गीत :मुखिया गादड़ जोर से बोला ,हुआं हुआं ,डॉ .नन्द लाल मेहता वागीश ,डी .लिट । १२१८ ,शब्दालोक ,अर्बन एस्टेट सेक्टर -४ ,गुडगाँव -१२२-००१ .
मुखिया गादड़ जोर से बोला हुआं- हुआं ,
सारे गादड़ पीछे बोले हुआं- हुआं ,
दो और दो होतें हैं पांच हुआं -हुआं ,
इसकी करनी कैसी जांच हुआं -हुआं ।
लोगों ने चुनकर है भेजा हुआं- हुआं ,
संविधान की यही है मंशा हुआं -हुआं ।
बार -बार इसको दोहराओ हुआं- हुआं ,
अड़े रहो तुम मत घबराओ हुआं -हुआं ।
अपनी बुद्धि गिरवीं रखदो हुआं -हुआं ,
हाईकमान के पैरो धर दो हुआं -.हुआं।
ऊपर का आदेश यही है ,हुआं- हुआं ,
तुम सबको निर्देश यही है हुआं -हुआं ,
लादेन जी का मान बढ़ाओ हुआं -हुआं ,
सन्यासी को ठग बतलाओ ,हुआं- हुआं ,
, बच्चे बूढ़े और लाचार ,साथ में संतों की भरमार ,
गिनती में चाहे साठ हज़ार ,
आंसू गैस गोली चलवाकर कब तक सह पायेंगें मार ,
तम्बू बम्बू और पंडाल ,आधी रात को दो उखाड़ , हुआं -हुआं ।
मन में मोहन का है नाम ,मम्मी जी को पुण्य प्रणाम ,
जो कोई करता है उच्चार ,भ्रष्ट देश द्रोही बदकार ,
सब उतर जायेंगें पार हुआं -हुआं ।
बोलो जय -जय -जय सरकार ,हुआं -हुआं ।
सहभावी एवं प्रस्तुति :वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई )
मंगलवार, 14 जून 2011
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11 टिप्पणियां:
वीरु जी,
इस हुआं हुआं ने तो गजब ही कर डाला है।
आपकी इस व्यंगात्मक कविता हुआं हुआं शानदार है और आजकल के हालात का सही वर्णन किया है. बाबा रामदेव और अन्ना से जुडी मेरी भी पोस्ट मेरे ब्लोगों पर देखे .
यथार्थ का व्यंगात्मक वैचारिक प्रस्तुतिकरण...
हार्दिक शुभकामनायें।
सर, अब भूल जाइये,जो हुआ सो हुआ,
पर आपका वयंग्य शानदार है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
devta aa gye
varsa aa gai
aab hum kya aayenga
bus kahenge........
huan.... huan
क्या बात है जी आपके हुआं हुआं की.
वीरू भाई ,आप मेरे ब्लॉग पर मेरे को हड़काने आये अब हड़काने का मतलब तो पता नही ,पर मैं आप से अपनी समझ के अनुसार हडक गया ,यानि डर गया |
पर मुझे खुशी है ! की आप जैसा विद्वान मेरे जैसो के लिये हमारी आवाज बन कर आया |आप की साफगोई को सलाम !मैं आप का लिखा अभी 'ऐ वतन तेरे लिये ' पे पढ़ कर आया हूँ | मेरे पास शब्द नही ,सिर्फ एहसास हैं ...और आप के पास सब कुछ |
शुभकामनाएँ |
अशोक सलूजा |
आपकी हुआं हुआं नहीं --आपकी नहीं --उन लोगों की जिन पर आपने लिखा है मजा आगया । हमारे इधर मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड में गीदड की आवाज को हुआं हुआं कहते हैं ।खूब व्यंग्य चलाये ]खूब तीर छोडे ]कहीं असलियत ]कहीं व्यंग्य । वाह शर्माजी मजा आगया
वीरू जी कलियुग है, सब मूढमति राजा है । खुद ठग हैं और संतों को कहें ठग।
चारो ओर से तो श्रृंगाल स्वर ही सुनायी दे रहा अब तो
दोस्त अब बचा ही क्या है इस वंश वेळ के बारे में जानने को जो अमर बेल बन चुकी है .एक बार फिर आपका आभार बहुत ही सार्थक उल्लेख संयमित भी तमाम घटनाओं और सन्दर्भों का .हम तो ज़नाब को दो दिन से ढूंढ रहे थे चलो . हाथ तो आये .कमी हमारी ही तलाश में रह गई होगी .
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