हरि ॐ
नमस्ते के स्थान पर कई लोग इस शब्द समुच्चय का इस्तेमाल करते हैं
जैसे कई लोग राधे- श्याम कहते हैं। ब्रह्माकुमारीज समर्थक ॐ शांति
कहते हैं।
पिताजी अक्सर क्या ,सौ फीसद सोने से पूर्व हरी ॐ कहते थे। पीते रोज़ थे
देसी ,धुत्त होने के बाद भी कहते हरी ॐ ही थे। मुझे याद है मृत्यु से पूर्व भी
उनके मुख से यही शबद समूह निकला था अंतिम बार लेटते हुए -हरि ॐ
। उससे ठीक दो
तीन
मिनिट पहले उनके मुंह में थर्मामीटर लगा था। तापमान देख पाते इससे
पूर्व ही वह गिरके टूट गया। पिताजी मेरी तरफ देखते हुए बोले -भैया मैंने
नहीं गिराया ,बिल्ली ने गिराया है।और बस पिताजी यह कहते ही लेटे और
बस उनकी ईनिंग्स समाप्त। ६८ साल की उम्र में नमोनिया (फेफड़ों के
गहरे संक्रमण )की चपेट में आये थे। भारी सिद्ध होता है इस उम्र में
निमोनिया वह तो दमा के भी मरीज़ थे।मृत्यु से छ :वर्ष पूर्व तक धूम्रपान
भी हेवी करते थे।तपेदिक होने के बाद छोड़ दिया था डॉक्टरों के कहने पर।
मैं बैठा हुआ उनके कमरे में ही चाय पी रहा था। अम्मा बोली अरे नास-पीटे
चाय ही पिए जा रहा है गए ये तो। मैं अक्सर नष्टोमोहा बन गया हूँ ऐसे
अवसरों पर। पत्नी ने जब शरीर छोड़ा था ,मेरी भी तब पूर्व अधेड़ावस्था ही
थी मैं ३८ का था वे सवा ३७ की थीं। तब भी यही विचार आया था अब क्या
करना है। करना मतलब विधि विधान ,कहाँ से क्या लाना है।
बात पिताजी की हो रही थी। मैं पांच दस मिनिट बाद ही सीढ़ी के लिए बांस
,बान , कफन आदि लाने निकल गया था।
माँ ने बाद में उलाहना दिया था -तू ने तो मुझे सांत्वना भी न दी। माँ हमारी
बहुत हौसले वालीं थीं।पिताजी तो दिखाऊ अस्त्र थे। अस्त्र अम्मा ही
चलातीं थीं।
अब वे निरस्त्र थीं ये मैं बहुत बाद में समझा।
आज गुरु आनंद से अचानक पूछ बैठा -गुरु जी "हरि ॐ "शब्द का क्या
अर्थ है। गुरूजी राजी ख़ुशी ,हाल चाल पूछने के लिए भी नमस्ते सभी के
लिए इसी एक
शब्दबंध का प्रयोग करते हैं।
"हरि भगवान के सगुण रूप का प्रतीक है ,ॐ निराकार रूप का "-गुरु जी
बोले। भगवान् के
साकार निराकार सभी रूपों की स्मृति आती है इस एक शब्द समास से।
साकार ब्रह्म मन का विषय है। मन आनंद चाहता है। लेकिन साकार में
रूप में भगवान् के
बड़ी उठापटक है कहीं युद्ध हैं कहीं कुछ और संघर्ष है जीवन का। राम को
देख लो चाहे कृष्ण के साकार रूप को। राम के साथ रावण है और कृष्ण के
साथ कंस का युद्ध है।
निर्गुण का सम्बन्ध ज्ञान से है। बुद्धि से है। बुद्धि से व्यक्ति शान्ति चाहता
है। ब्रह्मा कुमार कुमारीज़ ॐ शांति ही कहते हैं हर मौके पर। भाषण से
पहले भी बाद में भी मिलते वक्त भी विदा लेते भी।पिताजी हरि ॐ ही
कहते रहे आखिर तक। भैया विदेश में रहते हो कोई दो बात कहे तो सुन लो
झगड़ा न करना ताउम्र उनकी यही सीख रही।
ॐ शान्ति :
यह शब्द समुच्चय 'ॐ शान्ति' -आत्मा और परमात्मा दोनों के निराकार दिव्य ज्योतिर्मय शांत स्वरूप और परे से भी परे परम धाम वासी होने का परिचय करवाता है। शरीर तो आत्मा का अस्थाई निवास है मुकम्मिल पता तो शांतिधाम परमधाम ही है आत्मा का और आत्मा के पिता निराकार परम दिव्यज्योतिर्लिन्गम स्वरूप परमात्मा का।
ॐ शान्ति
नमस्ते के स्थान पर कई लोग इस शब्द समुच्चय का इस्तेमाल करते हैं
जैसे कई लोग राधे- श्याम कहते हैं। ब्रह्माकुमारीज समर्थक ॐ शांति
कहते हैं।
पिताजी अक्सर क्या ,सौ फीसद सोने से पूर्व हरी ॐ कहते थे। पीते रोज़ थे
देसी ,धुत्त होने के बाद भी कहते हरी ॐ ही थे। मुझे याद है मृत्यु से पूर्व भी
उनके मुख से यही शबद समूह निकला था अंतिम बार लेटते हुए -हरि ॐ
। उससे ठीक दो
तीन
मिनिट पहले उनके मुंह में थर्मामीटर लगा था। तापमान देख पाते इससे
पूर्व ही वह गिरके टूट गया। पिताजी मेरी तरफ देखते हुए बोले -भैया मैंने
नहीं गिराया ,बिल्ली ने गिराया है।और बस पिताजी यह कहते ही लेटे और
बस उनकी ईनिंग्स समाप्त। ६८ साल की उम्र में नमोनिया (फेफड़ों के
गहरे संक्रमण )की चपेट में आये थे। भारी सिद्ध होता है इस उम्र में
निमोनिया वह तो दमा के भी मरीज़ थे।मृत्यु से छ :वर्ष पूर्व तक धूम्रपान
भी हेवी करते थे।तपेदिक होने के बाद छोड़ दिया था डॉक्टरों के कहने पर।
मैं बैठा हुआ उनके कमरे में ही चाय पी रहा था। अम्मा बोली अरे नास-पीटे
चाय ही पिए जा रहा है गए ये तो। मैं अक्सर नष्टोमोहा बन गया हूँ ऐसे
अवसरों पर। पत्नी ने जब शरीर छोड़ा था ,मेरी भी तब पूर्व अधेड़ावस्था ही
थी मैं ३८ का था वे सवा ३७ की थीं। तब भी यही विचार आया था अब क्या
करना है। करना मतलब विधि विधान ,कहाँ से क्या लाना है।
बात पिताजी की हो रही थी। मैं पांच दस मिनिट बाद ही सीढ़ी के लिए बांस
,बान , कफन आदि लाने निकल गया था।
माँ ने बाद में उलाहना दिया था -तू ने तो मुझे सांत्वना भी न दी। माँ हमारी
बहुत हौसले वालीं थीं।पिताजी तो दिखाऊ अस्त्र थे। अस्त्र अम्मा ही
चलातीं थीं।
अब वे निरस्त्र थीं ये मैं बहुत बाद में समझा।
आज गुरु आनंद से अचानक पूछ बैठा -गुरु जी "हरि ॐ "शब्द का क्या
अर्थ है। गुरूजी राजी ख़ुशी ,हाल चाल पूछने के लिए भी नमस्ते सभी के
लिए इसी एक
शब्दबंध का प्रयोग करते हैं।
"हरि भगवान के सगुण रूप का प्रतीक है ,ॐ निराकार रूप का "-गुरु जी
बोले। भगवान् के
साकार निराकार सभी रूपों की स्मृति आती है इस एक शब्द समास से।
साकार ब्रह्म मन का विषय है। मन आनंद चाहता है। लेकिन साकार में
रूप में भगवान् के
बड़ी उठापटक है कहीं युद्ध हैं कहीं कुछ और संघर्ष है जीवन का। राम को
देख लो चाहे कृष्ण के साकार रूप को। राम के साथ रावण है और कृष्ण के
साथ कंस का युद्ध है।
निर्गुण का सम्बन्ध ज्ञान से है। बुद्धि से है। बुद्धि से व्यक्ति शान्ति चाहता
है। ब्रह्मा कुमार कुमारीज़ ॐ शांति ही कहते हैं हर मौके पर। भाषण से
पहले भी बाद में भी मिलते वक्त भी विदा लेते भी।पिताजी हरि ॐ ही
कहते रहे आखिर तक। भैया विदेश में रहते हो कोई दो बात कहे तो सुन लो
झगड़ा न करना ताउम्र उनकी यही सीख रही।
ॐ शान्ति :
यह शब्द समुच्चय 'ॐ शान्ति' -आत्मा और परमात्मा दोनों के निराकार दिव्य ज्योतिर्मय शांत स्वरूप और परे से भी परे परम धाम वासी होने का परिचय करवाता है। शरीर तो आत्मा का अस्थाई निवास है मुकम्मिल पता तो शांतिधाम परमधाम ही है आत्मा का और आत्मा के पिता निराकार परम दिव्यज्योतिर्लिन्गम स्वरूप परमात्मा का।
ॐ शान्ति
4 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर सीख.
रामराम.
आज अचानक आपने पिता जी की बातें छेड़ी हैं ... ये प्रसंग मात्र है ... वैसे माता पिता की याद आने के लिए किसी प्रसंग या बात ... या समय की आवश्यकता नहीं ... बस यूं ही पूछ बैठा ...
आपका कथन बहुत कुछ कह जाता है ...
हरि ॐ ! इस शब्द समास की व्याख्या पढकर अच्छा लगा. मेरे ससुर जी भी हरि ॐ कहते रहे मृत्यु के पहले आखिरी दिन तक.
संस्मरण और अध्यात्म का काकटेल
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