शनिवार, 21 अप्रैल 2012

जानकारी :लेटेन्ट ऑटो -इम्यून डायबिटीज़ इन एडल्ट्स

जानकारी :लेटेन्ट ऑटो -इम्यून डायबिटीज़ इन एडल्ट्स
(Autoimmune diabetes in adults ,LADA)
डायबिटीज़ के कुछ डायागनोजड (रोग निदान से पुष्ट ) मामले वास्तव में लाडा(LADA) के हो  सकते  हैं  . 
कुछ लोग पतले  दुबले छरहरे हो सकतें हैं ,पचास से नीचे की भी ज़रूरी नहीं है इनके परिवार में भी डायबिटीज़ टाइप २  का  पूर्व वृत्तांत रहा आया हो ,तौल भी इनका कद काठी के अनुरूप हो सकता है ,एक्टिव भी हो सकतें हैं ये लोग लेकिन इनके शरीर में कुछ ख़ास एंटीबॉडीज की मौजूदगी एक ऑटोइम्यून रेस्पोंस की इत्तला दे सकती है .
दो से ज्यादा टाइप्स हैं डायबिटीज़ की :
लाडा एक ऐसी चिकित्सा शब्दावली है जिसका इस्तेमाल बालिगों में स्लो -मूविंग -टाइप-१ डायबिटीज़ के लिए किया जाता है .पूर्व में टाइप -१ का सम्बन्ध बालकों से ही जोड़ा जाता था इसीलिए इसे जुवेनाइल डायबिटीज़ भी कह दिया जाता था .
लेकिन इधर जब बालकों में टाइप -२ भी दिखलाई    दिया तब   रिसर्चरों  का माथा  ठनका  .पता चला टाइप -२ सिर्फ बालिगों तक और टाइप -१ सिर्फ बालकों तक सीमित नहीं हैं .टाइप -२ बालकों को और टाइप -१ बालिगों को भी हो सकता है .
बालिगों  में एक सब साईट मौजूद है जिनमें रोग निदान के बाद टाइप -१ डायबिटीज़ की पुष्टि हुई है .
अपनी डायबिटीज़ टाइप -२ को संदेह से देखिये कहीं यह लाडा तो नहीं यदि -
(१)यदि आपकी उम्र पचास से कम है .
(२)कद काठी के अनुरूप आपका तौल मान्य सीमाओं में है . आप खासे सक्रीय भी रहतें हैं अपनी दैनिकी में .

(३)आपके परिवार ऑटोइम्यून डिजीज का पूर्ववृत्तांत है यथा थायरोइड से सम्बन्धी समस्याएं ,र्युमेटोइड आर्थ -राइटिस  आदि .
(४)आपके परिवार में डायबिटीज़ -२ का इतिहास  नहीं रहा है .  
(५)आपको इंसुलिन शोट्स ही लेने पडतें हैं क्योंकि अन्य उपचार (ओरल -एंटी -डायबेटिक -मेडिकेशन ) आप पर काम नहीं कर रहें हैं .इन अन्य उपचारों को लेते रहने पर भी आपकी ब्लड सुगर में उछाला आता रहता है .
लाडा को अकसर  टाइप -२ मान   समझ   लिया    जाता है .रोगनिदान में गलती रह जाती है . 
आम  तौर  पर डायबिटीज़ के ज्यादातर  मामले टाइप -२ के ही होतें  हैं .
अमरीकी  सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन(CDC) के अनुसार अमरीका में जिन लोगों को डायबिटीज़ है उनमे से ९०-९५ फीसद मामले टाइप -२ के ही हैं . उच्च रक्त शर्करा वाले ज्यादातर बालिग़ इसी बहुलांश(बहुसंख्यक वर्ग ) का हिस्सा हैं .  
लेकिन जो लोग लाडा से ग्रस्त हैं वे इस टाइप -२ प्रोफाइल में फिट नहीं होते .
लाडा की चपेट  में होने  रहने का संदेह क्लीनिकली  उन  लोगों पर किया जाता है जो छरहरे हैं पचास से कम उम्र के हैं और जिनके  परिवार में टाइप -२ डायबिटीज़ का इतिहास भी नहीं है . लेकिन उपचार टाइप -२ डायबिटीज़ का LE रहें हैं .लेकिन सभी  स्वास्थ्य  देख रेख मुहैया करवाने वाले कर्मी  इन संदेहों  को तूल  नहीं देते  .नतीजा  होता  है अशुद्ध  रोग निदान ,गलत  रोग निदान ,इनेक्युरेट  डायगनोसिस  ,मिस  -डायगनोसिस .
कैसे उपचार किया जाता है लाडा का ?
LADA is treated like type 1 and   type 2
लाडा एक ऑटोइम्यून डिजीज है जिसमे शरीर अपने पराये का  भेद भूलकर बीटा कोशिकाओं को नष्ट करने लगता  है .अग्नाशय (Pancreas)में इंसुलिन यही बीटा कोशायें तैयार करतीं हैं .
लेकिन   टाइप   -1 के मरीजों की तरह  लाडा के मरीजों को रोग निदान के शुरूआती चरण में अकसर इंसुलिन की ज़रुरत नहीं पड़ती है .टाइप १ के बरक्स यहाँ रोग धीरे धीरे बढ़ता है .इम्यून प्रक्रिया टाइप  १ की तरह क्षिप्र नहीं होती है .लाडा के मरीजों में कुछ इंसुलिन रेजिस्टेंस तो दिखलाई दे सकता है लेकिन इनके अग्नाशय में बीटा सेल्स दिखलाई देती रह सकतीं हैं .टाइप २ की तरह इनका इलाज़ भी ओरल एंटी -डायबेटिक पिल्स के साथ शुरू किया जा सकता है . लेकिन धीरे धीरे इनकी एंटीबॉडी सेल्स और बीटा कोशाओं को नष्ट करने लगतीं हैं .ऐसे में इंसुलिन का स्तर डावांडोल होजाता है और इंसुलिन चिकित्सा ज़रूरी  हो जाती  है .
कहानी यही ख़त्म नहीं होती 
Misdiagnosis is not the end of the world
  आखिरकार (अंतत :)लाडा के मरीजों का इंसुलिन बनना बंद हो जाता है .हनी - मून  पीरियड  समाप्त  हो जाता है .यह  वह  अवधि  है जब  रक्त  शर्करा  इंसुलिन चिकित्सा के बिना  भी काबू  में आजाती  है .यह एक साल  या  और भी लम्बी  हो सकती   है .  
इंसुलिन चिकित्सा पर आने से पहले मरीज़ को तीन साल तक भी एंटी -ओरल -डायबेटिक पिल्स दी जाती रह सकतीं हैं .माहिरों के अनुसार उनके पास बिला शक ऐसे मरीज़ भी आते हैं जो लाडो से ग्रस्त रहते हुए भी इंसुलिन बना रहे होतें हैं .यह इंसुलिन बनाते रहने की अवधि अनेक (कितने ही )साल की   हो सकती है .लेकिन हनीमून  पीरियड बीत जाने के बाद खुराक कसरत और गैर -इंसुलिन चिकित्सा के चलते भी रक्त शर्करा में उछाला आता रहता है यह नियंत्रित नहीं हो पाती है .
एंटीबॉडीज बहुत ज्यदा तादाद में बीटा कोशाओं को नष्ट कर डालतीं हैं ऐसे में एक ही उपाय रह जाता है -इंसुलिन ,इंसुलिन और इंसुलिन .
शुरू में ही सही रोग निदान हो जाए लाडो का तो बहुत सारी मुश्किलातें हल हो जाएँ .सही रोग निदान बेशक  भ्रम  और हताशा   से बचाए   रह सकता है .लेकिन ऐसा  न हो पाने  पर भी महत्वपूर्ण  बात  है ब्लड  ग्लूकोज़  पर नियंत्रण  बनाए   रहना  .कुशल प्रबंधन ज़रूरी है डायबिटीज़ का इंसुलिन से भले मरीज़ को लाडा हो न हो .ज़रूरी होने पर इंसुलिन चिकित्सा शुरू करने में संकोच नहीं होना चाहिए .
दुनिया समाप्त नहीं हुई है गलत रोग निदान से 
Misdiagnosis is not the end of the world
लाडा से ग्रस्त logon को गलत रोग निदान से हनीमून पीरियड बीतने के बाद हताशा घेर सकती है अपनी स्थिति के बारे में भ्रम पैदा हो सकता है .वह सोच सकते हैं आखिर डायबिटीज़ कम्युनिटी में उनका स्थान क्या है ,कहाँ है ? कई ओं लाइन फोरम की शरण में चले आते हैं ताकि लाडा के बारे में और अधिक जान सकें लाडा कम्युनिटी के साथ अपने संवेगों को सांझा कर सकें .
Misdiagnosis :
  People with LADA usually see a spike in glucose levels ,despite their efforts to control them with diet ,exercise ,and non -insulin medications.
अब  करें तो करें क्या ?
यदि आपको संदेह है की आप लाडा से ग्रस्त हो गएँ हैं तब -
(१)C-peptide टेस्ट  कराएं  ,पता  चल  जाएगा  आपका  अग्नाशय  कितना  इंसुलिन  बना  रहा     है   .  
(२)GAD antibody test :गेड एंटीबॉडी टेस्ट करवाएं .नतीजा पोजिटिव आने का मतलब होगा आपके शरीर में ऐसी  कोशायें मौजूद हैं जो आपके इम्यून सिस्टम (रोग रोधी  - तंत्र  ,रोगप्रतिरक्षा  प्रणाली  )को ही निशाने  पे ले रहीं  हैं . 
(३)ऐसे स्रावीतंत्र के  माहिर (Endocrinologist)के पास पहुँचिये जो लादा का भी माहिर हो .
(४) ऐसा न हो पाने के स्थिति  में  अपने रक्त शर्करा के स्तरों   और Hg A1C रिपोर्टों पर नजर रखिये .लक्ष्य पूरे न हो पाने  की स्थिति  में उपचार बदल दीजिये .
लादा से जुड़े अनेक सवाल अभी अन -उत्तरित हैं :
क्या  इसे  टाईप   १.५  डायबिटीज़  कहा जा सकता है ?
या फिर यह ठीक टाईप  १ ही है ?कुछ माहिरों के अनुसार इसे टाईप १.५  कहना इसलिए समीचीन नहीं है क्योंकि यह एक ऑटो -इम्यून डिजीज है .टाईप २ से इसकी नजदीकी बस इतनी ही है की इसका शुरूआती इलाज़ टाईप २ की तरह ही शुरू होता है .गैर इंसुलिन चिकित्सा से शुरू होता है .कुछ इससे  इत्तेफाक  न रखते  हुए  इसे टाईप २ के ही ज्यादा  नज़दीक  मानते   हैं .इनका तर्क है रिसर्च  ही लाडा  को टाईप १ से अलग रख रही  है .
टाईप १ जींस टाईप २ डायबिटीज़ के जींस से अलग हैं .
जो जीन लाडा में एहम भूमिका में है वह टाईप २ डायबिटीज़ जीन ही है .
दूसरी अनिश्चयता इसके (लाडा )के मरीजों की % को लेकर है .कुछ माहिर इसे कुल ९०-९५ %टाईप २ मरीजों  का ५% ,कुछ अन्य कुल मधुमेहियों का १०% बतला रहें हैं .रिसर्चरों के लिए असली समस्या इसका अंडर -डायगनोज्द बने रहना है .क्लिनिकल ट्रायल्स के लिए इनकी पापयुलेशन कहाँ से लाई जाए .असली समस्या यह है .
 

7 टिप्‍पणियां:

Aruna Kapoor ने कहा…

डायाबितीज के बारे में बहुत उपयुक्त और विस्तृत जानकारी आपने उपलब्ध कराई है....आभार!

SANDEEP PANWAR ने कहा…

आज का लेख लम्बा था लेकिन हमेशा की तरह पूरा का पूरा ज्ञान से भरा हुआ है, आज आपसे जानना चाहता हूँ कि यदि किसी मानव का गला अचानक से बैठ जाये यानि कि आवाज निकलना बन्द हो जाये तो गले में हल्का हल्का दर्द भी खरास जैसा तो उस समय क्या उपाय करना चाहिए?
पैर में डील के लिये कोर्न कैप लगा रहा हूँ दो बदल चुका हूँ दर्द समाप्त हो गया है पुरानी खाल जली हुई दिखाई दे रही है अभी कितनी और बदलनी होगी?

virendra sharma ने कहा…

संदीप भाई वह नै खाल है .चाहें तो खुला छोड़ दें .सादा बैंड ऐड भी एक बार लगाके रख सकतें हैं ताकि धुल मिटटी न लगे नै चरम पर .सोते वक्त पैर धोएं ,घी लगाकर मालिश करें हलके से , सूती मौजे पहनें .
आवाज़ के बैठने गला खराश और हलकी दुखन के लिए इसे आजमा सकतें हैं -एक चाय का चम्मच भरके त्रिफला चूर्ण ,आधा चम्मच मुलेठी पाउडर , तुलसी पत्ते पीसकर आधा चम्मच इसकी पेस्ट अब तीनों को शहद में मिलाकर चाटें .फायदा होगा .ठंडी चीज़ें ठंडा पानी फ्रिज का ,बर्फ आदि ,कोल्ड ड्रिंक्स बिलकुल नहीं .सादा गुण गुना /गर्म पानी भी फायदा देगा .

डॉ टी एस दराल ने कहा…

बढ़िया जानकारी दी है वीरुभाई जी ।
अक्सर देखने में आता है कि एक लम्बी अवधि के बाद टाईप २ डायबिटिज में भी यही हालात बन जाते हैं जब इंसुलिन बनना बंद हो जाता है । ऐसे में इंसुलिन के टीके ही लगाने पड़ते हैं ।

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

अच्छी जानकरी.... सचेत करती पोस्ट

Arvind Mishra ने कहा…

डायबिटीज पर नयी और महत्वपूर्ण जानकारी

दिगम्बर नासवा ने कहा…

डायबिटीज़ के बारे में आज तो बहुत ही विस्तृत रूप से लिखा है आपने ...
कुछ कुछ समझ आ जाता है ध्यान रखने वाली बातें तो खास के समझ आ जाती हैं ...
राम राम ..