इन दिनों प्रस्तावित सरकारी लोकपाल बिल को अन्ना जी ने जोक -पाल कहकर इसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया था .इसी बीच एक केन्द्रीय मंत्री ने अपनी कुशाग्र बुद्धि -मत्ता का परिचय देते हुए पत्रकारों के समक्ष कहा दरअसल असली शब्द हिंदी का जोंक -पाल है .और हम ऐसे जोंक -पाल को लाना नहीं चाहते जो जनता का खून चूसे ।
बतला दें हम इन कुशला बुद्धि को जोंकपाल भारत के गाँव शहर गली गली जोंक -पाल घूमते रहें हैं .
जोंक -चिकित्सा प्राकृत चिकित्सा पद्धति रही है .जोंक -पाल अशुद्ध खून को साफ़ करते थे .कई अंचलों में इस देसी चिकित्सा पद्धति को सींगा लगवाना भी कहा जाता रहा है ।
क्या कोंग्रेस में तमाम मंत्री जानकारी के इतने ही धनी है जो जोंक -का ,जोंक -पालों का सरेआम अपमान कर रहें हैं ।
कोंग्रेस का तो सारा ही खून अशुद्ध है उसे तो जोंक लगवाना और भी ज़रूरी है .जल्दी से जल्दी लाया जाए जोंक -पाल बिल .हमें यू पी के भइयों को अपने भाषा ज्ञान पर बड़ा गर्व है ,हमने तब अपना माथा और जोर से पीट लिया जब पता चला ये ज़नाब यू पी के हैं .
मंगलवार, 21 जून 2011
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7 टिप्पणियां:
Sabhi partiyon ka yehi haal hai
मुझे नहीं लगता कि ये बिल ठीक तरह से आ पायेगा?
जोक पाल बिल हा हा हा
कांग्रेस के लिए तो बिलकुल
जोक पाल बिल... Sahi Kaha aapne...
सटीक लेख...
सत्ता मद में चूर ये नेता गण जो भी मन में आता है ऊल जलूल बकते जा रहे हैं
अवधी कहावत इन पर शायद लागू हो .........'आव बाव बक्कैं मौत तुलानि'
वीरू भाई ,कैसे हैं ..?
बिल्कुल ठीक कहा आपने ..जोंक तो होती ही है खून साफ़ करने के लिये और फिर इनको जरूरत भी है !तो इनको मौके का फायदा उठाना चाहिए !
वैसे भी ये सब फायदे की ही ताक में तो रहते हैं|
हा हा हा :-)
खुश रहो !
शुभकामनाएँ !
जोंक पाल को छोड आगे बढता हूं बचपन में तालाब में सिंघाडे तोडने घुसा था जौक चिपक गई थी आज तक याद है।
20 जून के गीत में कविता पढी। कविता बहुत ही अच्छी लगी व्यंग्य हकीकत सभी कुछ मिला कविता में
"देश दुर्दशा का दयनीय दृश्य देख कर बोले दूसरी तरह का मानचित्र चाहिये
जैसे दुर्गन्ध मेटने की असमर्थता मे झेंप मेटने को मित्र कहे इत्र चाहिये।"
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