शनिवार, 25 जून 2011

What is Mommyrexia?


Thursday, June 23, 2011

कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए किसके लिए ज़रूरी हैं स्तेतिंस ?

शोध की खिड़की से छनकर नित नै जानकारी आ रही है .हमारी बुद्धि मत्ता इसमें ही है हम उसमें से सार तत्व निकालें .फोक को छोड़ दें .एक रिसर्च रिपोर्ट का शीर्षक है :हाई -डोज़ स्टे -टीन्स मे रेज़ दी रिस्क ऑफ़ डाय बिटीज़.जब हमने इसे खंगाला तो निष्कर्ष यह निकला :दिल के जिन मरीजों को यह तजवीज़ की गई है उन्हें लेते रहना चाहिए क्योंकि इसके फायदे के बरक्स नुक्सानात बहुत कम हैं ।
गौर कीजिये इन आंकड़ों पर :तकरीबन ४९८ लोग यदि नियमित एक साल तक हाई डोज़ स्टे -टीन्स की लेते रहें तब कहीं जाकर सेकेंडरी डायबिटीज़ का एक नया मरीज़ सामने आयेगा .दूसरी तरफ १५५ लोगों को एक साल तक हाई डोज़ स्टे -टीन्स लेने पर हार्ट अटेक से बचावी चिकित्सा एवं सुरक्षा मिल जाती है ।
हाई डोज़ इस दवा की ब्लड सुगर लेविल्स में इजाफा कर देती है ।
एनीमल स्टडीज़ से पता चला है स्टे -टीन्स इंसुलिन के प्रति मसल रेजिस्टेंस (पेशीय प्रति -रोध )को बढा देतीं हैं .इसी वजह से खून में ज्यादा शक्कर प्रवाहित होने लगती है .इसी बढे हुए ब्लड सुगर लेविल्स की वजह से डाय -बिटीज़ की पुष्टि हो जाती है .लेकिन स्टे -टीन्स द्वारा प्रेरित खून में प्रवाहित इस बढ़ी हुई शक्कर के दीर्घावधि नतीजे क्या हैं यह किसी को भी मालूम नहीं है ।
कुल मिलाकर विचार मंथन के बाद माहिरों ने नतीज़ा इस प्रकार निकाला -स्टे -टीन्स थिरेपी दिल की बिमारी के मरीजों खासकर हाई रिस्क ग्रुप के लिए बहुत अच्छी है .अलबत्ता जिन्हें हाई डोज़ दी जा रही है उनके मामले में सेकेंडरी डाय -बिटीज़ पर नजर रखीजाए तथा हेल्दी लोगों को सिर्फ कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए बचावी चिकित्सा के रूप में यह दवा सोच समझ कर ही दी जाए ।
निश्चय ही दिल के मरीजों को अपने खानपान में सुधार और एक्सरसाइज़ के बाबत भी अपने कार्डियोलोजिस्ट से विमर्श करना चाहिए ।
उक्त अधययन जर्नल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल असोशियेशन में प्रकाशित हुआ जिसके अंतर्गत ३२,७५२ मरीजों का ब्योरा (प्रकाशित और अ -प्रकाशित अध्ययनों से संकलित करके )दिया गया है ।
अधययन में एक वर्ग के मरीजों को ५ साल तक स्टे -टीन्स की हाई डोज़ (८० मिलिग्रेम रोजाना )तथा दूसरे को कम डोज़ मुहैया करवाई गई ।
दोनों समूहों से कुल २,७४९ मरीज़ सेकेंडरी डाय -बिटीज़ की लपेट में आगये .हाई -डोज़ वर्ग में जोखिम १२ %बढ़ा ।
२०१० में लांसेट में प्रकाशित एक अधययन में बतलाया गया ,स्टे -टीन्स लेने वालों में न लेने वालों के बरक्स ख़तरा सेकेंडरी डाय -बिटीज़ का ९% बढ़ जाता है ।
लेकिन इन नतीजों का मतलब यह नहीं है जो स्टे -टीन्स ले रहें हैं वे इस से छिटक कर अलग हो जाएँ .दोहरा दें माहिरों की राय -फायदे ज्यादा हैं संभव नुक्सानात सेकेंडरी डाय -बिटीज़ के कम हैं .

जय च्युइंगम- सरकार की .

बार -बार झूठ बोलने से सच को ही ताकत मिलती है .दरअसल वर्तमान केन्द्रीय सरकार मजबूरी में ही सही इतने झूठबोल चुकी है कि कोई उनके सच पर विश्वास नहीं करता .यहाँ तक के सरकार होने का सच भी विश्वसनीय नहीं रहा.संस्कृत की एक उक्ति है राजा नहीं उसका प्रताप शासन करता है .जिस सरकार का प्रताप ख़त्म हो गया हो वही सरकाररात के डेढ़ बजे साधू -संतों ,निरीह साधकों और स्त्री बच्चों पर अपना प्रताप दिखलाती है .हम तो इस सरकार की दीर्घआयु की कामना कर सकतें हैं .पर लोग हैं कि मानते नहीं
अब लोग यह कह रहें हैं कि वित्त मंत्रालय में चुइंगम का क्या काम .अगर इस सरकार के प्रवक्ता ने ये झूठ बोला होताकि वह जासूसी यंत्रों का गम होकर चुइंगम था तो सरकार को यह सब सुनना पड़ता
अब कई भारतीय यह भी पूछ रहें हैं कि क्या सरकार ही वित्त मंत्रालय को चुइंगम सप्लाइ करती थी .यह हो सकता हैकि एक आदि कर्मचारी च्युइंगम खाता हो .कहीं ऐसा तो नहीं सारे ही खातें हों और सरकार को पता हो .कम से कमवित्त मंत्री पर तो यह शक नहीं जाना चाहिए .ये पुरानी भारतीय धारा के बंग भद्र जन हैं .वे च्युइंगम क्यों खायेंगें .भलेही हाई कमान से क्यों आया हो .
झूठ के पर नहीं होते .सरकार अगर मान ही लेती कि हाँ किसी ख़ास वजह से जासूसी करवाई गई तो सरकार को बे-सिर पैर के इलज़ाम तो झेलने पड़ते .अब लोग यह पूछ रहें हैं कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के बाद दूसरे नंबर केवरिष्ठ मंत्री और सरकार चलाने के अनुभव में तो सबसे वरिष्ठ प्रणव मुखर्जी अपनी ऐसी विशिष्ट स्थिति में भी सरकारका हिस्सा नहीं हैं तो फिर अलग से सरकार क्या होती है
क्या सिर्फ प्रधान मंत्री को ही सरकार कहा जाता है ?या कोई और असंवैधानिक सरकार होती है क्या ?हम तो सरकार केहिमायती हैं .कमसे कम सरकार उस शख्स को ढूंढकर पुरूस्कार तो दे ही सकती है जिसने पूरे कौशल से कहीं कुर्सी केपीछे ,कहीं मेज़ के नीचे ,कहीं दाएं ,बाएँ ,या ऊपर नीचे च्युइंगम चिपकाई थी ,जहां से आवाज़ को पकड़ा जा सके
कहीं ऐसा तो नहीं है ,भारत सरकार ने ऐसी कोई च्युइंगम मंगाई हो ,कहीं से आयात की हो जो खाने के काम भी आतीहो और बा -वक्त जासूसी उपकरणों के चिपकाए जाने में भी इस्तेमाल होती हो .सरकार समर्थ है .और बाबा तुलसीदासकह गए हैं :
समरथ को नहीं दोष गुसाईं

अब सरकार के पास वक्त भी है ,भले ही आम भारतीय को रोज़ी रोटी के चक्कर में वक्त नसीब होता हो .मैं भी आमभारतीय हूँ .सरकार चाहें तो किसी भोपाली जादूगर को बुलाकर ये पता करवा सकती है ,कि यह च्युइंगम कहाँ से आई?भारत के लोग शान्ति प्रिय हैं .फिलाल तो वह यही कह रहें हैं :
जय च्युइंगम सरकार की .

Wednesday, June 22, 2011

हर शाख पे उल्लू बैठा है .

इन दिनों दिल्ली में हलचल मची हुई है और सभी बदहवास हैं .खबर यह है कि वित्त -मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी के मंत्रालय की जासूसी की गई है .यानी सरकार के अन्दर ही गृह -युद्ध छिड़ा है ।
शायद इसीलिए प्रणव मुखर्जी ने प्रधान मंत्री को एक साल पहले इस बाबत पत्र लिखा था .नियमानुसार उन्हें यह पत्र गृह मंत्री चिदंबरम को लिखना चाहिए था पर जो खुद शक के दायरों में हों ,उन्हें भारत सरकार का वरिष्ठ -तम मंत्री और वह भी वित्त मंत्री पत्र क्यों लिखता ।
भारत के गृह मंत्री चिदंबरम पर हाई -कोर्ट में दो साल से इस आशय का मुकदमा चल रहा है ,संसदीय चुनाव में जय ललिता की पार्टी के एक उम्मीदवार से हार जाने के बाद उन्होंने छल -बल से अपने पक्ष में चुनाव जीतने की घोषणा करवा दी थी .ये सब कुछ सरकार के नोटिस में है .पर सरकार बिचारी क्या करे ?
उसे तो किसी न किसी को गृह मंत्री बनाना था ,क्या पता चिदंबरम से भी ज्यादा बुरा व्यक्ति पद पर बैठ जाता तो सारी पोल खुल जाती .अब सरकार को समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करे ।
नैतिक दृष्टि से यह पद चिदंबरम को स्वीकार नहीं करना चाहिए था .पर कांग्रेस का नैतिकता से क्या सम्बन्ध ?
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा .जिस पर कोढ़ में खाज हो गई है .अब गृह मंत्री पर यह इलज़ाम जाने अनजाने चस्पां हो रहा है ,शायद उन्होंने ही जासूसी करवाई है .आगे खुदा जाने .और यह तो किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस का खुदा कौन है ।
(ज़ारी ...).

Tuesday, June 21, 2011

जोंक और कोंग्रेस का स्वास्थ्य .

इन दिनों प्रस्तावित सरकारी लोकपाल बिल को अन्ना जी ने जोक -पाल कहकर इसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया था .इसी बीच एक केन्द्रीय मंत्री ने अपनी कुशाग्र बुद्धि -मत्ता का परिचय देते हुए पत्रकारों के समक्ष कहा दरअसल असली शब्द हिंदी का जोंक -पाल है .और हम ऐसे जोंक -पाल को लाना नहीं चाहते जो जनता का खून चूसे ।
बतला दें हम इन कुशला बुद्धि को जोंकपाल भारत के गाँव शहर गली गली जोंक -पाल घूमते रहें हैं .
जोंक -चिकित्सा प्राकृत चिकित्सा पद्धति रही है .जोंक -पाल अशुद्ध खून को साफ़ करते थे .कई अंचलों में इस देसी चिकित्सा पद्धति को सींगा लगवाना भी कहा जाता रहा है ।
क्या कोंग्रेस में तमाम मंत्री जानकारी के इतने ही धनी है जो जोंक -का ,जोंक -पालों का सरेआम अपमान कर रहें हैं ।
कोंग्रेस का तो सारा ही खून अशुद्ध है उसे तो जोंक लगवाना और भी ज़रूरी है .जल्दी से जल्दी लाया जाए जोंक -पाल बिल .हमें यू पी के भइयों को अपने भाषा ज्ञान पर बड़ा गर्व है ,हमने तब अपना माथा और जोर से पीट लिया जब पता चला ये ज़नाब यू पी के हैं .

माम्मिरेक्सिया :प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ .

कवि रसलीन ने नारी के नैसर्गिक दैहिक सौन्दर्य को निहारते हुए ही लिखा होगा -
"कनक छड़ी सी कामिनी ,कति काहे को क्षीण ,
कति को कंचन काटी विधि ,कुचन मध्य धर दीन्हिं।
इसी दैहिक सौन्दर्य से विमुग्ध हो कवि दिनकर ने कहा होगा-'" सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता, कुसुम या कामिनी हो ."।
बच्चे का माँ के गर्भ में आना भी एक अध्यात्मिक चमत्कार ही है .और बच्चा गर्भ में आता भी इसी आश्वस्ति भाव के साथ है कि-माँ का गर्भालय एक पोषण आगार है .प्राथमिक स्रोत है भ्रूण के पोषण और दोहन का .गर्भ नाल कड़ी बनता है इस पोषण की .माँ बनना कितने सौभाग्य की बात होती है .यह उनसे पूछो जिन्हें यह आध्यात्मिक वरदान नसीब नहीं है .सम्पूर्णता का उत्कर्ष है मातृत्व औरत की ,सौन्दर्य की ।
इधर मम्मी -रेक्सिया -जो एक पश्चिमी सोच की विकृति से और ज्यादा कुछ नहीं है -सौन्दर्य के अपने प्रतिमान गढ़ रहा है ।
कुछ रूपसियाँ हैं जो रसलीन की कामिनी बने रहने के फेर में गर्भ काल में "बेबी वेट "से निजात पाना चाहतीं हैं .गर्भ काल में वजन न बढे इसके लिए यह बहु -विध उपाय आजमा रहीं हैं ,जिम जाने से लेकर ,खाकर वमन करने तक .दुश्चिंता यही है इनकी कहीं देह यष्टि विरूप न हो जाए .फिगर का जादू चुक न जाए .बस यही है -मोम्मी -रेक्सिया (मम्मी -रेक्सिया )।
पोषण के आगार से भ्रूण को वंचित रखने का हक़ इन्हें किसने दे दिया .यह गर्भस्थ के भावी जीवन से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ,जब की गर्भस्थ की स्वास्थ्य की नव्ज़ गर्भ काल में माँ के खान -पान से सीधे सीधे जुडी रहती है .
हमारा मानना है इन गौरान्गियों के खिलाफ एक क़ानून बनना चाहिए जो गर्भ काल में गर्भस्थ के पोषण को सुनिश्चित करे ।
विज्ञानियों की चिंता यही है कहीं इन रूपसियों का "स्किनी प्रेग्नेट फ्रेम "गर्भ काल का रोल मोडल ही न बन जाए आधी दुनिया के लिए ।
कुछ नाम चीन अदाकारों में बेथेंन्य फ्रंकेल तथा विक्टोरिया बैखेम का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने गर्भ -काल के नकली सौन्दर्य के ये प्रतिमान गढ़ें हैं .एक्सट्रीम पोस्ट बेबी वेट लोस के उपाय अपना के .गर्भ काल के दौरान बेबी वेट को मुल्तवी रख के .इनके शिशुओं का वैज्ञानिक अध्धयन होना चाहिए .क्या होता है आगे चलके इनकी सेहत के साथ ।
इन रूप -गर्विताओं को अगर फिगर का इतना ही ओब्सेसन है तो अपनी मामी बनवाके रख लेनी चाहिए .फ्रेम करवा लेना चाहिए इन ममीज़ को नित निहारने के लिए .
इन्हें प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था में हस्तक्षेप की इजाज़त आइन्दा नहीं मिलनी चाहिए .अगर इतना ही है तो कोई ऐसा उपाय सोचा जाए बच्चा मुंह से बाहर आ जाए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?cid=cnnrss&hpt=he_ब्न५
http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?

कोई टिप्पणी नहीं: