रविवार, 28 नवंबर 2010

मूंगा (प्रवाल या कोरल )अपनी विशेष रंगत क्यों खोने लगता है ?

व्हाट इज कोरल रीफिंग ?
इसे समझने से पहले यह समझें मूंगा ,प्रवाल या कोरल क्या है ?
एक छोटा सा समुंदरी जीव होता है जिसकी अस्थियों (हड्डियों ) से एक कठोर लाल ,गुलाबी या स्वेत कल्केरिय्स पदार्थ बनता रहता है .यही मूंगा /प्रवाल /कोरल है .मूंगा चट्टाने मूंगा से ही निर्मित होतीं हैं ।मूंगा वैसे लाल -नारंगी आभा भी लिए हो सकता है .जेवरात की रंगत बढाता है मूंगा .
ए कोरल रीफ इज ए लाइन ऑफ़ रोक़ इन दी सी फोर्म्द बाई कोरल ।
कोरल रीफ इज ए मेरीन रीफ कंपोज्ड ऑफ़ दी स्केलीतंस ऑफ़ लिविंग कोरल टुगेदर विद मिनरल्स एंड ओरगेनिक मैटर ।
अब आतें हैं इसके विरंजिकरण /रंग -विहीन होने पर .क्या खो देता है मूँगा rअन्गीनी ?
दरअसल यह कोरल द्वारा (कोरल खुद एक जैविक प्रणाली है )
उस एक कोशीय प्राणी का बहिष्करण हैं ,निर्वासन है जिसके साथ यह अभी तक सहजीवन (लिविंग टुगेदर रिलेशनशिप कायम किये हुए था )सह -वर्धन में था ,सिम्बियोतिक लिविंग
में था ।
पूरी तरह रंगहीन होकर स्वेत हो जाने पर इसकी खुद की भी मौत हो जाती है .ज़ाहिर है इस सबकी वजह बाहरी दवाब (स्ट्रेस )बनता है .स्ट्रेस के हठने पर सहजीवन फिर से शुरू हो सकता है.बहिष्कृत ओरेग्निज्म लौट आती है ।
१९९० आदि के दशक में कोरल ब्लीचिंग का सिलसिला शुरू हुआ .पता चला कोरल पर स्ट्रेस बढ़ रहा है .दुनिया भर में कोरल पारितंत्र दवाब में हैं ।
कोरल जैव -विविधता को नए आयाम जैविक प्रणालियों को पनाह देता है बा शर्ते उसे अनुकूल पर्यावरण -पारी तंत्र खुद भी रास आयें .विपरीत परिश्थिति में कोरल के संग साथ इसके गिर्द बने रहने वाले जीव (जैविक -प्रणालियाँ )भी चल बसतीं हैं .जैव -विविधता का परचम फैरा(फेहरा ) सकता है कोरल .बा -शर्ते हम इसका विरंजिकरण (ब्लीचिंग ) न होने दें .

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