चहुँ जग तीन काल तिहुँ लोका ,भये नाम जपि जीव बिसोका ,
रामचरितमानस एहि नामा ,सुनत श्रवण पाइअ बिश्रामा ,
अति खल जे बिषई बग कागा ,एहि सर निकट न जाहिं अभागा ,
संबुक भेक सेवार समाना ,इहाँ न बिषय कथा रस नाना।
जो अति दुष्ट और विषयी हैं वे अभागे बगुले और कौवे हैं ,जो इस
सरोवर
के नजदीक नहीं जाते। क्योंकि यहाँ (इस मानस -सरोवर में )घौंघे ,मेढक
और सेवार के समान विषय -रस की कथाएं नहीं हैं। वे उन वैबनर और
वैबनारियों के समान हैं जो नेट पर इन्द्रियों के विषयों की सामग्री ढूंढते
रहते हैं।
तेहि कारन आवत हियँ हारे ,कामी काक बलाक बिचारे ,
आवत एहिं सर अति कठिनाई ,राम कृपा बिन आइ न जाई .
इसी कारण बेचारे बगुले रुपी विषयी लोग यहाँ आते हुए हृदय में हार
मान जाते हैं क्योंकि इस सरोवर तक आने में कठिनाइयां बहुत हैं।
श्री रामजी की कृपा बिना यहाँ नहीं आया जाता।
कठिन कुसंग कुपंथ कराला ,तिन्ह के बचन बाघ हरि
ब्याला ,
गृह कारज नाना जंजाला ,ते अति दुर्गम सैल बिसाला।
घोर कुसंग ही भयानक बुरा रास्ता है ;उन कुसंगियों के
बचन ही बाघ ,सिंह और कलियुगी सांप हैं।
घर गृहस्थी का टंटा घर के 24x7 अवधि के काम-
काज ,भांति -भाँति के भ्रम और जंजाल ही अत्यंत
दुर्गम बड़े -बड़े पहाड़ हैं।
बन बहु बिषम मोह मद माना ,नदी कुतर्क भयंकर
नाना।
मोह ,मद (अहंकार )और मान ही बहुत से बीहड़ बन हैं
और नाना प्रकार के कुतर्क ही भयानक नदियाँ हैं।
ॐ शान्ति
बेद पुरान संत मत एहू ,सकल सुकृत फल राम सनेहू।
केवल कलियुग की ही बात नहीं है ,चारों युगों में ,तीनों कालों में और तीनों लोकों में नाम को जपकर जीव शोकरहित (अशोक )हुए हैं।
वेद ,पुराण और संतों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल श्री राम जी में या राम नाम में प्रेम होना है।
वेद ,पुराण और संतों का मत यही है कि समस्त पुण्यों का फल श्री राम जी में या राम नाम में प्रेम होना है।
ध्यानु प्रथम जुग मख बिधि दूजें ,द्वापर परितोषत प्रभु पूजें ,
कलि केवल मल मूल मलीना ,पाप पयोनिधि जन मन मीना।
कल्प के पहले युग (सतयुग )में ध्यान से दूसरे (त्रेता युग )में यज्ञ से। तीसरे दो पर (द्वापर )में पूजा पाठ से भगवान् प्रसन्न होतें हैं।
लेकिन कल युग केवल पाप की जड़ और मलिन है ,इसमें मनुष्य का मन पाप रूपा समुद्र में मछली बना हुआ है ,पाप से अलग ही
नहीं होना चाहता ,नेता मगरमच्छ बने हुए हैं इसलिए ध्यान यज्ञ और पूजन सब निष्फल होते हैं।
लेकिन कल युग केवल पाप की जड़ और मलिन है ,इसमें मनुष्य का मन पाप रूपा समुद्र में मछली बना हुआ है ,पाप से अलग ही
नहीं होना चाहता ,नेता मगरमच्छ बने हुए हैं इसलिए ध्यान यज्ञ और पूजन सब निष्फल होते हैं।
नाम काम तरु काल कराला ,सुमिरत समन सकल जग जाला ,
राम नाम कलि अभिमत दाता ,हित परलोक ,लोक पितु माता।
इस घोर कलियुग में रौरव नर्क में भी नाम की महिमा कल्प वृक्ष के समान है ,जो मन में उपजी न सिर्फ हर कामना की पूर्ती कर
सकता है सांसारिक पदार्थों में उलझे मनुष्य के हर दुःख का जो जी के जंजाल बने हुए हैं ,समूल नाश भी कर सकता है। कलियुग में यह
प्राणि की हर कामना पूरी करने वाला है मन चाहा फल देने वाला है परलोक में हमारा कल्याण करने वाला है परम हितेषी है पर लोक
का और इहि लोक में भी माता पिता की तरह रक्षक और पालक बन खड़ा हो जाता है।
सकता है सांसारिक पदार्थों में उलझे मनुष्य के हर दुःख का जो जी के जंजाल बने हुए हैं ,समूल नाश भी कर सकता है। कलियुग में यह
प्राणि की हर कामना पूरी करने वाला है मन चाहा फल देने वाला है परलोक में हमारा कल्याण करने वाला है परम हितेषी है पर लोक
का और इहि लोक में भी माता पिता की तरह रक्षक और पालक बन खड़ा हो जाता है।
नहिं कलि करम न भगति बिबेकू ,राम नाम अवलम्बन एकू ,
कालनेमि कलि कपट निधानु ,नाम सुमति समर्थ हनुमानू।
इस कलियुग में न कर्म है ,न भक्ति है (जो भक्ति है भी वह व्यभिचारिणी हो चुकी है )और न ही ज्ञान है। कहते हैं पहले मन्त्र आया
,फिर तंत्र और अब सिर्फ षड्यंत्र ही रह गया है। ऐसे कपटपूर्ण माहौल में राम नाम ही एक आधार है। इस कपट की खान कलियुग रुपी
कालनेमि के मारने के लिए राम नाम ही बुद्धिमान और समर्थ हनुमान के समान है।
,फिर तंत्र और अब सिर्फ षड्यंत्र ही रह गया है। ऐसे कपटपूर्ण माहौल में राम नाम ही एक आधार है। इस कपट की खान कलियुग रुपी
कालनेमि के मारने के लिए राम नाम ही बुद्धिमान और समर्थ हनुमान के समान है।
जिसका "स्व "मान ऊंचा है वही हनू -मान है।नाम का जाप हमें हनू मान बनाता है।
मन करि बिषय अनल बन जरई ,होइ सुखी जौं एहिं सर परई।
इसका नाम रामचरितमानस है ,जिसके कानों से सुनते ही शान्ति मिलती है। मन रुपी हाथी
विषयरुपी दावानल में जल रहा है ,वह यदि इस रामचरितमानस रुपी सरोवर में आ पड़े तो सुखी हो
जाए।
भाव यह है कलियुग में विषय भोगों में फंसा प्राणि यदि मानस का पारायण ,वाचन अध्ययन करे तो
उसका मन विषय भोगों से निवृत्त होकर शांत हो जाए। मर्यादित हो जाए। श्रीराम हो जाए।
रामचरितमानस मुनि भावन ,बिरचेउ संभु सुहावन पावन ,
त्रिबिध दोष दुःख दारिद दावन ,कलि कुचालि कुलि कलुष नसावन।
यह रामचरित मानस मुनियों का प्रिय है ,इस सुहावने और पवित्र मानस की शिव जी ने रचना की। यह तीनों प्रकार के
दोषों ,दुखों और दरिद्रता को तथा कलियुग की कुचालों और सब पापों का नाश करने वाला है।
संसद और हमारे सदनों में भी इसका पारायण होना चाहिए क्योंकि यह सभी प्रकार के षड्यंत्रों का नाश करता है।
अति खल जे बिषई बग कागा ,एहि सर निकट न जाहिं अभागा ,
संबुक भेक सेवार समाना ,इहाँ न बिषय कथा रस नाना।
जो अति दुष्ट और विषयी हैं वे अभागे बगुले और कौवे हैं ,जो इस
सरोवर
के नजदीक नहीं जाते। क्योंकि यहाँ (इस मानस -सरोवर में )घौंघे ,मेढक
और सेवार के समान विषय -रस की कथाएं नहीं हैं। वे उन वैबनर और
वैबनारियों के समान हैं जो नेट पर इन्द्रियों के विषयों की सामग्री ढूंढते
रहते हैं।
तेहि कारन आवत हियँ हारे ,कामी काक बलाक बिचारे ,
आवत एहिं सर अति कठिनाई ,राम कृपा बिन आइ न जाई .
इसी कारण बेचारे बगुले रुपी विषयी लोग यहाँ आते हुए हृदय में हार
मान जाते हैं क्योंकि इस सरोवर तक आने में कठिनाइयां बहुत हैं।
श्री रामजी की कृपा बिना यहाँ नहीं आया जाता।
कठिन कुसंग कुपंथ कराला ,तिन्ह के बचन बाघ हरि
ब्याला ,
गृह कारज नाना जंजाला ,ते अति दुर्गम सैल बिसाला।
घोर कुसंग ही भयानक बुरा रास्ता है ;उन कुसंगियों के
बचन ही बाघ ,सिंह और कलियुगी सांप हैं।
घर गृहस्थी का टंटा घर के 24x7 अवधि के काम-
काज ,भांति -भाँति के भ्रम और जंजाल ही अत्यंत
दुर्गम बड़े -बड़े पहाड़ हैं।
बन बहु बिषम मोह मद माना ,नदी कुतर्क भयंकर
नाना।
मोह ,मद (अहंकार )और मान ही बहुत से बीहड़ बन हैं
और नाना प्रकार के कुतर्क ही भयानक नदियाँ हैं।
ॐ शान्ति
1 टिप्पणी:
मोह ,मद (अहंकार )और मान ही बहुत से बीहड़ बन हैं
और नाना प्रकार के कुतर्क ही भयानक नदियाँ हैं।
शाश्वत ज्ञान ! आभार !
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