कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र
-- भाग दो –
ब्रांड्स अकादमी कर्नाटक द्वारा प्रदत्त Best Holistic Centre In Bangalore के Service Excellence Award, 2011 से सम्मानित कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र ( KSCT - CURE FOR INCURABLES ) के खोजकर्ता व निदेशक शेखर जेमिनी से एक लम्बी बातचीत पर आधारित रिपोर्ताज :
KSCT किन अर्थों में सर्वथा नवीन मौलिक, सुरक्षित, निरापद एवं रोगों का समूल नाश करने वाली पद्धति है ?
KSCT के अनुसार शरीर में उत्पन्न व्याधि के तीन प्रमुख कारण / प्रकार इस प्रकार हैं :
( १ ) अनुवांशिक / खानदानी (GENETIC /HEREDITARY)
( २ ) बाहरी संक्रमण
( ३ ) जीवन शैली
इनमें से जब किसी भी कारण से शरीर में मौजूद प्राकृतिक रंग-संयोजन (spectrum) का अनुपात बदल जाता है तो बीमारी आती है । सभी स्वस्थ जीव-धारियों में रंगों का ये संयोजन प्रकृति में मौजूद रंग-संयोजन का हू-ब-हू प्रतिरूप है | यह रंग-संयोजन सभी जीवित पदार्थों से ये उत्सर्जित होता रहता है और उसे एक अलग शख्शियत, पहचान तथा वैशिष्ट्य प्रदान करता है | साथ ही, उसके वर्तमान स्वास्थ्य की अवस्था की भी आधारभूत प्रामाणिक जानकारी देता है | इस वर्तमान स्वास्थ्य की अवस्था के रंग-संयोजन का अध्ययन करने के लिए बहुत सारे माध्यम हैं । उनमें BODY FLUIDS मसलन रक्त, मूत्र, वीर्य, अस्थि मज्जा, अश्रु, लार, पसीना इत्यादि सर्वाधिक व्यावहारिक और प्रामाणिक हैं । यूँ व्यक्ति विशेष के अँगूठे का निशान व उसका छाया चित्र भी प्रिज्म (Prism) के माध्यम से उसके रंग-संयोजन की कुछ हद तक जानकारी दे सकते हैं ।
KSCT के द्वारा इसी रंग-संयोजन का आवश्यकतानुसार उपरोक्त माध्यमों से विषद अध्ययन किया जाता है तथा रोग के कारण प्रभावित, रोगी के शरीर की वर्तमान स्वास्थ्य दशा का पता लगाया जाता है । इसके बाद उस रोगी विशेष तथा उसके रोग विशेष की दवा का फोर्म्युलेशन (सूत्रीकरण ) तैयार किया जाता है और फिर अंतत: उस सूत्रीकरण से उस रोगी एवं रोग विशेष की अत्याधुनिक पद्धति से दवा का निष्पादन किया जाता है ।
क्योंकि KSCT दुनिया की ऐसी पहली व एकमात्र चिकित्सा पद्धति है जो दवाई का उत्पादन शत-प्रतिशत व्यक्ति विशेष के लिए करती है, जिसके कारण यह दवाई सर्वाधिक प्रभावी, सटीक और किसी भी पार्श्व प्रभाव से मुक्त रहती है । अर्थात KSCT का एक मात्र दावा यही है कि उसकी दवा किसी भी हानिकारक प्रतिक्रिया से मुक्त रहते हुए रोग को समूल नष्ट करने की दिशा में कार्य करती है |
जिन बीमारियों का अब तक KSCT के अंतर्गत सफलता पूर्वक उपचार हुआ है, उनमे से कुछ इस प्रकार हैं :
( १ ) Diabetes : Type 1 and 2
( २ ) HIV+ संक्रमण
( ३ ) All cancers - मुख्यत: सभी प्रकार के Blood Cancers
( ४ ) Chronic renal failure ( Kidney failure, Nephritis )
( ५ ) Rheumatism ( Rheumatoid Arthritis )
( ६ ) SLE ( Systemic Lupus Erythematosus )
( ७ ) ILD ( Interstitial Lung Disease )
( ८ ) Almost all skin diseases ( सभी चमड़ी रोग )
( ९ ) Hair Problem
( १० ) Endocrinological Problems ( स्रावी तंत्र से जुड़ी समस्याएँ)
( ११ ) Kidney, Gall Bladder and Liver Stones
( १२ ) Spondylitis
( १३) Piles ( बवासीर )
( १४ ) Jaundice / Hepatitis
( १५ ) Erectile dysfunction ( लिंगोथ्थान अभाव )
( १६ ) Premature ejaculation and Infertility
( १७ ) Asthma ( दमा )
( १८) General allergies and respiratory problems
( १९) Parkinson’s disease
( २० ) Sciatica Pain
( २१ ) Varicose Veins
( २२ ) Oligospermia
( २३ ) Hydrocephalus
( २४ ) Multiple sclerosis
( २५ ) Seizure disorder ( Epilepsy )
( २६ ) Macular degeneration
( २७ ) Cataract
( २८ ) Glaucoma
( २९ ) Digestive Problems and Constipation
KSCT के अंतर्गत किसी भी बीमारी के इलाज़ की न्यूनतम एवं संभावित अधिकतम अवधि कितनी रहती है ?
साधारण तथा सामान्य बीमारियों यथा पाचन सम्बन्धी, कब्ज़, बालों का झड़ना, चमड़ी की एलर्जी इत्यादि की चिकित्सा के लिए न्यूनतम अवधि कम से कम ४ से ६ महीने तक तथा जटिल रोगों की चिकित्सा के लिए न्यूनतम अवधि १ से २ वर्ष तक ।
संपर्क सूत्र :
KSCT - CURE FOR INCURABLES
NO.144, FIFTH CROSS, BHEL LAY OUT, AMBA BHAVANI ROAD,
(NEAR SAMBHRAM INSTITUTE OF TECHNOLOGY - VIA M.S.PALYA),
VIDYARANYAPURA POST
BANGALORE-560-097
Phones : 8065701791, 9341260175, 8023648487
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8 टिप्पणियां:
seems to be unrealistic.
Dr. T.S. Daral,
" seems to be unrealistic."
Thanks for being skeptical...
I would have commented the same as yours, had I been one of the readers, like you.
But I would appreciate more if you could be more specific in your skeptical areas...
I don't say that I would convince you but surely I would try my best to be most honest, realistic and factual also, as well.
Thanks again for your interest shown.
Regards,
SHEKHAR GEMINI
डॉ .दाराल सा ! यह भेंट वार्ता हमने कोई उत्तेजना पैदा करने के लिए कंडक्ट नहीं की है .एक सार्थक विमर्श आगे बढे और हम किसी नतीजे पर पहुंचेमनसा यही रही है .
लोक चिकित्सा की एक पांच हज़ार साला मौखिक परम्परा रही है .
मैंने मेडिसन के एक परिचित प्रोफ़ेसर साहब को होमियोपैथिक मेडिसन पूरी निष्ठा के साथ लेते देखा है .अमरीका प्रवास के दौरान देखा एक साइंटिस्ट पूरी निष्ठा के साथ एक मेक्सिकन चटनी बनाके लाये .कहने लगे सेहत के लिए रामबाण है .फलां चीज़ के लिए इस्तेमाल की जाती है ,फलां के लिए की जाती है ./यह लोक चिकित्सा बोल रही थी उनके अन्दर से .एक्सपेरिमेंटल मेडिसन ही लिए आगे बढती है . ये लोक चिकित्सा .अधुनातन चिकित्सा भी .
भले भौतिक विज्ञानों को मानस पाठ की तरह आँख मूँद नहीं समझा जा सकता .लेकिन किसी भी प्रणाली को आजमाने से पहले एक आस्था भी तो ज़रूरी है . वरना प्लेसिबो प्रभाव का क्या होगा .
जेहि के जेहि पे सत्य सनेहू ,खोजहिं मिले न कछु संदेहू .
संदेह कीजिए .संदेह से ही वैज्ञानिक चेतना आगे बढती है .
बहुत ही सुन्दर लगी पोस्ट।
नयी जानकारी मिली ....
आभार भाई जी
वीरुभाई जी , इस विषय में तर्क वितर्क में पड़ना शायद उचित नहीं होगा . हमारा देश ही श्रद्धा , विश्वास और भक्ति भावना पर चल रहा है . लेकिन फेथ हीलिंग में हम तो विश्वास नहीं कर सकते . यहाँ बताये गए रोगों के तीन कारण तो सही हैं . लेकिन अनुवांशिक / जेनेटिक defects को कैसे सही किया जा सकता है , यह मेरी समझ से बाहर है .
संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल ज़रूरी है वर्ना यह लाइफ threatning हो सकता है . ऐसी स्थिति में किसी को यह सलाह नहीं दी जा सकती की वह कोई विकल्प का सहारा ले .
लाईफ स्टाईल मोडिफिकेशन तो सबके लिए ज़रूरी है . लेकिन यह बस स्वस्थ रहने में सहायक होता है , उपचार नहीं . बताये गए अधिकतर रोगों को कंट्रोल तो किया जा सकता है लेकिन उल्मूलन नहीं . कुछ रोग सेल्फ लिमिटिंग होते हैं , कुछ सायकोलोजिकल , कुछ खाली मन का वहम .
अंत में यही कह सकता हूँ --गुड़ ना दे , गुड़ जैसी बात तो करे . लेकिन अफ़सोस स्वास्थ्य के मामले में यह कहावत फिट नहीं बैठती .
पता नहीं ये पोस्ट आपने क्यों लिखी !
कृपया अन्यथा न लें . न ही शेखर जी से कोई शिकायत है .
लोक चिकित्सा की समीक्षा गुणीजन कर रहें हैं यह क्या कम है .भारतीय मूल की चिकित्सा पद्धतियों को राज्य का आसरा उस तरह नहीं मिल सका जैसा अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति (अलोपैथी )ले गई.समीक्षा तो ज़रूरी थी .शेष शेखर जी बतलाएं .
डॉ टी एस दराल क़ी सेवा में प्रस्तुत सादर
प्रतिवेदन :
“इस विषय में तर्क वितर्क में पड़ना शायद उचित नहीं होगा… हमारा देश ही श्रद्धा, विश्वास और भक्ति भावना पर चल रहा है. लेकिन फेथ हीलिंग में हम तो विश्वास नहीं कर सकते.”
बिलकुल सही कहा जनाब ने... ' फेथहीलिंग ' या ' प्लेसिबो इफेक्ट ' को चिकित्सा पद्धति का दर्ज़ा नहीं दिया जा सकता... हाँ, ये मरीज़ की हौसला-अफ़ज़ाई के लिए अच्छे हैं |
“लेकिन अनुवांशिक / जेनेटिक defects को कैसे सही किया जा सकता है, यह मेरी समझ से बाहर है.“
हुज़ूर को याद दिला दूँ कि आज जेनेटिक्स पर सर्वाधिक शोध-कार्य चल रहा है और जेनेटिक-कोड के साथ ख़ासी छेड़खानी भी क़ी जा रही है | इस नाचीज़ ने भी इस दिशा में कुछ ठोस उपलब्धि हासिल कर ली है, इसमें आपत्ति-जनक क्या है...?
क्या समस्त शोध-कार्य अमेरिका व पश्चिमी जगत पर जाकर समाप्त हो जाते हैं..?
ऐसा क्यूँ है कि हमारी खोजों पर संदेह करने का अधिकार सिर्फ़ पश्चिमी देशों को या उन जैसी सोच रखने वाले अन्य लोगों को तो है, लेकिन नयी खोज व शोध के नाम पर जो कुछ भी ( चाहे वो कचरा ही क्यूँ न हो ) पश्चिम से आता है, उसे हम बिना किसी संदेह के, बिना skeptical हुए सर-माथे से लगा लेते हैं |
और साथ ही स्थानीय शोध-कार्य को सिरे से ही नकारने क़ी पूरी कोशिश करते हैं, उसे अपनी बात वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करने की भी सुविधा देने में ख़ासी कंजूसी बरतते हैं |
“ संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल ज़रूरी है वर्ना यह लाइफ threatening हो सकता है. ऐसी स्थिति में किसी को यह सलाह नहीं दी जा सकती कि वह कोई विकल्प का सहारा ले.”
और जहाँ एंटीबायोटिक्स भी किसी संक्रमण को काबू करने में आंशिक या पूर्णतः नाकामयाब रहे तो ? तो क्या वहाँ भी " किसी को यह सलाह नहीं दी जा सकती कि वह कोई विकल्प का सहारा ले.” ...???
ऐसे एक नहीं, हज़ारों उदहारण दिए जा सकते हैं, जहाँ एंटीबायोटिक्स कई एक संक्रमरणों पर पूरी तरह से नाकामयाब रही है अथवा उसके कारण हुईं प्रतिक्रियाएं व पार्श्व प्रभावों ने मरीज़ के स्वास्थ्य पर बुरी तरह से नकारात्मक असर डाला है |
तो क्या ऐसी अवस्था में भी हमें ऐलोपथी या उसकी तथाकथित जीवन-रक्षक ( अथवा स्वास्थ्य - भक्षक...???) दवाओं की अंध-भक्ति करनी चाहिए...?
“ लाईफ स्टाईल मोडिफिकेशन तो सबके लिए ज़रूरी है . लेकिन यह बस स्वस्थ रहने में सहायक होता है , उपचार नहीं.”
बज़ा फ़रमाया..!
“ बताये गए अधिकतर रोगों को कंट्रोल तो किया जा सकता है लेकिन उल्मूलन नहीं.”
सिर्फ़ ऐलोपथिक नज़रिए से.. और ऐलोपथिक नज़रिया चिकित्सा जगत में न पहला है और न ही अंतिम... हाँ लोगों को इसके सम्मोहन जाल तथा ' एकमात्र जीवन रक्षक औषधि ' वाले दृष्टिकोण से बाहर आकर भी देखने क़ी ज़रुरत है |
“ कुछ रोग सेल्फ लिमिटिंग होते हैं , कुछ सायकोलोजिकल , कुछ खाली मन का वहम .
अंत में यही कह सकता हूँ --गुड़ ना दे , गुड़ जैसी बात तो करे . लेकिन अफ़सोस स्वास्थ्य के मामले में यह कहावत फिट नहीं बैठती.”
रोग की इन तीनों ही अवस्थाओं में " --गुड़ ना दे , गुड़ जैसी बात तो करे.." वाली कहावत बहुत हद तक कारगर सिद्ध हुयी है |
हाँ, स्वास्थ्य ( या बीमारियों के..? ) के बाकी मामलों में सिर्फ़ गुड़ वाली बात से काम नहीं चल सकता, समुचित दवाओं का सेवन तथा पथ्य एवं उचित परिचर्या परमावश्यक हो जाती है |
“ पता नहीं ये पोस्ट आपने क्यों लिखी ! “
लेख-लिखी को वीरुभाई जाने..!!!
“ कृपया अन्यथा न लें . न ही शेखर जी से कोई शिकायत है.”
अंत में, आप से भी ( और आप सब विज्ञ जनों से से भी ) गुज़ारिश है कि मेरे प्रतिवेदन को कृपया अन्यथा न लें और न ही इसे किसी भी अर्थ में, मेरी तरफ से किसी के भी प्रति, किसी भी प्रकार की शिकायत समझा जाए...!
शेखर जेमिनी के प्रणाम
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