इस समय जब हम यह पोस्ट लिख रहें हैं बोस्टन के शिशु रोग अस्पताल "बोस्टन पीडी -याट्रिक क्लिनिक" में एक चार साला नौनिहाल भर्ती है .लंगडा -ता हुआ वह यहाँ पहुंचा था ,उसका वजन इतना ज्यादा था कि उसके नितम्ब ही अपनी जगह से हट गए .
"ही वाज़ केरिंग सो मच वेट ही डिसप्लेस्ड हिज़ हिप्स ."।
इसका वजन १०० पोंड्स से ऊपर तथा "बॉडी मॉस इंडेक्स "९९ इन्थ पर्सेंटाइल से भी ऊपर था .अमरीका में बढ़ते हुए एक ट्रेंड का प्रतीक है यह बच्चा ।
पूअर डाइट(पोषण तत्वों से हीन अ -स्वास्थ्य कर खुराक ),ह्यूज़ पोर्शन साइज़िज़(सब कुछ बड़ा बड़ा ,ब्रेड से बरजर तक ),अ -पर्याप्त नींद तथा माँ -बाप की पोषण मान के बारे में अन- भिज्ञता ओवरवेट या फिर ओबेसी(मोटापा रोग ग्रस्त ) बच्चों की फौज में इजाफा करवा रही है .
इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिसन द्वारा प्राप्त आंकड़ों की मानें तो फिलवक्त १० %शिशु (०-२ वर्षीय )ओवर -वेट हैं अपनी लम्बाई कद काठी और वजन के हिसाब से .पांच वर्ष आयु वर्ग से नीचे के नौनिहालों की बढ़वार की पड़ताल उन्हीं के हम उम्रों से ताल्लुक रखने वाले चार्ट से मेचिंग के बाद की जाती है ।
२-५ साला नौनिहालों में पांच में से एक बालक किंडर -गार्टन की देहरी पर पाँव रखने से पहले ही ओवरवेट पाए जातें हैं .
स्कूल लंच इसकी वजह नहीं बन रहा है स्कूल में तो अभी पहुंचे ही नहीं हैं ।
परिवार और तमाम बालिग़ लोग सदाशयता के साथ इन बालकों की परवरिश ज़रूर कर रहें हैं लेकिन अपने अनजाने ही पूअर फ़ूड चोइसिज़ कर रहें हैं ।
लेकिन अभी कुछ बिगड़ा ज़रूर है स्थिति हाथ से निकली नहीं है ,जीवन शैली बदलाव इस उम्र में अच्छे नतीजे देतें हैं माँ --बाप और अभिभावकों के लिए इन्हें लागू करना भी आसान होता है किशोर -किशोरिओं के बरक्स .बच्चों को दी जाने वाले खाद्य के पोषण मान पर ध्यान दीजिए लब्बोलुआब यही है .
ओल्डर किड्स के बरक्स भले यह बच्चे हेवियर हों लेकिन इनकी स्थिति में जीवन शैली में बदलाव के साथ तेज़ी से सुधार भी आता है .बेशक माँ -बाप को पुलिसिया रोल अदा करना पड़ेगा .निगरानी रखनी पड़ेगी खुराक की ।
ध्यान रखे -छोटे बच्चे एनर्जी ड्रिंक्स तो नहीं ले रहें हैं ,फ्रूट पञ्च और सुगरी ज्युसिज़ के भंवर में तो नहीं फंस रहें हैं .एक तरफ एम्प्टी केलोरीज़ दूसरी तरफ शक्कर का डेरा है इन ड्रिंक्स में ।
एक तरफ फीडरऔर पेसीफायर से देर तक चिपके रहें हैं ये बच्चे और अब दूसरी तरफ "सिप्पी कप्स "।
अकसर माताएं सोचतीं हैं ज्यूस भला है फलों का रस ही तो है लेकिन इनमें तबीयत से ठोकी हुई शक्कर का उन्हें इल्म नहीं है ।
यही वजह है ओल्डर एडल्ट्स में पाए जाने वाली समस्याएं मसलन -इंसुलिन मेटाबोलिज्म में गड़बड़ी (मेटाबोलिक एब -नोर्मलेतीज़ इन टोद्लार्स इंसुलिन ),लीवर एंजाइम्स और कोलेस्ट्रोल के मेटाबोलिज्म में एब्नोर्मलेतीज़ इन टोद्लार्स में आ रहीं हैं .
आठ साला बच्चों में आर्थ -राइटिस तथा मधुमेह के पूर्व संकेत प्रगटित हो रहें हैं ।
५-६ साला बच्चों में जीवन शैली रोग मधुमेह के साफ़ साफ़ चिन्ह तो दिखलाई नहीं दे रहें हैं लेकिन ये नौनिहाल उधर ही जा रहें हैं ।
ध्यान रहे अर्ली हेल्थ प्रोब्लम्स उग्र रूप न भी लें तो भी दूर तलक चली आतीं हैं बढती हुई उम्र के साथ -साथ ।
बेशक तमाम समस्याएं जीवन शैली से सम्बद्ध न भी हों ।
एक अजूबा यह भी देखिये -एक माँ बतलातीं हैं उनकी स्तन पान करने वाली बिटिया का वजन केवल छटे से आठवें सप्ताह के बीच ही ६ पोंड बढ़ गया ।
१८ माह का होने पर उसका वेट बे -साख्ता बढ़ गया .माँ ने बेटी का पोर्शन साइज़ भी घटाया ,जंक फ़ूड भी लेकिन वजन बे -काबू रहा आया .इसका अधिकतम वेट ८१ पोंड दर्ज़ हुआ खाना मांगते वक्त उसे हमेशा लगता उसे एडल्ट -साइज्ड-प्लेट मिलेगी ।
होते होते यह परिवार फ्राइड फ़ूड से हटके फल तरकारियों और लीन मीट पर आ गया .बिटिया को इन्होनें नृत्य ,तैराकी के साथ साथ हाईकिंग भी करवाई .लेकिन साहब हुआ हवाया कुछ नहीं ,छोटी बहन skinny बनी रही .छरहरी दुबली ,तन्वंगी ही बनी रही .
लेकिन बड़ी जब चार साल की हुई पता चला बिटिया हाइपो -मेटाबोलिज्म से ग्रस्त है .इस स्थिति में शरीर की केलोरीज़ को खर्च करने की कूवत घट जाती है लिहाजा वजन तेज़ी से बढ़ता ही चला जाता है .
अब माँ की पीड़ा सुनिए कहतीं हैं लोग मुझे ज्यादा लडकी को कम घूरतें हैं जैसे कह रहें हों मोतरमा आखिर बच्ची को खिलाती क्या हैं आप ?
ज़ाहिर है बच्चे के भाव जगत पर भी मोटापे का दुष्प्रभाव पड़ता है .आत्म विश्वास की कमी के साथ ओबेसिटी बच्चे को अवसाद ग्रस्त भी बना देती है .कुलमिलाकर भौतिक -कायिक के साथ -साथ मानसिक स्वास्थ्य भी चौपट करके रख देता है बालपन का मोटापा .
उम्मीद की किरण यही है जीवन शैली में बदलाव इस स्थिति से बच्चे को छुटकारा दिलवा सकता है ।
(ज़ारी ...).
मंगलवार, 28 जून 2011
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10 टिप्पणियां:
एक गंभीर होती समस्या है
jankari se bhari post .aabhar
ताजातरीन रिपोर्ट -यह एक वैश्विक समस्या बन गया है !
(दस्त को देखके घर याद आया -veeru ji please aap hi ise poora karen main aapki hrdy se aabhari rahoogi .mere blog par aakar utsahvardhan karne hetu hardik dhanywad .
बहुत अच्छी जानकारी है। लेकिन आजकल धिकतर बच्चों को एक नै बीमारी लग गयी है कुछ खाते ही नही दूध नही पीना फल सब्जी नही खानी उनका क्या करें? इस तरह बहुत कमजोर भी हो जाते हैं कितने यत्न कर के देखे। मोटापा निश्चित ही समस्या है लेकिन कमजोर बच्चे तो और भी समस्या है।धन्यवाद।
बेशक माँ -बाप को पुलिसिया रोल अदा करना पड़ेगा .निगरानी रखनी पड़ेगी खुराक की ।---बहुत ही सार्थक जानकारी !
दूध, घी खाओ मत, मिट्टी में खेलने जाओ मत| कंप्यूटर, इंटरनेट, फिल्म देखने में पीछे न पडो|
ये संस्कृति और कर भी क्या सकती है|
गर्दिशें सब भूल भी जाऊं पर ,
रोज़ रोने के बहाने निकले ।बेहतरीन ग़ज़ल छोटी बहर की .बधाई .
निर्मला जी यहाँ अमरीका में हमारे नाती भी यही सब कर रहे हैं -बाहर घर के अमरीकी खाद्य (बीफ ,टर्की ,चिकिन ,नहीं ,यहाँ तो डबल रोटी में भी बीफ होता है )नहीं खाते घर में दाल रोटी -लेदेकर एक आलू पराठा या प्लेन पराठा ,वाईट राईस या फिर नान औरदही , दबाके फीदर से दूध .बड़ी मुश्किल से डायपर से पिंड छुड्वाया है बेटी और दामाद ने .टी वी पर गेम तो यहाँ खुद माँ -बाप ही परोस देते हैं .खुद उन्हें दफ्तर के लिए तैयार जो होना है ।
दो तरह के बच्चे आ रहें हैं एक वो जिनका ध्यान खाने की चीज़ों पर पूरा होता है यहाँ सर्विस काउंटर पर तीनचार तरह का टेट्रा पेक में दूध ,ज्यूस ,इफरात से रखा रहता है ,मल्टी ग्रेन सिरीयल दुनिया भर कारंग बिरंगा ,बे -इन्तहा विविधता है खाने पीने की चीज़ों की लेकिन बच्चे बहुत चूजी हैं जोर ज़बस्ती डाट डपट मार पीट का बच्चों के साथ यहाँ सवाल ही नहीं गोरों की देखा देखी ये कभी पोलिस को ९११ पर डायल करके आपको हैरानी में डाल सकतें हैं ।
दूसरे ध्रुव पर हमारे यहाँ ऐसे भी बच्चे आते हैं जिनकी पहली नजर सर्विस काउंटर पर रखी चीज़ों पर पडती है घुसते ही कहेंगें -अंकल कैन आई टेक दिस .यहाँ नो का रिवाज़ नहीं है .तो समस्या "कुछ भी न खाने वाले" बच्चों की भी विकराल है यहाँ भी .शुक्रिया आपका .
आज कल के अस्त व्यस्त जीवन की एक तेज़ी से उभरती हुई समस्या....
भारत के महानगरों में भी यह समस्या देखने में आ रही है...कोक-पैटीज़-बर्गर...रोज के खाने में शामिल हो गए हैं....और खेल-कूद ना के बराबर.
अच्छा हो,समय रहते ही माता-पिता चेत जाएँ.
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