गुरुवार, 31 मई 2012

  शगस डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ? 

 शगस  डिजीज (Chagas Disease)आखिर है क्या ?

माहिरों ने इस अल्पज्ञात संक्रामक बीमारी को इस छुतहा रोग को जो एक व्यक्ति से दूसरे तक पहुँच सकता है न्यू एच आई वी एड्स ऑफ़ अमेरिका कह दिया है .

बेशक इसका विकसित होकर फैलना  एड्स के आरम्भिक चरण से कई मायनों में समानता रखता है .लेकिन यह बीमारी एक खून चूसने वाले कीट से फैलती है .अखबार हफिंग्टन पोस्ट में छपी के रिपोर्ट के मुताबिक़ इस बीमारी से योरोप और अमरीका के गरीब गुरबों (सभी गरीब समुदायों को )को खासा ख़तरा पैदा हो गया है .

विज्ञान प्रपत्र PLoS Neglected Tropical Diseases  ने अपने मई २९ ,२०१२ के एक सम्पादकीय में यह आशंका जतलाई है . यह जातीय या स्थानिक रोग (endemic disease) अमरीका  की  स्वास्थ्य  संबंधी     गैर  बराबरी  का  एक   सशक्त  प्रतीक बनके उभरा है .

स्थिति दक्षिण अमरीका और अमरीका के एच आई वी -एड्स के शुरूआती विश्वमारी(pandemic) बनने जैसी है .

बेलूर   कोलिज ,houston  के माहिरों के हवाले से अखबार  न्यू -योर्क टाइम्स लिखता हैदोनों  अमरिकाओं  में इस बीमारी की छूत  तकरीबन अस्सी लाख लोगों को लग चुकी है इनका बहुलांश बोलिविया ,मेक्सिको ,कूलाम्बिया और केन्द्रीय अमरीका में है . 

फॉक्स न्यूज़ के अनुसार  माहिरों की चिंता यही है कि बीमारी जो कभी दक्षिण अमरीका तक ही सीमित रहती थी वह अब अमरीका की और बढ़ रही  है .

एक अनुमान के अनुसार तकरीबन ३०,०० अमरीकी अब इसकी चपेट में  हैं इसकी वजह पर्यटन और आव्रजन को बतलाया जा रहा है .

 ब्राज़ील के एक काया चिकित्सक Carlos Ribeiro Justiniano  ने १९०९ में इस बीमारी का अन्वेषण किया था .इसे दुनिया भर में  उपेक्षित परजीवी से पैदा संक्रामक   रोगों की  सूची  में चिन्हित किया गया है . 

The disease is listed among the Neglected Parasitic Infections in the world. 

इसके साथ ही इसी सूची में पांच और परजीवी से पैदा लेकिन उपेक्षित पड़े रोगों को  अब एक स्वास्थ्य प्राथमिकता के रूप में चिन्हित भी किया गया है .

अखबार डेली मेल ने इस पूरी खबर को प्रकाशित किया है .

माहिरों के अनुसार २००८ में इसकी लपेट में आकर १०,००० लोग मर  गए थे .

शगास   और एच आई वी एड्स 

इस रोग का रिश्ता गरीबी और अस्वास्थ्यकर हालातों और ऐसे ही अन -हाइजीनिक माहौल से जोड़ा गया है एच आई वी एड्स की ही मानिंद .

दूसरे देशों से यहाँ अमरीका में आकर बस गए गरीब आप्रवासी लोग ही बहुलांश में इसकी चपेट में हैं .

एच आई वी एड्स की मानिंद यह रोग अनिश्चित अवधि तक व्यक्ति के इससे संक्रमित होने के बाद भी अलक्षित बिना लक्षणों के बना रहता है .

बेशक यदि रोग का, संक्रमण का भान समय रहते हो जाए तो गहन दवा चिकित्सा से इसे ठीक किया जा सकता है .

लेकिन देरी होजाने पर मरीज़ का फिर अल्लाह ही मालिक रह जाता है तकरीबन तकरीबन ना -मुमकिन हो जाता  है इससे व्यक्ति को रोग मुक्त करना .

उपलब्ध दवाएं इसके इलाज़ की एच आई वी एड्स के इलाज़ में प्रयुक्त दवाओं की तरह महंगी भी नहीं है .लेकिन संक्रमण के बाद व्यक्ति का लक्षण मुक्त बने रहना रोग का सुप्तावस्था में पड़े रहना उद्भवन काल (incubation period)का लंबा खिंच जाना मुसीबत  बन  जाता  है  .

ऐसे में बीमारी भी अकसर अन -उपचारित रह जाती है .लक्षणों के अभाव में इलाज़ किसका किया जाए ?

दक्षिण अमरीका के सभी बैंकों में खून इस संक्रमण की स्क्रीनिंग करने के बाद ही ज़मा किया जाता है .

२००७ में अमरीकी ब्लड बैंक भी ऐसा ही  करने लगे थे .

कैसे होता (इसका) रोग संचार 

Chagas infection is transmitted by the bite of reduviid blood suckling bugs called Triatomine bugs. The species are black wingless insects about 20 mm in length and are commonly known as "kissing bugs."


काटने के बाद यह खून चूषक कीड़ा एक कोशीय परजीवी  
 Trypanosoma cruzi  व्यक्ति  के  खून  में  छोड़  देता  है  .

दो चरण है इस बीमारी के 

(1)acute ( बीमारी जो बहुत तेज़ी से खतरनाक बन जाती है  )

(2)severe 

क्या अंतर है शगस  और एच आई वी एड्स में 

एच आई वी एड्स एक यौन संपर्कों से होने वाला विषाणु जन्य रोग है .

शगस   एक परजीवी से पैदा होने वाला रोग है .

एच आई वी एड्स हमारे रोग प्रति -रोधी तंत्र को निशाना बनाता है .

दिल और पाचन से सम्बन्धी अंगों को निशाना बनाता है शगस

अपने एक्यूट चरण में यह बीमारी(सुप्तावस्था ) गुप्त बनी रहती है सालों लग जातें हैं लक्षणों के प्रगट होने में . 

severe phase में कब्ज़ उदर शूल (abdominal pain ),पाचन  सम्बन्धी  गड़बड़ियां  उभर  के आतीं हैं   cardiac arrhythmia develop. 



 cardiac arrhythmia:

Any deviation from the normal rhythm of the heart is    cardiac arrhythmia.   Irregularity or loss of rhythm specially of heart beat is cardiac arrhythmia.

आम  भाषा  में दिल की  लय  ताल  का बिगड़   जाना .


Complications from  chagas 


The Huffington Post reports the National Institute of Health (NIH) says complications from Chagas disease can include inflammation of the heart, esophagus and colon, as well as irregular heartbeat and heart failure.
यानी     इलाज़  न  मिलने  पर  तथा रोग के पेचीला हो जाने पर दिल पे सूजन आकार में वृद्धि ,भोजन नली तथा आँतों की सोजिश  घेर लेती है ,हार्ट फेलियोर   भी हो जाता है .

बेशक संक्रमण लगने और दिल तथा पाचन सम्बन्धी समस्याएं पैदा होने में बीस साल भी लग सकतें हैं लेकिन जब जटिलता आती है तो एक साथ आकस्मिक और नाटकीय अंदाज़ लिए होती है .

डार्विन महोदय अपने अभियान को संपन्न करने के ४७ साल बाद हृदय गति रुक जाने से शरीर   छोड़ गए थे.

समझा जाता है इनकी मौत की वजह शगस ही बना था .


Experts have long speculated that Charles Darwin contracted the illness during his five year trip on HMS Beagle when he was a young man in his 20s. Darwin died of heart failure 47 years after the voyage. He reported symptoms that experts think may be symptoms of Chagas, though others believe that some of the symptoms, such as heart palpitations, were psychogenic in origin.
Darwin, however, mentioned in his journal that he was bitten by a "wingless black bug" while traveling in South America during the voyage of HMS Beagle.


Read more: http://www.digitaljournal.com/article/325758#ixzz1wg4IgrGW






In the Media


Experts say Chagas disease is 'new HIV/AIDS of the Americas'


JohnThomas
By JohnThomas Didymus
May 31, 2012 - 1 hour ago in Health
 + 1 of 2  

उतनी ही खतरनाक होती हैं इलेक्त्रोनिक सिगरेटें

उतनी ही   खतरनाक होती  हैं इलेक्त्रोनिक सिगरेटें 

E-Cigs equally harmful : Docs/WORLD NO TOBACCO DAY /KILLER STICK/TIMES CITY /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,MAY31,2012,P4


एक  बरस  पहले  ही ई -सिगरेटों ने हिन्दुस्तान में दस्तक दी है और आज इनके खिलाफ चिकित्सकों और तम्बाकू -रोधी -उत्साही कार्यकर्ताओं ने इसका मुखर विरोध किया है .अगर इन्हें चलन से बाहर नहीं किया जाता है तो कमसे कम सरकार यह तो तस्दीक करे कि  अच्छी दिखने वाली ई -सिगरेटें  भी  फेशनेबुल कैंसर स्टिक्स ही हैं .

तम्बाकू निगमों और उत्पादकों की हर चंद कोशिश  तथा तम्बाकू उद्योग का सक्रीय हस्तक्षेप रोकना है (तम्बाकू उत्पादों की बिक्री बढाने का ) इस बरस के विश्व तम्बाकू निषेध दिवस का मकसद और ध्येय जिनकी हर चंद कोशिश धूम्रपान निषेध को निष्प्रभावी बनाने की रहती है .विश्व तम्बाकू दिवस  हर बरस ३१ मई को दुनिया भर में मनाया जाता है .

गौर तलब है मध्य प्रदेश और केरल के बाद अब बिहार सरकार ने तम्बाकू उत्पाद गुटखा की बिक्री पर एक साला प्रतिबन्ध आयद  कर दिया है .

हर बरस दुनिया भर में ६० लाख  लोग तम्बाकू उत्पादों के सेवन से मर जातें हैं इनमे से ६ लाख लोग ऐसे होतें हैं जिन्हें यह खामियाजा सिगरेट पीने वालों की आसपास मौजूदगी की वजह से उठाना पड़ता है जो दूसरे की सुविधा असुविधा फेफड़ों का ज़रा भी ख्याल नहीं रखते . भाई सिगरेट पीनी है तो अपने फेफड़ों से ही पिए मेरे फेफड़े बख्शें ,ये धुआं भी अपने ही पास सहेज के   रखें फिर शौक से धूम्रपान करें .

विश्व -तम्बाकू निषेध दिवस के इस मौके पर टाटा मेमोरियल अस्पताल ,परेल तथा स्वास्थ्य  से जुड़े कई गैर सरकारी संगठनों   ने केंद्र सरकार से ई -सिगरेटों की  बिक्री के विनियमन के  बारे में नियमावली और दिशा निर्देश ज़ारी करने के लिए कहा है .

अमरीकी खाद्य एवं दवा संस्था फ़ूड  एंड  ड्रग  एडमिनिस्ट्रेशन  ने  ई -सिगरेटों के इस्तेमाल के खिलाफ  २००९ में ही एक चेतावनी ज़ारी की थी .

कनाडा और य़ू. के.(UK) में इनकी बिक्री पर प्रतिबन्ध है .

भारत  और  चीन  में  यह सड़क के किनारे बने छोटे छोटे सिगरेट स्टालों पर कीयोश्क पर  आसानी से मिल जातीं हैं .

बेशक   भारत में इनकी बिक्री का सटीक  आकलन  तो फिलवक्त नहीं किया जा सकता लेकिन अपने अनजाने और अभिज्ञता में (मासूमियत  में ) सोनम कपूर परम्परा गत सिगरेटों से इन्हें बेहतर बतलातीं हैं ट्वीटर  पर.

बेशक वह कहतीं हैं धूम्रपान एक गंभीर अवगुण है अच्छा नहीं है लेकिन यहीं पर वह चुपके से जड़ देतीं हैं अब आपके लिए हाज़िर हैं अपेक्षाकृत निरापद ई  -सिगरेटें ,मेरे कई दोस्त  इन्हीं का सेवन करते हैं   .

होलीवुड स्टार  Leonardo di  Caprio तथा   Dennis Quaid  भी इनका    समर्थन अनुमोदन करतें हैं .

सोनम जी रूप विधान बदलने से कैंसर स्टिक निरापद नहीं हो जाती उतनी ही खतरनाक बनी रहती है और यह हम नहीं आज तमाम माहिर कह रहें हैं जो फेफड़ा कैंसर के खिलाफ मुहीम से जुड़े हैं .

क्या कहतें हैं टाटा मेमोरियल कैंसर सेंटर के निदेशक राजन बादवे 

आपने इनकी बिक्री पर तुरंत प्रभाव से रोक लगाने की लिखित पेश कश की है फ़ूड सेफ्टी एंड स्टेंडर्ड ऑथोरिटी आफ इंडिया से .

इसके विज्ञापन भंडारण और क्रय विक्रय बिक्री का विनियमन करने की बाबत भी आपने केंद्र सरकार को नीति बनाने के लिए  लिखा है .


२००५ -०६ में ही भारत ने ग्लोबल फ्रेमवर्क कन्वेंशन आन तुबेको कंट्रोल पर दस्तखत किये थे .तंबाकू के खिलाफ मुहिम में भारत ने आगे बढ़के शिरकत  की थी .एंटी टुबेको रेग्युलेशन में हिस्सा लिया था  .

क्या हैं ई -सिगरेटें 

ये बेटरी चालित उत्पाद हैं जो निकोटिन को एक आकर्षक पैकेज फोर्मेट में प्रस्तुत करतीं हैं .मकसद निकोटिन के कथित  स्वाद और गंध से विमोहित करना है उपभोक्ता को .इसकी वाष्प ही धूम्रपानी सांस के साथ अन्दर लेता है जो शुद्ध निकोटिन से लदी होती है .इसीलिए इन्हें आरम्भ में निरापद मान समझ लिया गया था .

यूं देखने में यह आम सिगरेट जैसी  ही हैं . सिगार और पाइप जैसी ही  हैं .अलबत्ता कुछ पेन से मिलती जुलतीं हैं  तो कुछ USB memory sticks सी  हैं  .

USB :Universal serial bus (the system of for connecting other pieces of equipment to a computer.

क्या कहती है अमरीकी खाद्य  एवं दवा संस्था FDA ई  - सिगरेटों के बारे में 

इनमे ऐसे  तत्व हो सकतें हैं जो मानव के लिए विषाक्त हैं .कुछ ऐसे भी जो किसी भी मायने में निरापद नहीं कहे जा सकते .

ऐसे में उपभोक्ता को असलियत कैसे पता चले जबकि ई -सिगरेटों को लेके कोई क्लिनिकल  स्टडीज़ भी नहीं हुईं हैं .ऐसे में मीडिया ही जानकारी का ज़रिया बचता है अगर वह लाभ से अपनी दृष्टि हटाले .

तम्बाकू  में दो सक्रिय घटक रहतें हैं 

(१)लती पदार्थ निकोटिन 

(२)कैंसर पैदा करने वाले Nitrosamines तथा हाईड्रो -कार्बंस   

बेशक ई -सिगरेट्स में ये बाद वाले रसायन नहीं रहतें हैं लेकिन माहिरों के अनुसार निकोटिन एक विषाक्त पदार्थ है जिसका कभी भी केज्युअल सेवन नहीं किया जाना चाहिए .

यह दवा है और चिकित्सीय नुस्खे का ही हिस्सा  बन सकती है . अन्यत्र  कहीं भी और कैसे भी इसका उपयोग घातक है .

No nicotine cartridges 

अमरीका में जब ऐसे १९ कार्त्रिजिज़ की जांच की गई तब उनमे से एक ही ऐसा मिला जिसमे निकोटिन विष नहीं था .

दरअसल इस पर सभी वह चेतावनियाँ और नियम लागू होतें हैं जो आम सिगरेटों पर आज आयद हैं .माहिरों की यही राय है .

भारत ने सार्वजनिक स्थलों  पर २००८ में ही रोक लगा दी थी .

फ़ूड सेफ्त्री स्टेंडर्ड एक्ट आफ इंडिया २००६ सेक्शन २.३.४ को गत वर्ष संसोधित  करके किसी भी खाद्य सामिग्री में निकोटिन को शामिक करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था .

गौर तलब है गुटखा भी एक खाद्य उत्पाद है  इसी लिए अब मध्य प्रदेश केरल और बिहार राज्य ने इस पर प्रतिबन्ध लगा दिया है .

बुधवार, 30 मई 2012

आदमी के खून से रोशन होता है यह भूतहा लैम्प

आदमी के खून से रोशन होता है यह भूतहा लैम्प 

एक अमरीकी अन्वेषक माइक टामसन(थोमसन ) ने एक ऐसा भूतहा लैम्प तैयार किया है जो आदमी के ताज़ा खून से चलता है .इसे ' Dracula lamp ' कहा  जा रहा है .

इसके काम करने का तरीका बड़ा आसान है बस किसी धार दार कंटीली चीज़ में किसी आरी या कटे हुए कांच  में अपना कोई अंग फंसाओ और रिसने दो खून को उस जगह जहां लैम्प में कुछ रसायन रखें हैं .चंद टेबलेट्स रखीं हैं .

यही रसायन खून  में कौजूद तत्वों से संयुक्त होने पर  नीला प्रकाश रुक रुक के छोड़ते हैं .तब सृष्टि होती है एक रहस्य रोमांच की .भूतहा रोशनियों की .आप चाहे तो इसकी तुलना  संदीप्ति और उत्तर संदीप्ति   प्रभाव (flourescence  and phosphorescence ) से  कर  सकतें  हैं  .

टामसन ने  एक विडीयो भी तैयार किया है जिसमें  एक अँधेरे सीलन भरे कमरे में एक युवती अँधेरे में बैठी है .एक धारदार आरी जैसी कोई चीज़ रखी है जिसके सिरे को महिला अपनी ऊंगली से परे सरकाती है . एक महीन धारा खून की फूटती है और लैम्प भूतहा रोशनियों के साथ रोशन हो जाता है .

यह कोई विज्ञान गल्प नहीं है अधुनातन समाज का रूपक है जहां व्यक्ति एक इस्तेमाल करके फैंक देने वाले समाज में ज़िंदा है फिर वह चीज़ चाहे व्यक्ति हो या कोई जिंस .

सन्देश यह है कि क्या बे तहाशा ऊर्जा का उपभोग करने के लिए यदि आपको अपने शरीर से खून निकालना पड़े तो क्या आप हर बार ऐसा करेंगे ?आप खून को बेहद नहीं रिसने देंगें मौत के खौफ से लेकिन पर्यावरण की जीवन से जुडी नव्ज़ को आप लगातार बेहिसाब तोड़ रहें हैं .

थामसन अमरीकी समाज के दैनंदिन ऊर्जा उपभोग के आकड़ें प्रस्तुत करतें हैं .

एक औसत अमरीकी एक बरस में 3385 kilo watt hr ऊर्जा उड़ा देता है .इससे हमारा पर्यावरण लगातार छीज रहा है .पर्यावरण की लय ताल टूट रही हैं .इको सिस्टम (पारितंत्र )  एक एक करके टूट रहें हैं . 

यदि जीवन  इसी रफ़्तार यूज़ एंड थ्रो अंदाज़ में चलता रहा तो एक दिन पर्यावरण ही जीवन को लील जाएगा .

लेकिन भारत के सन्दर्भ में यहाँ एक संकट और भी बड़ा है .यहाँ हरेक नेता खून चूसने वाला एक विशालकाय चमकादड है जो ६५ सालों  से गरीब जनता का खून चूस रहा है .

उसके लिए इस लैम्प को सुलगाये रहना कोई नै बात नहीं होगी .

अलबत्ता लालू प्रसाद जी से सावधान रहना होगा जिनको खून से लालटेन जलाने की जुगत हाथ लग सकती है .फिलवक्त उनकी लालटेन खुदा का फजल है बुझी हुई है .

अभी तक तो बात चारे तक ही सीमित थी .

कपिल सिब्बल भी मानव के विकास के लिए एक अप्रतिम संसाधन के रूप में इस लैम्प को इस्तेमाल कर सकतें हैं जिन्हें अपने मंत्रालय की अवधारणा ही स्पस्ट नहीं है जिसका नाम है 

मानव संसाधन मंत्रालय  .पूछा जा सकता है -

क्या मानव एक संसाधन है बैल  और आदमी और पेट्रोल में क्या कोई फर्क नहीं है उस पर तुर्रा यह कि  शिक्षा मंत्रालय को इस  मंत्रालय की कोख  में बतलाया जा रहा है .जबकि यह कोख शिक्षा  को वैसे ही लील चुकी है जैसे विकसित कोख कन्या भ्रूण का शमशान बनी हुई उन्हें प्रसव पूर्व ही लील रही है .

यह मंत्रालय मानव के विकास के लिए तो संसाधनों का विकास नहीं कर रहा जैसा अभी पेट्रोल का एक संसाधन के रूप में हुआ  है .और अगर यह मानव के लिए विकास के संसाधन जुटा रहा है तो बाकी  इतने सारे मंत्रालयों की कहाँ ज़रुरत है .ज़ाहिर है सरकार की नीतियाँ इसी तरह अस्पष्ट हैं जैसे इस मंत्रालय का अस्पष्ट नामकरण .परिणाम भी वही होना था जो हुआ है .

क्या पेत्र्ल म्कम्पनियाँ इस देश को चला रहीं है मानव विकास की आड़ में यदि नहीं तो सरकार क्या कर रही है ?

काबिना मन्त्रियों की  वैम्पायर फौज ऐसे में क्यों और   कहाँ ज़रुरत है .

ये तमाम सवाल भी इस भूतहा लैम्प से जुड़ें हैं जुदा नहीं है .

HIV-AIDS का इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से

 HIV-AIDS  का  इलाज़ नहीं शादी कर लो कमसिन से 


South African girls forced to wed HIV+ men as AIDS 'cure'/short cuts /THE TIMES OF INDIA ,MUMABI ,MAY 30 ,P19

अंधविश्वास   और  गरीबी  दोनों   की  ही  शायद  कोई  इंतिहा  नहीं  होती. होती तो क्या ऐसा अनर्थ हो पाता और एक बार नहीं बारहा होता रहता .

दक्षिण अफ्रिका के कई राज्यों में कम उम्र की लड़कियों को ज़बरन अगवा करके HIV+ प्रौढ़ों  के  साथ  ब्याहा  जा  रहा  है  .कुछ  मामलों  में  गरीब  माँ  बाप  ऐसा चंद रुपयों की एवज में स्वेच्छा से कर रहें हैं .तो कुछ और मामलों में एक अर्वाचीन कुप्रथा Ukuthwala ऐसा कर वा रही है .धारणा है कि  कम उम्र लड़कियों से ज़बरिया यौन सम्बन्ध बनाने से HIV-AIDS संक्रमण  ठीक  हो  जाता  है  .

बाल यौन शोषण का इससे  क्रूर और अमानवीय मामला और क्या हो सकता है ?

Ukuthwala translates  to " to pich up " or to take "

इसी कुप्रथा के तहत  xhosa जनसमुदाय के लोग जो पूरबी कैप राज्य के एक ग्रामीण अंचल से ताल्लुक रखते हैं  १२ साल की कम उम्र लड़कियों को भी HIV-AIDS की भेंट चढ़ा रहें हैं .इसे तो ठीक से बाल विवाह भी नहीं कहा जा सकता .

अखबार डेली मेल से इस खबर को प्रकाशित किया है .

यहाँ अपहरण और बलात्कार बाल यौन शोषण का तिहरा मामला बनता है .

क्या अंतर -राष्ट्रीय न्यायालय आगे बढ़के खुद इस कुप्रथा का संज्ञान लेकर कारवाई कर सकता है ?

बाल -मानवाधिकार के क्रूर उल्लघन का भी मामला है यह .

मंगलवार, 29 मई 2012

अब बिना दर्द किये लगेंगी सुइंयाँ

अब बिना दर्द किये लगेंगी सुइंयाँ 

अब इंजेक्शन से खौफ खाने की ज़रुरत नहीं रह जायेगी .मासाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी के साइंसदानों ने एक ऐसा ड्रग इंजेक्टर तैयार कर लिया है जो ध्वनी के वेग से चमड़ी के नीचे बिना पीड़ा किये दवा पहुंचाएगा .दवा पहुंचाने के लिए इसमें मच्छर की बारीक  नली नुमा नाक सी ही एक नलिका होगी .इसमें दवा छोड़ने की गति पर भी नियंत्रण  रखा जा सकेगा .

इसमें एक शक्ति शाली चुम्बक और बिजली की धारा का इस्तेमाल किया जाएगा .बिजली की धारा को कम ज्यादा करके दवा छोड़ने की गति पर नियंत्रण रखा  जा सकेगा .पहले चरण में दवा उच्चतर वेग से छोड़ी जायेगी ताकि दवा चमड़ी के नीचे एक सुनिश्चित गहराई तक पहुँच सके .बाद इसके अगला चरण कम दाब पर दवा छोड़ने का रहेगा ताकि दवा धीरे धीरे छोड़ी जा सके बेहतर ज़ज्बी (अवशोषण )के लिए .

चमड़ी से होकर दवा खून में इत्मीनान से पहुँच सके .

उन लोगों के लिए यह सुइयां वरदान सिद्ध होंगी जिन्हें रोज़ खुद इंजेक्शन लगाना होता है खुद ही को .अब दवा मिस नहीं होगी .नियम निष्ठ होके ली जा सकेगी इस ड्रग इंजेक्टर (पिचकारी )के ज़रिये .

महिलाओं और बच्चों को  सुइयों के प्रति भीति से छुटकारा दिलवाएगा यह नया ड्रग इंजेक्टर .मधु -मेह से ग्रस्त लोगों को थोड़ी और राहत .


अब तक उपलब्ध ड्रग इंजेक्टर में इसे सबसे अव्वल इसलिए बतलाया जा रहा है क्योंकि इसमें दवा छोड़ने की स्पीड पर पूरा काबू रहता है .

रोगों के बिलकुल आरंभिक चरण में निदान के लिए नव(अभिनव )परीक्षण

रोगों के बिलकुल आरंभिक चरण में निदान के लिए नव(अभिनव )परीक्षण 

New test to spot disease early /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI,MAY 29,2012,P17

साइंसदानों   ने   एक  ऐसा  अभिनव  परीक्षण  रोगों  के  निदान  के  लिए  तैयार  किया  है  जो  अति संवेदी है इतना कि रोगों की पड़ताल एकदम से शुरूआती चरण में ही कर सकता है .

इस परीक्षण के तहत इम्पीरियल कोलिज लन्दन के रिसर्चरों ने उन ख़ास अणुओं की शिनाख्त करने की प्राविधि विकसित की है जो रोग के ठीक से पंख खोलने से पहले ही  प्रगट होने लगते हैं .

भले इनका सांद्रण (वजूद ) अति अल्पांश में हो .इधर उधर इक्का दुक्का ही ये छितराए हुए हों .

बेशक आज भी कुछ रोगों के लिए ऐसे नैदानिक परीक्षण मौजूद हैं जो ऐसे ही जैव -मार्करों (biomarkers) की  शिनाख्त  जैव -टोहियों (Biosensors )की  मदद  से  कर  लेतें  हैं  .

लेकिन वर्तमान में उपलब्ध जैव टोही तब कम संवेदी सिद्ध होतें हैं जब उल्लिखित  जैव मार्कर्स अल्पांश में ही मौजूद हों .इनका सांद्रण  एक दम से कम हो .रोग की शुरुआत में यही तो होता है .


नया जैव टोहक परीक्षण (New biosensor test ) उस जैव मारकर का अन्वेषण कर सकता है जिसका सम्बन्ध पौरुष ग्रंथि कैंसर (prostate cancer) से  जोड़ा गया है .

इस बायो -मारकर को कहा जाता है PSA यानी प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजन .

इस जैव टोहक की खूबी यह है इसका पुनर विन्यास किया जा सकता है इसे बीमारी के सम अनुरूप बनाया जा सकता है संरूपण हो सकता है इसका .RECONFIGURE  कर सकतें हैं इसे रिसर्चर .ताकी इसे अन्य बीमारियों और वायरस (विषाणु )अन्वेषी (PROBE) के रूप  में   आजमाया जा सके जहां सम्बद्ध जैव -संकेतक(चिन्हक ,चिन्हित करने वाला )) का पहले से ही इल्म होता है .

आरंभिक चरण में रोग के पुख्ता इलाज़ जल्दी ठीक होने की संभावना अधिकतम रहती है . रोग का पूर्वानुमान और भावी विकास के रूप में बहतर  अंकन हो सकता है इस मत्वपूर्ण चरण में .

लक्षणों के उग्र होके बे -काबू होने से पहले ही  इसी चरण में उनका   शमन किया जा सकता है .बीमारी का बढना और  बिगड़ना दोनों  थामे जा सकतें हैं .

Diagnosis is  half cured .

वर्तमान  में  उपलब्ध  प्रोद्योगिकी  कितने  ही  ऐसे  रोग  हैं  जिनकी  टोह  इस   चरण  में  नहीं  ले  सकती  .भूसे   के  ढेर  में  से  सुईं  ढूंढ  निकालने की तरह मुश्किल है यह काम .

अभिनव उल्लेखित  प्रोद्योगिकी इस सुईं को ही ढूंढ निकालेगी .

इस रिसर्च में रिसर्चरों ने सिर्फ एक बीमारी के लिए जैव -चिन्हक पर गौर किया लेकिन इसका अनुकूलन सहज सरल है इसे उनकी शिनाख्त के लिए आजमाया जा सकत है ढाला जा सकता है . 


Marital Love

 समय संगम   का दवाब   उसके परिणाम 

Careful ,trying for a baby can make men  impotent 

The pressure to perform may lead to dysfunction and even adultery , new scientific research reveals 
Perils of performance :After the rigours of six months of 'timed intercourse ' four out of ten men had become impotent 

  अकसर एक ख़ास समय सीमा एक ख़ास अवधि में संतान चाहने वालों के लिए माहिर एक समय सारणी बनादेतें हैं समय संगम की (Timed intercourse) की .बतलाया जाता है मासिक चक्र के आखिरी दिन से गणना करते हुए  फलां तिथियों को प्रेम मिलन मनाने से जीवन साथी के साथ मैथुन बद्ध होने से संतान प्राप्ति के अवसर बढ़ जातें हैं .

इससे एक स्वाभाविक घटना का जो आवेग एक प्रवाह होता है एक कायिक और मानसिक अन्विति होती है वह अकसर टूट जाती है .तद्जनित  तनाव से स्ट्रेस हारमोन कोर्टिसोल ज्यादा पैदा हो जाता है जो पुरुष हारमोन टेस्तास्तेरान के क्वांटम को इस पुरुष यौन हारमोन की मात्रा को कम कर देता है.यही वह हारमोन है जो यौनेच्छा को पंख लगाए रहता है .अश्वारोहन के लिए तैयार करता है सईस  को लेकिन बढा हुआ तनाव और नतीजे देने के  औत्सुक्य के चलते कई मर्तबा सईस का पैर पायेदान में ही फंसा रहा जाता है .घोड़ा बैठ जाता है .

नतीज़ा हो सकता है लिगोथ्थान अभाव (erectile dysfunction ),दाम्पत्य  प्रेम  से  विपथन.विवाहेतर यौन मिलन .यौन संगम .

दरअसल मैथुन मात्र एक भौतिक क्रिया नहीं है .संबंधों का उन्मुक्त दवाब रहित तारल्य भी है .शरीर और मन की एक रिदम एक अन्विति  लयताल भी है .एक तात्कालिकता भी है .अनुनाद भी .

समय संगम में यही लय ताल टूट जाती है .

अध्ययनों से पुष्ट हुआ है समय संगम से रिश्ते तनाव से छ :  माह की अवधि में ही दस में से चार पुरुषों को लिगोथ्थान अभाव से दो चार होना पड़ा .कुछ अपने साथी  से ही यौन सम्बन्ध बनाने में झिझकने लगे .इधर उधर टहल लिए घोड़े की चाल आजमाने खुद को आश्वस्त करने के लिए .


समय संगम का दवाब उसके परिणाम


Marital Love

 समय संगम   का दवाब   उसके परिणाम 

Careful ,trying for a baby can make men  impotent 

The pressure to perform may lead to dysfunction and even adultery , new scientific research reveals 
Perils of performance :After the rigours of six months of 'timed intercourse ' four out of ten men had become impotent 

  अकसर एक ख़ास समय सीमा एक ख़ास अवधि में संतान चाहने वालों के लिए माहिर एक समय सारणी बनादेतें हैं समय संगम की (Timed intercourse) की .बतलाया जाता है मासिक चक्र के आखिरी दिन से गणना करते हुए  फलां तिथियों को प्रेम मिलन मनाने से जीवन साथी के साथ मैथुन बद्ध होने से संतान प्राप्ति के अवसर बढ़ जातें हैं .

इससे एक स्वाभाविक घटना का जो आवेग एक प्रवाह होता है एक कायिक और मानसिक अन्विति होती है वह अकसर टूट जाती है .तद्जनित  तनाव से स्ट्रेस हारमोन कोर्टिसोल ज्यादा पैदा हो जाता है जो पुरुष हारमोन टेस्तास्तेरान के क्वांटम को इस पुरुष यौन हारमोन की मात्रा को कम कर देता है.यही वह हारमोन है जो यौनेच्छा को पंख लगाए रहता है .अश्वारोहन के लिए तैयार करता है सईस  को लेकिन बढा हुआ तनाव और नतीजे देने के  औत्सुक्य के चलते कई मर्तबा सईस का पैर पायेदान में ही फंसा रहा जाता है .घोड़ा बैठ जाता है .

नतीज़ा हो सकता है लिगोथ्थान अभाव (erectile dysfunction ),दाम्पत्य  प्रेम  से  विपथन.विवाहेतर यौन मिलन .यौन संगम .

दरअसल मैथुन मात्र एक भौतिक क्रिया नहीं है .संबंधों का उन्मुक्त दवाब रहित तारल्य भी है .शरीर और मन की एक रिदम एक अन्विति  लयताल भी है .एक तात्कालिकता भी है .अनुनाद भी .

समय संगम में यही लय ताल टूट जाती है .

अध्ययनों से पुष्ट हुआ है समय संगम से रिश्ते तनाव से छ :  माह की अवधि में ही दस में से चार पुरुषों को लिगोथ्थान अभाव से दो चार होना पड़ा .कुछ अपने साथी  से ही यौन सम्बन्ध बनाने में झिझकने लगे .इधर उधर टहल लिए घोड़े की चाल आजमाने खुद को आश्वस्त करने के लिए .


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सोमवार, 28 मई 2012

क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस

क्रोनिक फटीग सिंड्रोम का नतीजा है ये ब्रेन फोगीनेस 

दो बरस पहले भोपाल वासी इकबाल ने अपना बेचुलर ऑफ़ इंजिनीयरिंग कोर्स बढिया दर्जा लेकर संपन्न किया था .बेंगलुरु की एक अग्रिम सोफ्ट वेयर कम्पनी में उसे काम भी मनमाफिक   मिल गया था .जैसे जीवन भर की एक साध पूरी हो गई थी .वह बहुत खुश था .फिर यकायक ऐसा क्या हुआ कि काम पर आने के मात्र आठ महीना बाद ही उसे काम छोड़ना पड़ा .

अचानक उसे महसूस होने लगा वह कोई  भी काम ठीक से नहीं  कर पा रहा है .कंप्यूटर का कोई कमांड भी फोलो नहीं कर पा रहा है .यहाँ तक कि उससे कम्पनी में कोई उसका पता पूछ ले तो उसे नाम बताने में भी देर लग जाती है .

घर में भी  उसका यही हाल रहने लगा .सुबह सवेरे तो संवाद जैसे चुक जाते थे .होंठों पर ताला लग जाता है संवादों को सिटकनी चढ़ जाती थी .लेदेकर एकाधिक  अक्षर एकाक्षरी संवाद ही वह बोल पाता था .अलबत्ता शाम होते होते स्थिति कुछ सुधरती थी .

किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है ?

घर के लोगों का तो और भी बुरा हाल था .घर के बाहर यार दोश्त भी इस स्थिति को सहज स्वीकार करने को तैयार नहीं थे .लेकिन सच यही था .उसे अब सोचने में तकलीफ होने लगी थी .कुछ याद नहीं आता था यहाँ तक की अपना नाम भी पूछने वाले को वह बता नहीं पाता था .

ज़ाहिर है इन हालातों में उसे नौकरी छोडनी पड़ी .क्योंकि वह बैठा -बैठा  अपनी वर्क डेस्क पर ही सो जाता था .दिमाग साथ नहीं देता था .एक मानसिक कुन्हासा सब कुछ को सोचने को धुंध में ले चुका था .

वह भोपाल लौट आया .प्राकृतिक चिकित्सकों से लेकर काया चिकित्सकों को उसने दिखाया लेकिन कुछ पता नहीं चल पाया आखिर उसे हुआ क्या है ?

इत्तेफाक था उसके एक रिश्ते में नजदीकी सज्जन मुलुंड के फोर्टिस अस्पताल में काम करते थे .

उनके परामर्श पर वह न्यूरोलोजिस्ट (स्नायुरोगों के माहिर ) गिरीश नायर साहब की शरण में आगया .

डॉ नायर ने बतलाया इकबाल Brain -fogginess की चपेट में आगया है .

यह दिमागी धुंध नतीजा है chronic fatigue syndrome  का .

यह ऐसी बेहद की थकान होती है जिसकी  चिकित्सा जगत के पास कोई व्याख्या फिलवक्त नहीं है .किसी मेडिकल कंडीशन से इसकी तुलना नहीं  हो सकती .

अलबता भौतिक और मानसिक श्रम से बढती ज़रूर जाती है .बद से बदतर होती चली जाती है कायिक और मानसिक सक्रीयता के संग .आराम से कम नहीं होती .

हेतुकी (Causes)

 (1)विषाणु  संक्रमण(Viral infections)

(2) रोग  प्रतिरक्षण  अभाव (immune deficiencies) 

(3)हारमोन   सम्बन्धी  असंतुलन(Hormonal imbalance)     

CFS/ME/PVF

    A Condition ,known variously as CHRONIC FATIGUE SYNDROME ,MYALGIC  ENCEPHALOMYELITIS or  ENCEPHALOPATHY or POSTVIRAL FATIGUE SYNDROME, characterized by extreme disabling that has lasted for at least six months , is made worse by physical and mental exertion ,does nor resolve with bed rest ,and can not be attributed to other disorders .

The fatigue is accompanied by at least some of the following :muscle pain or weakness (fibromyalgia),poor coordination ,joint pain ,recurrent sore throat ,slight fever ,painful lymph nodes in the neck and armpits ,depression ,cognitive impairment (especially   inability to concentrate ) ,and general malaise .

        The cause is unknown , but in some cases some viral conditions (especially glandular fever ) are thought to trigger the disease; however ,no viral aetiology has yet been identified.

  Treatment is restricted to relieving the symptoms and helping sufferers to plan their lives with a minimum of energy expenditure.


Graded  physiotherapy may be helpful in some cases .

Many psychiatrist consider CFS /ME/PVF to be a mood disorder and use behavioural and cognitive techniques as well as anti -depressants to treat it . 

रविवार, 27 मई 2012

ईस्वी सन ३३ ,३ अप्रेल को लटकाया गया था ईसा मसीह को सूली पर

ईस्वी सन ३३ ,३ अप्रेल को लटकाया गया था ईसा मसीह को सूली पर 

Quake study says Jesus was crucified on April 3,33 AD/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,MAY 26,2012,P19

मृत  सागर(Dead sea ) से बावस्ता भूकंपीय सक्रियता से जुड़े  एक अध्ययन के अनुसार  उस घडी पल छिन तारीक का ठीक ठीक पता चल गया है जिस दिन ईसा मसीह को सूली पर लटकाया गया था .रिसर्चरों के अनुसार वह शुक्रवार का दिन था तारीक थी अप्रेल तीन ईस्वी सन ३३ .बाइबिल  के नए संस्करण न्यू टेस्टामेंट में भी इसी तिथि का उल्लेख है .


डिस्कवरी न्यूज़ चैनल के अनुसार विशाल और विश्वाश्नीय भू -गर्भीय आंकड़ों के अलावा इस आशय के लिखित दस्तावेज़ी साक्ष्य भी मौजूद हैं .

इस निष्कर्ष पर पहुँचने से पूर्व भू -वेत्ताओं ने भूकम्पों की  एक ४,००० साला कालानुक्रम में पड़ताल की है .यह पड़ताल मृत सागर के सबसे ऊपरी (19 feet )परतदार (पतली तहों वाले ,स्तरित ,laminated sediments)अवसादों की की गई है .

नवीनतर अध्ययन ने अपना पूरा ध्यान यरूशलम से कुल १३ मील की दूरी पर मृत सागर की भू -कम्पीय हलचलों पर केन्द्रित रखा है .इस पड़ताल में भू -विज्ञानों के जर्मन शोध केंद्र के साइंसदानों ने शिरकत की है .
इस एवज मृत सागर के नजदीकी तट बंध     Ein Gedi Spa  पर  साइंसदानों  ने  डेरा  डाले   रखा  है  . 

Supersonic geophysical  के नाम चीन भू -शाष्त्री जेफरसन विलियम्स भी इस अभियान में शरीक रहें हैं . 

भू -विज्ञान के छात्र जानतें हैं अवसादों  मे हर साल कुछ परतें पड़ जातीं हैं जिन्हें Varves कहा जाता है .कुल मिलाकर तीन केन्द्रीय भागों (Cores)पर नजर रखी गई है . 

इस  क्षेत्र  में  आये  भूकम्पों  में  से  कमसे  कम  दो  ने पृथ्वी के केन्द्रीय भाग क्रोड़(आंतरक ,अभ्यंतर या कोर )को असर ग्रस्त किया था .इनमे से एक शक्तिशाली भू -कंप (जलजला )ईसा के जन्म से भी २६ वर्ष पूर्व तथा दूसरा जन्म के  २६ -३६ वर्ष बाद आया था .

The latter period occured during "the years when Pontus Pilate was procuretaor of Judea and when the earthquake of the Gospel of Matthew is historically constrained ,"said Williams .

आप  जानतें  हैं  बाइबिल  की ऐसी चार पुस्तकें हैं जिनमे से एक में ईसा के जीवन और उनकी शिक्षाओं का बखान किया गया है .यही इसोपदेश है .गास्पल  है .इन्हीं में से एक किताब का नाम मेथ्यु(Gospel of Matthew) था .

प्राचीन रोम में एक कानूनी और आर्थिक शक्ति संपन्न एक प्राधिकारी (प्रशाशक ,प्रबंधक )होता था जिसे प्रोक्युरेटर कहा जाता था . 

गुड  फ्राइडे  (Good friday)

विलियम आश्वश्त है उस विधायक तिथि और दिन के बारे  में जब ईसामसीह को सूली पर लटकाया गया .कीलित किया गया क्रोस पर .अलबत्ता ईस्वी सन (उस विधायक बरस )  को लेकर सवाल रहे आयें हैं .

दस्तावेज़ी संकेत 

विज्ञान पत्रिका नेचर में Colin Humphreys और उनके साथी Graeme Waddington का एक शोध पत्र इस बाबत छपा था .विलियम्स उसका भी हवाला देतें हैं .इसमें भी इस और इसी  विधायक तिथि का ज़िक्र  है .   

खगोलीय गणनाओं से भी यही तिथि पुष्ट होती है तथा यहूदियों का केलेंडर भी इसकी गवाही देता है .सर्वाधिक शुद्ध साल ईस्वी सन ३३ ही आता है .अलबत्ता ३ अप्रेल की तारीक को लेकर तो वैसे ही मतैक्य रहा है .

शनिवार, 26 मई 2012

दिल के खतरे को बढ़ा सकतीं हैं केल्शियम की गोलियां

दुनिया भर में तजवीज़ किये गए मरीजों को लिखे गए दवाओं के नुश्खे खंगालिए तो जानिएगा लाखों लाख लोगों को अस्थियों को मज़बूत बनाए  रखने खासकर बढती हुई उम्र में होने वाले बोन मॉस लोस अश्थी पदार्थ क्षय से बचावी चिकित्सा के बतौर   केल्शियम सम्पूरण या फिर केल्शियम की गोलिया खाने को कहा जा रहा है .

अब ज्यूरिख विश्व -विद्यालय एवं जर्मन शोध केंद्र ,Heidelberg  के रिसर्चरों ने न सिर्फ इस बचावी  चिकित्सा की कारगरता पर निशाना साधा है ,यह भी जड़ दिया है कि इन गोलियों के दीर्घावधि सेवन से दिल के दौरों के खतरे का वजन कई गुना बढ़ जाता है .

बेशक माहिरों ने इनके अन्वेषण को यह कहके बरतरफ  कर  परे धकेलने की कोशिश की है कि एक अकेले दोषपूर्ण अध्ययन से कुछ नहीं होता कोई निष्कर्ष निश्च्यातामक  तौर पर नहीं निकाला जा सकता .उधर रिसर्चर अपनी बात पे कायम हैं .

रिसर्चरों  ने २३९८० लोगों  पर पूरे ११ साल तक निगाह रखी है .पता चला है इनमे से जो नियमित केल्शियम गोलियां लेते रहें हैं उनके लिए करीब करीब दो गुना बढ़ जाता है दिल के दौरे का जोखिम .

पता यह भी चला कि उन १५,९५९ व्यक्तियों में से सिर्फ८५१ को  इस दरमियान दिल का दौरा पड़ा जो किसी भी बिध केल्शियम का इस्तेमाल नहीं करते थे ,जबकि केल्शियम सम्पूरण इस्तेमाल करने वालों के लिए इस दरमियान यह जोखिम ८६% बढ़ गया था .

जर्नल 'हार्ट' में रिसर्चरों ने इस अध्ययन का पूरा ब्योरा दिया है .बताया है इन सम्पूरण के चलन से दिल के दौरे का ख़तरा खासा बढ़ गया होगा .

सावधानी बरती जानी चाहिए इन गोलियों के इस्तेमाल में .इनके सेवन से जो ख़तराहार्ट अटेक का  सालाना ७०० के पीछे केवल एक व्यक्ति को रहा है वह बढ़कर ३५० के पीछे एक हो गया है .

बेहतर हो लोग ऐसी चीज़ें खाएं जिनमे कुदरती तौर पर केल्शियम का प्राचुर्य है यथा चीज़ ,दूध ,दही ,छाछ ,केला ,हरे पत्ते दार सब्जियां वगैरहा .

यह अन्वेषण उस अनुशंशा का विरोध करते हैं जिसके अनुसार १५०० मिलीग्राम या इससे कम केल्शियम का सम्पूरण कोई हानि नहीं पहुंचाता है .ये सिफारिशें स्वास्थ्य विभाग UK की हैं .

अलबता ये विभाग भी इससे ज्यादा सम्पूरण लेने के प्रति चेतावनी देता हुआ बतलाता है इससे ज्यादा मात्रा में केल्शियम सम्पूरण का रोज़ -बा -रोज़ का सेवन पेट दर्द और अतिसार की वजह बन सकता है .

बेशक केल्शियम और विटामिन डी का सम्बन्ध अश्थियों की मजबूती हड्डियों के स्वास्थ्य से योरोपियन फ़ूड सेफ्टी ऑथोरिटी ने भी जोड़ा है .

महत्व पूर्ण है केल्शियम की खुराक और वह अवधि जिस तक इसका सेवन माहिरों की सिफारिश करती है .कृपया इस बाबत अपनी कुछ न चलायें . 

सन्दर्भ सामिग्री :CALCIUM PILLS MAY UP HEART ATTACK RISK 

Supplements To Strength  Bones Should Be Taken With  Caution ,Says Study/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,MAY 25,2012,P21

लेबल :दिल के खतरे को बढ़ा सकतीं हैं केल्शियम  की गोलियां 

नुश्खे सेहत के और शोध की खिड़की से और बहुत कुछ :

नुश्खे सेहत के और शोध की खिड़की से और बहुत कुछ :अश्थियों के विकास और पनपने में सहायक  सिद्ध होता है अनानास (पाइन -एपिल ) .क्योंकि इसमें प्राचुर्य रहता है खनिज लवण मैंगनीज़ का जो जख्म के भरने और चमड़ी को पोषण देने में भी कारगर रहता है .

(२)चीकू का नियमित सेवन उदरीय एंजाइमों (किण्वक  )के स्राव में मददगार रहता है .यह एक तरफ अपचयन (मेटाबोलिज्म )में और दूसरी तरफ वजन कम रखने में भी कारगर सिद्ध होता है .

(३) बीबी के साथ यौन दगा बाज़ी करना दिल के दौरे को न्योंता देना है .अपनी बीवी के साथ विश्वास घात करना दिल की सेहत को दीमक लगाना है .खतरे का जोखिम बढ़ाना है दिल के लिए .एक इतालवी अध्ययन ने इसी विषय पर पूर्व में संपन्न अध्ययनों का पुनर -आकलन करने के बाद ही ये निष्कर्ष निकालें हैं .

(४)विटामिन सी से भरा हुआ है कीवी फल (Kiwi fruit) जो रक्त वाहिकाओं के विकास एवं निर्माण में कारगर तथा चमड़ी की टूट फूट की भरपाई में विधायक सिद्ध होता है .

(५)किशमिश में मौजूद खाद्य रेशे पानी में भीगे रहने पर फूल जातें हैं .एक बढ़िया विरेचक ( Laxative ) का काम अंजाम देते हैं .

(६)विटामिन 'के ' से युक्त खीरा अश्थियों को मजबूती प्रदान करने वाला पाया गया है .
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(७)एंटी -ओक्सिडेंट लाइकोपीन से युक्त है तरबूज (Watermelon) .LYCOPENE हानिकारक अणुओं (मुक्त मूलकों ,FREE RADICALS)  को निष्प्रभावी कर देता है .कोशिकाओं की टूट फूट कम होती है भरपाई होने लगती है टूट फूट और कोशिका क्षय की ,Cells decay की  . 

(*८)विटामिन ई से युक्त रहतें हैं आम .फलों का राजा कहा जाने वाला आम हारमोनों का विनियमन करता है .यौनेच्छा में इजाफा  

(९)पोटाशियम और कोपर (ताम्बा )जैसे खनिज लवण  का अल्पांश लिए है लीची .दिल की धौंकनी को काबू में रखतें हैं ये लवण तथा परि -हृदय  धमनी रोग से हिफाज़त .

(१०)रेड एपिल्स में मौजूद रहता है एक ख़ास एंटी -ओक्सिडेंट Quercetin जो  हमारी  रोग  रोधी  प्रणाली को सशक्त करता है .रोग प्रति -रक्षण क्षमता को बढाता है .

(११)मशरूम्स  यानी खुम्बियों में होता है एंटी -बायोटिक यह हर चंद जीवाणु जन्य तथा फफूंद से पैदा हो सकने वाले संक्रमणों से बचाए रहता है यानी एंटी -फंगल और एंटी -माइक्रोबियल एजेंट के रूप में काम करता है .  
शोध की खिड़की 

(१)मोटापे के लिए कुसूरवार है दिमाग हमारा .इसके आधारीय हिस्से हाइपो -थेलेमस में जो न्युरोंस (नर्व सेल्स ,तंतु कोशिकाएं )नव निर्मित होतीं हैं वही इस बात को तय करतीं हैं कि आपको कब कितना खाना है .कुल मिलाके आपकी तौल आपका वजन इनके ही हाथों में सुरक्षित है .

जर्नल न्यूरो -साइंस में प्रकाशित एक एनीमल रिसर्च से उक्त बात पता चली है .

(२)रेशम के रेशे सूक्ष्म जीवों (माइक्रोब्स )को देखते ही देखते चट कर जातें हैं .मार देतें हैं  .बस एक सस्ता सा dip -and -dry treatment एक सरल उपाय रेशों को एक ख़ास तरल में डुबकी लगवाके  सुखालो .

इस प्रकार उपचारित  होने  पर  रेशम  के  रेशे anthrax जैसे जीवाणु का भी देखते ही देखते खात्मा कर देतें हैं जो बघनखे पहने रहता है .armour -coated spores लिए  रहता  है  .