ग़ज़ल (रिमिक्स )।
( दिन बीता फिर आई रात ,कैसी ये दुखदाई रात :डॉ .वर्षा सिंह .)
दिन बीता फिर आई रात ,कैसी ये दुखदाई रात ,
आँखें अपनी सपने उनके ,कैसी हुई पराई रात ।
बरखा की छप छप बौछारें ,जिनमे खूब नहाई रात ।
चन्दा की चंदनिया में फिर ,उजली धुली धुलाई रात ।
चंदा की चंदनिया में फिर ,गोरे बदन सुहाई रात ।
चाँद का मुखड़ा लगे सलौना ,यौवन में गदराई रात ।
मिलकर उससे करे ठहोका ,लेके फिर अंगडाई रात ।
होंठों पर अश -आरे मोहब्बत ,फिर से है शरमाई रात ।
चाँद सितारे फरियादी हैं ,करती है सुनवाई रात ।
जाने कितने ख़्वाब मिटाकर ,हौले से मुस्काई रात ।
यादों की जलती तीली ने ,धीरे से सुलगाई रात ।
सुलग गई जब रात सुहानी ,काटे न कट पाई रात ।
बीती नहीं बिताई जाए ,अब तो ये हरजाई रात ।
रिमिक्स :वीरेंद्र शर्मा ,डॉ नन्द लाल मेहता वागीश ,श्री अरुण कुमार निगम ,श्री हेम पाण्डेय .
(गुस्ताखी मुआफ :वीरुभाई .).
बुधवार, 1 जून 2011
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