Formless vs Personal Form of God
Question .God is formless and without limiting attributes of names shapes ,and qualities .So am I right in concluding that Krishna ,Ram ,Shiv ,etc cannot be God ,for they possess a form ?
Answer :There is one supreme God ,and He is All-powerful .He has created this world around us ,which is full of shapes and forms .If God can make a world with infinite forms ,does He not have the ability to take on a form Himself ?Definitely He does !If we say that He cannot have a form ,then we don not accept Him as the All -powerful God .And if we admit that He is All -powerful,then we must also accept that He possess the power to manifest a personal form for Himself .
At the same time ,God is also formless .He exists everywhere in the world .For Him to be all -pervading ,it is necessary that He should also be without a form .
God is perfect and complete ,and so he is both -formless and possessing forms .We individual souls too have both aspects to our personality .The soul is both - formless, and yet ,it has taken on a body ;not once but innumerable times in countless past times .If we tiny souls have the ability to take on a form ,the All-powerful God can definitely take on a form whenever He wishes .
Hence ,the ,Vedas state that there are both aspects to God's personality :
dve vava brahmano rupe murtam chaivamurtam cha
(Brihadaranyakopanishad 2.3.1)
द्वे वाव ब्रह्मणों रूपे मूर्तं चैवामूर्तं च (बृहदारण्यकोपनिषद २. ३.१.)
"God is formless and All-pervading ,but He also manifests in a personal form ."In the Vedic tradition ,we are fortunate that we have descriptions of the personal forms of God ,such as Shree Krishan ,Shree Ram ,Lord Shiv ,Lord Vishnu ,etc .
प्रश्न :परमात्मा निराकार है नाम ,रूप ,गुण ,आकार की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।नाम रूप गुणों से न्यारा है , तब क्या यह माना जाय कि कृष्ण ,राम ,शिव आदि भगवान् नहीं हो सकतें हैं क्योंकि ये तो रूपाकार लिए हैं।
उत्तर :एक ही परमसत्ता है जो सर्वशक्तिमान परमात्मा कहाता है। उसी ने यह नाम रूपात्मक अनेकरूपा सृष्टि रची है। जब परमात्मा अनन्त रूपाकारों में इस संसार की रचना कर सकता है तब क्या अपनी स्वयं की रूपाकृति नहीं गढ़ सकता ?और यदि हम कहें कि वह ऐसा नहीं कर सकता फिर हमें यह भी मानना पड़ेगा कि वह बाकी सब काम कर सकता है लेकिन अपनी रूपाकृति नहीं रच सकता यानी तब उसकी एक शक्ति कम हो जाएगी वह सर्वशक्तिमान नहीं रह जाएगा। लेकिन यदि हम ऐसा मानते ही हैं कि नहीं वह सर्वशक्तिमान तो है फिर यह भी मान लेना पड़ेगा वह स्वयं भी किसी रूप प्रगट हो सकता है।
हरि अनन्त हरि कथा अनंता ,कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता ,
यह भी देखें -
सगुनहिं अगुनहिं नहिं कछु भेदा ,गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा ,
अगुन अरूप अलख अज जोई ,भगत प्रेम बस सगुण सो होई।
सगुन और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है। जो निर्गुण ,अरूप(निराकार ),अलख (अव्यक्त )और अजन्मा है ,वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है।
लेकिन साथ ही साथ परमात्मा निराकार (अरूप )है। ब्रह्म है। वह सब जगह मौजूद है सारी सृष्टि में व्यापक है। उसके इस सर्वव्यापकत्व को बनाए रखने के लिए उसका निर्गुनिया निराकार होना भी ज़रूरी है।
परमात्मा परम परिपूर्ण दोषरहित है। इसीलिए वह साकार (सगुण )और निराकार (निर्गुण )दोनों रूपों में है।
जीवात्मा भी इन दो स्वरूपों में प्रकट है। आत्मा निराकार है तथा गोचर शरीर भी धारण करता है एक नहीं अनेक बार। फिर परमात्मा तो सर्वआत्माओं का स्वामी है वह क्यों नहीं ऐसा कर सकता। इसीलिए वेद परमात्मा के दोनों स्वरूपों की पुष्टि करते हैं।
द्वे वाव ब्रह्मणों रूपे मूर्तं चैवामूर्तं च (बृहदारण्यकोपनिषद २. ३.१.)
"हरि ॐ" शब्द रूप दोनों स्वरूपों की स्मृति है "हरि" सगुन रूप विष्णु हैं तो "ॐ" निराकार ब्रह्म हैं।
ॐ शान्ति
Question .God is formless and without limiting attributes of names shapes ,and qualities .So am I right in concluding that Krishna ,Ram ,Shiv ,etc cannot be God ,for they possess a form ?
Answer :There is one supreme God ,and He is All-powerful .He has created this world around us ,which is full of shapes and forms .If God can make a world with infinite forms ,does He not have the ability to take on a form Himself ?Definitely He does !If we say that He cannot have a form ,then we don not accept Him as the All -powerful God .And if we admit that He is All -powerful,then we must also accept that He possess the power to manifest a personal form for Himself .
At the same time ,God is also formless .He exists everywhere in the world .For Him to be all -pervading ,it is necessary that He should also be without a form .
God is perfect and complete ,and so he is both -formless and possessing forms .We individual souls too have both aspects to our personality .The soul is both - formless, and yet ,it has taken on a body ;not once but innumerable times in countless past times .If we tiny souls have the ability to take on a form ,the All-powerful God can definitely take on a form whenever He wishes .
Hence ,the ,Vedas state that there are both aspects to God's personality :
dve vava brahmano rupe murtam chaivamurtam cha
(Brihadaranyakopanishad 2.3.1)
द्वे वाव ब्रह्मणों रूपे मूर्तं चैवामूर्तं च (बृहदारण्यकोपनिषद २. ३.१.)
"God is formless and All-pervading ,but He also manifests in a personal form ."In the Vedic tradition ,we are fortunate that we have descriptions of the personal forms of God ,such as Shree Krishan ,Shree Ram ,Lord Shiv ,Lord Vishnu ,etc .
प्रश्न :परमात्मा निराकार है नाम ,रूप ,गुण ,आकार की सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता।नाम रूप गुणों से न्यारा है , तब क्या यह माना जाय कि कृष्ण ,राम ,शिव आदि भगवान् नहीं हो सकतें हैं क्योंकि ये तो रूपाकार लिए हैं।
उत्तर :एक ही परमसत्ता है जो सर्वशक्तिमान परमात्मा कहाता है। उसी ने यह नाम रूपात्मक अनेकरूपा सृष्टि रची है। जब परमात्मा अनन्त रूपाकारों में इस संसार की रचना कर सकता है तब क्या अपनी स्वयं की रूपाकृति नहीं गढ़ सकता ?और यदि हम कहें कि वह ऐसा नहीं कर सकता फिर हमें यह भी मानना पड़ेगा कि वह बाकी सब काम कर सकता है लेकिन अपनी रूपाकृति नहीं रच सकता यानी तब उसकी एक शक्ति कम हो जाएगी वह सर्वशक्तिमान नहीं रह जाएगा। लेकिन यदि हम ऐसा मानते ही हैं कि नहीं वह सर्वशक्तिमान तो है फिर यह भी मान लेना पड़ेगा वह स्वयं भी किसी रूप प्रगट हो सकता है।
हरि अनन्त हरि कथा अनंता ,कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता ,
यह भी देखें -
सगुनहिं अगुनहिं नहिं कछु भेदा ,गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा ,
अगुन अरूप अलख अज जोई ,भगत प्रेम बस सगुण सो होई।
सगुन और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है। जो निर्गुण ,अरूप(निराकार ),अलख (अव्यक्त )और अजन्मा है ,वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है।
लेकिन साथ ही साथ परमात्मा निराकार (अरूप )है। ब्रह्म है। वह सब जगह मौजूद है सारी सृष्टि में व्यापक है। उसके इस सर्वव्यापकत्व को बनाए रखने के लिए उसका निर्गुनिया निराकार होना भी ज़रूरी है।
परमात्मा परम परिपूर्ण दोषरहित है। इसीलिए वह साकार (सगुण )और निराकार (निर्गुण )दोनों रूपों में है।
जीवात्मा भी इन दो स्वरूपों में प्रकट है। आत्मा निराकार है तथा गोचर शरीर भी धारण करता है एक नहीं अनेक बार। फिर परमात्मा तो सर्वआत्माओं का स्वामी है वह क्यों नहीं ऐसा कर सकता। इसीलिए वेद परमात्मा के दोनों स्वरूपों की पुष्टि करते हैं।
द्वे वाव ब्रह्मणों रूपे मूर्तं चैवामूर्तं च (बृहदारण्यकोपनिषद २. ३.१.)
"हरि ॐ" शब्द रूप दोनों स्वरूपों की स्मृति है "हरि" सगुन रूप विष्णु हैं तो "ॐ" निराकार ब्रह्म हैं।
ॐ शान्ति
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