"दोहे "-डॉ .नन्द ला मेहता वागीश .डी .लिट
सामने दर्पण के जब तुम, आओगे ,
अपनी करनी पर बहुत ,पछताओगे ।
कल चला सिक्का ,तुम्हारे नाम का ,
आज खुद को भी ,चला न पाओगे ।
सपने जिनको आज तक बेचा किये ,
आँख उनसे अब ,मिला क्या पाओगे ।
दांत पैने हैं सियासत में किये ,
क्या पता था ,अदब को ही खाओगे ।
आंधियां अब चल पड़ीं हैं ,सहरोशाम,
खुद को खुद से ,ढूंढ भी न पाओगे ।
अब बबूले आग के उठने लगे ,
इन बबूलों में झुलस रह जाओगे ।
प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा .(वीरुभाई ),सहभाव :(वीरुभाई ).
शुक्रवार, 17 जून 2011
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4 टिप्पणियां:
वागीश जी एक सिद्धहस्त दोहाकार हैं। उनके मंझे हुए दोहों को पढवाने का शुक्रिया।
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ब्लॉग समीक्षा की 20वीं कड़ी...
2 दिन में अखबारों में 3 पोस्टें...
वीरू भाई,राम-राम !
मैं वो शीशा हूँ मुझसे,
कब तक चेहरा छुपाओगे
जब भी दुनिया से नजर,
बचा कर देखोगे मुझको ,
मुझे खुद में झांकता नजर पाओगे|
अशोक'अकेला'
खुश रहिये !
इसी लिए पुराने लोग कहते थे - जागते रहो ...
आदरणीय' वीरू भाई' जी सादर नमस्कार!
ये दोहे बेहद पसंद आए !
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