गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012

फफूंदा मष्तिष्क शोथ (फंगल मैनिनजाइटइस )अगली किस्त .

फफूंदा मष्तिष्क शोथ (फंगल मैनिनजाइटइस )अगली किस्त .

संतोष का विषय यही है की ये तमाम फफूंदा सुइयां निर्माता कम्पनी ने वापस मांग ली हैं .फ्रेमिन्घम स्थित इस फार्मेसी का नाम है "दी न्यू इंग्लैंड 

कम्पाउनडिंग सेंटर .

ये और ऐसी तमाम औषधशालाएं अमरीका में कस्टोमाइज्ड दवाएं बनातीं हैं ये दवाएं आम फार्मेसी पर सुलभ नहीं हैं क्योंकि इन्हें व्यक्ति विशेष की ज़रूरतों 

और उसे माफिक आने के अनुरूप ही बनाया जाता है .बहुत महंगी भी हैं ये दवाएं .दुर्भाग्य यह है ये दवाएं अमरीकी दवा एवं खाद्य नियंत्रण संस्था फ़ूड एंड 

ड्रग

 एडमिनिस्ट्रेशन एंड प्रिवेंशन  के नियंत्रण के दायरे से बाहर हैं और भारी मुनाफ़ा कूट रहीं हैं .जब जब इन्हें ऍफ़ डी ए की परिधि में लाने की कोशिश की गई 

भारी 

लिटिगेशन और राजनीति माफिया आड़े आया है .राजनीतिक ऐसा नहीं होने देते . उनके निहित आर्थिक स्वार्थ हैं .

मष्तिष्क शोथ आम भाषा में रीढ़ रज्जू की सूजन ,ब्रेन फ्लुइड का इन्फ्लेमेशन है ,संक्रमण है और सोजिश है  .अमूमन इसका रोग कारक विषाणु या जीवाणु 

होते हैं .

रोग कारक के रूप में फफूंद से पैदा होने वाली मष्तिष्क शोथ एक अति विरल लेकिन गंभीर बीमारी है जिसके लक्षण भी अति -सूक्ष्म होते हैं जो आसानी से 

पकड़ में भी नहीं आते हैं .

इसकी जांच भी खतरनाक रूख ले सकती है ऐसा माहिरों का मानना है .

ये नहीं है की कोई भी मरीज़ केवल शक के बिना पे जांच के लिए आगे आ जाए .यह जांच  भी एक इन्वेज़िव प्रोसीज़र है .रीढ़ को पंचर करके एक सुईं से तरल 

खींचना पड़ता है जांच के लिए . 

आलम यहाँ कई राज्यों में यह है कि जिन लोगों में इसके कोई लक्षण प्रकट नहीं हुए हैं वह भी जांच के लिए चले आरहे हैं .महज़ इस  दहशत में, कहीं हम भी 

इस खतरनाक रोग की जद में न चले आयें .

सेंटर्स  फार डिजीज  कंट्रोल ने साफ़ कहा है जब तक लक्षणों के प्रगटीकरण के बाद जांच के लिए निकाले गए स्पाइनल फ्लुइड में इन्फ्लेमेशन के लक्षण न 

मिलें बचावी तौर पर किसी को भी एंटीफंगल दवाएं न दी जाएँ .

अभी तो यह भी साफ़ नहीं है इस संक्रमण का इन्क्यूबेशन पीरियड (उदभवन  काल ) कितना है संक्रमण के बाद कितने दिनों बाद लक्षण प्रगट हों इसका कोई 

निश्चय और अनुमान नहीं .

इन्क्यूबेशन पीरियड वह कालावधी है जो संक्रमण लगने और प्रथम लक्षण प्रगट होने के बीच की अवधि है .

यह फफूंद बहुत ही धीमी गति से बढती है ऐसे में इस कालावधी की प्रागुक्ति हो भी कैसे ?

बहर सूरत मई 21 और सितम्बर 2012 के बीच जिस किसी को भी यह फफूंदा सुईं नेक या इस्पाइन में लगी है उसे सावधानी से लक्षणों पर नजर रखनी 

चाहिए .इसमें कोई गफलत न हो कोई अनदेखी न हो .

फिल वक्त इस दवा कम्पनी की दवाओं की ऍफ़ डी ए व्यापक जांच कर रहा है कहीं फफूंद की कोई और नै किस्में भी न हों ?अभी तलक एक सील्ड वायल में 

ऍफ़ डी ए 

को फफूंद मिल चुकी है .जांच ज़ारी है .

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ी ही उपयोगी और ज्ञानवर्धक जानकारी..

अज़ीज़ जौनपुरी ने कहा…

rochak,gyan vrdhk aur upyogi rachna prastut kr sarahniy kary kiya hai