शनिवार, 14 सितंबर 2013

अति सूधो स्नेह को मारग(मार्ग) है हिंदी -हिंदी प्रेम दिवस के उपलक्ष में घनानन्द पदावली का एक अंश सव्याख्या पढ़िए

 अति सूधो स्नेह को मारग  (मार्ग )है हिंदी  -हिंदी प्रेम दिवस के उपलक्ष में 

घनानन्द 

पदावली का एक अंश सव्याख्या पढ़िए 

अति सूधो स्नेह को मारग है ,

जहां नेकु सयानप बांक नहीं ,

कहाँ सांचे चलै ,तज आपन  को ,

झिझके कपटी जो निशांक नहीं ,

घनानंद प्यारे सुजान सुनो ,

इत एक ते दूसरो आंक नहीं,

तुम कौन सी पाटी  पढ़े हो लला ,

मन लेहु पे देहु छंटाक नहीं। 

कविवर घनानंद   ने यह छंद दरबारी नर्तकी सुजान पे मोहित होकर लिखा 

है।  कवि कहता है ये स्नेह का मार्ग बड़ा सीधा और सरल है इसमें ज़रा भी कुटिलता नहीं है छल कपट नहीं है। जो सयाना बनता है वह प्रेम नहीं कर सकता। इस मार्ग पर तो सच्चे सीधे लोग चलते हैं। जो अपनी कामना अपनी चाहत को अपने अभिमान को मिटा दे अपनी हस्ती को भुलादे वही प्रेम कर सकता है। जो कपटी होते हैं वही इस प्रेम  के मार्ग पर निस्संशय होकर नहीं चल सकते। उनके मन में शंका बनी ही रहती है। घनानंद पूछते हैं -तुमने कौन सी पट्टी पढ़ी है सारा अर्थ सारा मेरा ऐश्वर्य मेरा मन तो तुम ले लेती हो।  एक मन ही तो जीवन  का आधार होता है उस मन को तो तुम बाँध लेती हो लेकिन अपनी  खूबसूरती की एक झलक भी नहीं दिखाती हो।

यहाँ तो प्रेम मार्ग में एक ही अंक रहता है अ -द्वैत रह जाता है दूसरा होता नहीं है तीसरे और चौथे  का तो सवाल  नहीं। 

श्रृद्धा और प्रेम के समन्वय का नाम ही भक्ति है। 

ग़ालिब साहब ने कहा है -तुम मेरे पास होते हो जब कोई दूसरा नहीं होता। 

व्यवहार तो कहता है जितना लो उतना दो लेकिन तुम तो अपने एक नजर 

भी नहीं देती  हो।  


4 टिप्‍पणियां:

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

तुम कौन सी पाटी पढ़े हो लला ,

मन लेहु पे देहु छंटाक नहीं।
आदरणीय वीरेन्द्र भाई जी राम राम

सुन्दर भाव ..व्याख्या साथ आनंद दाई .... अच्छी प्रस्तुति

भ्रमर ५

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर संदर्भ..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

है जिसने हमको जन्म दिया,हम आज उसे क्या कहते है ,
क्या यही हमारा राष्र्ट वाद ,जिसका पथ दर्शन करते है
हे राष्ट्र स्वामिनी निराश्रिता,परिभाषा इसकी मत बदलो
हिन्दी है भारत माँ की भाषा ,हिंदी को हिंदी रहने दो .....

सुंदर व्याख्या ! बेहतरीन प्रस्तुति,

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Anita ने कहा…

हिंदी दिवस पर शुभकामनायें !