ये कथन की भंगिमा नहीं आपराधिक मामला है .
फेस बुक पर इन दिनों तकनीक के कुछ निकृष्ठ तम नमूने देखने में आरहें हैं .मोर्फ्स (मोर्फिंग )फटोशॉप आदि का स्तेमाल करके एक तरफ मनमोहन -सोनिया को अशोभन दैहिक मुद्रा (मैथुनी )में तो ठीक उनके सामने लालू -मायावती को इसी दैहिक भंगिमा में दिखलाया गया है .
बेशक सोनिया गाँधी लोगों की पहली पसंद नहीं है और न ही मनमोहन सिंह जी जिन्हें लोग हिकारत की नजर से रीढ़ विहीन रोबोट मानने लगें हैं .
लेकिन राजनितिक गिरावट और नापसंदगी का न तो यह स्वीकृत तरीका है और न ही इसे कथन की भंगिमा या कोई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति कहा जा सकता है .
इस आदमी की जिसने यह आकृतियाँ परोसीं हैंआकृति विज्ञान गढ़ा है डॉक्टर किया है खुद की मैथुनी क्षमताओं की जांच होनी चाहिए .
यह सब इस और इस प्रजाति के कई और होमियो -सेपियंस की रुग्णमानसिकता का प्रक्षेपण है .अधुनातन प्रोद्योगिकी का एब्यूज तो है ही .ऐसे तमाम व्यक्तियों (शातिरों )का इलाज़ होना चाहिए .
यह (इस तरह का प्रदर्शन नाम चीन लोगों का भले वह शुभंकर न हों )सीधे -सीधे आपराधिक मामला बनता है .साइबर क्राइम के दायरे में आता है .इसकी जांच होनी चाहिए .इस दिग -दर्शन में न तो कोई कथ्य है न कथन की मुद्रा है .विकृत मनो -विज्ञान है .हम एक चिठ्ठाकार के नाते ऐसे गोबर गणेशों का सरयू तट पर तर्पण करतें हैं .लेकिन इसकी और ऐसे और मामलों की आड़ में फेस बुक जैसे सोशल मीडिया पर प्रतिबंध की मांग और उसका समर्थन नहीं कर सकते .फेस बुक का अपना लोक तंत्र है .उकील साहब जो अलापें सो अलापें .
गौर तलब है 'नारी 'ब्लॉग पर भी आज यह मामला उठाया गया है .
फेस बुक पर इन दिनों तकनीक के कुछ निकृष्ठ तम नमूने देखने में आरहें हैं .मोर्फ्स (मोर्फिंग )फटोशॉप आदि का स्तेमाल करके एक तरफ मनमोहन -सोनिया को अशोभन दैहिक मुद्रा (मैथुनी )में तो ठीक उनके सामने लालू -मायावती को इसी दैहिक भंगिमा में दिखलाया गया है .
बेशक सोनिया गाँधी लोगों की पहली पसंद नहीं है और न ही मनमोहन सिंह जी जिन्हें लोग हिकारत की नजर से रीढ़ विहीन रोबोट मानने लगें हैं .
लेकिन राजनितिक गिरावट और नापसंदगी का न तो यह स्वीकृत तरीका है और न ही इसे कथन की भंगिमा या कोई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति कहा जा सकता है .
इस आदमी की जिसने यह आकृतियाँ परोसीं हैंआकृति विज्ञान गढ़ा है डॉक्टर किया है खुद की मैथुनी क्षमताओं की जांच होनी चाहिए .
यह सब इस और इस प्रजाति के कई और होमियो -सेपियंस की रुग्णमानसिकता का प्रक्षेपण है .अधुनातन प्रोद्योगिकी का एब्यूज तो है ही .ऐसे तमाम व्यक्तियों (शातिरों )का इलाज़ होना चाहिए .
यह (इस तरह का प्रदर्शन नाम चीन लोगों का भले वह शुभंकर न हों )सीधे -सीधे आपराधिक मामला बनता है .साइबर क्राइम के दायरे में आता है .इसकी जांच होनी चाहिए .इस दिग -दर्शन में न तो कोई कथ्य है न कथन की मुद्रा है .विकृत मनो -विज्ञान है .हम एक चिठ्ठाकार के नाते ऐसे गोबर गणेशों का सरयू तट पर तर्पण करतें हैं .लेकिन इसकी और ऐसे और मामलों की आड़ में फेस बुक जैसे सोशल मीडिया पर प्रतिबंध की मांग और उसका समर्थन नहीं कर सकते .फेस बुक का अपना लोक तंत्र है .उकील साहब जो अलापें सो अलापें .
गौर तलब है 'नारी 'ब्लॉग पर भी आज यह मामला उठाया गया है .
10 टिप्पणियां:
मर्यादित रहना ही होगा |
अन्यथा इस औजार को भी खो बैठेंगे ||
इसके जरिये जो भले काम हो रहे हैं वे भी रुक जायेंगे ||
शुभकामनायें |
बढ़िया प्रस्तुति |
ऐसी ही बदमिजाज़ी के कारण सरकार सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर शिकंजा कसने की बात सोचती है।
अत्यंत आपत्तिजनक
वीरूभाई आपकी इस मुहिम में मैं भी अपना विरोध दर्ज़ करता हूं।
एकदम सही कहा सर... इस प्रकार के कृत्य न केवल अनुचित हैं बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत के मद्देनजर अशोभनीय और निंदनीय भी... ऐसे ही उदाहरणों को लेकर समस्त अंतर्जालीय अभिव्यक्तियाँ निशाने पर आ जाती हैं...
सादर.
निश्चित ही अशोभनीय एवं शर्मनाक,
ऐसे लोग ही मौका देते हैं सरकार को
सोशल नेटवर्किंग साइड पर प्रतिबंध लगाने
की बात करने के लिये....
तकनीक का दुरूपयोग हो रहा है भाई जी .
शैतानों की कहाँ कमी है यहाँ .
सही कहा अपने आपत्ति जातने का यह कोई तरीका नहीं मगर यही हो रहा है आजकल जिसके कारण सरकार सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर रोक लागने के बारे में सोचती है...जिसकी वजह से गेहूं के साथ घुन की तरह आम जनता भी पीस जाती है।
we need to ignore them its good that you have not given the link to them
सच है, मामला आपराधिक है, संस्कृति का भी कोई मान नहीं इन्हें।
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