कबीर की एक मशहूर उलटवासी :भाव -सार
पानी में मीन पियासी ,
मोहे सुन सुन आवत हांसी।
जलथल सागर खूब नहावे ,
भटकत फिरे उदासी।
आतम ज्ञान निरो (बिना )नर भटके ,
कोई मथुरा कोई कासी ,
जैसे मृगा नाभि कस्तूरी ,
वन वन फिरे उदासी।
जल बिच कमल ,कमल बिच कलियाँ ,
ता पर भंवर निवासी ,
सो मन वसि त्रै लोक भयो है ,
जती ,सती सन्यासी।
जाको ध्यान धरै ,विधि हरिहर ,मुनिजन कहत अ -भासी ,
सो तेरे हरि मांहि बिराजे ,
परम पुरख अविनासी।
हैं हांसी ,तोहि दूरि दिखावे ,दूर की बात निरासि ,
कहे कबीर सुनो भई साधो ,
गुरु बिन भरम न जासि।
सहज मिले अबिनासी।
कबीर की इस उलटबासी में मीन आत्मा का प्रतीक है जल संसार का। उसके सारे सुख साधनों वैभव का। कबीर कहते हैं संसार का रास्ता सुखों की ओर नहीं जाता है। भटकाता है तृप्त नहीं करता है प्यास बढ़ाता है।जब तक जीव को अपने स्वरूप (मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं हूँ ये शरीर मेरा है मैं शरीर नहीं हूँ )का बोध नहीं होगा तीर्थ करने का फिर कोई फायदा नहीं है।मैं परमात्मा का ही वंश हूँ।वह ईश्वर तत्व मुझ में भी है) सुख तो व्यक्ति के अन्दर है परमात्मा का भी उसी के हृदय में वास है। वह मथुरा -काशी जैसे तीर्थों में उसे ढूंढ रहा है उससे कोई प्राप्ति नहीं होगी। शरीर की यात्रा है यह। आत्मा का परमात्मा से योग नहीं है। यह वैसे ही है जैसे तपती रेत में मृग सरोवर ढूंढता है जबकि परमात्मा की सुवास तो उसकी स्वयं की नाभि में विराजमान है।
जैसे भंवरा कलियाँ के स्पर्श प्राप्त कर रहा है ,कलियाँ लेकिन कमल पर हैं और कमल स्वयं जल में है वैसे ही हमारा मन रुपी भंवरा स्पर्श की लालसा में कलियों से (संसार से )सुख प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है जबकि कमल स्वयं संसार रुपी जल में है।संसार तो माया है। जब तक मन उस त्रिलोकी से नहीं लगेगा फिर चाहे यंत्र साधना करने वाला जती हो या सत्य और नियम का पालन करने वाला सती हो साधु हो कोई भी हो ,उसकी(पर -मात्मा की ) भक्ति के बिना फिर सब बेकार है।
जिसका ध्यान ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों करते हैं वह अविनाशी ईश्वर तत्व परमात्मा तेरे अन्दर निवास करता है मुनिजन ऐसा कहते हैं। दूर के ढोल सुहावने लगते हैं। यह संसार एक मृग मरीचिका की तरह है जहां तप्त रेत पर दूर से तिरछा देखने पर ताल तलैया का भ्रम पैदा होता है लेकिन वहां कुछ होता नहीं है। ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का संग ज़रूरी है फिर परमात्मा सहज ही मिल जाएगा। क्योंकि वह सही मार्ग बतलायेगा।
ॐ शान्ति
पानी में मीन पियासी ,
मोहे सुन सुन आवत हांसी।
जलथल सागर खूब नहावे ,
भटकत फिरे उदासी।
आतम ज्ञान निरो (बिना )नर भटके ,
कोई मथुरा कोई कासी ,
जैसे मृगा नाभि कस्तूरी ,
वन वन फिरे उदासी।
जल बिच कमल ,कमल बिच कलियाँ ,
ता पर भंवर निवासी ,
सो मन वसि त्रै लोक भयो है ,
जती ,सती सन्यासी।
जाको ध्यान धरै ,विधि हरिहर ,मुनिजन कहत अ -भासी ,
सो तेरे हरि मांहि बिराजे ,
परम पुरख अविनासी।
हैं हांसी ,तोहि दूरि दिखावे ,दूर की बात निरासि ,
कहे कबीर सुनो भई साधो ,
गुरु बिन भरम न जासि।
सहज मिले अबिनासी।
कबीर की इस उलटबासी में मीन आत्मा का प्रतीक है जल संसार का। उसके सारे सुख साधनों वैभव का। कबीर कहते हैं संसार का रास्ता सुखों की ओर नहीं जाता है। भटकाता है तृप्त नहीं करता है प्यास बढ़ाता है।जब तक जीव को अपने स्वरूप (मैं आत्मा हूँ शरीर नहीं हूँ ये शरीर मेरा है मैं शरीर नहीं हूँ )का बोध नहीं होगा तीर्थ करने का फिर कोई फायदा नहीं है।मैं परमात्मा का ही वंश हूँ।वह ईश्वर तत्व मुझ में भी है) सुख तो व्यक्ति के अन्दर है परमात्मा का भी उसी के हृदय में वास है। वह मथुरा -काशी जैसे तीर्थों में उसे ढूंढ रहा है उससे कोई प्राप्ति नहीं होगी। शरीर की यात्रा है यह। आत्मा का परमात्मा से योग नहीं है। यह वैसे ही है जैसे तपती रेत में मृग सरोवर ढूंढता है जबकि परमात्मा की सुवास तो उसकी स्वयं की नाभि में विराजमान है।
जैसे भंवरा कलियाँ के स्पर्श प्राप्त कर रहा है ,कलियाँ लेकिन कमल पर हैं और कमल स्वयं जल में है वैसे ही हमारा मन रुपी भंवरा स्पर्श की लालसा में कलियों से (संसार से )सुख प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है जबकि कमल स्वयं संसार रुपी जल में है।संसार तो माया है। जब तक मन उस त्रिलोकी से नहीं लगेगा फिर चाहे यंत्र साधना करने वाला जती हो या सत्य और नियम का पालन करने वाला सती हो साधु हो कोई भी हो ,उसकी(पर -मात्मा की ) भक्ति के बिना फिर सब बेकार है।
जिसका ध्यान ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों करते हैं वह अविनाशी ईश्वर तत्व परमात्मा तेरे अन्दर निवास करता है मुनिजन ऐसा कहते हैं। दूर के ढोल सुहावने लगते हैं। यह संसार एक मृग मरीचिका की तरह है जहां तप्त रेत पर दूर से तिरछा देखने पर ताल तलैया का भ्रम पैदा होता है लेकिन वहां कुछ होता नहीं है। ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का संग ज़रूरी है फिर परमात्मा सहज ही मिल जाएगा। क्योंकि वह सही मार्ग बतलायेगा।
ॐ शान्ति
2 टिप्पणियां:
सत्य दर्शन. आत्मा ही सद्गुरु तत्व है.
Ye baat bilkul satya hai main issi baat ka anubhav karna chahta hu aur iss gyan anubhav samay ke maha purush hi karva sakte hain jinka naam Prem Rawat hai aur dusra nahi hai jinko alakh purush avinashi ka anubhav karna hai apne banane wale ka anubhav karna hai janna hai to Prem Rawat maharaji ka satsang suniye
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