तार जुड़े हैं डिप्रेशन के फास्ट फ़ूड से .
Eating fast food linked to depression/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,BANGALORE ,APRIL 2,2012,P15.
चिकनाई सने तुरंता भोजन फास्ट या कबाड़िया भोजन से बचने छिटकने की एक वजह और सामने आगई है .साइंसदानों के मुताबिक़ जंक फ़ूड से जुड़े हैं अवसाद के तार .
विज्ञान पत्रिका पब्लिक हेल्थ न्यूट्रीशन में प्रकाशित हुआ है यह अभिनव अध्ययन .
Univesity of Las Palmas de Gran Canaria एवं ग्रानाडा विश्वविद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ केक , Croissants ,डोनट्स ,बर्जर्स तथा पीज़ा(पिज्जा ,पीत्सा )जैसे खाद्यों का सेवन अवसाद की ओर ले जासकता है .अवसाद की नव्ज़ इन खाद्यों के सेवन से जुडी हुई है .
इन का चस्का जिन्हें लगा हुआ है ऐसे लोगों के अवसाद ग्रस्त होने के मौके ५१ %बढ़ जातें हैं बरक्स उनके जो इनसे बचे रहतें हैं .दूर छिटकतें हैं .
और यह ख़तरा उसी अनुपात में बढ़ता जाता है जिस अनुपात में इस तुरता भोजन का सेवन बढ़ता जाता है .अध्ययन के अगुवा साइंसदान अल्मुदें सांचेज़ -विल्लेगास का यही कहना है .
पता यह भी चला है फास्ट फ़ूड के चंगुल में फंसे रहने वाले लोग न सिर्फ छड़े छटांक (सिंगिल )होते हैं ,ढीले ढाले लेस एक्टिव भी होतें हैं .इनकी खान पान की आदतें भी अस्वास्थ्यकर रहतीं हैं .सिगरेट नोशी भी इनमें देखने को ज्यादा मिलती है तथा सप्ताह में काम भी यह ४५ घंटों से ज्यादा देर तक करतें हैं .
अध्ययन में रिसर्चरों ने कुल मिलाकर ८९६४ लोगों की खान पान की आदतों और दैनिकी का जायज़ा पूरे छ :माह तक लिया था .इनमे से बाकायदा ४९३ लोगों में अवसाद की रोगनिदानिक पुष्टि हुई या फिर इन्होनें अवसाद रोधी दवाएं लेनी शुरू कर दीं थी .
क्या है Croissants ?
Croissant is a piece of baked dough or pastry shaped into a cresent ,usually moist ,flaky and very rich in fat ,originally made in France.
राम राम भाई ! राम राम भाई ! राम राम भाई !
Eating fast food linked to depression/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA,BANGALORE ,APRIL 2,2012,P15.
चिकनाई सने तुरंता भोजन फास्ट या कबाड़िया भोजन से बचने छिटकने की एक वजह और सामने आगई है .साइंसदानों के मुताबिक़ जंक फ़ूड से जुड़े हैं अवसाद के तार .
विज्ञान पत्रिका पब्लिक हेल्थ न्यूट्रीशन में प्रकाशित हुआ है यह अभिनव अध्ययन .
Univesity of Las Palmas de Gran Canaria एवं ग्रानाडा विश्वविद्यालय के रिसर्चरों के मुताबिक़ केक , Croissants ,डोनट्स ,बर्जर्स तथा पीज़ा(पिज्जा ,पीत्सा )जैसे खाद्यों का सेवन अवसाद की ओर ले जासकता है .अवसाद की नव्ज़ इन खाद्यों के सेवन से जुडी हुई है .
इन का चस्का जिन्हें लगा हुआ है ऐसे लोगों के अवसाद ग्रस्त होने के मौके ५१ %बढ़ जातें हैं बरक्स उनके जो इनसे बचे रहतें हैं .दूर छिटकतें हैं .
और यह ख़तरा उसी अनुपात में बढ़ता जाता है जिस अनुपात में इस तुरता भोजन का सेवन बढ़ता जाता है .अध्ययन के अगुवा साइंसदान अल्मुदें सांचेज़ -विल्लेगास का यही कहना है .
पता यह भी चला है फास्ट फ़ूड के चंगुल में फंसे रहने वाले लोग न सिर्फ छड़े छटांक (सिंगिल )होते हैं ,ढीले ढाले लेस एक्टिव भी होतें हैं .इनकी खान पान की आदतें भी अस्वास्थ्यकर रहतीं हैं .सिगरेट नोशी भी इनमें देखने को ज्यादा मिलती है तथा सप्ताह में काम भी यह ४५ घंटों से ज्यादा देर तक करतें हैं .
अध्ययन में रिसर्चरों ने कुल मिलाकर ८९६४ लोगों की खान पान की आदतों और दैनिकी का जायज़ा पूरे छ :माह तक लिया था .इनमे से बाकायदा ४९३ लोगों में अवसाद की रोगनिदानिक पुष्टि हुई या फिर इन्होनें अवसाद रोधी दवाएं लेनी शुरू कर दीं थी .
क्या है Croissants ?
Croissant is a piece of baked dough or pastry shaped into a cresent ,usually moist ,flaky and very rich in fat ,originally made in France.
राम राम भाई ! राम राम भाई ! राम राम भाई !
ये कथन की भंगिमा नहीं आपराधिक मामला है .
ये कथन की भंगिमा नहीं आपराधिक मामला है .
फेस बुक पर इन दिनों तकनीक के कुछ निकृष्ठ तम नमूने देखने में आरहें हैं .मोर्फ्स (मोर्फिंग )फटोशॉप आदि का स्तेमाल करके एक तरफ मनमोहन -सोनिया को अशोभन दैहिक मुद्रा (मैथुनी )में तो ठीक उनके सामने लालू -मायावती को इसी दैहिक भंगिमा में दिखलाया गया है .
बेशक सोनिया गाँधी लोगों की पहली पसंद नहीं है और न ही मनमोहन सिंह जी जिन्हें लोग हिकारत की नजर से रीढ़ विहीन रोबोट मानने लगें हैं .
लेकिन राजनितिक गिरावट और नापसंदगी का न तो यह स्वीकृत तरीका है और न ही इसे कथन की भंगिमा या कोई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति कहा जा सकता है .
इस आदमी की जिसने यह आकृतियाँ परोसीं हैंआकृति विज्ञान गढ़ा है डॉक्टर किया है खुद की मैथुनी क्षमताओं की जांच होनी चाहिए .
यह सब इस और इस प्रजाति के कई और होमियो -सेपियंस की रुग्णमानसिकता का प्रक्षेपण है .अधुनातन प्रोद्योगिकी का एब्यूज तो है ही .ऐसे तमाम व्यक्तियों (शातिरों )का इलाज़ होना चाहिए .
यह (इस तरह का प्रदर्शन नाम चीन लोगों का भले वह शुभंकर न हों )सीधे -सीधे आपराधिक मामला बनता है .साइबर क्राइम के दायरे में आता है .इसकी जांच होनी चाहिए .इस दिग -दर्शन में न तो कोई कथ्य है न कथन की मुद्रा है .विकृत मनो -विज्ञान है .हम एक चिठ्ठाकार के नाते ऐसे गोबर गणेशों का सरयू तट पर तर्पण करतें हैं .लेकिन इसकी और ऐसे और मामलों की आड़ में फेस बुक जैसे सोशल मीडिया पर प्रतिबंध की मांग और उसका समर्थन नहीं कर सकते .फेस बुक का अपना लोक तंत्र है .उकील साहब जो अलापें सो अलापें .
गौर तलब है 'नारी 'ब्लॉग पर भी आज यह मामला उठाया गया है .
[फेसबुक ]फेस बुक पर इन दिनों तकनीक के कुछ निकृष्ठ तम नमूने देखने में आरहें हैं .मोर्फ्स (मोर्फिंग )फटोशॉप आदि का स्तेमाल करके एक तरफ मनमोहन -सोनिया को अशोभन दैहिक मुद्रा (मैथुनी )में तो ठीक उनके सामने लालू -मायावती को इसी दैहिक भंगिमा में दिखलाया गया है .
बेशक सोनिया गाँधी लोगों की पहली पसंद नहीं है और न ही मनमोहन सिंह जी जिन्हें लोग हिकारत की नजर से रीढ़ विहीन रोबोट मानने लगें हैं .
लेकिन राजनितिक गिरावट और नापसंदगी का न तो यह स्वीकृत तरीका है और न ही इसे कथन की भंगिमा या कोई प्रतीकात्मक अभिव्यक्ति कहा जा सकता है .
इस आदमी की जिसने यह आकृतियाँ परोसीं हैंआकृति विज्ञान गढ़ा है डॉक्टर किया है खुद की मैथुनी क्षमताओं की जांच होनी चाहिए .
यह सब इस और इस प्रजाति के कई और होमियो -सेपियंस की रुग्णमानसिकता का प्रक्षेपण है .अधुनातन प्रोद्योगिकी का एब्यूज तो है ही .ऐसे तमाम व्यक्तियों (शातिरों )का इलाज़ होना चाहिए .
यह (इस तरह का प्रदर्शन नाम चीन लोगों का भले वह शुभंकर न हों )सीधे -सीधे आपराधिक मामला बनता है .साइबर क्राइम के दायरे में आता है .इसकी जांच होनी चाहिए .इस दिग -दर्शन में न तो कोई कथ्य है न कथन की मुद्रा है .विकृत मनो -विज्ञान है .हम एक चिठ्ठाकार के नाते ऐसे गोबर गणेशों का सरयू तट पर तर्पण करतें हैं .लेकिन इसकी और ऐसे और मामलों की आड़ में फेस बुक जैसे सोशल मीडिया पर प्रतिबंध की मांग और उसका समर्थन नहीं कर सकते .फेस बुक का अपना लोक तंत्र है .उकील साहब जो अलापें सो अलापें .
गौर तलब है 'नारी 'ब्लॉग पर भी आज यह मामला उठाया गया है .
4 टिप्पणियां:
मैंने फास्ट फ़ूड खाना और कोल्ड ड्रिंक पीना छोड़ दिया है ... आपका हर पोस्ट कुछ न कुछ बता ही देता है वीरू भाई
उम्दा पोस्ट .... पर इसका स्वाद और आसानी से उपलब्धता फास्ट फ़ूड की तरफ ललचाती है ....
आपकी दूसरी पोस्ट से मै १००% सहमत हू लोकतंत्र का मतलब हम लोगो ने बहुत गलत तरह से लिया है !
फास्ट फ़ूड पाश्चात्य की देन है और वहां अधिकतर ऐसी बीमारियाँ और हद से ज्यादा मोटापा देखने में आता है ... इससे जरूर बचना चाहिए ... सार्तःक प्रयास है आपके ...
राम राम जी ...
फास्ट फूड खाने के बाद एक उलझन सी तो होती है।
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