शनिवार, 7 अप्रैल 2012

कहाँ ले जायेगी हमें ये अंध आसक्ति ,वस्तु रति ,गेजेट प्रेम ?

कहाँ ले जायेगी हमें ये   अंध  आसक्ति  ,वस्तु रति ,गेजेट प्रेम ?क्या आदमी को ऊर्जा हीन ,उत्साह च्युत सोचने समझने में असमर्थ बनाके छोड़ेगी .
मुझे याद है जब मैं पहली मर्तबा अपमे यू. एस .प्रवास     के बाद भारत लौटा था ,मेरे पास एक बेटरी चालित टूथ ब्रश था बस पेस्ट  लगाके आप एक स्विच दबा दो   और ब्रश अपने सही एक्शन में दांत साफ़ करने लगता था ,तब एक सुग्य  विदूषी महिला के मुख से सहज भाव निकला था भाई साहब आलस्य   की भी हद है ये गोरे दांत साफ़ करने के लिए हाथ भी नहीं हिलाना चाहते .
आज इस विदूषी  महिला को यदि बतलाऊँ ,की ऐसे स्मार्ट लेंस (वास्तव में फ्रेम मात्र जिनमे कोई लेंस नहीं है )  का प्रारूप गूगल ने बना लिया है जिसमे इलेक्त्रोनिकी की मदद  ली   गई है .जो अभिनव जैव नैनो प्रोद्योगिकी का करिश्मा है जिसके तार न सिर्फ सीधे   इंटरनेट   से जुड़े हैं ,गूगल मैप से भी  जुड़े हैं ,जो कैमरा भी है ,टी .वी भी ,रीयल टाइम मैप भी ,बस एक बटन भर दबाने की देर है .औग्मेंतिद रियलिटी हाज़िर है .आँखों के आगे एक परदे पर जिसे मात्र एक चश्मे के फ्रेम की तरह पहना ओढा गया है .
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ वह जैव -नैनो -गिज्मो   आपको  दिखाता  हूँ -तब क्या हो  ?वह मोहतरमा  दांतों  तले ऊंगली  दबा  ले .
ये फ्यूजन है टेक्नोलोजी का ,मिश्र है जैव -नैनो -प्रोद्योगिकी का जहां फेरबदल आणविक संरचना के स्तर पर करके द्रव्य  के गुण धर्म बदल दिए गए है .
इसे  प्रोजेक्ट  कोंटेक्ट  लेंस कहा  जा  रहा   है .यही   है भविष्य   की टेक्नोलोजी .नाइके ने इसी बरस एक कंगन ,ब्रेसलेट की बिक्री शुरू की थी जो आपकी हर गतिविधि पर नजर रख सकता है .
तो  ज़नाब अब रेप अराउंड ग्लासिज़ का दौर आने वाला है मज़े दार बात  यह है इसमें लेंसिस नहीं होंगे सिर्फ फ्रेम होगा .इसी में नैनो कैमरे फिट होंगे 'ऑन लेंस डिस्प्ले होगा मनमाफिक आंकड़ों का .
गूगल जल्द से जल्द   व्यवहार  में लाये  जाने   लायक   प्रोद्योगिकी का हिमायती   है , दस साला खाब नहीं बेचता है एपिल की तरह .ये दोनों निगमों का टेक युद्ध है .
साइंस फिक्शन टॉय का युग दस्तक देने लगा है .
गत दशक की एक हालीवुड फिल्म 'माइन्योरिती रिपोर्ट में 'एक पात्र हस्त मुद्रा से एक फ्लोटिंग कंप्यूटर के सारे आंकड़े बदल देता है .
हम ऐसे ही ह्यूमेन कंप्यूटर इंटर फेस में प्रवेश ले रहें हैं .कुछ, कह सकतें हैं यह प्रोद्योगिकी की अति है ,अपच है, ओवर डोज़ है .कहाँ जाके रुकेगी यह प्रोद्योगिकी की भूख ?
घिसा पिटा फेशन बन रही है प्रोद्योगिकी .प्रकृति से पर्यावरण से हम कटते जा रहें हैं .साइबर स्पेस के होके रह गए हैं हम .स्मार्ट फोन्स ,आई -फोन्स ,आई -पैड्स क्या कम थे ?
क्या यह प्रोद्योगिकीय   सनक    नहीं है ?
'Obsessive compulsive technological disorder'    नहीं  है  .
क्या कीजिएगा कल इन जादुई ग्लासिज़ का ?वंडर ग्लासिज़ का .क्या यह हमें हमारी दुनिया रीयल वर्ल्ड से काटने की साजिश नहीं है ?क्या कीजिएगा उस सूचना के समुन्दर का जिसे आप बटोर न सके जो आपका रोज़ मर्रा के कामों से ध्यान हटाये भंग करे ?कैसा नशा है यह ?ये कैसी    kanektiviti       है .oxsymoron है विरोधालंकार है भदेस   सौन्दर्य    है ,अगली  ब्यूटी  है ?
ईयर फोन्स ,आइपोड्स धारी यु-  वा अपने आस पास से बेखबर ट्रेफिक से लापरवाह ,रेश ड्राईविंग का शिकार हो रहा है .
 

5 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नव और पुरातन का एक विचित्र सा संकर तैयार हो रहा है हम सबके भीतर।

dinesh aggarwal ने कहा…

यदि विकास का यही क्रम चलता रहा, कहीं इंसान
के अस्तित्व के लिये खतरा न बन जाये।

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

सही कहा आपने,
ऐसी टेक्नालाजी से मनुष्य प्रकृति से दूर होता जाएगा।
इस दौर को अंधा युग भले न कहें लेकिन अंणेर युग जरूर कह सकते हैं।

डॉ टी एस दराल ने कहा…

साइंस में जो फिक्शन होता है , एक दिन रियल बन जाता है । यही है विज्ञानं का विकास ।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

यह प्रोद्योगिकीय सनक ही तो है,और यही विज्ञान का विकास है,.....अच्छी प्रस्तुति