आज के इस अफसर को देख के निहाल सिंह अभिभूत था जो बाकायदा नेवी की वर्दी में था .मौक़ा था स्कूल का वार्षिक समारोह .और कमांडर साहब उसमें मुख्य अतिथि की हैसियात से आये थे .कार रिक्शे को क्रोस करती आगे जा ही रही थी कमांडर साहब ने कहा-ड्राइवर गाडी रोको !अरे यह तो निहाल है .पहचानते हुए अफसर ने कहा कैसे हो निहाल भाई -निहाल अभिभूत हो चेहरे पर एक गौरव भाव लिए अफसर को देख रहा था .उसी के रिक्शे से तो स्कूल जाता था यह नन्ना बालक जो अब एक बड़ा अफसर ,सीनियर कमीशंड ऑफिसर बन गयाथा .निहाल को लगा आज उसका स्तर भी बढ़ गया है ।कभी वह अपने रिक्शे को देखता कभी अफसर को .
आदमी की फितरत है बड़े लोगों से थोड़े से ताल्लुकात होने पर वह अपना मान गुमान ,पद प्रतिष्ठा हैसियत भी तदनुरूप बढा लेता है ।निहाल को भी यही अनुभूति हो रही थी .
निहाल सिंह ने खुश होते हुए कहा था -साहब मैं ने भी अपना मकान बना लिया है .वह कहना कुछ और चाहता है लेकिन जुबां पे यही लफ्ज़ थे -भाव था देखो साहब तरक्की मैं ने भी की है ,मकान बना लिया .बिलकुल अपना .यही संतोष और ख़ुशी लो प्रोफाइल ज़िन्दगी निहाल को आज भी ह्रष्ट पुष्ट रखे है .सेहत उसकी पहले से अच्छी हो गई है लेकिन खींचता वह आज भी रिक्शा ही है .हाँ रिक्शा स्कूल का है .वही धुले उजलेउजले मासूम स्कूली बच्चे.एक पीढ़ी गुज़र गई निहाल वहीँ हैं यही सोच रहेथे कमांडर शर्मा .वही रिक्शा वही नितचर्या.वही निहाल करने वाली हंसी ,खुशमिजाजी और बला का संतोष धन निहाल के आसपास बिखरा हुआ था .बच्चे उसे कहते थे निहाला .वह खिलखिलाके हंसता रहता था .आज भी निहाल वैसे ही मुस्का रहा है कुछ शर्माता हुआ .जैसे कुछ याद कर रहा हो .
गुरुवार, 2 जून 2011
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6 टिप्पणियां:
कहानी हकीकत में थी, या काल्पनिक,
वाह. बहुत सुंदर चित्रांकन है पात्र का.
काजल भाई शुक्रिया !लेखन की आंच बन जातीं हैं ऐसी कही .(टिप्पणियाँ ).
Nihal bhai is a character which we always love to have one around us. Their presence brings a smile on our faces.
People like Nihal live their life so simply that sometimes we wonder... How the hell they do that.
Nice post again !!
शुक्रिया ज्योति !हाँ निहाल भाई एक जीवन शैली है जो हमें जीवन से ख़ुशी हासिल करना सिखलाती है .
बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित पोस्ट....
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