एंजाइम्स (किण्वक ):एंजाइम या किण्वक ऐसी प्रोटिनें होतीं हैं जो एक ख़ास रासायनिक क्रिया की चाल को एक उत्प्रेरक का काम करते हुए न सिर्फ बढा देतीं हैं मीडिएट भी करतीं हैं .मध्यस्थ बनतीं हैं इन रासायनिक क्रियाओं का .
१९०२ में पहली मर्तबा अर्चिबाल्ड गर्रोड़ ने एक बीमारी के लिए एंजाइम दोष को पहली बार दोषी माना था .यह एक जन्म जात दोष था जिसका समबन्ध मेटाबोलिज्म (चय -अपचय से था .)।
अब रूटीन में ही नवजातों का कुछ संभावित एंजाइम दोषों के लिए परीक्षण किया जाता है मसलन पीकेयु (फिनाइल -कीटों -यूरिया )और गलाक्टोसेमिया के लिए .इनमें एक दोष रह जाता है ,सुगर गलाक्टोसेमिया के अपचयन में ।
इरेक्टाइल डिस- फंक्शन :यह शब्द प्रयोग वियाग्रा के आने से अब आम हो चला है जिसमें लिंगोथ्थान इतनी देर तक नहीं बना रह पाता कि पुरुष काम -शीर्ष पर पहुँच सके ,इजेक्युलेट कर सके .इस समस्या में लिंगोथ्थान का पूर्णतया अभाव भी सामने आसकता है आंशिक भी .इजेक्युलेट करने में भी दिक्कत आसकती है ।
इसे ही पहले नपुंसकता कह दिया जाता था ।
इरेक्टाइल डिस -फंक्शन का ख़तरा उम्र के साथ और भी बढ़ जाता है मसलन सातवें दशक में चले आये लोगों के लिए इस खतरे का वजन पांचवे दशक में चल रहे लोगों से चार गुना ज्यादा हो जाता है .
कम शिक्षित ,अपढ़ लोगों के लिए यह ख़तरा ज्यादा रहता है शायद इसकी वजहअ - स्वास्थ्य कर जीवन शैली बनती है जिसमें अस्वास्थ्य कर खुराक और व्यायाम का अभाव तो आता ही है एल्कोहल का ज्यादा सेवन भी इसके पीछे हो सकता है .अलबत्ता फिजिकल एक्सरसाइज़ इम्पोटेंस के खतरे के वजन को कम कर सकती है ।
इस समस्या के संवेगात्मक कारण भी हो सकतें हैं लेकिन अकसर इसके पीछे अकसर फिजिकल प्रोब्लम ही रहती है ।
भौतिक कारणों में मधुमेह और उच्च रक्त चाप जैसी समस्याएं भी होतीं हैं प्रोस्टेट की सर्जरी भी ।
कुछ दवाओं के पार्श्व प्रभाव भी मसलन एच आई वी थिरेपी में प्रयुक्त प्रोतिएज़ इन -हिबीतर्स भी इसकी वजह बन सकतें हैं ।
आथिरो -स्केलेरोसिस में भी पीनाइल आर्ट -रीज (शिश्न को रक्त ले जाने वाली खून की नालियों में )में अवरोध आने से रक्तापूर्ति पूरी नहीं हो पाती है .नतीजा होता है इरेक्टाइल डिस -फंक्शन ।
अलबत्ता सभी आयु वर्गों के लिए इसका इलाज़ मौजूद है ।
साइको -थिरेपी से लेकर वेक्यूम डि -वाइसिज़ तथा सर्जरी के अलावा ड्रग थिरेपी भी अकसर आजमाई जाती है .
शुक्रवार, 3 जून 2011
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