सरकारी फ़ाइल के बारे में निश्चय से कुछ भी नहीं कहा जा सकता ,कब क्या रुख ले .क्या करवादे यह एक दोधारी तलवार है ,सबको रास्ता दिखाती है ,रास्ता बताती भी है ,व्यक्ति को सम्मान देने का भी न देने का भी ।
बहुत कम लोग जानतें हैं और मानतें हैं ,फ़ाइल कुछ भी नहीं बोलती ,हर फ़ाइल के पीछे एक आदमी होता है .सवाल उसकी नीयत का होता है .वह फ़ाइल की आड़ लेकर अपना राग भी ज़ाहिर कर सकता है राग द्वेष भी .आपको सम्मान देने का रास्ता भी वह फ़ाइल की आड़ में से ही निकालता है ,दुत्कारने का भी ।
यह बिलकुल एक आकस्मिक बात है ,जिस यूनिवर्सिटी कोलिज में मैं ने अपना ज्ञान ,प्यार सब कुछ ज़मा किया था ,जो कुछ मुझे आता था वहां बांटा था .वहां मेरा खाता शून्य से भी नीचे चला गया था .फ़ाइल के पीछे बैठे आदमी का राग द्वेष खुलके सामने आया था ।
अजीब इत्तेफाक है ,३१ मई २०० ५ को मुझे सेवानिवृत्त होना था प्रवर व्याख्याता ,भौतिकी के पदभार से और इक्कीस मई २००५ को मेरी प्रोन्नति के आदेश आगये थे ,बतौर प्राचार्य राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बादली (झज्जर )हरियाणा ,के लिए
यूनिवर्सिटी कोलिज रोहतक ने हमें विदाई देने की तैयारी पहले ही कर ली थी .३० मई का दिन तय था .३१ मई सत्र का आखिरी कार्य दिवस था ,लेकिन इस प्रोमोशन ने सब कुछ गुड गोबर कर दिया .हमारी पहचान इस शहर में इस पूरे राज्य में बतौर एक प्रवक्ता थी न कि प्राचार्य ।
"चौधर "का हमें शौक भी नहीं था .और आज यही पहचान एक टीचर की संकट में पड़ रही थी .
हमें बताया गया विभागाध्यक्ष प्रिंसिपल के पास गए थे हमारी पैरवी करने -शर्मा साहब सेवा निवृत्त हो रहें हैं ,उनकी विदाई पार्टी के लिए स्टाफ से पैसा इकठ्ठा करना है .आप आदेश निकालें .विभागाध्यक्ष बहुत निराश होकर लौटे थे .उन्हें बताया गया था -हम सेवा निवृत्त अब बादली से होंगें .विदाई समारोह की पार्टी बादली वाले देंगें हम क्यों दें।
साथ ही प्रिंसिपल ने यह भी जोड़ दिया हम तो शर्मा साहब को बहुत प्यार सम्मान करतें हैं लेकिन चाय नहीं पिला सकते .यूनिवर्सिटी स्टाफ को एतराज है ।
आदमी अपनी अरुचि को सरकारी फ़ाइल के पीछे छिपा लेता है .बत्लादें आपको हम यहाँ यूनिवर्सिटी कोलिज रोहतक में प्रति -नियुक्ति पर थे हरियाणा सरकार शिक्षा सेवा की तरफ से .लेकिन अध्यापकी का प्रभात भी यहीं से शुरू हुआ था१९६८ में और अब शाम भी यहीं होनी थी .इस पारी को यहीं संपन्न होना था .लेकिन फ़ाइल का सम्मान नियम कायदे आड़े आगये ।
ये मुल्क हिन्दुस्तान है .यहाँ आदमी अपनी बद-नीयत फ़ाइल के पीछे छिपा लेता है .उसे ये सुविधा हासिल है .यहाँ काम का नहीं नियमों का शोर रहता है ।
बतलादें आपको इन्हीं नियमों का सहारा लेकर हमें उस छोटे से कस्बाई पोस्ट ग्रेज्युएट कोलिज ने विदाई पार्टी दी थी .बतौर प्रिंसिपल हमने वहां २६ मई २००५ को ज्वाइन किया था ,३० मई तकका आकस्मिक - अवकाश ले लिया था .लेकिन ३१ मई तक सब हाज़िर थे .वो सारी की सारी फेकल्टी जो विश्वविद्यालीय परीक्षा संपन्न करवाने के लिए अलग अलग महाविद्यालयों में तैनात थी ,हाज़िर थी ,हमारी आव भगत में ।
भले ही हमने यहाँ एक भी कार्य दिवस नहीं बिताया (जोइनिंग डे ही इसका अपवाद था ).लेकिन हम प्राचार्य थे ।
फ़ाइल के पीछे के तमाम लोगों की नीयत पाक साफ़ थी .आँखों में नेहा और सम्मान था .बादली के उस छोटे से कोलिज ने राग -अनुराग ज़ाहिर करने के बहाने ढूंढ लिए थे .हमें फूलों का हार भी पहनाया गया था .एक थर्मस भी गिफ्ट में मिला था ।
बाहर बहुत गर्मी थी .लू चल रही थी .लेकिन थर्मस की शीतलता हमें आश्वश्त कर रही थी .फ़ाइल के पीछे का तर्क भी मुखरित था .
शुक्रवार, 3 जून 2011
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3 टिप्पणियां:
हम भी रोज ऐसी फ़ाईलों में उलझे हुए रहते है, लेकिन इमानदारी से
पेपरवेट हो तो फाइलें बोलती भी हैं और घूमती भी हैं!
...................Dard kaun saa sahna muskil hai ? file ka ya Principal ki reply ka ?
विभागाध्यक्ष प्रिंसिपल के पास गए थे हमारी पैरवी करने -शर्मा साहब सेवा निवृत्त हो रहें हैं
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