हो सकता है .तापमान मापने के लिए डॉक्टर्स थर्मा मीटर का ही स्तेमाल किया जाता है ।
फीवर एज ए थिरेपी (फीवर थिरेपी ):इतिहास के झरोंखे से देखें तो ज्वर का स्तेमाल चिकित्सा के रूप में भी किया गया है .जिसके तहत अदबदाकर मरीज़ के शरीर का तापमान बढाया जाता है ।
इसका श्री -गणेश ऑस्ट्रेलियाई न्यूरो -साइकिआत्रिस्त(स्नायुविक -मनोरोग -माहिर ) जुलियस वेगनर वोँ जौरेग्ग ने किया था .(१८५७ -१९४० )।
इस माहिर ने अपने "डिमेंशिया पैरा -लिटिका" से ग्रस्त मरीजों को मलेरिया से इनोक्यूलेट कर दिया था .ये तमाम मरीज़ सिफ्लिश रोग के आखिरी चरण में पहुँच गए थे जहां इनके नर्वस सिस्टम और दिमाग पर असर पड़ सकता था .इन्हें तेज़ बुखार ज़रूर चढ़ा लेकिन सिफलिस के अनथक बढ़ते हुए लक्षण थम गए ।
मलेरिया की इसी थीरापेतिक वेल्यु के लिए (एक चिकित्सा औज़ार बन जाने के लिए ),(मलेरिया इन -ओक्युलेशन इन दी ट्रीट मेंट ऑफ़" डिमेंशिया पैरा -लिटिका'"के लिए हीआपको फिजियोलोजी (मेडिसन )का नोबेल पुरूस्कार दिया गया वर्ष १९२७ के लिए .
आज "इन-ड्यू -इज्द -फीवर थिरेपी "यानी प्रेरित ज्वर चिकित्सा का बिरले ही एक चिकित्सा औज़ार के रूप में स्तेमाल किया जाता है ।
"हाव एवर ,सम टाइम्स ए पेशेंट विद ए वेरी हाई फीवर फ्रॉम एन इन्फेक्शन अपोन रिकवरी फ्रॉम दी इन्फेक्शन एन्तर्स इनटू ए मोस्ट इम्प्रोबेबिल रेमिशन (असम्भाव्य रोग शमन )फ्रॉम एन अन -रिलेटिड डिजीज ऑर इज इवन क्युओर्द ऑफ़ इट.
फीवर को पायरेक्सिया भी कहा जाता है .
इनोक्युलेशन: इज तू इंजेक्ट ऑर इंट्रोड्यूस ए सीरम ,एंटीजन ऑर ए वीक्न्द फॉर्म ऑफ़ ए डिजीज प्रोद्युसिंग पैथोजन ,.इनटू दी बॉडी ऑफ़ ए पर्सन इन ऑर्डर तू क्रियेट इम्युनिटी फॉर दी डिजीज .
डिलिरियम :इज ए स्टेट मार्कड बाई एक्सट्रीम रेस्टलेस नेस ,कन्फ्यूज़न ,एंड सम टाइम्स हेल्युसिनेसंस (दृश्य दिखलाई देना ,आवाजें सुनाई देना जो आपके परिवेश में उस समय हैं ही नहीं ,गंधों का एहसास ...)काज़्द बाई फीवर ,ब्रेन इंजरी ऑर पोइजनिंग ।
(ज़ारी ...)
शुक्रवार, 3 जून 2011
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