बुधवार, 18 सितंबर 2013

श्रीमदभगवाद गीता अध्याय तीन :श्लोक तीसवाँ

श्रीमदभगवाद गीता अध्याय तीन :श्लोक तीसवाँ 

मयि सर्वाणि कर्माणि ,संन्य स्याध्यात्मचेतसा ,

निराशीर निर्ममो भूत्वा ,युध्यस्व विगतज्वर :

mayi sarvani karmani sannyasyadhyatma  -chetasa ,

nirashir nirmamo bhutva yudhyasva vigata-jvarah 

mayi-unto me ;sarvani -all ;karmani -works ;sannyasya-renouncing completely ;adhyatma-chetasa-with the thoughts resting on God ;nirashih -free from hankering for the results of the actions ;nirmamah -without ownership ;bhutva-so being ;yudhyasva -fight ;vigata-jvarah -without mental fever.

भगवान् अर्जुन को कहते हैं -मुझमें चित्त लगाकर ,सम्पूर्ण कर्मों (के फल )को मुझमें अर्पण करके ,आशा ,ममता और संतापरहित होकर अपना कर्तव्य (युद्ध )करो.

यहाँ भगवान् को सभी कर्मों को समर्पित करने से मतलब क्या है  ?दरअसल हम जो भी कर्म करते हैं स्वार्थ भाव से करते हैं वह सब अध्यात्मिक चित्त द्वारा भगवान् को समर्पित कर देना है। 

अध्यात्म का मन्त्र है प्रेम। धर्म का मन्त्र है क्षमा और नीति का मतलब है किसी  ने अपराध किया है तो उसे सज़ा दो। ईंट का ज़वाब पत्थर से दो। त्याग की आत्मा वहीँ है जहां प्रेम है। भगवान् कहते हैं अध्यात्म की नींव पर मुझे सब कर्म अर्पित करो। 

सुखी होना है तो किसी से भी उम्मीद न रखो। व्यक्ति में व्यक्ति को देखोगे तो राग होगा द्वेष भी होगा अपेक्षाएं भी पैदा होंगी। जिसने मेरापन छोड़ दिया है आशाओं से मुक्त होकर जो कर्म कर रहा है। मन की कमजोरियां जिसने निकाल दी हैं वही अध्यात्मिक चित्त मुझे देकर कर्म कर सकता है। अध्यात्मिक चित्त से कर्म करने का मतलब  राग विराग से मुक्त होकार कर्म करना है। जहां तक राग द्वेष है वहां तक संसार है। जब तक हम व्यक्ति में व्यक्ति को देखेंगे उसकी अच्छाई या बुराइयों को देखेंगे तो फिर राग या द्वेष रहेगा ही। जहां तक राग द्वेष  है वहां तक संसार है।सुख दुःख है।  जब हम व्यक्ति में परमात्मा को देखते हैं तो फिर राग और द्वेष दोनों ही विदा हो जाते हैं। और वहां साम्राज्य अध्यात्म का शुरू होता है।

Performing all works as an offering unto me ,constantly meditate on me as the Supreme .Become free from desire and selfishness ,and with your mental grief departed ,fight .

In his typical style ,Shree Krishna expounds on a topic and then finally presents the summary .The words adhyatma chetasa mean "with the thoughts resting on God ."Snyasya means "renouncing all activities that are not dedicated to him ".Nirashih means "without hankering for the results of the actions ."The consciousness of dedicating all actions to God requires forsaking claim to proprietorship and renouncing all desires for personal gain ,hankering,and lamentation .

The summary of the instructions in the previous verses is that one should very faithfully reflect ,"My soul is a tiny part of the Supreme Lord Krishna .He is the Enjoyer and Master of all .All my works are meant for his pleasure ,and thus ,I should perform my duties in the spirit of yajna  or sacrifice to him .He supplies the energy by which I accomplish works of yajna .Thus I should not take credit for any actions authored by me ."

आग की तरह फैला दो इस वीडियो को......



  1. मोदी नाम पे कितना हल्ला ,

    सावधान रहना तुम लल्ला ,

    सेकुलर बैठे घात लगाए ,

    इनसे बचके रहना लल्ला।

    16 सितम्बर 2013

    मोदी बनाम अडवाणी
    मोदी के सर ताज है,अडवाणी कंगाल।
    खुद का बोया काटते,काहे करें मलाल ?
    काहे करें मलाल,बताया जिन्ना सेकुलर।
    तिकड़म सब बेकार, रहे ना हिन्दू कट्टर।
    अब काहे रिरियांय,फसल जो पहले बो दी।
    कट्टरता का खेत, काटने आए मोदी।।

    प्रस्तुतकर्ता संतोष त्रिवेदी
    लेबल: अडवाणी, कुण्डलियाँ, भाजपा, मोदी



Faith in Astrology 

The configuration of stars does have a minor influence in our lives .It is a part of God's design for dishing out our prarabdh ,(प्रारब्ध )or the results of our past karmas.The subject of astrology attempts to predict this influence of stars .Regarding astrology ,the first thing to bear in mind is that the predictions are only partially accurate .

Astronomy is an observational science the predictional part of astronomy is called astrology .There is no uniform methodology for making predictions .Some are carrying the calculations with nine planets others with twelve .Even though astronomy no longer considers Pluto as a planet ,being smaller than the moon it is now termed as a planetoid .

Khushvant singhji says what quackery is to medicine so is astrology to astronomy .So be it .

The second point is that ,we always have the freedom to act in the present .This freedom permits us to change our destiny ,with sufficient self -effort.The problem with studying astrology is that it makes us fatalistic .We lose focus on our self effort ,or purusharth.Hence Chanakya Pandit said :

nirutsahaddaivam patitah


निरुत्साहाद्दैवं पतित : 

"If you are torpid (sluggish lacking physical or mental energy),you will fail despite the best of destiny ."

उत्साहावतां शत्रवो अपि वशीभवन्ति। 

"If your endeavor is sufficient ,you can transform bad destiny into success ." 

Thus ,rather than allowing the configuration of your stars to linger on your mind ,put your heart and soul into your present efforts .

ॐ शान्ति 

4 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सुखी रहना है तो उम्मीद न रक्खो ...
कर्म करो ... प्रेम है तो कर्म है ... सारथि कृष्ण हों तो समझने की भी जरूरत कहां रह जाती होगी ... राम राम जी ...

Anita ने कहा…

जब हम व्यक्ति में परमात्मा को देखते हैं तो फिर राग और द्वेष दोनों ही विदा हो जाते हैं। और वहां साम्राज्य अध्यात्म का शुरू होता है।

सुंदर बात !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक केन्द्र के चारों ओर होती गति।

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

अध्यात्म का मन्त्र है प्रेम। धर्म का मन्त्र है क्षमा और नीति का मतलब है किसी ने अपराध किया है तो उसे सज़ा दो। ईंट का ज़वाब पत्थर से दो। waah bahut acchi seekh deti rachna ....