राधा तत्व क्या है ?(पहली क़िस्त )
जैसे दूध और दूध की सफेदी के बीच में फर्क नहीं किया जा सकता वैसे ही
राधा और कृष्ण के बीच दूसरा तो कोई है ही नहीं है। द्वैत का अद्वैत हैं
राधा -कृष्ण। इनके बीच में तू और मैं का फर्क है ही नहीं। एक ही तत्व है
कृष्ण और राधा।कृष्ण में राधा है और राधा में कृष्ण हैं। लीला के लिए दो
कर दिए गए हैं।दो हैं नहीं।
राधा के चरणों की धूल कृष्ण मस्तक पर लगाते हैं। रा धे .....ध्यान करते हैं
राधा का।आराधना करते हैं राधा की ।
कुछ आचार्यों ने कहा भागवत में राधा का नाम कहीं नहीं आया है। आया
कैसे नहीं है। दृष्टि होनी चाहिए उसे देखने के लिए। जैसे मेहँदी का पता
हरा होता है उसमें लाल (मेहँदी का रंग )छिपा रहता है। शुकदेव जी ने उसे
(राधा को ही )योगमाया कहा है। उसके अन्य १८ पर्याय वाची बताये हैं।
राधा नाम बोलते ही वह समाधिस्थ हो जाते इसीलिए भागवत की पूरी
कथा एक हफ्ते की अल्पावधि में राजा परीक्षित को कैसे सुना पाते जिनके
पास एक हफ्ते की ही मोहलत थी। और कथा को सम्पूर्ण करना था।
इसीलिए राधा के प्रति उनके रस महाभाव को देखते हुए वह राधा शब्द के
सीधे उच्चारण से बचें हैं।
राधा का एक और पर्यायवाची रमापति आया है भागवत में। रमापति
(कृष्ण )राधा के संग ही रास रचाते हैं। लीला रमा के पति (रमापति )ही
करते हैं। रमानाथ गोपियों के विलास हैं। इसीलिए इन्हें रासबिहारी भी कहा
गया है।
रमापति(कृष्ण ) का सन्देश लेकर ही उद्धव मथुरा आते हैं। गोपी शब्द भी
पर्यायवाची है राधा का। गोपियाँ स्वयं वेद की ऋचाएं हैं। अरे वेद क्या जानें
राधा को जिन्हें स्वयं कृष्ण भी न जान सके।
अगली किश्त में तमाम उद्धहरण पढ़िए किस शाश्त्र में कहाँ राधा नाम
आया है।
ॐ शान्ति।
जैसे दूध और दूध की सफेदी के बीच में फर्क नहीं किया जा सकता वैसे ही
राधा और कृष्ण के बीच दूसरा तो कोई है ही नहीं है। द्वैत का अद्वैत हैं
राधा -कृष्ण। इनके बीच में तू और मैं का फर्क है ही नहीं। एक ही तत्व है
कृष्ण और राधा।कृष्ण में राधा है और राधा में कृष्ण हैं। लीला के लिए दो
कर दिए गए हैं।दो हैं नहीं।
राधा के चरणों की धूल कृष्ण मस्तक पर लगाते हैं। रा धे .....ध्यान करते हैं
राधा का।आराधना करते हैं राधा की ।
कुछ आचार्यों ने कहा भागवत में राधा का नाम कहीं नहीं आया है। आया
कैसे नहीं है। दृष्टि होनी चाहिए उसे देखने के लिए। जैसे मेहँदी का पता
हरा होता है उसमें लाल (मेहँदी का रंग )छिपा रहता है। शुकदेव जी ने उसे
(राधा को ही )योगमाया कहा है। उसके अन्य १८ पर्याय वाची बताये हैं।
राधा नाम बोलते ही वह समाधिस्थ हो जाते इसीलिए भागवत की पूरी
कथा एक हफ्ते की अल्पावधि में राजा परीक्षित को कैसे सुना पाते जिनके
पास एक हफ्ते की ही मोहलत थी। और कथा को सम्पूर्ण करना था।
इसीलिए राधा के प्रति उनके रस महाभाव को देखते हुए वह राधा शब्द के
सीधे उच्चारण से बचें हैं।
राधा का एक और पर्यायवाची रमापति आया है भागवत में। रमापति
(कृष्ण )राधा के संग ही रास रचाते हैं। लीला रमा के पति (रमापति )ही
करते हैं। रमानाथ गोपियों के विलास हैं। इसीलिए इन्हें रासबिहारी भी कहा
गया है।
रमापति(कृष्ण ) का सन्देश लेकर ही उद्धव मथुरा आते हैं। गोपी शब्द भी
पर्यायवाची है राधा का। गोपियाँ स्वयं वेद की ऋचाएं हैं। अरे वेद क्या जानें
राधा को जिन्हें स्वयं कृष्ण भी न जान सके।
अगली किश्त में तमाम उद्धहरण पढ़िए किस शाश्त्र में कहाँ राधा नाम
आया है।
ॐ शान्ति।
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - रविवार - 22/09/2013 को
क्यों कुर्बान होती है नारी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः21 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
वृन्दावन में राधा का स्थान कृष्ण के ऊपर कहा जाता है।
राधे राधे मन बोले..राधा-कृष्ण को नमन !
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