दिमाग तो हमारे शरीर में एक टेलीफोन एक्सचेंज की तरह है जिसका काम दिमाग की एकल इकाई न्यूरोन के ज़रिये दो तरफ़ा सूचना सम्प्रेषण है। आत्मा का यह महज़ एक सूक्ष्म उपकरण है। हमारे मनो संवेगों ,ख्यालों की नर्सरी (पौध) ,राग -बिराग ,देखना और देखे को संजोना यहीं होता है दिमाग में ,आत्मा के द्वारा।आत्मा कहती है यह मेरा हाथ है मैं हाथ नहीं हूँ ये मेरा दिमाग है मैं दिमाग नहीं हूँ।
मन अलग है मष्तिष्क या दिमाग अलग है। दिमाग तो मन का हार्डवेयर है। इसी के द्वारा अपने काम करता
है मन। ब्रेन तो डेमेज हो जाता है अनेक दुर्घटनाओं में लेकिन मन फिर भी अपना काम मनन करता रहता है। कहने भर को कह देते हैं आलंकारिक भाषा में मेरे मन को आहत किया है आपने मेरा दिल दुखाया है।चोट तो दिमाग को लगती है और इसीलिए दिमागी चोट कई मर्तबा बड़ी घातक सिद्ध होती है।
पौधों में तो दिमाग होता ही नहीं है लेकिन मन होता है। माली की आहट को पहचान लेते हैं पौधे। संगीत पे थिरकते नांचते भी हैं पादप।
दिमाग स्थूल तत्वों की निर्मिती है शरीर की तरह ही यह भी पृथ्वी ,जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश लिए है। मन इन स्थूल तत्वों से परे है।
भगवदगीता के सातवें अध्याय के चौथे श्लोक पे गौर करें -
भूमिरापोअनलो वायु " खं मनो बुद्धिरेव च ,
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा। (भगवत गीता ७.४ )
भगवान् कहते हैं -मेरी भौतिक ऊर्जा माया के मात्र अवयव हैं :(भूमि ,अग्नि ,जल ,वायु ,आकाश) ,मन और बुद्धि तथा अहंकार। मन इन पञ्च स्थूल तत्वों से अलग है। विज्ञान दिमाग के थोड़े से हिस्से का न्यूरल सर्किट तो प्राप्त कर सका है लेकिन हमारे सूक्ष्म मन के कार्य व्यापारों को अभी बूझ नहीं सका है।
इस प्रकार मन अलग है दिमाग अलग है। भले आलंकारिक भाषा में हम दोनों को एक साथ लिए रहते हैं समानार्थक के रूप में लेकिन इनकी सत्ताएं अलग अलग हैं।
मन अलग है मष्तिष्क या दिमाग अलग है। दिमाग तो मन का हार्डवेयर है। इसी के द्वारा अपने काम करता
है मन। ब्रेन तो डेमेज हो जाता है अनेक दुर्घटनाओं में लेकिन मन फिर भी अपना काम मनन करता रहता है। कहने भर को कह देते हैं आलंकारिक भाषा में मेरे मन को आहत किया है आपने मेरा दिल दुखाया है।चोट तो दिमाग को लगती है और इसीलिए दिमागी चोट कई मर्तबा बड़ी घातक सिद्ध होती है।
पौधों में तो दिमाग होता ही नहीं है लेकिन मन होता है। माली की आहट को पहचान लेते हैं पौधे। संगीत पे थिरकते नांचते भी हैं पादप।
दिमाग स्थूल तत्वों की निर्मिती है शरीर की तरह ही यह भी पृथ्वी ,जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश लिए है। मन इन स्थूल तत्वों से परे है।
भगवदगीता के सातवें अध्याय के चौथे श्लोक पे गौर करें -
भूमिरापोअनलो वायु " खं मनो बुद्धिरेव च ,
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा। (भगवत गीता ७.४ )
भगवान् कहते हैं -मेरी भौतिक ऊर्जा माया के मात्र अवयव हैं :(भूमि ,अग्नि ,जल ,वायु ,आकाश) ,मन और बुद्धि तथा अहंकार। मन इन पञ्च स्थूल तत्वों से अलग है। विज्ञान दिमाग के थोड़े से हिस्से का न्यूरल सर्किट तो प्राप्त कर सका है लेकिन हमारे सूक्ष्म मन के कार्य व्यापारों को अभी बूझ नहीं सका है।
इस प्रकार मन अलग है दिमाग अलग है। भले आलंकारिक भाषा में हम दोनों को एक साथ लिए रहते हैं समानार्थक के रूप में लेकिन इनकी सत्ताएं अलग अलग हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें