मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

मूढ़ भांपने वाली कारें .अभिनव प्रोद्योगिकी की नै परवाज़



मूढ़ भांपने वाली कारें .अभिनव प्रोद्योगिकी की नै परवाज़ है आपके चित्त को पढके अपना रंग बदलने वाली कारें .इसका श्रेय  जाता है एक फ्रांसीसी कार निर्माता Peugeot को .
'Peugeot RCZ 'एक रिएक्टिव पैंट का स्तेमाल करती है .बस यही रासायनिक प्रतिक्रया प्रदर्शित करने वाला पैंट अपने मालिक (ड्राइवर )के मिजाज़ को ताड़ कर अपना रंग तब्दील करलेता है .साइको -क्रोमाटिक है यह पैंट .(साइको माने चित्त और क्रोमा माने कलर ,रंग .).रंग बदलके यह मिजाज़ पुरसी कर सकती है मालिक की जैसा मूड वैसा रंग .सुख, दुःख ,ख़ुशी गमी सभी से संगत एक वर्ण मौजूद है यहाँ .दरअसल इस कार के स्टीयरिंग वील में  ताप टोहकों(हीट सेन्सर्स) को समेकित किया गया है ,शामिल किया गया है.बस यह टोहक ड्राइवर का बॉडी टेम्प्रेचर (शरीर के तापमान )और हृदगति को ताड़ लेतें हैं .और इसी के अनुरूप कार का बाहरी रंग रोगन ,रंग रूप बदलने लगता है .
दरअसल यह कमाल नैनो -प्रोद्योगिकी का है .यह करिश्मा आणविक धरातल पर घटित हो रहा है .साइको -क्रोमाटिक ,मूढ़ संवेदी पैंट की बाहरी पर्त अपना आणविक लिवास ,आणविक पैरहन बदल लेती है अलग अलग बॉडी तापमानों यानी शरीर से उत्सर्जित तरंग के अनुरूप .
हम जानतें हैं हमारा शरीर हरेक तापमानों पर हीट वेव (अवरक्त विकिरण )उत्सर्जित भी करता रहता है अवशोषित भी .और आखिर कार  एक गतिशील अल्पकालिक  तापीय संतुलन  बनाता है जो अब बदला और तब बदला .
बस यही मूढ़ भांपू पैंट ड्राइवर के संवेगों का ही प्रक्षेपण करता है अपनी परतों का रंग बदलके मालिक के मिजाज़ के अनुरूप .
अभी हमारे एक सम्मानीय चिठ्ठाकार बन्धु एक सिरीज़ चलायें हैं अपने ब्लॉग पर(

Tuesday, 27 March 2012


पुराण कथाओं में झलकता है भविष्य(1)-मन से चालित विमान सौभ!

 http://mishraarvind.blogspot.in/)

जिसमें सोचने वाली मशीनों का ज़िक्र है पौराणिक ग्रन्थों में .तो ज़नाब कल की कल्पना ही आज का यथार्थ है .कल्पना के नए क्षितिज तोड़ों अनागत की कटिंग एज टेक्नोलोजी की नींव रख्खो .
हालाकि इस प्रोद्योगिकी के अपने संभावित नुकसानात और दुरोपयोग हैं  .अपराध तत्व अभी तो अपराध करके भागते समय कार के नंबर(नम्बर प्लेट गियर से जोड़कर ) ही बदलता चलता है यहाँ तो कार ही निरंतर रंग बदलेगी नेताओं से .
राम राम भाई !  राम राम भाई ! राम राम भाई !

सोमवार, 3 अप्रैल 2012

तार जुड़े हैं डिप्रेशन के फास्ट फ़ूड से .

तार जुड़े हैं डिप्रेशन के फास्ट फ़ूड से .
Eating fast food linked to depression/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,BANGALORE  ,APRIL 2,2012,P15.
चिकनाई  सने तुरंता भोजन फास्ट या कबाड़िया भोजन से बचने छिटकने की एक वजह और सामने आगई है .साइंसदानों के मुताबिक़  जंक फ़ूड से जुड़े हैं अवसाद के तार .
विज्ञान पत्रिका पब्लिक हेल्थ न्यूट्रीशन में प्रकाशित हुआ है यह अभिनव अध्ययन .
Univesity of Las Palmas de Gran Canaria एवं ग्रानाडा विश्वविद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ केक ,  Croissants ,डोनट्स ,बर्जर्स तथा पीज़ा(पिज्जा ,पीत्सा )जैसे खाद्यों का सेवन अवसाद की ओर ले जासकता है .अवसाद की नव्ज़ इन खाद्यों के सेवन से जुडी हुई है .
इन का चस्का जिन्हें लगा हुआ है ऐसे लोगों के अवसाद ग्रस्त होने के मौके ५१ %बढ़ जातें हैं बरक्स उनके जो इनसे बचे रहतें हैं .दूर छिटकतें हैं .

और यह ख़तरा उसी अनुपात में बढ़ता जाता है जिस अनुपात में इस तुरता भोजन का सेवन बढ़ता जाता है .अध्ययन    के अगुवा साइंसदान   अल्मुदें  सांचेज़  -विल्लेगास का यही कहना है .
पता यह भी  चला  है फास्ट फ़ूड के  चंगुल में फंसे रहने वाले लोग न सिर्फ छड़े छटांक (सिंगिल )होते हैं ,ढीले ढाले लेस एक्टिव भी होतें हैं .इनकी खान पान की आदतें भी अस्वास्थ्यकर रहतीं हैं .सिगरेट नोशी भी इनमें देखने को ज्यादा मिलती है  तथा सप्ताह में काम भी यह ४५ घंटों से ज्यादा देर तक करतें हैं .
अध्ययन में रिसर्चरों ने कुल मिलाकर ८९६४ लोगों की खान पान की आदतों और दैनिकी का जायज़ा पूरे छ :माह तक लिया था .इनमे से बाकायदा ४९३ लोगों में अवसाद की रोगनिदानिक पुष्टि हुई या फिर इन्होनें अवसाद रोधी दवाएं लेनी शुरू कर दीं थी .
क्या है Croissants ?
Croissant is a piece of baked dough or pastry shaped into a cresent ,usually moist ,flaky and very rich in fat ,originally made in France.
राम राम भाई !  राम राम भाई !  राम राम भाई !

ये कथन की भंगिमा नहीं आपराधिक मामला है .

ये कथन की भंगिमा नहीं आपराधिक मामला है .
फेस बुक पर इन दिनों तकनीक के कुछ निकृष्ठ तम नमूने देखने में आरहें हैं .मोर्फ्स (मोर्फिंग )फटोशॉप आदि का स्तेमाल करके एक तरफ मनमोहन -सोनिया को अशोभन दैहिक मुद्रा (मैथुनी )में तो ठीक उनके सामने लालू -मायावती को इसी दैहिक भंगिमा में दिखलाया गया है .
बेशक सोनिया  गाँधी लोगों की पहली पसंद नहीं है और न ही मनमोहन सिंह जी जिन्हें लोग हिकारत की नजर से रीढ़ विहीन रोबोट मानने लगें हैं .
लेकिन राजनितिक गिरावट और नापसंदगी का न तो यह स्वीकृत तरीका  है और न ही इसे कथन की भंगिमा या कोई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति कहा जा सकता है .
इस आदमी की जिसने यह आकृतियाँ परोसीं हैंआकृति विज्ञान गढ़ा है डॉक्टर किया है  खुद की मैथुनी क्षमताओं की जांच होनी चाहिए .
यह सब इस और इस प्रजाति के कई और होमियो -सेपियंस की रुग्णमानसिकता का प्रक्षेपण है .अधुनातन प्रोद्योगिकी का एब्यूज तो है ही .ऐसे तमाम व्यक्तियों (शातिरों )का इलाज़ होना चाहिए .
यह (इस तरह का प्रदर्शन नाम चीन लोगों का भले वह शुभंकर न हों )सीधे -सीधे आपराधिक मामला बनता है .साइबर क्राइम के दायरे में आता है .इसकी जांच होनी चाहिए .इस दिग -दर्शन में न तो कोई कथ्य है न कथन की मुद्रा है .विकृत मनो -विज्ञान है .हम एक चिठ्ठाकार के नाते ऐसे गोबर गणेशों का सरयू तट पर तर्पण करतें हैं .लेकिन इसकी और ऐसे और मामलों की आड़ में फेस बुक जैसे सोशल मीडिया पर प्रतिबंध की मांग और उसका समर्थन नहीं कर सकते .फेस बुक का अपना लोक तंत्र है .उकील साहब जो अलापें सो अलापें .
गौर तलब है 'नारी 'ब्लॉग पर भी आज यह मामला उठाया गया है . 
[फेसबुक ] 

2 टिप्‍पणियां:

कुमार राधारमण ने कहा…

कार अगर इस तरह रंग बदलती रहें,तो पुलिस के लिए भी खासी मशक्कत होगी हुज़ूर!

Aruna Kapoor ने कहा…

फास्ट फ़ूड स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है....सही है!...कार के बारे में बढ़िया जानकारी...आभार!