बुधवार, 29 जून 2011

गर्भ से ही शुरू होंगें संतानों का मोटापा रोकने के उपाय .

बेबी इज मोर लाइकली टू बी ओबेस (ओबेसी) इफ इट्स पेरेंट्स आर ओबेस
क्या हो सकतें हैं रिस्क फेक्टर्स (खतरनाक बातें )संतानों के मोटापे के ?
गर्भ काल में माँ की सेहत ,गर्भकाल में वजन में होने वाली वृद्धि ,गर्भकाल में अकसर होजाने वाली मधुमेह (जेस्तेश्नल डाय -बिटीज़)ज्ञात रिस्क फेक्टर्स हैं संतानों के मोटापे के
महिलाओं को अकसर कहते सुना जाता है गर्भ काल में हम दो के लिए खा रहें हैं .बड़ी बूढी भी लाड दिखाते हुए ज्यादा खाने की हिदायतें थमा देतीं हैं ।विनोद दुआ पूरे देश के लिए खा रहें हैं हाल देख लीजिए उनका .
लेकिन ईटिंग फॉर टू डज़ नोट मीन ईटिंग ट्वाईस एज मच .
जानिएगा क्या हैं अनुदेश ,जनरल गाइड लाइंस फॉर प्रग्नेंसी वेट गेन?

अधययन बतलातें हैं जिन शिशुओं को डिब्बा बंद खाद्य दिया गया (फ़ॉर्मूला फेड बेबीज़ )और चार माह से पहले ही सोलिड फ़ूड भी परोस दिया गया उनके लिए मोटापे के खतरे का वजन बढ़ जाता है
अकसर स्तन पान करने वाले शिशुओं की बनिस्पत फ़ॉर्मूला फेड इन्फेन्ट्स ज्यादा खाते हैं ज्यादा केलोरीज़ गड़प जातें हैं .इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिसन शिशुओं के लिए पुरजोर सिफारिश करता है स्तन पान की
बाल रोगों के माहिरों का अमरीकी संघ भी पहले :माह तक शिशुओं के लिए स्तन पान और केवल स्तन पान करवाने की ही सिफारिश करता है और कुछ डिब्बा फिब्बा बंद नहीं ,सिफारिश इस संघ की यह भी है स्तन पान एक साल तक करवाया जाए .(दरहकीकत पानी भी नहीं इस दरमियान ).भारत में तो स्तन पान को कहा ही गया है अमृत पान ,कुदरती टीकाकरण .डेढ़ -दो साल तक भी जिनको दूध उतरता है वे महिलायें दूध पिलाती रहीं हैं
यकीन मानी फिगर भी सुडौल रहता है .फिगर खराब होता है लेटेलेटे बच्चे को दूध पिलाने से .गलत पोश्चर में दूध पिलाने से बच्चा ज्यादा गैस (ऑक्सीजन )गटक जाता है .पेट अफर जाता है उसका .दूध उलट देता है वह .स्तन पान तो काया में निखर लाता है बच्चे को सुरक्षा और अभय दान देता है .इम्युनिटी देता है रोग प्रति -रक्षण के लिए ।आत्म -विश्वाश भरता है ज़िन्दगी के आगे के सफ़र के लिए .
स्तन पान ,अमृत समान .दिव्य-पानहै
एक पीडी -याट्रिक (शिशुओं पर संपन्न )अध्ययन के मुताबिक़ शिशुओं को जल्दी ही माह से पहले से ही ठोस आहार देते रहने से उसके प्री -स्कूल में पाँव रखने से पहले ही मोटापा धमकता है
इस वक्त कई वेब -साइटें हैं जो ब्रेस्ट फीडिंग के मुताल्लिक काम की बातें बतला रहीं हैं .इनमे शरीक है -
अमरीकन अकादमी ऑफ़ फेमिली फिजिशियंस ,"प्रेगनेंसी .ओर्ग "तथा -
ला लेचे लीग इंटर -नेशनल
डैस-परेट फीडिंग मोम्स रिवील सीक्रेट्स
(ज़ारी ...)
http://www.cnn.com/2011/HEALTH/06/27/obese.toddlers/index.html?hpt=he_c2
सन्दर्भ -सामिग्री :-http://www.cnn.com/2011/HEALTH/06/27/obese.toddlers/index.html?hpt=he_क२।
हाव डज़ बेबी गेट टू बी ओबेस ?-सी एन एन .कोम

वेग और प्रति -वेग .

वेग और प्रति वेग :
व्यक्ति नाम और रूप से ही पहचाना जाता है .अब अगर व्यक्ति रूप को विरूपित करके खुद को रहस्य मय बना ले और नाम को छिपाले .वर्ज्य घोषित करदे अपनी संज्ञा सिर्फ वर्ज्य नारी कहकर अपने एक्स -एक्स होने की खबर दे तो रहस्य और भी गहरा जाता है ।
यहाँ हम बतलादें आपको हमारा सिद्धांत है कोई पश्तो में बात करता है तो पश्तो में ही उसका ज़वाब दो .अनुवाद मत करो ।
अनुवाद से भाव दब जाता है ।
विकर्षण में भी आकर्षण होता है क्योंकि विकर्षण कहते ही नकारात्मक आकर्षण को हैं ।
हेड देयर बीन नो रिपल्शन इन दी यूनिवर्स ,यूनिवर्स वुड हेव कोलेप्स्द .जब इल्क्त्रों और प्रोटोन भी एक दूसरे के एक न्यूनतम सीमा का अतिक्रमण कर और करीब आ जातें हैं तो वे परस्पर एक दूसरे को आकर्षण भूल विकर्षित करने लगतें हैं .विकर्षण से ही आकर्षण है .और विकर्षण पहले आता है आकर्षण बाद में ।

सवाल और अभिप्राय यहाँ पर इतना भर है यदि कोई नारी वर्ज्य है तो वह वर्ज्य पुरुष के स्तर पर है या स्वयम अपने स्तर पर वर्ज्य है ।
अगर वह वर्ज्य अपने ही स्तर पर है तो सामान्य -करण का विचार ही नहीं आना चाहिए .और अगर आप ऐसा करतें हैं अपना नाम और रूप दोनों गोपित रखते हुए .तो संवाद कैसे हो .संवाद का स्तर कमसे कम सम -बुद्धि होना चाहिए ।
क्या वह वर्ज्य नारी अपने आप से डरी हुई है ?
और अगर पुरुष से डरी हुई है तो अपने आसपास फैला धुआँ हटाना चाहिए उसे और नहीं फैलाना चाहिए ।
किसी भी व्यक्ति को अपनी मजबूरियों को अपना शौक नहीं बनाना चाहिए ।
संवाद के दरवाज़े कभी बंद नहीं होते .धुआं हटाने से खुले हुए दरवाज़े नजर आयेंगें ।
गोपित ,गोपन और गुप्त -ता को तोड़ने वाले कई लोग बैठें हैं हम सभी के आसपास .जो जिस तरीके से चले उसकी चुनौती को उसी परिप्रेक्ष्य में लो ।
सवाल यह है यह वर्ज्य नारी दार्शनिक बनना चाहती है या गोपनीय .पहली स्थिति में संवाद की पूरी गुंजाइश है .इति।
वीरुभाई ,४३३०९ ,केंटन (मिशगन ),४८ १८८
दूरभाष :००१ -७३४ -४४६ -५४५१
ई -मेल :वी ई ई आर यू बी एच ए आई (वीरुभाई १९४७ @जीमेल .कोम )

मंगलवार, 28 जून 2011

क्यों आ रहा है बचपन मोटापे की चपेट में ?

इस समय जब हम यह पोस्ट लिख रहें हैं बोस्टन के शिशु रोग अस्पताल "बोस्टन पीडी -याट्रिक क्लिनिक" में एक चार साला नौनिहाल भर्ती है .लंगडा -ता हुआ वह यहाँ पहुंचा था ,उसका वजन इतना ज्यादा था कि उसके नितम्ब ही अपनी जगह से हट गए .
"ही वाज़ केरिंग सो मच वेट ही डिसप्लेस्ड हिज़ हिप्स ."।
इसका वजन १०० पोंड्स से ऊपर तथा "बॉडी मॉस इंडेक्स "९९ इन्थ पर्सेंटाइल से भी ऊपर था .अमरीका में बढ़ते हुए एक ट्रेंड का प्रतीक है यह बच्चा ।
पूअर डाइट(पोषण तत्वों से हीन अ -स्वास्थ्य कर खुराक ),ह्यूज़ पोर्शन साइज़िज़(सब कुछ बड़ा बड़ा ,ब्रेड से बरजर तक ),अ -पर्याप्त नींद तथा माँ -बाप की पोषण मान के बारे में अन- भिज्ञता ओवरवेट या फिर ओबेसी(मोटापा रोग ग्रस्त ) बच्चों की फौज में इजाफा करवा रही है .
इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिसन द्वारा प्राप्त आंकड़ों की मानें तो फिलवक्त १० %शिशु (०-२ वर्षीय )ओवर -वेट हैं अपनी लम्बाई कद काठी और वजन के हिसाब से .पांच वर्ष आयु वर्ग से नीचे के नौनिहालों की बढ़वार की पड़ताल उन्हीं के हम उम्रों से ताल्लुक रखने वाले चार्ट से मेचिंग के बाद की जाती है ।
२-५ साला नौनिहालों में पांच में से एक बालक किंडर -गार्टन की देहरी पर पाँव रखने से पहले ही ओवरवेट पाए जातें हैं .
स्कूल लंच इसकी वजह नहीं बन रहा है स्कूल में तो अभी पहुंचे ही नहीं हैं ।
परिवार और तमाम बालिग़ लोग सदाशयता के साथ इन बालकों की परवरिश ज़रूर कर रहें हैं लेकिन अपने अनजाने ही पूअर फ़ूड चोइसिज़ कर रहें हैं ।
लेकिन अभी कुछ बिगड़ा ज़रूर है स्थिति हाथ से निकली नहीं है ,जीवन शैली बदलाव इस उम्र में अच्छे नतीजे देतें हैं माँ --बाप और अभिभावकों के लिए इन्हें लागू करना भी आसान होता है किशोर -किशोरिओं के बरक्स .बच्चों को दी जाने वाले खाद्य के पोषण मान पर ध्यान दीजिए लब्बोलुआब यही है .
ओल्डर किड्स के बरक्स भले यह बच्चे हेवियर हों लेकिन इनकी स्थिति में जीवन शैली में बदलाव के साथ तेज़ी से सुधार भी आता है .बेशक माँ -बाप को पुलिसिया रोल अदा करना पड़ेगा .निगरानी रखनी पड़ेगी खुराक की ।
ध्यान रखे -छोटे बच्चे एनर्जी ड्रिंक्स तो नहीं ले रहें हैं ,फ्रूट पञ्च और सुगरी ज्युसिज़ के भंवर में तो नहीं फंस रहें हैं .एक तरफ एम्प्टी केलोरीज़ दूसरी तरफ शक्कर का डेरा है इन ड्रिंक्स में ।
एक तरफ फीडरऔर पेसीफायर से देर तक चिपके रहें हैं ये बच्चे और अब दूसरी तरफ "सिप्पी कप्स "।
अकसर माताएं सोचतीं हैं ज्यूस भला है फलों का रस ही तो है लेकिन इनमें तबीयत से ठोकी हुई शक्कर का उन्हें इल्म नहीं है ।
यही वजह है ओल्डर एडल्ट्स में पाए जाने वाली समस्याएं मसलन -इंसुलिन मेटाबोलिज्म में गड़बड़ी (मेटाबोलिक एब -नोर्मलेतीज़ इन टोद्लार्स इंसुलिन ),लीवर एंजाइम्स और कोलेस्ट्रोल के मेटाबोलिज्म में एब्नोर्मलेतीज़ इन टोद्लार्स में आ रहीं हैं .
आठ साला बच्चों में आर्थ -राइटिस तथा मधुमेह के पूर्व संकेत प्रगटित हो रहें हैं ।
५-६ साला बच्चों में जीवन शैली रोग मधुमेह के साफ़ साफ़ चिन्ह तो दिखलाई नहीं दे रहें हैं लेकिन ये नौनिहाल उधर ही जा रहें हैं ।
ध्यान रहे अर्ली हेल्थ प्रोब्लम्स उग्र रूप न भी लें तो भी दूर तलक चली आतीं हैं बढती हुई उम्र के साथ -साथ ।
बेशक तमाम समस्याएं जीवन शैली से सम्बद्ध न भी हों ।
एक अजूबा यह भी देखिये -एक माँ बतलातीं हैं उनकी स्तन पान करने वाली बिटिया का वजन केवल छटे से आठवें सप्ताह के बीच ही ६ पोंड बढ़ गया ।
१८ माह का होने पर उसका वेट बे -साख्ता बढ़ गया .माँ ने बेटी का पोर्शन साइज़ भी घटाया ,जंक फ़ूड भी लेकिन वजन बे -काबू रहा आया .इसका अधिकतम वेट ८१ पोंड दर्ज़ हुआ खाना मांगते वक्त उसे हमेशा लगता उसे एडल्ट -साइज्ड-प्लेट मिलेगी ।
होते होते यह परिवार फ्राइड फ़ूड से हटके फल तरकारियों और लीन मीट पर आ गया .बिटिया को इन्होनें नृत्य ,तैराकी के साथ साथ हाईकिंग भी करवाई .लेकिन साहब हुआ हवाया कुछ नहीं ,छोटी बहन skinny बनी रही .छरहरी दुबली ,तन्वंगी ही बनी रही .
लेकिन बड़ी जब चार साल की हुई पता चला बिटिया हाइपो -मेटाबोलिज्म से ग्रस्त है .इस स्थिति में शरीर की केलोरीज़ को खर्च करने की कूवत घट जाती है लिहाजा वजन तेज़ी से बढ़ता ही चला जाता है .
अब माँ की पीड़ा सुनिए कहतीं हैं लोग मुझे ज्यादा लडकी को कम घूरतें हैं जैसे कह रहें हों मोतरमा आखिर बच्ची को खिलाती क्या हैं आप ?
ज़ाहिर है बच्चे के भाव जगत पर भी मोटापे का दुष्प्रभाव पड़ता है .आत्म विश्वास की कमी के साथ ओबेसिटी बच्चे को अवसाद ग्रस्त भी बना देती है .कुलमिलाकर भौतिक -कायिक के साथ -साथ मानसिक स्वास्थ्य भी चौपट करके रख देता है बालपन का मोटापा .
उम्मीद की किरण यही है जीवन शैली में बदलाव इस स्थिति से बच्चे को छुटकारा दिलवा सकता है ।
(ज़ारी ...).

सोमवार, 27 जून 2011

संबंधों के रंग .

जंगल जानवर और आदमी एक उत्तरोत्तर विकास यात्रा है .आपके आसपास भी कुछ लोग ऐसे होंगें आदमी की शक्ल में जिनके पास अस्तित्व कोष तो है ,लेकिन अभी आदमियत का समंध कोष नहीं है .उनके लिए सम्बन्ध बस एक सूचना है जैसे कोई बतलाये यह आपका भाई है लेकिन सम्बन्ध का भावन नहीं है उनके पास सम्बन्ध एक सूचना मात्र है ।
दरअसल सम्ब्नब्ध कोष न होने से सम्बन्ध की अभी इन्हें पहचान ही नहीं है ।
पशुओं में गाय भावना प्रधान है .सम्बन्ध का भावन है उसके पास .गाय रंभाती है और अपने बच्चे के लिए दूध स्रावित करने लगती है .हाथी भी सम्बन्ध कोष को समझतें हैं .मनुष्य की धीर -गंभीर प्रवृत्ति का प्रतीक हैं ।
बन्दर मनुष्य के विनोदी और चंचल स्वभाव का प्रतीक है ।
लेकिन कुछ लोग ऐसे हैं जो इन ज्ञात पशु रूपों से मनुष्य रूप में नहीं आये हैं .पशुओं के इससे निचले रूप से सम्बद्ध रहें हैं पूर्व जन्म में .पशु के भी वह निम्नतम कोष या कोटि में रहें हैं कहीं ।
इन्हें संबंधों के रंग नहीं पता ।
तिस पर तुर्रा यह कि इनमें से कुछ खुद को कलाकार भी मानने समझने लगें हैं .नृत्यु भी अच्छा ही कर लेतें हैं .लेकिन यह नृत्य उनके अभ्यास का शिखर ज़रूर है ,भाव का नहीं .निर्भाव हैं ये लोग .जबकि भारत में कलाकार बनने से पहले आदमी बनना भी ज़रूरी है .आदमी का आदमी होना पहली पात्रता है कलाकार बनने की .जिसके पास आदमियत नहीं है वह कलाकार कैसे हो सकता है ?
आइये भूमिका से बाहर निकल आपको ऐसे ही एक निर-भाव कलाकार से मिलवातें हैं .इनकी डेब्यू -टांट (प्रथम प्रस्तुती भरतनाट्यम अन्गेत्रम की देखने हम यहाँ ,केंटन (मिशगन ) से चलकर पेंसिलवानिया के नगर फाउन्टेन -विल पहंचे .दस घंटे के लम्बे सफर के बाद ।
बतलादें आपको ये कलाकार लड़की रिश्ते में हमारे दामाद साहब की कजिन लगती है .उस नाते इनके पिता -श्री हमारे समधी हुए ।
समधी -सम -धन प्रेम भाव से मिले .मिलकर आनंद आया .पता चला समधी साहब उस दौर के एम् टेक हैं आई आई टी दिल्ली से जब यहाँ तक पहुँच के इतने ताम झाम लोगों के पास नहीं थे .न प्रशिक्षण उतना न सुविधाएं .यहाँ आकर एम् एस (मास्टर ऑफ़ साइंस )और फिर पीएच.डी और अब एक दवा निगम के डायरेक्टर हैं .समधन होम मेकर हैं ,हाउस वाइफ हैं .पुरानी फिल्मों की हीरोइन सी आकर्षक व्यक्तित्व की मालिक ।
उनके एक दोस्त भी यहाँ पधारे थे इस प्रस्तुति के लिए फिलाडेल्फिया से .एक रासायनिक निगम के निदेशक हैं .आप भी पीएच.डी हैं ।
पता चला सबसे सदा प्रेम भाव बनाए रखना आपके स्वभाव का अंग है .सहकर्मियों में से सबको नमस्ते कहना शुरू से इनकी आदत में शुमार रहा आया है .आज भी वही क्रम है ।
समधी साहब ने उस कलाकार से (अपनी बिटिया )को बतलाया हमारी बेटी और दामाद को इंगित करके ये तुम्हारे भैया -भाभी हैं .केंटन में रहतें हैं .और ये हमारे समधी हैं हमारी और मुखातिब होकर बतलाया ।
लड़की निर -भाव खड़ी रही .सूचना कोष में इस सम्बन्ध सूचना को डाला और अपने कमरे में ऊपर चली गई ।
हम नीचे बैठे तनिक देर तक सोचते रहे -संगीत तो अदब सिखाता है .हमने अमज़द अली कहाँ साहब को कई मर्तबा देखा है .एक मर्तबा रोहतक यूनिवर्सिटी के संगीत विभाग की और से निमंत्रित थे .आकाशवाणी रोहतक से सेवा -निवृत्त एक बुजुर्ग गायक शाश्त्रीय संगीत के वाहन मौजूद थे ।
खान साहब ने बा -कायदा मंच पर चढ़ने से पूर्व भूत साहब की चरण वंदना की .फिर अपनी प्रस्तुति दी सरोद पर .तो यह ज़ज्बा पैदा करता है संगीत ।
हम कल का इंतज़ार करते रहे .कल प्रस्तुति थी इस सु-कन्या की .ईमानदारी से प्रस्तुति प्रथम प्रस्तुति के हिसाब से बहुत अच्छी थी लेकिन अगर भाव भी मुद्राओं और अभिनय के साथ होते ,सोने पे सुहागा होता ।
हमने देखा लड़की गुरु के अभिवादन में झुकी ज़रूर लेकिन हाथ पाँव तक न पहुंचे .

रविवार, 26 जून 2011

Careful who you kiss matters cavities can be contajious.

हु यु किस -केविटीज़ कैन बी कन्तेजीयअस .

केयरफुल हु यु किस -केविटीज़ कैन बी कन्तेजियास .-हेल्थ .कॉम
अकसर माँ अपने बच्चे को अपने हाथ से ही खिलाती है साथ में ये भी देखती है खाना कहीं ज़रुरत से ज्यादा गरम तो नहीं है इस चक्कर में वह खाने को पहले खुद चखती है फिर बच्चे को उन्हीं हाथों से खिलादेती है ।
बस लार में मौजूद दांतोंको खोखला बनाने वाला जीवाणु (केविटी कौजिंग बेक्टीरिया )इसी रास्ते बच्चे तक पहुच सकता है .बेहतर हो माँ खाने को फूंक मारकर ठंडा करले ताकि कमसे कम ख़तरा हो ज़रासीम बच्चे तक पहुँच सकने का ।
तमाम तरह के जर्म्स और विषाणुओं का हमारे मुख में डेरा होता है ,केविटीज़ फोर्मिंग बेक्तीरियाज़ भी इनमे शरीक हैं इसलिए ज़रूरी है ओरल हाइजीन का स्तर देखते हुए ही किसी का चुम्बन आलिंगन किया जाए .आपके पार्टनर को गम डिजीज होने पर ,केविटीज़ होने पर आप भी इसकी चपेट में आ सकतें हैं .आखिर कितने व्यक्ति आपके इनर सर्किल में हैं जो साल छ :महीने में दन्त चिकित्सक तक पहुंचतें हैं ,दांतों की मंजाई(स्केलिंग )के लिए ?ज़रा जायज़ा लेके देखिये .चौंकाने वाले तथ्य सामने आयेंगें ।
देखिये कितने लोग नियमित फ्लोसिंग और ब्रशिंग करतें हैं हरेक "मील" के बाद .काफी कुछ अंदाजा हो जाएगा आपको ,सुरक्षित और अ -सुरक्षित किस का ।
"सुगर- फ्री- गम "की च्युइंग सरल उपाय है ओरल हाइजीन को बनाए रखने का .ज्यादा लार पैदा करवा कर यह "गम " जीवाणुओं को दूर रखता है ।
यु नीड नोट टू गो टर्की ऑन किसिंग -फ्यू .बस परख लीजिये साथी की हाइजीन।
रूप की आराधना का मार्ग आलिंगन नहीं तो और क्या है ,

शनिवार, 25 जून 2011

What ia Mommyrexia. ?

माम्मिरेक्सिया :प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ .

कवि रसलीन ने नारी के नैसर्गिक दैहिक सौन्दर्य को निहारते हुए ही लिखा होगा -
"कनक छड़ी सी कामिनी ,कति काहे को क्षीण ,
कति को कंचन काटी विधि ,कुचन मध्य धर दीन्हिं।
इसी दैहिक सौन्दर्य से विमुग्ध हो कवि दिनकर ने कहा होगा-'" सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता, कुसुम या कामिनी हो ."।
बच्चे का माँ के गर्भ में आना भी एक अध्यात्मिक चमत्कार ही है .और बच्चा गर्भ में आता भी इसी आश्वस्ति भाव के साथ है कि-माँ का गर्भालय एक पोषण आगार है .प्राथमिक स्रोत है भ्रूण के पोषण और दोहन का .गर्भ नाल कड़ी बनता है इस पोषण की .माँ बनना कितने सौभाग्य की बात होती है .यह उनसे पूछो जिन्हें यह आध्यात्मिक वरदान नसीब नहीं है .सम्पूर्णता का उत्कर्ष है मातृत्व औरत की ,सौन्दर्य की ।
इधर मम्मी -रेक्सिया -जो एक पश्चिमी सोच की विकृति से और ज्यादा कुछ नहीं है -सौन्दर्य के अपने प्रतिमान गढ़ रहा है ।
कुछ रूपसियाँ हैं जो रसलीन की कामिनी बने रहने के फेर में गर्भ काल में "बेबी वेट "से निजात पाना चाहतीं हैं .गर्भ काल में वजन न बढे इसके लिए यह बहु -विध उपाय आजमा रहीं हैं ,जिम जाने से लेकर ,खाकर वमन करने तक .दुश्चिंता यही है इनकी कहीं देह यष्टि विरूप न हो जाए .फिगर का जादू चुक न जाए .बस यही है -मोम्मी -रेक्सिया (मम्मी -रेक्सिया )।
पोषण के आगार से भ्रूण को वंचित रखने का हक़ इन्हें किसने दे दिया .यह गर्भस्थ के भावी जीवन से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ,जब की गर्भस्थ की स्वास्थ्य की नव्ज़ गर्भ काल में माँ के खान -पान से सीधे सीधे जुडी रहती है .
हमारा मानना है इन गौरान्गियों के खिलाफ एक क़ानून बनना चाहिए जो गर्भ काल में गर्भस्थ के पोषण को सुनिश्चित करे ।
विज्ञानियों की चिंता यही है कहीं इन रूपसियों का "स्किनी प्रेग्नेट फ्रेम "गर्भ काल का रोल मोडल ही न बन जाए आधी दुनिया के लिए ।
कुछ नाम चीन अदाकारों में बेथेंन्य फ्रंकेल तथा विक्टोरिया बैखेम का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने गर्भ -काल के नकली सौन्दर्य के ये प्रतिमान गढ़ें हैं .एक्सट्रीम पोस्ट बेबी वेट लोस के उपाय अपना के .गर्भ काल के दौरान बेबी वेट को मुल्तवी रख के .इनके शिशुओं का वैज्ञानिक अध्धयन होना चाहिए .क्या होता है आगे चलके इनकी सेहत के साथ ।
इन रूप -गर्विताओं को अगर फिगर का इतना ही ओब्सेसन है तो अपनी मामी बनवाके रख लेनी चाहिए .फ्रेम करवा लेना चाहिए इन ममीज़ को नित निहारने के लिए .
इन्हें प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था में हस्तक्षेप की इजाज़त आइन्दा नहीं मिलनी चाहिए .अगर इतना ही है तो कोई ऐसा उपाय सोचा जाए बच्चा मुंह से बाहर आ जाए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?cid=cnnrss&hpt=he_ब्न

What is Mommyrexia ?


Thursday, June 23, 2011

कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए किसके लिए ज़रूरी हैं स्तेतिंस ?

शोध की खिड़की से छनकर नित नै जानकारी आ रही है .हमारी बुद्धि मत्ता इसमें ही है हम उसमें से सार तत्व निकालें .फोक को छोड़ दें .एक रिसर्च रिपोर्ट का शीर्षक है :हाई -डोज़ स्टे -टीन्स मे रेज़ दी रिस्क ऑफ़ डाय बिटीज़.जब हमने इसे खंगाला तो निष्कर्ष यह निकला :दिल के जिन मरीजों को यह तजवीज़ की गई है उन्हें लेते रहना चाहिए क्योंकि इसके फायदे के बरक्स नुक्सानात बहुत कम हैं ।
गौर कीजिये इन आंकड़ों पर :तकरीबन ४९८ लोग यदि नियमित एक साल तक हाई डोज़ स्टे -टीन्स की लेते रहें तब कहीं जाकर सेकेंडरी डायबिटीज़ का एक नया मरीज़ सामने आयेगा .दूसरी तरफ १५५ लोगों को एक साल तक हाई डोज़ स्टे -टीन्स लेने पर हार्ट अटेक से बचावी चिकित्सा एवं सुरक्षा मिल जाती है ।
हाई डोज़ इस दवा की ब्लड सुगर लेविल्स में इजाफा कर देती है ।
एनीमल स्टडीज़ से पता चला है स्टे -टीन्स इंसुलिन के प्रति मसल रेजिस्टेंस (पेशीय प्रति -रोध )को बढा देतीं हैं .इसी वजह से खून में ज्यादा शक्कर प्रवाहित होने लगती है .इसी बढे हुए ब्लड सुगर लेविल्स की वजह से डाय -बिटीज़ की पुष्टि हो जाती है .लेकिन स्टे -टीन्स द्वारा प्रेरित खून में प्रवाहित इस बढ़ी हुई शक्कर के दीर्घावधि नतीजे क्या हैं यह किसी को भी मालूम नहीं है ।
कुल मिलाकर विचार मंथन के बाद माहिरों ने नतीज़ा इस प्रकार निकाला -स्टे -टीन्स थिरेपी दिल की बिमारी के मरीजों खासकर हाई रिस्क ग्रुप के लिए बहुत अच्छी है .अलबत्ता जिन्हें हाई डोज़ दी जा रही है उनके मामले में सेकेंडरी डाय -बिटीज़ पर नजर रखीजाए तथा हेल्दी लोगों को सिर्फ कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए बचावी चिकित्सा के रूप में यह दवा सोच समझ कर ही दी जाए ।
निश्चय ही दिल के मरीजों को अपने खानपान में सुधार और एक्सरसाइज़ के बाबत भी अपने कार्डियोलोजिस्ट से विमर्श करना चाहिए ।
उक्त अधययन जर्नल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल असोशियेशन में प्रकाशित हुआ जिसके अंतर्गत ३२,७५२ मरीजों का ब्योरा (प्रकाशित और अ -प्रकाशित अध्ययनों से संकलित करके )दिया गया है ।
अधययन में एक वर्ग के मरीजों को ५ साल तक स्टे -टीन्स की हाई डोज़ (८० मिलिग्रेम रोजाना )तथा दूसरे को कम डोज़ मुहैया करवाई गई ।
दोनों समूहों से कुल २,७४९ मरीज़ सेकेंडरी डाय -बिटीज़ की लपेट में आगये .हाई -डोज़ वर्ग में जोखिम १२ %बढ़ा ।
२०१० में लांसेट में प्रकाशित एक अधययन में बतलाया गया ,स्टे -टीन्स लेने वालों में न लेने वालों के बरक्स ख़तरा सेकेंडरी डाय -बिटीज़ का ९% बढ़ जाता है ।
लेकिन इन नतीजों का मतलब यह नहीं है जो स्टे -टीन्स ले रहें हैं वे इस से छिटक कर अलग हो जाएँ .दोहरा दें माहिरों की राय -फायदे ज्यादा हैं संभव नुक्सानात सेकेंडरी डाय -बिटीज़ के कम हैं .

जय च्युइंगम- सरकार की .

बार -बार झूठ बोलने से सच को ही ताकत मिलती है .दरअसल वर्तमान केन्द्रीय सरकार मजबूरी में ही सही इतने झूठबोल चुकी है कि कोई उनके सच पर विश्वास नहीं करता .यहाँ तक के सरकार होने का सच भी विश्वसनीय नहीं रहा.संस्कृत की एक उक्ति है राजा नहीं उसका प्रताप शासन करता है .जिस सरकार का प्रताप ख़त्म हो गया हो वही सरकाररात के डेढ़ बजे साधू -संतों ,निरीह साधकों और स्त्री बच्चों पर अपना प्रताप दिखलाती है .हम तो इस सरकार की दीर्घआयु की कामना कर सकतें हैं .पर लोग हैं कि मानते नहीं
अब लोग यह कह रहें हैं कि वित्त मंत्रालय में चुइंगम का क्या काम .अगर इस सरकार के प्रवक्ता ने ये झूठ बोला होताकि वह जासूसी यंत्रों का गम होकर चुइंगम था तो सरकार को यह सब सुनना पड़ता
अब कई भारतीय यह भी पूछ रहें हैं कि क्या सरकार ही वित्त मंत्रालय को चुइंगम सप्लाइ करती थी .यह हो सकता हैकि एक आदि कर्मचारी च्युइंगम खाता हो .कहीं ऐसा तो नहीं सारे ही खातें हों और सरकार को पता हो .कम से कमवित्त मंत्री पर तो यह शक नहीं जाना चाहिए .ये पुरानी भारतीय धारा के बंग भद्र जन हैं .वे च्युइंगम क्यों खायेंगें .भलेही हाई कमान से क्यों आया हो .
झूठ के पर नहीं होते .सरकार अगर मान ही लेती कि हाँ किसी ख़ास वजह से जासूसी करवाई गई तो सरकार को बे-सिर पैर के इलज़ाम तो झेलने पड़ते .अब लोग यह पूछ रहें हैं कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के बाद दूसरे नंबर केवरिष्ठ मंत्री और सरकार चलाने के अनुभव में तो सबसे वरिष्ठ प्रणव मुखर्जी अपनी ऐसी विशिष्ट स्थिति में भी सरकारका हिस्सा नहीं हैं तो फिर अलग से सरकार क्या होती है
क्या सिर्फ प्रधान मंत्री को ही सरकार कहा जाता है ?या कोई और असंवैधानिक सरकार होती है क्या ?हम तो सरकार केहिमायती हैं .कमसे कम सरकार उस शख्स को ढूंढकर पुरूस्कार तो दे ही सकती है जिसने पूरे कौशल से कहीं कुर्सी केपीछे ,कहीं मेज़ के नीचे ,कहीं दाएं ,बाएँ ,या ऊपर नीचे च्युइंगम चिपकाई थी ,जहां से आवाज़ को पकड़ा जा सके
कहीं ऐसा तो नहीं है ,भारत सरकार ने ऐसी कोई च्युइंगम मंगाई हो ,कहीं से आयात की हो जो खाने के काम भी आतीहो और बा -वक्त जासूसी उपकरणों के चिपकाए जाने में भी इस्तेमाल होती हो .सरकार समर्थ है .और बाबा तुलसीदासकह गए हैं :
समरथ को नहीं दोष गुसाईं

अब सरकार के पास वक्त भी है ,भले ही आम भारतीय को रोज़ी रोटी के चक्कर में वक्त नसीब होता हो .मैं भी आमभारतीय हूँ .सरकार चाहें तो किसी भोपाली जादूगर को बुलाकर ये पता करवा सकती है ,कि यह च्युइंगम कहाँ से आई?भारत के लोग शान्ति प्रिय हैं .फिलाल तो वह यही कह रहें हैं :
जय च्युइंगम सरकार की .

Wednesday, June 22, 2011

हर शाख पे उल्लू बैठा है .

इन दिनों दिल्ली में हलचल मची हुई है और सभी बदहवास हैं .खबर यह है कि वित्त -मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी के मंत्रालय की जासूसी की गई है .यानी सरकार के अन्दर ही गृह -युद्ध छिड़ा है ।
शायद इसीलिए प्रणव मुखर्जी ने प्रधान मंत्री को एक साल पहले इस बाबत पत्र लिखा था .नियमानुसार उन्हें यह पत्र गृह मंत्री चिदंबरम को लिखना चाहिए था पर जो खुद शक के दायरों में हों ,उन्हें भारत सरकार का वरिष्ठ -तम मंत्री और वह भी वित्त मंत्री पत्र क्यों लिखता ।
भारत के गृह मंत्री चिदंबरम पर हाई -कोर्ट में दो साल से इस आशय का मुकदमा चल रहा है ,संसदीय चुनाव में जय ललिता की पार्टी के एक उम्मीदवार से हार जाने के बाद उन्होंने छल -बल से अपने पक्ष में चुनाव जीतने की घोषणा करवा दी थी .ये सब कुछ सरकार के नोटिस में है .पर सरकार बिचारी क्या करे ?
उसे तो किसी न किसी को गृह मंत्री बनाना था ,क्या पता चिदंबरम से भी ज्यादा बुरा व्यक्ति पद पर बैठ जाता तो सारी पोल खुल जाती .अब सरकार को समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करे ।
नैतिक दृष्टि से यह पद चिदंबरम को स्वीकार नहीं करना चाहिए था .पर कांग्रेस का नैतिकता से क्या सम्बन्ध ?
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा .जिस पर कोढ़ में खाज हो गई है .अब गृह मंत्री पर यह इलज़ाम जाने अनजाने चस्पां हो रहा है ,शायद उन्होंने ही जासूसी करवाई है .आगे खुदा जाने .और यह तो किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस का खुदा कौन है ।
(ज़ारी ...).

Tuesday, June 21, 2011

जोंक और कोंग्रेस का स्वास्थ्य .

इन दिनों प्रस्तावित सरकारी लोकपाल बिल को अन्ना जी ने जोक -पाल कहकर इसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया था .इसी बीच एक केन्द्रीय मंत्री ने अपनी कुशाग्र बुद्धि -मत्ता का परिचय देते हुए पत्रकारों के समक्ष कहा दरअसल असली शब्द हिंदी का जोंक -पाल है .और हम ऐसे जोंक -पाल को लाना नहीं चाहते जो जनता का खून चूसे ।
बतला दें हम इन कुशला बुद्धि को जोंकपाल भारत के गाँव शहर गली गली जोंक -पाल घूमते रहें हैं .
जोंक -चिकित्सा प्राकृत चिकित्सा पद्धति रही है .जोंक -पाल अशुद्ध खून को साफ़ करते थे .कई अंचलों में इस देसी चिकित्सा पद्धति को सींगा लगवाना भी कहा जाता रहा है ।
क्या कोंग्रेस में तमाम मंत्री जानकारी के इतने ही धनी है जो जोंक -का ,जोंक -पालों का सरेआम अपमान कर रहें हैं ।
कोंग्रेस का तो सारा ही खून अशुद्ध है उसे तो जोंक लगवाना और भी ज़रूरी है .जल्दी से जल्दी लाया जाए जोंक -पाल बिल .हमें यू पी के भइयों को अपने भाषा ज्ञान पर बड़ा गर्व है ,हमने तब अपना माथा और जोर से पीट लिया जब पता चला ये ज़नाब यू पी के हैं .

माम्मिरेक्सिया :प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ .

कवि रसलीन ने नारी के नैसर्गिक दैहिक सौन्दर्य को निहारते हुए ही लिखा होगा -
"कनक छड़ी सी कामिनी ,कति काहे को क्षीण ,
कति को कंचन काटी विधि ,कुचन मध्य धर दीन्हिं।
इसी दैहिक सौन्दर्य से विमुग्ध हो कवि दिनकर ने कहा होगा-'" सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता, कुसुम या कामिनी हो ."।
बच्चे का माँ के गर्भ में आना भी एक अध्यात्मिक चमत्कार ही है .और बच्चा गर्भ में आता भी इसी आश्वस्ति भाव के साथ है कि-माँ का गर्भालय एक पोषण आगार है .प्राथमिक स्रोत है भ्रूण के पोषण और दोहन का .गर्भ नाल कड़ी बनता है इस पोषण की .माँ बनना कितने सौभाग्य की बात होती है .यह उनसे पूछो जिन्हें यह आध्यात्मिक वरदान नसीब नहीं है .सम्पूर्णता का उत्कर्ष है मातृत्व औरत की ,सौन्दर्य की ।
इधर मम्मी -रेक्सिया -जो एक पश्चिमी सोच की विकृति से और ज्यादा कुछ नहीं है -सौन्दर्य के अपने प्रतिमान गढ़ रहा है ।
कुछ रूपसियाँ हैं जो रसलीन की कामिनी बने रहने के फेर में गर्भ काल में "बेबी वेट "से निजात पाना चाहतीं हैं .गर्भ काल में वजन न बढे इसके लिए यह बहु -विध उपाय आजमा रहीं हैं ,जिम जाने से लेकर ,खाकर वमन करने तक .दुश्चिंता यही है इनकी कहीं देह यष्टि विरूप न हो जाए .फिगर का जादू चुक न जाए .बस यही है -मोम्मी -रेक्सिया (मम्मी -रेक्सिया )।
पोषण के आगार से भ्रूण को वंचित रखने का हक़ इन्हें किसने दे दिया .यह गर्भस्थ के भावी जीवन से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ,जब की गर्भस्थ की स्वास्थ्य की नव्ज़ गर्भ काल में माँ के खान -पान से सीधे सीधे जुडी रहती है .
हमारा मानना है इन गौरान्गियों के खिलाफ एक क़ानून बनना चाहिए जो गर्भ काल में गर्भस्थ के पोषण को सुनिश्चित करे ।
विज्ञानियों की चिंता यही है कहीं इन रूपसियों का "स्किनी प्रेग्नेट फ्रेम "गर्भ काल का रोल मोडल ही न बन जाए आधी दुनिया के लिए ।
कुछ नाम चीन अदाकारों में बेथेंन्य फ्रंकेल तथा विक्टोरिया बैखेम का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने गर्भ -काल के नकली सौन्दर्य के ये प्रतिमान गढ़ें हैं .एक्सट्रीम पोस्ट बेबी वेट लोस के उपाय अपना के .गर्भ काल के दौरान बेबी वेट को मुल्तवी रख के .इनके शिशुओं का वैज्ञानिक अध्धयन होना चाहिए .क्या होता है आगे चलके इनकी सेहत के साथ ।
इन रूप -गर्विताओं को अगर फिगर का इतना ही ओब्सेसन है तो अपनी मामी बनवाके रख लेनी चाहिए .फ्रेम करवा लेना चाहिए इन ममीज़ को नित निहारने के लिए .
इन्हें प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था में हस्तक्षेप की इजाज़त आइन्दा नहीं मिलनी चाहिए .अगर इतना ही है तो कोई ऐसा उपाय सोचा जाए बच्चा मुंह से बाहर आ जाए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?cid=cnnrss&hpt=he_ब्न५
http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?

What is Mommyrexia?


Thursday, June 23, 2011

कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए किसके लिए ज़रूरी हैं स्तेतिंस ?

शोध की खिड़की से छनकर नित नै जानकारी आ रही है .हमारी बुद्धि मत्ता इसमें ही है हम उसमें से सार तत्व निकालें .फोक को छोड़ दें .एक रिसर्च रिपोर्ट का शीर्षक है :हाई -डोज़ स्टे -टीन्स मे रेज़ दी रिस्क ऑफ़ डाय बिटीज़.जब हमने इसे खंगाला तो निष्कर्ष यह निकला :दिल के जिन मरीजों को यह तजवीज़ की गई है उन्हें लेते रहना चाहिए क्योंकि इसके फायदे के बरक्स नुक्सानात बहुत कम हैं ।
गौर कीजिये इन आंकड़ों पर :तकरीबन ४९८ लोग यदि नियमित एक साल तक हाई डोज़ स्टे -टीन्स की लेते रहें तब कहीं जाकर सेकेंडरी डायबिटीज़ का एक नया मरीज़ सामने आयेगा .दूसरी तरफ १५५ लोगों को एक साल तक हाई डोज़ स्टे -टीन्स लेने पर हार्ट अटेक से बचावी चिकित्सा एवं सुरक्षा मिल जाती है ।
हाई डोज़ इस दवा की ब्लड सुगर लेविल्स में इजाफा कर देती है ।
एनीमल स्टडीज़ से पता चला है स्टे -टीन्स इंसुलिन के प्रति मसल रेजिस्टेंस (पेशीय प्रति -रोध )को बढा देतीं हैं .इसी वजह से खून में ज्यादा शक्कर प्रवाहित होने लगती है .इसी बढे हुए ब्लड सुगर लेविल्स की वजह से डाय -बिटीज़ की पुष्टि हो जाती है .लेकिन स्टे -टीन्स द्वारा प्रेरित खून में प्रवाहित इस बढ़ी हुई शक्कर के दीर्घावधि नतीजे क्या हैं यह किसी को भी मालूम नहीं है ।
कुल मिलाकर विचार मंथन के बाद माहिरों ने नतीज़ा इस प्रकार निकाला -स्टे -टीन्स थिरेपी दिल की बिमारी के मरीजों खासकर हाई रिस्क ग्रुप के लिए बहुत अच्छी है .अलबत्ता जिन्हें हाई डोज़ दी जा रही है उनके मामले में सेकेंडरी डाय -बिटीज़ पर नजर रखीजाए तथा हेल्दी लोगों को सिर्फ कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए बचावी चिकित्सा के रूप में यह दवा सोच समझ कर ही दी जाए ।
निश्चय ही दिल के मरीजों को अपने खानपान में सुधार और एक्सरसाइज़ के बाबत भी अपने कार्डियोलोजिस्ट से विमर्श करना चाहिए ।
उक्त अधययन जर्नल ऑफ़ अमेरिकन मेडिकल असोशियेशन में प्रकाशित हुआ जिसके अंतर्गत ३२,७५२ मरीजों का ब्योरा (प्रकाशित और अ -प्रकाशित अध्ययनों से संकलित करके )दिया गया है ।
अधययन में एक वर्ग के मरीजों को ५ साल तक स्टे -टीन्स की हाई डोज़ (८० मिलिग्रेम रोजाना )तथा दूसरे को कम डोज़ मुहैया करवाई गई ।
दोनों समूहों से कुल २,७४९ मरीज़ सेकेंडरी डाय -बिटीज़ की लपेट में आगये .हाई -डोज़ वर्ग में जोखिम १२ %बढ़ा ।
२०१० में लांसेट में प्रकाशित एक अधययन में बतलाया गया ,स्टे -टीन्स लेने वालों में न लेने वालों के बरक्स ख़तरा सेकेंडरी डाय -बिटीज़ का ९% बढ़ जाता है ।
लेकिन इन नतीजों का मतलब यह नहीं है जो स्टे -टीन्स ले रहें हैं वे इस से छिटक कर अलग हो जाएँ .दोहरा दें माहिरों की राय -फायदे ज्यादा हैं संभव नुक्सानात सेकेंडरी डाय -बिटीज़ के कम हैं .

जय च्युइंगम- सरकार की .

बार -बार झूठ बोलने से सच को ही ताकत मिलती है .दरअसल वर्तमान केन्द्रीय सरकार मजबूरी में ही सही इतने झूठबोल चुकी है कि कोई उनके सच पर विश्वास नहीं करता .यहाँ तक के सरकार होने का सच भी विश्वसनीय नहीं रहा.संस्कृत की एक उक्ति है राजा नहीं उसका प्रताप शासन करता है .जिस सरकार का प्रताप ख़त्म हो गया हो वही सरकाररात के डेढ़ बजे साधू -संतों ,निरीह साधकों और स्त्री बच्चों पर अपना प्रताप दिखलाती है .हम तो इस सरकार की दीर्घआयु की कामना कर सकतें हैं .पर लोग हैं कि मानते नहीं
अब लोग यह कह रहें हैं कि वित्त मंत्रालय में चुइंगम का क्या काम .अगर इस सरकार के प्रवक्ता ने ये झूठ बोला होताकि वह जासूसी यंत्रों का गम होकर चुइंगम था तो सरकार को यह सब सुनना पड़ता
अब कई भारतीय यह भी पूछ रहें हैं कि क्या सरकार ही वित्त मंत्रालय को चुइंगम सप्लाइ करती थी .यह हो सकता हैकि एक आदि कर्मचारी च्युइंगम खाता हो .कहीं ऐसा तो नहीं सारे ही खातें हों और सरकार को पता हो .कम से कमवित्त मंत्री पर तो यह शक नहीं जाना चाहिए .ये पुरानी भारतीय धारा के बंग भद्र जन हैं .वे च्युइंगम क्यों खायेंगें .भलेही हाई कमान से क्यों आया हो .
झूठ के पर नहीं होते .सरकार अगर मान ही लेती कि हाँ किसी ख़ास वजह से जासूसी करवाई गई तो सरकार को बे-सिर पैर के इलज़ाम तो झेलने पड़ते .अब लोग यह पूछ रहें हैं कि प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह के बाद दूसरे नंबर केवरिष्ठ मंत्री और सरकार चलाने के अनुभव में तो सबसे वरिष्ठ प्रणव मुखर्जी अपनी ऐसी विशिष्ट स्थिति में भी सरकारका हिस्सा नहीं हैं तो फिर अलग से सरकार क्या होती है
क्या सिर्फ प्रधान मंत्री को ही सरकार कहा जाता है ?या कोई और असंवैधानिक सरकार होती है क्या ?हम तो सरकार केहिमायती हैं .कमसे कम सरकार उस शख्स को ढूंढकर पुरूस्कार तो दे ही सकती है जिसने पूरे कौशल से कहीं कुर्सी केपीछे ,कहीं मेज़ के नीचे ,कहीं दाएं ,बाएँ ,या ऊपर नीचे च्युइंगम चिपकाई थी ,जहां से आवाज़ को पकड़ा जा सके
कहीं ऐसा तो नहीं है ,भारत सरकार ने ऐसी कोई च्युइंगम मंगाई हो ,कहीं से आयात की हो जो खाने के काम भी आतीहो और बा -वक्त जासूसी उपकरणों के चिपकाए जाने में भी इस्तेमाल होती हो .सरकार समर्थ है .और बाबा तुलसीदासकह गए हैं :
समरथ को नहीं दोष गुसाईं

अब सरकार के पास वक्त भी है ,भले ही आम भारतीय को रोज़ी रोटी के चक्कर में वक्त नसीब होता हो .मैं भी आमभारतीय हूँ .सरकार चाहें तो किसी भोपाली जादूगर को बुलाकर ये पता करवा सकती है ,कि यह च्युइंगम कहाँ से आई?भारत के लोग शान्ति प्रिय हैं .फिलाल तो वह यही कह रहें हैं :
जय च्युइंगम सरकार की .

Wednesday, June 22, 2011

हर शाख पे उल्लू बैठा है .

इन दिनों दिल्ली में हलचल मची हुई है और सभी बदहवास हैं .खबर यह है कि वित्त -मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी के मंत्रालय की जासूसी की गई है .यानी सरकार के अन्दर ही गृह -युद्ध छिड़ा है ।
शायद इसीलिए प्रणव मुखर्जी ने प्रधान मंत्री को एक साल पहले इस बाबत पत्र लिखा था .नियमानुसार उन्हें यह पत्र गृह मंत्री चिदंबरम को लिखना चाहिए था पर जो खुद शक के दायरों में हों ,उन्हें भारत सरकार का वरिष्ठ -तम मंत्री और वह भी वित्त मंत्री पत्र क्यों लिखता ।
भारत के गृह मंत्री चिदंबरम पर हाई -कोर्ट में दो साल से इस आशय का मुकदमा चल रहा है ,संसदीय चुनाव में जय ललिता की पार्टी के एक उम्मीदवार से हार जाने के बाद उन्होंने छल -बल से अपने पक्ष में चुनाव जीतने की घोषणा करवा दी थी .ये सब कुछ सरकार के नोटिस में है .पर सरकार बिचारी क्या करे ?
उसे तो किसी न किसी को गृह मंत्री बनाना था ,क्या पता चिदंबरम से भी ज्यादा बुरा व्यक्ति पद पर बैठ जाता तो सारी पोल खुल जाती .अब सरकार को समझ में नहीं आ रहा कि वह क्या करे ।
नैतिक दृष्टि से यह पद चिदंबरम को स्वीकार नहीं करना चाहिए था .पर कांग्रेस का नैतिकता से क्या सम्बन्ध ?
हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ताँ क्या होगा .जिस पर कोढ़ में खाज हो गई है .अब गृह मंत्री पर यह इलज़ाम जाने अनजाने चस्पां हो रहा है ,शायद उन्होंने ही जासूसी करवाई है .आगे खुदा जाने .और यह तो किसी से छिपा नहीं कि कांग्रेस का खुदा कौन है ।
(ज़ारी ...).

Tuesday, June 21, 2011

जोंक और कोंग्रेस का स्वास्थ्य .

इन दिनों प्रस्तावित सरकारी लोकपाल बिल को अन्ना जी ने जोक -पाल कहकर इसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया था .इसी बीच एक केन्द्रीय मंत्री ने अपनी कुशाग्र बुद्धि -मत्ता का परिचय देते हुए पत्रकारों के समक्ष कहा दरअसल असली शब्द हिंदी का जोंक -पाल है .और हम ऐसे जोंक -पाल को लाना नहीं चाहते जो जनता का खून चूसे ।
बतला दें हम इन कुशला बुद्धि को जोंकपाल भारत के गाँव शहर गली गली जोंक -पाल घूमते रहें हैं .
जोंक -चिकित्सा प्राकृत चिकित्सा पद्धति रही है .जोंक -पाल अशुद्ध खून को साफ़ करते थे .कई अंचलों में इस देसी चिकित्सा पद्धति को सींगा लगवाना भी कहा जाता रहा है ।
क्या कोंग्रेस में तमाम मंत्री जानकारी के इतने ही धनी है जो जोंक -का ,जोंक -पालों का सरेआम अपमान कर रहें हैं ।
कोंग्रेस का तो सारा ही खून अशुद्ध है उसे तो जोंक लगवाना और भी ज़रूरी है .जल्दी से जल्दी लाया जाए जोंक -पाल बिल .हमें यू पी के भइयों को अपने भाषा ज्ञान पर बड़ा गर्व है ,हमने तब अपना माथा और जोर से पीट लिया जब पता चला ये ज़नाब यू पी के हैं .

माम्मिरेक्सिया :प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ .

कवि रसलीन ने नारी के नैसर्गिक दैहिक सौन्दर्य को निहारते हुए ही लिखा होगा -
"कनक छड़ी सी कामिनी ,कति काहे को क्षीण ,
कति को कंचन काटी विधि ,कुचन मध्य धर दीन्हिं।
इसी दैहिक सौन्दर्य से विमुग्ध हो कवि दिनकर ने कहा होगा-'" सत्य ही रहता नहीं ये ध्यान तुम कविता, कुसुम या कामिनी हो ."।
बच्चे का माँ के गर्भ में आना भी एक अध्यात्मिक चमत्कार ही है .और बच्चा गर्भ में आता भी इसी आश्वस्ति भाव के साथ है कि-माँ का गर्भालय एक पोषण आगार है .प्राथमिक स्रोत है भ्रूण के पोषण और दोहन का .गर्भ नाल कड़ी बनता है इस पोषण की .माँ बनना कितने सौभाग्य की बात होती है .यह उनसे पूछो जिन्हें यह आध्यात्मिक वरदान नसीब नहीं है .सम्पूर्णता का उत्कर्ष है मातृत्व औरत की ,सौन्दर्य की ।
इधर मम्मी -रेक्सिया -जो एक पश्चिमी सोच की विकृति से और ज्यादा कुछ नहीं है -सौन्दर्य के अपने प्रतिमान गढ़ रहा है ।
कुछ रूपसियाँ हैं जो रसलीन की कामिनी बने रहने के फेर में गर्भ काल में "बेबी वेट "से निजात पाना चाहतीं हैं .गर्भ काल में वजन न बढे इसके लिए यह बहु -विध उपाय आजमा रहीं हैं ,जिम जाने से लेकर ,खाकर वमन करने तक .दुश्चिंता यही है इनकी कहीं देह यष्टि विरूप न हो जाए .फिगर का जादू चुक न जाए .बस यही है -मोम्मी -रेक्सिया (मम्मी -रेक्सिया )।
पोषण के आगार से भ्रूण को वंचित रखने का हक़ इन्हें किसने दे दिया .यह गर्भस्थ के भावी जीवन से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ,जब की गर्भस्थ की स्वास्थ्य की नव्ज़ गर्भ काल में माँ के खान -पान से सीधे सीधे जुडी रहती है .
हमारा मानना है इन गौरान्गियों के खिलाफ एक क़ानून बनना चाहिए जो गर्भ काल में गर्भस्थ के पोषण को सुनिश्चित करे ।
विज्ञानियों की चिंता यही है कहीं इन रूपसियों का "स्किनी प्रेग्नेट फ्रेम "गर्भ काल का रोल मोडल ही न बन जाए आधी दुनिया के लिए ।
कुछ नाम चीन अदाकारों में बेथेंन्य फ्रंकेल तथा विक्टोरिया बैखेम का नाम लिया जा सकता है जिन्होंने गर्भ -काल के नकली सौन्दर्य के ये प्रतिमान गढ़ें हैं .एक्सट्रीम पोस्ट बेबी वेट लोस के उपाय अपना के .गर्भ काल के दौरान बेबी वेट को मुल्तवी रख के .इनके शिशुओं का वैज्ञानिक अध्धयन होना चाहिए .क्या होता है आगे चलके इनकी सेहत के साथ ।
इन रूप -गर्विताओं को अगर फिगर का इतना ही ओब्सेसन है तो अपनी मामी बनवाके रख लेनी चाहिए .फ्रेम करवा लेना चाहिए इन ममीज़ को नित निहारने के लिए .
इन्हें प्रकृति प्रदत्त व्यवस्था में हस्तक्षेप की इजाज़त आइन्दा नहीं मिलनी चाहिए .अगर इतना ही है तो कोई ऐसा उपाय सोचा जाए बच्चा मुंह से बाहर आ जाए ।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?cid=cnnrss&hpt=he_ब्न५
http://www.parenting.com/blogs/show-and-tell/desiree-parentingcom/mommyrexia-rise?