शनिवार, 7 अप्रैल 2012

वो हमारा दोस्त ही नहीं हमस्वभाव भी है .

वो हमारा दोस्त ही नहीं हमस्वभाव भी है .सावधानी हटी दुर्घटना घटी .कहतें हैं स्वान (कुत्ते   )के पास एक छटा इन्द्रिय बोध होता है लेकिन यह वहीँ तक और  तभी तक काम करता है जहां तक स्वान का अपने ऊपर नियंत्रण है .वह सोच विचार देखभाल कर बिफर रहा है ,स्थिति के अनुरूप .संयम हटने पर वह भी बे -काबू हो जाता है. उसका व्यवहार भी आवेग संचालित हो जाता है .और अपने अनजाने ही वह अपने को संकट में डाल लेता है .
ऐसा ही हमारे साथ होता है .
बिना विचारे जो करे ,सो पाछे पछताए ,
काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हँसाय.
बात हमारे परम मित्र और ब्लड प्रेशर कम करने  वाले वफादार साथी स्वान की हो रही थी . साइंसदानों  के मुताबिक़ वह भी अनेक बार विचार से नहीं प्रेक्षण से नहीं आवेग से ,इम्प्ल्ज़ से हांका जा ता है और अपने आपको मुसीबत में डाल लेता है .
University of Lille Nord de France के  रिसर्चरों  का  यह  अध्ययन  journal  Psychonomic Bulletin & Review में छपा है तथा संयम के जैविक पक्ष जैविक बुनियाद को पुष्ट करता है .
जब आदमी अपने खुद के ऊपर से नियंत्रण खोने लगता है तब वह औरों की सहायता के लिए कम तत्पर होता है आक्रामक ज्यादा हो जाता है औरों के प्रति .जूआ खेलने लगता है बेहिसाब पीने लगता है और भी बहुत कुछ अ -प्रत्याशित कर जाता है .  
इस अंजाम की जैविक बुनियाद जैविक आधार  मौजूद रहा है .ठीक ऐसे ही स्वान संयम खोके बे -काबू होने पर उतावला हो जाता है आगा पीछा सोचे बिना व्यवहार करने लगता है .असावधान हो जाता है .
आप    जानते ही हैं सावधानी हटी दुर्घटना घटी .
रिसर्चरों ने  अपने प्रयोग  10 पालतू  स्वानों  पर किए थे .जैसे आदमी थका होने पर प्रश्नोत्तरी के हल निकालना छोड़ भाग खडा होता है पहेली बुझौवल भूल भाग खडा होता है ऐसे ही स्वानों को जब बैठे -बैठे  कोई पाठ सिखाया जाता है  .तब वह भाग खड़े होते हैं बरक्स उस स्थिति के जब उन्हें अपने पर संयम की ज़रुरत न हो .वह देर तक दिए गए काम को करते बूझते रहतें हैं.
सन्दर्भ -सामिग्री :-LIKE US DOGS TOO NEED SELF CONTROL /THE TIMES OF INDIA ,BANGALORE ,APRIL 6,2012.
राम राम भाई !  राम राम भाई !

 

शनिवार, 7 अप्रैल 2012

कहाँ ले जायेगी हमें ये अंध आसक्ति ,वस्तु रति ,गेजेट प्रेम ?

कहाँ ले जायेगी हमें ये   अंध  आसक्ति  ,वस्तु रति ,गेजेट प्रेम ?क्या आदमी को ऊर्जा हीन ,उत्साह च्युत सोचने समझने में असमर्थ बनाके छोड़ेगी .
मुझे याद है जब मैं पहली मर्तबा अपमे यू. एस .प्रवास     के बाद भारत लौटा था ,मेरे पास एक बेटरी चालित टूथ ब्रश था बस पेस्ट  लगाके आप एक स्विच दबा दो   और ब्रश अपने सही एक्शन में दांत साफ़ करने लगता था ,तब एक सुग्य  विदूषी महिला के मुख से सहज भाव निकला था भाई साहब आलस्य   की भी हद है ये गोरे दांत साफ़ करने के लिए हाथ भी नहीं हिलाना चाहते .
आज इस विदूषी  महिला को यदि बतलाऊँ ,की ऐसे स्मार्ट लेंस (वास्तव में फ्रेम मात्र जिनमे कोई लेंस नहीं है )  का प्रारूप गूगल ने बना लिया है जिसमे इलेक्त्रोनिकी की मदद  ली   गई है .जो अभिनव जैव नैनो प्रोद्योगिकी का करिश्मा है जिसके तार न सिर्फ सीधे   इंटरनेट   से जुड़े हैं ,गूगल मैप से भी  जुड़े हैं ,जो कैमरा भी है ,टी .वी भी ,रीयल टाइम मैप भी ,बस एक बटन भर दबाने की देर है .औग्मेंतिद रियलिटी हाज़िर है .आँखों के आगे एक परदे पर जिसे मात्र एक चश्मे के फ्रेम की तरह पहना ओढा गया है .
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ वह जैव -नैनो -गिज्मो   आपको  दिखाता  हूँ -तब क्या हो  ?वह मोहतरमा  दांतों  तले ऊंगली  दबा  ले .
ये फ्यूजन है टेक्नोलोजी का ,मिश्र है जैव -नैनो -प्रोद्योगिकी का जहां फेरबदल आणविक संरचना के स्तर पर करके द्रव्य  के गुण धर्म बदल दिए गए है .
इसे  प्रोजेक्ट  कोंटेक्ट  लेंस कहा  जा  रहा   है .यही   है भविष्य   की टेक्नोलोजी .नाइके ने इसी बरस एक कंगन ,ब्रेसलेट की बिक्री शुरू की थी जो आपकी हर गतिविधि पर नजर रख सकता है .
तो  ज़नाब अब रेप अराउंड ग्लासिज़ का दौर आने वाला है मज़े दार बात  यह है इसमें लेंसिस नहीं होंगे सिर्फ फ्रेम होगा .इसी में नैनो कैमरे फिट होंगे 'ऑन लेंस डिस्प्ले होगा मनमाफिक आंकड़ों का .
गूगल जल्द से जल्द   व्यवहार  में लाये  जाने   लायक   प्रोद्योगिकी का हिमायती   है , दस साला खाब नहीं बेचता है एपिल की तरह .ये दोनों निगमों का टेक युद्ध है .
साइंस फिक्शन टॉय का युग दस्तक देने लगा है .
गत दशक की एक हालीवुड फिल्म 'माइन्योरिती रिपोर्ट में 'एक पात्र हस्त मुद्रा से एक फ्लोटिंग कंप्यूटर के सारे आंकड़े बदल देता है .
हम ऐसे ही ह्यूमेन कंप्यूटर इंटर फेस में प्रवेश ले रहें हैं .कुछ, कह सकतें हैं यह प्रोद्योगिकी की अति है ,अपच है, ओवर डोज़ है .कहाँ जाके रुकेगी यह प्रोद्योगिकी की भूख ?
घिसा पिटा फेशन बन रही है प्रोद्योगिकी .प्रकृति से पर्यावरण से हम कटते जा रहें हैं .साइबर स्पेस के होके रह गए हैं हम .स्मार्ट फोन्स ,आई -फोन्स ,आई -पैड्स क्या कम थे ?
क्या यह प्रोद्योगिकीय   सनक    नहीं है ?
'Obsessive compulsive technological disorder'    नहीं  है  .
क्या कीजिएगा कल इन जादुई ग्लासिज़ का ?वंडर ग्लासिज़ का .क्या यह हमें हमारी दुनिया रीयल वर्ल्ड से काटने की साजिश नहीं है ?क्या कीजिएगा उस सूचना के समुन्दर का जिसे आप बटोर न सके जो आपका रोज़ मर्रा के कामों से ध्यान हटाये भंग करे ?कैसा नशा है यह ?ये कैसी    kanektiviti       है .oxsymoron है विरोधालंकार है भदेस   सौन्दर्य    है ,अगली  ब्यूटी  है ?
ईयर फोन्स ,आइपोड्स धारी यु-  वा अपने आस पास से बेखबर ट्रेफिक से लापरवाह ,रेश ड्राईविंग का शिकार हो रहा है .
राम  राम भाई !   राम राम भाई !   राम राम भाई ! 
विचार प्रवाह :

विचार प्रवाह   :वो कौन है ?
आज हर आदमी भावात्मक और रागात्मक रूप से उदासीन लोगों के बीच रह रहा है .शुधान्शु भी इसका अपवाद नहीं था .इसी नीरसता जीवन पर पसरे एकाकी भाव को तोड़ने वह अपने बाल सखा रहे अन्तरंग मित्र के पास पुदुचेरी चला आया था .दिन बढ़िया राग और भाव के साथ कट रहे थे .मित्र की माँ श्री भी यहाँ पधारी हुईं हैं जो अकसर पर्यटन पर रहतीं हैं कभी बेटियों के पास और कभी यहाँ पुत्र के पास और कभी इस तीर्थ कभी उस तीर्थ .यहाँ माँ श्री से भी संवाद के तार सीधे जुड़तें हैं चर्चा चाहे साहित्यिक  हो या घरेलू माँ श्री की शिरकत कमतर नहीं रहती .और घर को चलाने में सहयोग भी सबका पूरा .आदमी इसी संवाद  का   भूखा है इसी जुड़ने  शेयर करने की नियत से अभाव पूर्ती के लिए भाव -विरेचन के लिए वह कुछ ख़ास स्थानों ठिकानों पर जाता है .पुदुचेरी ऐसा ही एक ठिकाना है .
माँ श्री नहा के जब निकलतीं हैं पूरे कपडे पहनके निकलतीं हैं फिर भी अपने को व्यवस्थित करने के लिए वह दूसरे कमरे में चली जातीं हैं .८५ -८६ की उम्र में भी उनमे नारिपन की सुघड़ता और पैरहन के प्रति संभाल और करीना मुखरित रहता है .वह अपने को दबे ढके रहतीं हैं .सचेत भी .
पुरुष की दृष्टि नारी के शरीर पर पहले पडती है .सम्बन्ध भावना जागृत बाद में होती है -खुद को हम बतलातें हैं यह मेरी माँ है यह भाभी है यह चाची है आदि .शुधान्शु  को एक जोर का झटका लगता है वह कौन है  फिर नारी की खाल में (लिबास में)जिसे वह अपनी  पुत्र वधु समझता है .जो स्नान करके शमीज़ और  और तौलिए में निकल आती है .मर्दों वाला निकर पहने रहती है .मर्दों की तरह घुटने  मोडके कमर टिकाके बैठती है .यहाँ वहां सब जगह .ये कैसा पैरहन है माँ श्री और पुत्र वधु के लिबास में इतना फर्क क्यों है .क्यों एक तरफ नारीपन ज्यादा  है दूसरी तरफ सिरे से नदारद मुखरित है तो पौरुष की दबंगई है .कबीलाई अंदाज़ है . 
लेबल :पैरहन ,बदलाव ,परम्परा ,संक्रमण ,सम्बन्ध ,सम्बन्ध भावना .
वह कौन है ?विचार प्रवाह   :वो कौन है ?
राम राम भाई ! राम राम भाई !  राम राम भाई !
नुश्खे सेहत के :
नियमित बेरीज जामुन ,फालसा ,कैन :बेरीज़ ,ब्ल्यू -बेरीज आदि का सेवन पार्किन्संस रोग की ज़द में  आने के खतरे को एक  चौथाई कम कर देता  है .हारवर्ड और ईस्ट अंग्लिया विश्वविद्यालय के रिसर्चरों ने पता लगाया है जिन लोगों की खुराक में फ़्लवोनोइद्स -की प्रचुरता रहती है उनके पार्किन्सन रोग की ज़द में आने का ख़तरा कम रहता है बरक्स उनके जो बेरीज ,चाय ,सेब ,रेड वाइन से प्राप्त फ़्लवोनोइद्स का सेवन  नहीं करते हैं .
सोया मिल्क करता है हॉट फ्लाशिज़ से बचाव :दिन में कमसे कम दो मर्तबा सोया मिल्क का सेवन 'Hot flushes 'को  कम  करता  है , जितनी    ज्यादा   अवधि   तक  आप  इसे  अपनी  खुराक  का  हिस्सा  बनाए  रहतीं  हैं  उतना  ही  ज्यादा   फायदा   मिलता    है  .
A  Hot flush is accompanied by the feeling of heat ,occurs in some emotional dis -orders  and during the menopause.
Hot flush is a sudden hot feeling ,sometimes accompanied by sweating and redness of face experienced by some women during the menopause and caused by an endocrine imbalance.
माहिरों  के अनुसार सोया से बने खाद्य और पेय पदार्थों का नियमित सेवन हॉट फ्लशिज़ की बारंबारता और तीव्रता को २६ %तक कम कर देता  है .
सोया में मौजूद हैं आइसो -फ्लावोन्स(Isoflavons ,estrogen -like plant hormones)  ,इस्ट्रोजन  से मिलते  जुलते  पादप  हारमोन   माहिरों के अनुसार इनका  सेहत पर अनुकूल प्रभाव  पड़ता है .
राम राम भाई !राम राम भाई !
चेहरे के रोमकूपों को खोलने के लिए पके हुए  आम का गूदा चेहरे पे मल के १० मिनिट यूं ही छोड़ दीजिये .बाद इसके चेहरा पानी से धौ डालिए  त्वचा के रोमछिद्र (लोम -कूप, खुल जायेंगे .
नुश्खे सेहत के :
   मोर्निंग   सिकनेस तथा  मोशन  सिकनेस    से बचाव के लिए पपीता  खाइए  .


 
  

11 टिप्‍पणियां:

Sunil Kumar ने कहा…

आम विषय पर खास लेखन .....

मनोज कुमार ने कहा…

सच में जब अपने पर भरोसा नहीं रहता तब हम यह रुख (आक्रामक) आख्तियार कर लेते हैं। और कहते हैं आक्रमण ही सबसे बड़ा हथियार है। इसकी बहुत अच्छी वैज्ञानिक व्याख्या की गई है।

रविकर ने कहा…

गंभीर चिंतन |

Aruna Kapoor ने कहा…

सही कहा आपने...जब तक अपने उपर नियंत्रण है, तब तक ही मनुष्य अपनी अच्छी शक्तियों का परिचय देता है!....उत्तम जानकारी!

अशोक सलूजा ने कहा…

गंभीर और बहुत बढिया जानकारी ....
आभार !
राम-राम भाई जी !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

मन को कौन बताये सच रे।

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सही कहा आप ने ..बहुत बढिया जानकारी .आभार !.

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत सही कहा आप ने ..बहुत बढिया जानकारी .आभार !.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

दो-तीन दिनों तक नेट से बाहर रहा! एक मित्र के घर जाकर मेल चेक किये और एक-दो पुरानी रचनाओं को पोस्ट कर दिया। लेकिन मंगलवार को फिर देहरादून जाना है। इसलिए अभी सभी के यहाँ जाकर कमेंट करना सम्भव नहीं होगा। आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सार्थक और रोचक प्रस्तुति...आभार

SANDEEP PANWAR ने कहा…

स्वान के बारे में गजब की जानकारी, मेरे लिये बहुत काम की है।
RAM RAM JI