The Gross ,Subtle ,and Causal Body
प्रश्न :जब आत्मा शरीर छोड़ ती है मन और बुद्धि साथ ले जाती है। नया शरीर मिलने पे इनका क्या रोल रहता है ?
उत्तर :
(१)स्थूल शरीर :पृथ्वी ,जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश का बना किराए का मकान है यह। पाँचों का हिस्सा है इस शरीर में जब आत्मा निकल जाती है पाँचों अपना हिस्सा वापस ले लेते हैं।
(२)सूक्ष्म शरीर :अठारह तत्वों का जोड़ है सूक्ष्म शरीर। पांच प्राण (life airs ),पांच कर्मेन्द्रियाँ (working senses ),पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ,तथा मन ,बुद्धि और अहंकार।
(३)कारण शरीर :संचित (अर्जित )कर्मों का लेखा है यह अकाउंट शीट है। हिसाब किताब है इस जन्म के कर्मों का। जन्म जन्मान्तरों के कर्मों का। (the account of our karmas in endless lives).
आत्मा जब इस स्थूल शरीर (काया )को छोड़ जाती है उस समय को ही मृत्यु कहा जाता है।लेकिन सूक्ष्म और कारण शरीर आत्मा अपने संग ले जाती है।
स यदा अस्मात शरीरात उत्क्रामति ,
स : एव एतै : सर्वे :उत्क्रामति .
जब आत्मा स्थूल शरीर से अलग होती है सूक्ष्म और कारण शरीर उसी के संग चला जाता है। इस प्रकार एक से दूसरे जन्म तक मन और बुद्धि आत्मा के साथ ही यात्रा करती है। यही वजह है जन्म से ही नेत्रहीन व्यक्ति भी ख्वाद देख सकता है। क्योंकि उसके अवचेतन में पूर्व जन्मों की स्मृति बकाया है।
यही वजह है कुछ बालक विलक्षण प्रतिभा लिए पैदा होते हैं। इसके साथ साथ परमात्मा पुनर्जन्म होने पर मन और बुद्धि को नै काया के अनुरूप व्यवस्थित करता है। इसीलिए विलक्षण बालक भी पूर्व जन्म का एक आदि ही हुनर साथ लिए आता है।
जब इस सृष्टि का भौतिक जगत का विनाश होता है भौतिक ऊर्जा के सभी तत्व परमात्मा में ही समाहित हो जाते हैं.महाप्रलय के दरमियान आत्मा अपने जड़ (निष्क्रिय स्वरूप )में आ जाती है। वैसे -
Soul is action oriented energy .
इस प्रलय -काल में स्थूल और सूक्ष्म शरीर सभी आत्माओं के इस जगत में नष्ट हो जाते हैं।लेकिन कारण शरीर बना रहता है। ये पूर्व के सभी जन्मों का चिठ्ठा लिए चलता है। इसलिए सृष्टि की पुनरावृत्ति (दोबारा पैदा )होने पर आत्मा को सूक्ष्म और स्थूल शरीर उसके कारण शरीर के हिसाब से,कारण शरीर के अनुरूप और संगत ही मिलते हैं।
अलबत्ता परमात्मा की प्राप्ति होने पर ,जो आत्मा परमात्मा को प्राप्त हो जाता है उसके तीनों शरीर नष्ट हो जाते हैं। अब उसे दिव्य काया ,दिव्य मन और दिव्य बुद्धि नसीब होते हैं।वह परमात्म लोक में प्रभु की लीला दिव्य चक्षुओं से देखती है।
सन्दर्भ -सामिग्री :Spiritual Dialectics -by Swami Mukundananda
Published by :
Jagadguru Kripaluji Yog ,
7405 ,Stoney Point Dr
Plano ,TX 75025
www.jkyog.org
प्रश्न :जब आत्मा शरीर छोड़ ती है मन और बुद्धि साथ ले जाती है। नया शरीर मिलने पे इनका क्या रोल रहता है ?
उत्तर :
(१)स्थूल शरीर :पृथ्वी ,जल ,वायु ,अग्नि ,आकाश का बना किराए का मकान है यह। पाँचों का हिस्सा है इस शरीर में जब आत्मा निकल जाती है पाँचों अपना हिस्सा वापस ले लेते हैं।
(२)सूक्ष्म शरीर :अठारह तत्वों का जोड़ है सूक्ष्म शरीर। पांच प्राण (life airs ),पांच कर्मेन्द्रियाँ (working senses ),पांच ज्ञानेन्द्रियाँ ,तथा मन ,बुद्धि और अहंकार।
(३)कारण शरीर :संचित (अर्जित )कर्मों का लेखा है यह अकाउंट शीट है। हिसाब किताब है इस जन्म के कर्मों का। जन्म जन्मान्तरों के कर्मों का। (the account of our karmas in endless lives).
आत्मा जब इस स्थूल शरीर (काया )को छोड़ जाती है उस समय को ही मृत्यु कहा जाता है।लेकिन सूक्ष्म और कारण शरीर आत्मा अपने संग ले जाती है।
स यदा अस्मात शरीरात उत्क्रामति ,
स : एव एतै : सर्वे :उत्क्रामति .
जब आत्मा स्थूल शरीर से अलग होती है सूक्ष्म और कारण शरीर उसी के संग चला जाता है। इस प्रकार एक से दूसरे जन्म तक मन और बुद्धि आत्मा के साथ ही यात्रा करती है। यही वजह है जन्म से ही नेत्रहीन व्यक्ति भी ख्वाद देख सकता है। क्योंकि उसके अवचेतन में पूर्व जन्मों की स्मृति बकाया है।
यही वजह है कुछ बालक विलक्षण प्रतिभा लिए पैदा होते हैं। इसके साथ साथ परमात्मा पुनर्जन्म होने पर मन और बुद्धि को नै काया के अनुरूप व्यवस्थित करता है। इसीलिए विलक्षण बालक भी पूर्व जन्म का एक आदि ही हुनर साथ लिए आता है।
जब इस सृष्टि का भौतिक जगत का विनाश होता है भौतिक ऊर्जा के सभी तत्व परमात्मा में ही समाहित हो जाते हैं.महाप्रलय के दरमियान आत्मा अपने जड़ (निष्क्रिय स्वरूप )में आ जाती है। वैसे -
Soul is action oriented energy .
इस प्रलय -काल में स्थूल और सूक्ष्म शरीर सभी आत्माओं के इस जगत में नष्ट हो जाते हैं।लेकिन कारण शरीर बना रहता है। ये पूर्व के सभी जन्मों का चिठ्ठा लिए चलता है। इसलिए सृष्टि की पुनरावृत्ति (दोबारा पैदा )होने पर आत्मा को सूक्ष्म और स्थूल शरीर उसके कारण शरीर के हिसाब से,कारण शरीर के अनुरूप और संगत ही मिलते हैं।
अलबत्ता परमात्मा की प्राप्ति होने पर ,जो आत्मा परमात्मा को प्राप्त हो जाता है उसके तीनों शरीर नष्ट हो जाते हैं। अब उसे दिव्य काया ,दिव्य मन और दिव्य बुद्धि नसीब होते हैं।वह परमात्म लोक में प्रभु की लीला दिव्य चक्षुओं से देखती है।
सन्दर्भ -सामिग्री :Spiritual Dialectics -by Swami Mukundananda
Published by :
Jagadguru Kripaluji Yog ,
7405 ,Stoney Point Dr
Plano ,TX 75025
www.jkyog.org
5 टिप्पणियां:
काश मी तीनों ही शरीर नष्ट हों ..... पर न जाने मेरे कर्मों का क्या हिसाब होगा :):)
अच्छी जानकारी मिली ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
शरीर के प्रकार ओर आत्मा से आत्मसात होने की प्रक्रिया ... साथ ही कर्मों का लेखा जोखा ... ज्ञान तंतु को खोलता हुवा अध्यन ... राम राम जी ...
आत्मा जब इस स्थूल शरीर (काया )को छोड़ जाती है उस समय को ही मृत्यु कहा जाता है।लेकिन सूक्ष्म और कारण शरीर आत्मा अपने संग ले जाती है।
सरलता से प्रस्तुत किया सुंदर अध्यात्म ज्ञान !
ज्ञानवर्धक विवेचन ..... आभार
एक टिप्पणी भेजें