सीधे -सीधे विषय पर आता हूँ ,भूमिका बाँधने का वक्त नहीं है ये है मेरी त्वरित प्रति- क्रिया .कल से हम दोटिप्पणियाँ पढ़ चुकें हैं इस नाम -चीन चित्रकार कूचीकार के सुपुर्दे ख़ाक होने पर ।
एक अखबारी लाल ने कहा-
कितना है बदनसीब ज़फर दफन के लिए ,
दो गज ज़मीं भी न मिली कुए यार में ।
बहादुर शाह ज़फर से तुलना करदी इस अखबारी ब्लोगिये ने हुसैन साहब की .गांधी कह दिया भारत को कला के मार्फ़त आगे लाने के लिए .(आज देवी देवताओं के नग्न चित्र इसी लिए बिकनी लाइन बन आरहें हैं .).इतना ही नहीं हिंदु देवी देवताओं को नग्न दिखाने को एक अर्वाचीन परम्परा ही बतला दिया .जैसे हुसैन उसी का निर्वाह कर रहें हों ।
उस दौर की तत्कालीन परिश्तिथियों को नजर अंदाज़ कर गए ये हज़रात .इन्हें ये भी इल्म नहीं बिहारी दरबारी परम्परा के कवि थे .गनीमत यही रही ये विद्यापति भैया पर ही थम गए .गीत गोविन्द तक नहीं गए रास लीला देखने राधा कृष्ण की ।
दूसरी समीक्षा डॉ राजेश व्यास (कला -वाक् चिठ्ठा है आपका )के शिष्य भाव लिए बड़ी नपी तुली और वस्तु परक थी .शीर्षक था -हुसैन घोड़े बेचके सो गए ।
आगे हमें सुनिए -
ख़्वाब में गजगामिनी ,तब्बू ,हेमा मालिनी और धक् धक् गर्ल आती होंगी .जब जहां कोई हसीं चेहरा देखा ये अतृप्त काम उसके पीछे हो लिए ।हम हैं राही प्यार के हम से कुछ न बोलिए ,जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए .
इसे मुसलामानों में कोई मोतर्मा हसीं नजर नहीं आई ।
सरस्वती की नग्न तस्वीर कोई काम कुंठित व्यक्ति ही बना सकता है .जो लोग इस चित्र का सबूत जुटाकर इतिहास से पोषण और दोहन करतें हैं उन्हें यदि वह सरस्वती को माँ सरस्वती मानतें हैं जो भारत धर्मी समाज की आस्था है ,एक नग्न चित्र अपनी दैहिक माँ का भी बनवा लेना चाहिए था औ इस मौके पर श्रधांजलि देते वह चित्र दिखाकर -इसे हुसैन ने बनाया था ,गौरवान्वित होते उसनग्न चित्र पर ,हमें एतराज न होता .भारत धर्मी समाज की माँ के साथ छेड़छाड़ होगी तो हमें आइन्दा भी गंवारा नहीं होगा .गुस्ताखी माफ़ .
शुक्रवार, 10 जून 2011
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9 टिप्पणियां:
सबसे पहले इसने अपनी माँ की तस्वीर जरुर बनायी होगी, पिटा होगा, फ़िर ये बनायी होगी,
सहमत होते हुये भी असहमत हूँ आपसे, जाने वाले को ऐसा नहीं कहा जाता,
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सहमत हूँ मैं भी आपसे विवेक जैन जी ये हमारी परम्परा के विपरीत हैं हम ने भी पहले हुसैन साहब को विनम्र श्रधांजलि दी है .मरने वाले को बुरा नहीं कहते उसकी अच्छाइयां याद रखतें हैं .लेकिन कुछ लोग उन्हें गांधी के साथ बहादुर शाह ज़फर के साथ १८५७ की लड़ाई के शहीदों के साथ बिठा रहे थे ।
नाथू राम गोडसे से भी गलती हुई थी लेकिन उन्होंने गांधी जी को आवेश में मारा नहीं था ,पैर छुए थे .हो सकता है गोली चल गई हो .
हम भी आपसे सहमत हैं .लेकिन यहाँ दो परम्पराएं परस्पर कोलिज़न में थीं.
kya kahain......???????????
ajeeb sa lagta hai.............
वेदजी ,संदीप -देव जी ,विवेक जैन जी शुक्र गुज़ार हूँ आप सभी का ।
वैसे इस अभागे चित्र -कार ने माँ का मुंह नहीं देखा .बचपन में रुखसत हो गईं थी अम्मी .खुदा दोनों की रूह को तसल्ली बख्शे .इस्लाम में पुनर्जन्म की तो अवधारणा ही नहीं .माँ सबकी एक जैसी होती है .यहाँ झगडा प्रतीकों का है ,वैचारिक है ,अभिव्यक्ति की हदबंदियों का है .सीमाओं का है आखिर हरेक चीज़ की हद तो होती है .अनन्त भी एक अवधारणा है .संख्या मूलक नहीं है .सृष्टि का विस्तार भी सीमित है फिर व्यक्ति की क्या बिसात .नाम -चीन है तो क्या ?
हुसैन निश्चय ही संतप्त -काम थे,यह उनका दोष नहीं काम का दोष है ....ये अनंग ऐसा है ही खुराफाती ..हुसैन की खुद की अपनी गलती भारतीय-हिन्दू प्रतीकों के साथ भद्दे मजाको की थी-जो उनके दिमाग में गाहे बगाहे एक शैतान के घुस आने का अहसास देता है -आपने मकबूल के बारे जो सबसे माकूल और गौर करने वाली बात कही है वह है इनकी इस्लामी सौन्दर्य के प्रति अरुचि ....इन्होने अपने म्यूज गैर इस्लामी ही चुने ....
यौन विकृतियाँ निश्चय ही इस अन्यथा अनूठे कलाकार को दबोचें रहीं और इसके कद को बौना बनाती गयीं ...
मेरे विचार आपके विचारों से इत्ता मिलते क्यों हैं ?
दिलसे दिल को रहत होती है अरविन्द भाई साहब !इसलिए यह साम्य है .इन्वोलंत्री लाइक्स है .ये इसकी विज्ञान के पास कोई व्याख्या नहीं है .
मैंने ध्यान से आपकी पोस्ट पढ़ी है. मैं आपसे सहमत हूँ. बस इतना ही कहना है क्योंकि आपने सब कुछ लिख ही दिया है. इस पोस्ट के लिए आपका आभार!
सदैव इस तरह की प्रक्रिया की निंदा होनी चाहिए ! बहुत सुन्दर टिपण्णी लिखी है आपने १ बधाई !
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