सोमवार, 30 अप्रैल 2012

जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा

जल्दी   तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा 

अपनी एक अग्रगामी शोध के तहत Sheffield  University  के  रिसर्चरों  ने  विज्ञान पत्रिका 'स्ट्रक्चर ' में ओबेसिटी रिसेप्टर को बूझकर परिभाषित किया है .समझा जाता है यह अभिग्राही शरीर की चर्बी के नियंत्रण में एक एहम भूमिका में आता है .

यहीं से मोटापे और क्षुधा -नाशी रोग एनेरेक्सिया के इलाज़ के लिए दवा तैयार करने का रास्ता  साफ़ हो जाता है .अब मोटापे और एनेरेक्सिया के प्रबंधन में आने वाली जटिलताओं से इन्ही दवाओं की मदद से  से पार   पाया जा सकेगा . 


यह दवाएं ओबेसिटी हारमोन लेप्टिन के अभिग्राही को अवरुद्ध भी कर सकेंगी और उत्तेजित भी .ताकि ज़रुरत के अनुरूप हारमोन के उत्पादन को नियंत्रित किया जा सके .

गौर तलब है एनेरेक्सिया का मरीज़ यह भ्रम पाले रहता  है की वह मोटा हो रहा है और बस रोटी पानी से छिटकने लगता है .खायेगा भी तो आधी अधूरी रोटी वह भी जलाके   और दाल में ऊपर से और पानी खूब मिलाके ताकी पाने में बस दो  चार दाने दाल के भी दीखते रहें , ताकि खाए गए भोजन का पोषक मान कम हो जाए .यह वही जीरो साइज़ का चक्कर है .जिसके चलते कई मांसल सौन्दर्य की धनी बोलीवुड नायिकाएं अब बे -नूर हो स्किनी रह गईं  हैं .आज यह सौन्दर्य के प्रतिमानों पर सौन्दर्य प्रतियोगिताओं के पैमाने पर खरी नहीं उतरतीं हैं .

 वास्तव में इस रिसर्च के तहत एक बड़ा काम किया गया है .अभिग्राही के लेप्टिन से बंधन बनाने वाले प्रभुत्व क्षेत्र को एक्स रे -संरचना लेखन की मदद से बूझ लिया गया है .पूर्णतया परिभाषित भी किया गया है. 

Scientist have solved the challenging crystal structure of the leptin -binding domain of the obesity receptor using state of the art X-ray crystallography,helping them to work out how to block or stimulate the receptor. 

इस  अभिग्राही  को  अवरुद्ध  करने  का  मतलब  इसके  काम की रफ़्तार  को  मंदा  करना  है लेप्टिन के अतरिक्त काम करने को रोकना है .इससे मोटापे की जटिलताओं से पार पाई जा सकेगी .और उत्तेजन का मतलब  फर्टिलिटी को बढ़ाना है ,तथा प्रतिरक्षण अनुक्रिया ,इम्यून रेस्पोंस को मजबूती देना है .

अब मोटापे से चस्पां हो चुकीं मेडिकल कंडीशंस यथा मल्तिपिल स्केलेरोसिस ,डायबितीज़ और दिल की बीमारियों की जटिलताओं को किनारे किया जा सकेगा .बस थोड़ा इंतज़ार और .

सन्दर्भ -सामिग्री :-Soon ,a drug that can help treat obesity, anorexia/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,APRIL 30 ,2012 ,P15.


सावधान !आगे ख़तरा है

सावधान !आगे ख़तरा है 
भारत   सरकार  ने   जलवायु   परिवर्तन  के दूरगामी  प्रभावों  के प्रति  चेता  दिया  है . जल्दी  ही सरकार यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र को प्रेषित कर देगी .रिपोर्ट में कच्छ और राजस्थान के कुछ हिस्सों में आगामी दशक तक अधिकतम तापमानों में चार सेल्सियस की वृद्धि तक हो जाने की प्रागुक्ति की है .
बतलादें आपको पृथ्वी का ताप बजट एक नाज़ुक मसला है इसमें चार फीसद की घट बढ़ का मतलब एक छोर पर हिमयुग की शुरुआत होता है तो दूसरे पर जलप्लावन ,हिम चादरों का पिघलाव .गनीमत है पृथ्वी का औसत तापमान (१४.५ -१५ .५) सेल्सियस के बीच ही बना रहता है .चार सेल्सियस एक जादुई . अंक है जिसका भौतिकी में विशेष अर्थ है.  चार सेल्सियस पर जल सबसे ज्यादा भारी रहता है इसका घनत्व अधिकतम हो जाता है .चार से ऊपर गर्म करने पर भी और चार सेल्सियस से नीचे जल को ठंडा करने पर भी दोनों ही स्थितियों में जल फैलता है अपना आयतन बढ़ा लेता है ज्यादा जगह घेरने लगता है .गनीमत है यहाँ वायु मंडलीय तापमानों का ज़िक्र है .पृथ्वी के तापमान का नहीं .
सवाल यह है की सरकार जलवायु परिवर्तन के परिणामों से बचने के लिए क्या कर रही है ?सरकारें अक्सर भ्रष्ट होतीं हैं बे -ईमान होतीं हैं .
कंप्यूटर निदर्श बतलातें हैं विश्व -व्यापी तापमानों में वृद्धि ,भूमंडलीय तापन अल्पावधि में बाढ़ों और दीर्घावधि में सूखे की वजह बनेगा .पानी की किल्लत आलमी स्तर पर पैदा होगी .
मानसून की अवधि कमतर होने की संभावना जतलाई गई है .जबकी भारत का ५०%कृषि रकबा (कृषि क्षेत्र )मानसून के आसरे ही रहता है .यहीं से जलप्रबंधन महत्वपूर्ण हो जाता है जिसका फिलवक्त भारत में नितांत लचर प्रबंध है .
कृषि कर्म के ढंग में पैट्रन में बेहद असंतुलन बना हुआ है .कृषि प्रोद्योगिकी को राज्य सहायता धकिया रही है .मुफ्त बिजली, मुफ्त या ना मालूम सी दरों पर पानी की उपलब्धता ,सघन सिंचाई वाली फसलों को बढ़ावा देती आई है .बेतहाशा नलकूपों से पानी उलीचा गया है .रीत गए है भूजल स्रोत वाटर एकविफायर्स.कौन करेगा   इनकी री- -चार्जिंग ,पुनर भरण,पुनर भरपाई  ?कौन दूर   करेगा मिटटी    से अतिरिक्त  लवण को .
यकीनन भू जल का स्तर गिर  गया है . 
दूसरे छोर पर कृषि का बुनियादी आधार लचर है .अभाव है कृषि  के बुनियादी ढाँचे ,इन्फ्रा -स्ट्रक्चर का . हर बीतते बरस के साथ यह छीजता जा रहा है .
इन दो  छोरों के बीच पिस रहा है कृषि क्षेत्र .इसी का नतीजा है  प्रति एकड़ कम उपज प्राप्ति ,रख रखाव की बेहद खराब व्यवस्था .(अनाज का एक बड़ा हिस्सा सड़ जाता है,चूहे खातें हैं इनमे गणतंत्री चूहे भी शामिल है ) परिवहन संशाधनों की तंगी .आगे आगे हालात बदतर ही होने हैं .

जबकि  आज भी ७० % आबादी कृषि कर्म पर पल रही है .'बढती आबादी अंत बर्बादी' को टालने के लिए प्रति एकड़ उत्पाद बढ़ाना ही होगा .

जल पर से राज्य सहायता तात्कालिक प्रभाव के साथ हटानी पड़ेगी .वर्षा जल का प्रबंधन भवन निर्माण में लाजिमी प्रावधान के रूप में करना होगा .

जल कर इसके इस्तेमाल को तार्किक बनाने के लिए आयद करना पडेगा एक सीमा से ऊपर खर्च करने वालों पर .

कृषि को बेहतर बुनियादी ढांचा चेक डेम्स आदि देने होंगें .
अधिकाधिक जल उपचार संयंत्र ,जल का पुनर चक्रण करने वाले  जल संयंत्र लगाने पड़ेंगें .
खारे जल को मीठा करना होगा .पानी से लवण की मात्रा  कम करने के लिए भी कुछ करना होगा उत्तम खेती  उत्तम  बीज (बान )ने खासा कबाड़ा कर दिया है . ऊपर से एक ही फसल जीवन भर में  देने वाले टर्मिनेटर  सीड्स  को कृषि से बे -दखल करना होगा .
सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़ के भी निश्चित नहीं हुआ जा सकता है .जल संरक्षण मृदा संरक्षण वृक्षा रोपण के लिए जन प्रयास भी ज़रूरी हैं .यह एक सतत यज्ञ है .


परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब

एक बार और सारे पाठ्यक्रम को परीक्षा से पहले दोहराने के लिए अक्सर छात्र रात रात भर जागतें हैं .लेकिन क्या इसका फायदा भी है 
?कहीं ऐसा तो नहीं की अगली सुबह सब कुछ गुड गोबर हो जाए एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाए और याद किया याद ही न आये एन वक्त पर परीक्षा की घडी में ?


स्कूल  आफ लाइफ साइंसिज़ जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने अपने एक अध्ययन में यह खुलासा किया है कि दिन भर में पढ़ी याद की गई सूचना को इस तरह रूपांतरित करने में कि वह मौके पर दिमाग को याद आ सके संगठित   करके  रखने  में नींद एक विधाई   भूमिका   निभाती   है .

लेकिन रात भर नींद से  महरूम   रहने   पर ऐसा हो ही यह कतई  ज़रूरी  नहीं है .हो सकता  है आप  पढ़ी याद की गई सामिग्री  का  बहुत  कम  अंश  ही याद रख  पायें  .

अपने प्रयोगों में डॉ .सुशील झा ने पाया कि जो चूहे एक काम को सीखने के फ़ौरन बाद छ :घंटा नींद से महरूम रखे गए वे अगले दिन उसी काम को दोहरा नहीं सके .

जबकी चूहों  के जिस समूह ने नींद भर सोया था ,पर्याप्त नींद ले ली थी  उन्हें वह काम याद रहा .

लेब अब इस बात की पड़ताल कर रही है कि क्या पाठ सीखने की क्रिया ,लर्निंग सोने के अंदाज़ ,स्लीप पैट्रन को भी तबदील करती है ? 

बिला शक यदि  आपने किसी तरह का प्रशिक्षण लिया है ,आपने कोई लर्निंग का ढंग सीखा है तब आप अधिक सोयेंगे .

ज़ाहिर है आप थकके नहीं सोयें हैं ,याददाश्त को पुख्ता, पक्का करने के लिए  ,प्राप्त प्रशिक्षण के तहत सोयें हैं .


अलावा  इसके नींद हमारे दिमाग की प्रोटीन  संश्लेषण करने वाली  मशीनरी  ,प्राविधि  को सक्रीय कर देती है .इसका फायदा याददाश्त को पक्का करने में मिलता है .

अलावा  इसके नींद दिमागी विकास में सहायक सिद्ध होती है .यही वजह है कि शिशु ज्यादा सोतें हैं क्योंकि इस दरमियान दिमागी विकास की रफ़्तार सर्वाधिक होती है .डॉ झा अशोशियेट प्रोफ़ेसर हैं न्यूरो -साइंसिज़  विभाग में .आप स्कूल को लाइफ साइंसिज़ से जुड़ें हैं . 


परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब सहायक ही हो यह ज़रूरी नहीं है .


सावधान !आगे ख़तरा है

सावधान !आगे ख़तरा है 

भारत   सरकार  ने   जलवायु   परिवर्तन  के दूरगामी  प्रभावों  के प्रति  चेता  दिया  है . जल्दी  ही सरकार यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र को प्रेषित कर देगी .रिपोर्ट में कच्छ और राजस्थान के कुछ हिस्सों में आगामी दशक तक अधिकतम तापमानों में चार सेल्सियस की वृद्धि तक हो जाने की प्रागुक्ति की है .

बतलादें आपको पृथ्वी का ताप बजट एक नाज़ुक मसला है इसमें चार फीसद की घट बढ़ का मतलब एक छोर पर हिमयुग की शुरुआत होता है तो दूसरे पर जलप्लावन ,हिम चादरों का पिघलाव .गनीमत है पृथ्वी का औसत तापमान (१४.५ -१५ .५) सेल्सियस के बीच ही बना रहता है .चार सेल्सियस एक जादुई . अंक है जिसका भौतिकी में विशेष अर्थ है.  चार सेल्सियस पर जल सबसे ज्यादा भारी रहता है इसका घनत्व अधिकतम हो जाता है .चार से ऊपर गर्म करने पर भी और चार सेल्सियस से नीचे जल को ठंडा करने पर भी दोनों ही स्थितियों में जल फैलता है अपना आयतन बढ़ा लेता है ज्यादा जगह घेरने लगता है .गनीमत है यहाँ वायु मंडलीय तापमानों का ज़िक्र है .पृथ्वी के तापमान का नहीं .

सवाल यह है की सरकार जलवायु परिवर्तन के परिणामों से बचने के लिए क्या कर रही है ?सरकारें अक्सर भ्रष्ट होतीं हैं बे -ईमान होतीं हैं .

कंप्यूटर निदर्श बतलातें हैं विश्व -व्यापी तापमानों में वृद्धि ,भूमंडलीय तापन अल्पावधि में बाढ़ों और दीर्घावधि में सूखे की वजह बनेगा .पानी की किल्लत आलमी स्तर पर पैदा होगी .

मानसून की अवधि कमतर होने की संभावना जतलाई गई है .जबकी भारत का ५०%कृषि रकबा (कृषि क्षेत्र )मानसून के आसरे ही रहता है .यहीं से जलप्रबंधन महत्वपूर्ण हो जाता है जिसका फिलवक्त भारत में नितांत लचर प्रबंध है .

कृषि कर्म के ढंग में पैट्रन में बेहद असंतुलन बना हुआ है .कृषि प्रोद्योगिकी को राज्य सहायता धकिया रही है .मुफ्त बिजली, मुफ्त या ना मालूम सी दरों पर पानी की उपलब्धता ,सघन सिंचाई वाली फसलों को बढ़ावा देती आई है .बेतहाशा नलकूपों से पानी उलीचा गया है .रीत गए है भूजल स्रोत वाटर एकविफायर्स.कौन करेगा   इनकी री- -चार्जिंग ,पुनर भरण,पुनर भरपाई  ?कौन दूर   करेगा मिटटी    से अतिरिक्त  लवण को .

यकीनन भू जल का स्तर गिर  गया है . 


दूसरे छोर पर कृषि का बुनियादी आधार लचर है .अभाव है कृषि  के बुनियादी ढाँचे ,इन्फ्रा -स्ट्रक्चर का . हर बीतते बरस के साथ यह छीजता जा रहा है .

इन दो  छोरों के बीच पिस रहा है कृषि क्षेत्र .इसी का नतीजा है  प्रति एकड़ कम उपज प्राप्ति ,रख रखाव की बेहद खराब व्यवस्था .(अनाज का एक बड़ा हिस्सा सड़ जाता है,चूहे खातें हैं इनमे गणतंत्री चूहे भी शामिल है ) परिवहन संशाधनों की तंगी .आगे आगे हालात बदतर ही होने हैं .

जबकि  आज भी ७० % आबादी कृषि कर्म पर पल रही है .'बढती आबादी अंत बर्बादी' को टालने के लिए प्रति एकड़ उत्पाद बढ़ाना ही होगा .

जल पर से राज्य सहायता तात्कालिक प्रभाव के साथ हटानी पड़ेगी .वर्षा जल का प्रबंधन भवन निर्माण में लाजिमी प्रावधान के रूप में करना होगा .

जल कर इसके इस्तेमाल को तार्किक बनाने के लिए आयद करना पडेगा एक सीमा से ऊपर खर्च करने वालों पर .

कृषि को बेहतर बुनियादी ढांचा चेक डेम्स आदि देने होंगें .

अधिकाधिक जल उपचार संयंत्र ,जल का पुनर चक्रण करने वाले  जल संयंत्र लगाने पड़ेंगें .

खारे जल को मीठा करना होगा .पानी से लवण की मात्रा  कम करने के लिए भी कुछ करना होगा उत्तम खेती  उत्तम  बीज (बान )ने खासा कबाड़ा कर दिया है . ऊपर से एक ही फसल जीवन भर में  देने वाले टर्मिनेटर  सीड्स  को कृषि से बे -दखल करना होगा .

सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़ के भी निश्चित नहीं हुआ जा सकता है .जल संरक्षण मृदा संरक्षण वृक्षा रोपण के लिए जन प्रयास भी ज़रूरी हैं .यह एक सतत यज्ञ है .

raam raam भाई raam raam  भाई !

सोमवार , 30 अप्रैल 2012

परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब

एक बार और सारे पाठ्यक्रम को परीक्षा से पहले दोहराने के लिए अक्सर छात्र रात रात भर जागतें हैं .लेकिन क्या इसका फायदा भी है 
?कहीं ऐसा तो नहीं की अगली सुबह सब कुछ गुड गोबर हो जाए एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाए और याद किया याद ही न आये एन वक्त पर परीक्षा की घडी में ?


स्कूल  आफ लाइफ साइंसिज़ जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने अपने एक अध्ययन में यह खुलासा किया है कि दिन भर में पढ़ी याद की गई सूचना को इस तरह रूपांतरित करने में कि वह मौके पर दिमाग को याद आ सके संगठित   करके  रखने  में नींद एक विधाई   भूमिका   निभाती   है .

लेकिन रात भर नींद से  महरूम   रहने   पर ऐसा हो ही यह कतई  ज़रूरी  नहीं है .हो सकता  है आप  पढ़ी याद की गई सामिग्री  का  बहुत  कम  अंश  ही याद रख  पायें  .

अपने प्रयोगों में डॉ .सुशील झा ने पाया कि जो चूहे एक काम को सीखने के फ़ौरन बाद छ :घंटा नींद से महरूम रखे गए वे अगले दिन उसी काम को दोहरा नहीं सके .

जबकी चूहों  के जिस समूह ने नींद भर सोया था ,पर्याप्त नींद ले ली थी  उन्हें वह काम याद रहा .

लेब अब इस बात की पड़ताल कर रही है कि क्या पाठ सीखने की क्रिया ,लर्निंग सोने के अंदाज़ ,स्लीप पैट्रन को भी तबदील करती है ? 

बिला शक यदि  आपने किसी तरह का प्रशिक्षण लिया है ,आपने कोई लर्निंग का ढंग सीखा है तब आप अधिक सोयेंगे .

ज़ाहिर है आप थकके नहीं सोयें हैं ,याददाश्त को पुख्ता, पक्का करने के लिए  ,प्राप्त प्रशिक्षण के तहत सोयें हैं .


अलावा  इसके नींद हमारे दिमाग की प्रोटीन  संश्लेषण करने वाली  मशीनरी  ,प्राविधि  को सक्रीय कर देती है .इसका फायदा याददाश्त को पक्का करने में मिलता है .

अलावा  इसके नींद दिमागी विकास में सहायक सिद्ध होती है .यही वजह है कि शिशु ज्यादा सोतें हैं क्योंकि इस दरमियान दिमागी विकास की रफ़्तार सर्वाधिक होती है .डॉ झा अशोशियेट प्रोफ़ेसर हैं न्यूरो -साइंसिज़  विभाग में .आप स्कूल को लाइफ साइंसिज़ से जुड़ें हैं . 


परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब सहायक ही हो यह ज़रूरी नहीं है .

 

  

रविवार, 29 अप्रैल 2012

परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब

एक बार और सारे पाठ्यक्रम को परीक्षा से पहले दोहराने के लिए अक्सर छात्र रात रात भर जागतें हैं .लेकिन क्या इसका फायदा भी है 
?कहीं ऐसा तो नहीं की अगली सुबह सब कुछ गुड गोबर हो जाए एक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाए और याद किया याद ही न आये एन वक्त पर परीक्षा की घडी में ?


स्कूल  आफ लाइफ साइंसिज़ जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने अपने एक अध्ययन में यह खुलासा किया है कि दिन भर में पढ़ी याद की गई सूचना को इस तरह रूपांतरित करने में कि वह मौके पर दिमाग को याद आ सके संगठित   करके  रखने  में नींद एक विधाई   भूमिका   निभाती   है .

लेकिन रात भर नींद से  महरूम   रहने   पर ऐसा हो ही यह कतई  ज़रूरी  नहीं है .हो सकता  है आप  पढ़ी याद की गई सामिग्री  का  बहुत  कम  अंश  ही याद रख  पायें  .

अपने प्रयोगों में डॉ .सुशील झा ने पाया कि जो चूहे एक काम को सीखने के फ़ौरन बाद छ :घंटा नींद से महरूम रखे गए वे अगले दिन उसी काम को दोहरा नहीं सके .

जबकी चूहों  के जिस समूह ने नींद भर सोया था ,पर्याप्त नींद ले ली थी  उन्हें वह काम याद रहा .

लेब अब इस बात की पड़ताल कर रही है कि क्या पाठ सीखने की क्रिया ,लर्निंग सोने के अंदाज़ ,स्लीप पैट्रन को भी तबदील करती है ? 

बिला शक यदि  आपने किसी तरह का प्रशिक्षण लिया है ,आपने कोई लर्निंग का ढंग सीखा है तब आप अधिक सोयेंगे .

ज़ाहिर है आप थकके नहीं सोयें हैं ,याददाश्त को पुख्ता, पक्का करने के लिए  ,प्राप्त प्रशिक्षण के तहत सोयें हैं .


अलावा  इसके नींद हमारे दिमाग की प्रोटीन  संश्लेषण करने वाली  मशीनरी  ,प्राविधि  को सक्रीय कर देती है .इसका फायदा याददाश्त को पक्का करने में मिलता है .

अलावा  इसके नींद दिमागी विकास में सहायक सिद्ध होती है .यही वजह है कि शिशु ज्यादा सोतें हैं क्योंकि इस दरमियान दिमागी विकास की रफ़्तार सर्वाधिक होती है .डॉ झा अशोशियेट प्रोफ़ेसर हैं न्यूरो -साइंसिज़  विभाग में .आप स्कूल को लाइफ साइंसिज़ से जुड़ें हैं . 


परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब सहायक ही हो यह ज़रूरी नहीं है .


महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला


महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला 

सबसे पहले जाने जी स्पोट है क्या ?


G-spot ;It is a highly sensitive small area in the vagina (on the front interior wall of the vagina) that when stimulated ,gives extreme sexual pleasure leading to huge orgasm .

स्त्री रोगों के माहिर एक अमरीकी साइंसदान ने G-spot के योनी के अन्दर सही ठिकाने का पता लगाने का 
दावा प्रस्तुत किया है .  इस एवज आपने एक ८३ वर्षीय मृतका की शव परीक्षा के दौरान एक सुव्याख्यायित थैली नुमा संरचना (Sac structure) को  योनी के अंदरूनी इलाके  से  अलग से  किया है .

विज्ञान पत्रिका 'सेक्स्युअल मेडिसन' में गाइनकोलाजिस्ट Adam Ostrzenski ने अपने इस अध्ययन को प्रकाशित   किया   है    .

इस अध्ययन से इसकी  शरीर  रचना वैज्ञानिक स्थिति का बोध सुस्पष्टत : पहली मर्तबा हुआ है .अब महिला के यौनविषयक (काम  विषयक )  प्रकार्य को बेहतर तरीके से बूझा जा सकेगा .इसमें बेहतरी की भी गुंजाइश रहेगी .

अध्ययन के प्रणेता Ostrzenski का  यही   कहना  है  .आप फिलवक्त इंस्टिट्यूट ऑफ़ गाईनोकोलोजी St Petersburg फ्लोरिडा  राज्य  से सम्बद्ध हैं .

ज्ञात हो जी -स्पोट का नामकरण जर्मनी के एक मशहूर स्त्री -रोगों के माहिर Ernst Graefenberg के नाम पर किया गया है .आपने ही इसकी अवधारणा १९५० में प्रस्तुत की .इसके होने का पहली मर्तबा ज़िक्र किया .इस पर परिचर्चा आमंत्रित की .

बकौल आपके यह योनी में अवस्थित ऐसा इलाका है जिसको समुचित उत्तेजन मिलने पर महिला काम शिखर पर पहुँच कर स्खलित हो जाती है .प्रशमित हो जाती है .प्रसादित हो जाती है .संतुष्ट हो जाती है .

लेकिन इसके केन्द्रीय करण सटीक और समुचित रेखांकन को लेकर मतेक्य नहीं रहा है .कुछ माहिरों ने इसे नितांत वैयक्तिक अनुभव बतलाया है महिला का ,इसके होने को ही निशाने पे लिया है .कुछ तो इसके होने को ही साफ़ साफ़ नकारतें हैं .

वर्तमान अध्ययन को भी संदेह की नजर से देखा जा रहा है .कहा जा रहा है अभिकल्पित जी -स्पोट कुछ महिलाओं के लिए यौन उत्तेजन का शीर्ष बिंदु हो सकता है .कामाग्नी सुलगा सकता है कुछेक में इसका उत्तेजन लेकिन सभी के साथ ऐसा ही  यह ज़रूरी नहीं है .

इसके पीछे सेक्स खिलौना निगमों का हाथ हो सकता है जो इस प्रकार की कथाएं इम्प्लांट करवा रहें हैं -एक बानगी देखिए-
Robot sex set to change rules of the mating game 

Robot sex can provide guilt and disease-free sex

और  फिर  यह  एक  अकेली  महिला  पर ही  किया  गया  अध्ययन  है  और  वह  भी  मृत , इसे  अधिकतम  शव  उच्छेदन  ही  कहा  जा  सकता  है  .

महिलाओं के सेंसिटिव जोंस ,यौन भड़काऊ ,काम उद्दीपक केंद्र अन -चीन्हें ही पड़े रहतें हैं .पड़ताल करके देखिये .ईयर लोंब्स भी कम भड़काऊ नहीं हैं .और कांख ? जाने दीजिए श्लील अश्लील का प्रश्न उठ जाएगा .सेंसिटिव जोंस पर चर्चा फिर कभी .

राम  राम  भाई  ! राम राम भाई !  राम राम भाई !







  

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं

रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण है यह ,मामूली नशा नहीं 


जैसे रूप का आकर्षण आँखों के ज़रिये दिमाग में चला जाता है वैसे ही रक्त तांत्रिक गांधिक आकर्षण शराब का माँ बाप से पीढ़ी   दर पीढ़ी होता हुआ बच्चे की रग रग में शायद चला आता है .यही वजह मालूम पड़ती है इस नशे की ,शराब के प्रति आकर्षण की जिसकी बिक्री वर्जित है अमरीका जैसे विकसित देशों में किशोर  किशोरियों   के  लिए  अठारह साला होने तक  .और यह वर्जना भी उत्प्रेरक बनके आती है किशोर मन के लिए की वह इसका विकल्प ढूंढें .और उसने ढूंढा Hand sanitizer में .जिसके चंद Swigs लेने के बाद ये किशोर किशोरी टल्ली हो जातें हैं सुरूर में आ जातें हैं .

वर्जनाएं शायद बनती ही टूटने के लिए हैं  ,शिक्षण ,जन शिक्षण समाधान हो सकता है इस विचलन से बचने का . 

Teens  drinking hand sanitizers for a quick high/TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA ,MUMBAI ,APRIL 26,2012,P १७

कफ   सीरप   और  अमृतसुरा  संजीवनी  आजमाने  के  बाद  अब  युवा  भीड़ किशोर किशोरियां   नशे पत्ते के लिए हेंड सैनिताइज़र  से मुखातिब है .चंद फुहारें मुंह में ली और हो गए टल्ली  नशा हो गया जल्दी से ली गई हार्ड ड्रिंक का .अल्प -नौज़वानों की इस नासमझी ने अमरीकी स्वास्थ्य कर्मियों और तमाम किस्म के माहिरों को चिंता में डाल दिया है क्योंकि यह नशा एक राष्ट्रीय तलब (सनक )बनता जा रहा है .


गत माह छ : किशोरों को एल्कोहल विषाक्तता (एल्कोहल पोइजनिंग )के इलाज़ के लिए अस्पताल में भर्ती होना पडा .ये सभी केलिफोर्निया निवासी थे .जबकी गए हफ्ते ही दो और किशोरों को इसी मर्ज़ के समाधान के लिए अस्पताल में भर्ती किया गया .

बकौल Cyrus Rangan   जो  पेशे  से Medical toxicology consultant हैं   और वर्तमान में चिल्ड्रन्स हॉस्पिटल लोस एन्जीलीज़ में कार्यरत हैं ,अब यह एक चलन सा ,एक फेशन स्टेटमेंट जैसे एक ट्रेंड ही बन चला है .खुले बाज़ार में शराब न मिल पाने की वजह से किशोर किशोरी घर दुआरे ,क्लिनिक ,स्कूल आदि में सहज सुलभ हेंड सैनिताइज़र्स की और मुड गएँ हैं . मुंह खोलके चंद फुहारें ली इसकी और हो गया काम टकीला (मेक्सिकन शराब जो एक ख़ास पेड़ के पत्तों से तैयार की जाती है )शाट सा .


2010 से अब तक अकेले केलिफोर्निया में इस मर्ज़(लत)  के २६०० मामले दर्ज़ हो चुकें हैं .और यह समस्या सिर्फ केलिफोर्निया राज्य तक महदूद (सीमित ) नहीं है . यह कहना   है Helen Arbogast साहब  का .आप चिल्ड्रन अस्पताल लोसेंजिलीज़ में ट्रोमा प्रोग्रेम के तहत इंजरी प्रिवेंशन समन्वयक हैं .को-ऑर्डिनेटर हैं इस प्रोग्रेम के .

Y -tube साक्षी  है २००९ से ही यह अमरीका के तमाम राज्यों     में एक क्रेज़  बन चला है .ऐसी क्रेज़ जो आसानी से पकड़ में नहीं आती .जब आती है बाज़ी  हाथ  से निकलने को होती है .

कितना एल्कोहल लिए है लिक्विड सैनीताइज़र  ?

मालूम हो यह (६२-६५)% इथाइल एल्कोहल या इथेनोल है .जो वाइन ,बीयर और स्पिरिट्स आदि का मुख्य घटक है .(अमरीका में भारतीय व्हिस्की को भी इंडियन स्पिरिट ही कहा जाता है).इस प्रकार यह १२० -प्रूफ हो जाता है .तुलना के लिए देखिये वोदका ८०-प्रूफ कहाता है .इसकी कुछ फुहारें मुखारबिंद को बारहा तर करती हैं और बस चार पांच हार्ड ड्रिंक्स का नशा हो जाता है .इसके पार एल्कोहल पोइजनिंग जिसकी वजह बनती है कम समय में ज्यादा मादक पदार्थ का सेवन .


इसके पार्श्व प्रभाव भी वही हैं जो बेहिसाब शराब पीने से ताल्लुक रखतें हैं .गफलती अस्पष्ट संभाषण (स्लर्ड स्पीच ,प्राय शराब के नशे में ऐसा होता है ).

अन -रेस्पोंसिव -नेस ,कान न दे पाना किसी बात को .

कोमा में भी संभवतया असरग्रस्त व्यक्ति जा सकता है .


इसका  दीर्घावधि इस्तेमाल  क्या  गुल  नहीं खिला  सकता ?

ब्रेन  ,लीवर ,किडनी डेमेज हो सकता है .इसके अवांछित असर से . 

मजेदार बात यह है किशोर भीड़ इसे नमक के साथ लेती है  ताकि इसमें मौजूद एल्कोहल जल्दी से  टूट के  अलग हो जाए इस सोल्यूशन से . 

अब और भी ज्यादा किक मिलती है .नशा पत्ता तेज़ हो जाता है .


इंटरनेट पर इसके इसी आसवन से ताल्लुक रखने वाले अनुदेश (निर्देश )ट्युटोरियल वीडियोज में सहज उपलब्ध हैं .ये एब्यूज है प्रोद्योगिकी का .रोकिये इसे रोक सको तो .

 



एक असामान्य प्रसव :जब मुरगी ने सीधे- सीधे चूजा पैदा किया

एक असामान्य प्रसव :जब मुरगी ने सीधे- सीधे चूजा पैदा किया 

Proved  : Chicken comes before egg  /TIMES TRENDS/THE TIMES OF INDIA/APRIL 21,2012

ज़ाहिर  है  इस इस बिरले असामान्य प्रसव में मुर्गी की जान पे बन आई .प्रजनन -प्रसव मार्ग में गहरे घाव बन गए .मुर्गी चल बसी .रह गया चूजा बिना माँ के .कुदरत की लीला निराली है .

केन्द्रीय श्री लंका के एक मुर्गी खाने में इस  विचित्र प्रसव की घटना सामने आई है . जिसमें   जननांग मार्ग  से अंडे की जगह चूजा ही सीधे -सीधे बाहर आया .

वेटनरी सर्जन (पशु शल्य चिकित्सा के माहिर ) पी आर यापा इस प्रसव के चश्मदीद गवाह बने .आप वेल्मिदा टाउन के  वेटनरी  इंचार्ज हैं .

बकौल आपके ऐसा प्रतीत होता है अंडे के सेने की प्रक्रिया तीन हफ्ते का इन्क्यूबेशन पीरियड (अंडा सेने की सामान्य अवधि )मुर्गी के शरीर में ही संपन्न हो गई .चूजा पूर्ण विकसित तथा प्रसव के बाद सामान्य और स्वस्थ रहा है .

'इस सामान्य से हटकर व्यवहार अनोखे प्रसव के बारे में मैंने सुना  भर था'-  देखा अब है विस्मित होते हुए आपने बुदबुदाया था .

मुर्गी का बाकायदा पोस्ट मोटम (शव परीक्षण) किया गया .पता चला गहरे और अंदरूनी जख्म खाने की वजह से मुर्गी की मृत्यु हुई .प्रजनन मार्ग कट फट गया था ,गहरे घाव थे .

जानते हैं अंग्रेजी के एक अखबार ने इस घटना को चटखारे लेके प्रस्तुत किया जैसे उसके हाथ अलादीन का खजाना लग गया हो ,'गोड पार्टिकिल ' हाथ लग गया हो ,न्यूट्रिनो मिल गया हो इस रिपोर्टर को .पूर्णत : संवेदन हीन रिपोर्टिंग को शीर्षक दिया गया -
  
Proved :  Chickes comes before egg

जैसे किसी अबूझ विज्ञान पहेली 'होली ग्रेल ऑफ़ साइंस' का हल  इसके हाथ लग गया हो . 

हल कर ली गई है पहेली मुरगी पहले आई या अंडा 

क्या यह सटीक शीर्षक होता इस विरल घटना का ?

यह तर्क वैसे ही है जैसे कहीं  पर तेजाबी बारिश हो और कोई विज्ञान पत्रकार कह उठे -आसमान के एक हिस्से का खून हो गया  है  .निष्कर्ष निकाले -खून आसमान से बरसता है .

कोई किसी कुतिया को बंदरिया के मासूम बच्चे को दूध पिलाते देख अगले दिन के रिसाले में लिख मारे -बन्दर कुतिया के पेट से आते हैं वह ही इनकी स्वाभाविक माता होती है .

कोई औरत किसी ऐसे असामान्य बच्चे को जन्म दे जिसका एक अंग पशु जैसा हो और कोई निष्कर्ष निकाले -पशु औरतों के पेट से ही आते हैं .

अर्थ का अनर्थ ऐसे ही होता है .

जब कोई कुतर्की निर्बुद्ध असामान्य घटनाओं को अपवादों को नियम मान निष्कर्ष निकालता है तब ऐसा ही होता है .कहाँ से आ गए ये अबुद्ध ,मंद मति विज्ञान पत्रकारिता में ?

  मुरगी ने चूजा दिया यह इसलिए अपवाद है क्योंकि मुरगी अंडज है .यह न तो नियम और न ही कोई निष्कर्ष निकालने का आधार .

कबीरा खडा बाज़ार में सबकी चाहे खैर ,
न काहू से दोस्ती , न काहू से बैर .

बुरा लगे या भला , लिख दिया सो लिख दिया .

राम  राम  भाई राम राम भाई !  

आरोग्य की खिड़की 


(१) विटामिन डी रहता है मददगार हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में 

एक नए अध्ययन के अनुसार हाई ब्लड प्रेशर को कम करने में विटामिन डी सम्पूरण की रोजाना ली जाने वाली एक खुराक भी उतनी ही कारगर सिद्ध होती है जितनी तजवीज़ की गई दवाएं ,प्रेस्क्रिप्शन ड्रग्स .

अपने अध्ययन में Holstebro Hospital ,Denmark में रिसर्चरों की एक टीम ने विटामिन डी सम्पूरण की एक खुराक रोजाना २० सप्ताह तक ११२ हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को मुहैया करवाई .पता चला यह सम्पूरण भी ब्लड प्रेशर का विनियमन करने में उतना ही  कारगर रहा जितना की नुस्खे पे लिखी जाने वाली दवाएं .

(२) बढ़िया  रहता है चुकंदर खिलाड़ियों और सभी धावकों के लिए 

बीटरूट का नियमित सेवन खिलाड़ियों के दमखम में इजाफा करता है .धावक अपनी लम्बी दूरी दौड़ कम समय में संपन्न कर लेते हैं .फिनिश लाइन पर तेज़ी से पहुंचतें हैं इसका सेवन करने वाले धावक .
 
अमरीका  की  St  Louis  University के रिसर्चरों ने पता लगाया है कि जो धावक दौड़ शुरू होने से पहले भुने हुए चुकंदर का सेवन कर लेतें हैं वह पांच किलोमीटर ज्यादा तेज़ दौड़ लेते हैं बरक्स अन्यों के .


(३) स्त्राबेरीज़ और ब्ल्युबेरीज़ दिमाग को धारदार बनाए रहतीं हैं  

उम्र दराज़ होने पर भी स्त्राबेरीज़ और ब्ल्युबेरीज़ का नियमित सेवन करते रहना दिमाग को शार्प तेजतर्रार याददाश्त क्षम बनाए रहता है .यह कमाल है इनमे मौजूद Flavonoids के प्राचुर्य का .बुढापे में याददाश्त खोते चले जाने की प्रक्रिया को इनका सेवन ढाई साल आगे खिसका देता है .बोध क्षमताएं देर तक बरकरार रहतीं हैं .

(४)  लोक लुभाऊ चमक दार गहरे रंग की तरकारियों का नियमित  सेवन कैंसर समूह के तथा दिल के रोगों से बचाए रहने में ज्यादा मददगार सिद्ध होता है .

(५) टखने की मोच से राहत के लिए

कलाई या टखने का मोच खा जाना एक आम बात है पीड़ा दायक भी सिद्ध होता है .राहत के लिए इसे अपने दिल से ऊंचा रखते हुए बर्फ की आधा घंटा सिकाई कीजिये .

To cure an ankle sprain ,elevate it above your heart and apply an ice pack for 30 minutes.

(6)  एक  खतरनाक   नशीले   पदार्थ कोकेन के सेवन का मतलब दिमाग को बुढापे की और ढकेलना है .इसके आदी हो चले लोगों में ब्रैनवोल्युम का हर साल दोगुना ह्रास होता है अन्यों के बरक्स . दिमाग के बुढ़ाने के साथ ही इन लोगों में 'ग्रे मेटर' भी कम होता चला जाता है .बोध  सम्बन्धी क्षमताओं के छीजने की वजह ग्रे मेटर की कमी ही बनती है .

Gray matter  /greymatter 

    व्यक्ति  की  बौद्धिक क्षमता का द्योतक  /पैमाना होता है ग्रे मेटर .

Gray matter means intelligence or brains .It is the brownish -grey nerve tissue consisting mainly of nerve cell bodies within the brain and spinal cord.

The darker coloured tissues of the central nervous system ,composed mainly of the  cell bodies of neurons ,branching dendrites ,and glial cells are together referred to as grey matter .

In the brain grey matter forms the cerebral cortex and the outer layer of the cerebellum ; in the spinal cord grey matter lies centrally and is surrounded by white matter.

(7) आर्थराइतिस के दर्द के मुकाबले के लिए duloxetine की जादुई गोली 

ऑस्टियोआर्थराइतिस के मरीजों को घुटने के दर्द से राहत दिलवाने के लिए साइंसदान लेकर आयें हैं एक नै (दर्द निवारक )गोली Duloxetine .समझा  जाता  है  यह  गोली घुटने के दर्द को देखते ही देखते काफूर कर देगी .जबकी परम्परा गत एंटीइन्फ्लेमेत्री दवाएं दीर्घावधि सेवन के बाद स्टमक डेमेज की वजह बनतीं हैं .अन्य अवांछित प्रभाव भी सामने आतें हैं .  

रविवार, 22 अप्रैल 2012

कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन


कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग तीन

डॉ. दाराल और शेखर जी के बीच का संवाद बड़ा ही रोचक बन पड़ा है, अतः मुझे यही उचित लगा कि इस संवाद श्रंखला को भाग --तीन के रूप में " ज्यों की त्यों धरी दीन्हीं चदरिया " वाले अंदाज़ में प्रस्तुत  कर दू जिससे अन्य गुणी जन भी लाभान्वित हो सकेंगे |

वीरेंद्र शर्मा
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
डॉ टी एस दराल ने कहा
seems to be unrealistic.
18 अप्रैल 2012 5:05 am
THE HEALER ने कहा

Dr. T.S. Daral,

 " seems to be unrealistic." 

Thanks for being skeptical... 

I would have commented the same as yours, had I been one of the readers, like you.

But I would appreciate more if you could be more specific in your skeptical areas...

I don't say that I would convince you but surely I would try my best to be most honest, realistic and factual also, as well.

Thanks again for your interest shown.

Regards,
SHEKHAR GEMINI
18 अप्रैल 2012 8:26 am
ब्लॉगर डॉ टी एस दराल ने कहा
वीरुभाई जी , इस विषय में तर्क वितर्क में पड़ना शायद उचित नहीं होगा . हमारा देश ही श्रद्धा , विश्वास और भक्ति भावना पर चल रहा है . लेकिन फेथ हीलिंग में हम तो विश्वास नहीं कर सकते . यहाँ बताये गए रोगों के तीन कारण तो सही हैं . लेकिन अनुवांशिक / जेनेटिक defects को कैसे सही किया जा सकता है , यह मेरी समझ से बाहर है . 
संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल ज़रूरी है वर्ना यह लाइफ threatning हो सकता है . ऐसी स्थिति में किसी को यह सलाह नहीं दी जा सकती की वह कोई विकल्प का सहारा ले . 

लाईफ स्टाईल मोडिफिकेशन तो सबके लिए ज़रूरी है . लेकिन यह बस स्वस्थ रहने में सहायक होता है , उपचार नहीं . बताये गए अधिकतर रोगों को कंट्रोल तो किया जा सकता है लेकिन उल्मूलन नहीं . कुछ रोग सेल्फ लिमिटिंग होते हैं , कुछ सायकोलोजिकल , कुछ खाली मन का वहम . 
अंत में यही कह सकता हूँ --गुड़ ना दे , गुड़ जैसी बात तो करे . लेकिन अफ़सोस स्वास्थ्य के मामले में यह कहावत फिट नहीं बैठती . 
पता नहीं ये पोस्ट आपने क्यों लिखी ! 
कृपया अन्यथा न लें . न ही शेखर जी से कोई शिकायत है .
20 अप्रैल 2012 11:09 pm
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SHEKHAR GEMINI ने कहा…

डॉ टी एस दराल क़ी सेवा में प्रस्तुत सादर
प्रतिवेदन :

n  इस विषय में तर्क वितर्क में पड़ना शायद उचित नहीं होगा हमारा देश ही श्रद्धा, विश्वास और भक्ति भावना पर चल रहा है. लेकिन फेथ हीलिंग में हम तो विश्वास नहीं कर सकते.” 

è  बिलकुल सही कहा जनाब ने... ' फेथहीलिंग ' या ' प्लेसिबो इफेक्ट ' को चिकित्सा  पद्धति का दर्ज़ा   नहीं दिया जा सकता... हाँ, ये मरीज़ की  हौसला-अफ़ज़ाई के लिए अच्छे हैं |

n  लेकिन अनुवांशिक / जेनेटिक defects को कैसे सही किया जा सकता है, यह मेरी समझ से बाहर है.

è  हुज़ूर को याद दिला दूँ कि आज जेनेटिक्स पर सर्वाधिक शोध-कार्य चल रहा है और जेनेटिक-कोड के साथ ख़ासी छेड़खानी भी क़ी जा रही है | इस नाचीज़ ने भी इस दिशा में कुछ ठोस उपलब्धि हासिल कर ली है, इसमें आपत्ति-जनक क्या है...?

क्या समस्त शोध-कार्य अमेरिका व पश्चिमी जगत पर जाकर समाप्त हो जाते हैं..?

ऐसा क्यूँ है कि हमारी खोजों पर संदेह करने का अधिकार सिर्फ़ पश्चिमी देशों को या उन जैसी सोच  रखने वाले  अन्य लोगों को तो है, लेकिन  नयी खोज व शोध के नाम पर जो कुछ भी ( चाहे वो कचरा ही क्यूँ न हो ) पश्चिम से आता है, उसे हम बिना किसी संदेह के, बिना  skeptical  हुए सर-माथे से लगा लेते हैं |

और साथ ही स्थानीय शोध-कार्य को सिरे से ही नकारने क़ी पूरी कोशिश करते हैं, उसे अपनी बात वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करने की भी सुविधा देने में ख़ासी कंजूसी  बरतते  हैं |

n  संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल ज़रूरी है वर्ना यह लाइफ threatening हो सकता है. ऐसी स्थिति में किसी को यह सलाह नहीं दी जा सकती कि वह कोई विकल्प का सहारा ले. 

è  और जहाँ एंटीबायोटिक्स भी किसी संक्रमण को काबू करने में आंशिक या पूर्णतः नाकामयाब रहे तो ? तो  क्या वहाँ भी " किसी को यह सलाह नहीं दी जा सकती कि वह कोई विकल्प का सहारा ले.” ...???

ऐसे एक नहीं, हज़ारों उदहारण दिए जा सकते हैं, जहाँ एंटीबायोटिक्स कई एक संक्रमणों  पर पूरी तरह से नाकामयाब रही है अथवा उसके कारण हुईं प्रतिक्रियाएं व पार्श्व प्रभावों ने मरीज़ के स्वास्थ्य पर बुरी तरह से नकारात्मक असर डाला है |

तो क्या ऐसी अवस्था में भी हमें ऐलोपथी या उसकी तथाकथित जीवन-रक्षक ( अथवा स्वास्थ्य - भक्षक...???) दवाओं की अंध-भक्ति करनी चाहिए...?

n  लाईफ स्टाईल मोडिफिकेशन तो सबके लिए ज़रूरी है . लेकिन यह बस स्वस्थ रहने में सहायक होता है , उपचार नहीं.”

è  बज़ा फ़रमाया..!

n  बताये गए अधिकतर रोगों को कंट्रोल तो किया जा सकता है लेकिन उल्मूलन नहीं.

è  सिर्फ़ ऐलोपथिक नज़रिए  से.. और ऐलोपथिक नज़रिया चिकित्सा जगत में न पहला है और न ही अंतिम... हाँ लोगों को इसके सम्मोहन  जाल  तथा ' एकमात्र जीवन रक्षक औषधि ' वाले दृष्टिकोण से बाहर आकर भी देखने क़ी ज़रुरत है |

n  कुछ रोग सेल्फ लिमिटिंग होते हैं , कुछ सायकोलोजिकल , कुछ खाली मन का वहम .
अंत में यही कह सकता हूँ --गुड़ ना दे , गुड़ जैसी बात तो करे . लेकिन अफ़सोस स्वास्थ्य के मामले में यह कहावत फिट नहीं बैठती.

è  रोग की इन तीनों ही अवस्थाओं में " --गुड़ ना दे , गुड़ जैसी बात तो करे.." वाली कहावत बहुत  हद तक कारगर सिद्ध हुयी है |

हाँ, स्वास्थ्य ( या बीमारियों के..? ) के बाकी मामलों में सिर्फ़ गुड़ वाली बात से काम नहीं  चल सकतासमुचित दवाओं का सेवन तथा पथ्य एवं उचित परिचर्या परमावश्यक हो जाती  है |

n  पता नहीं ये पोस्ट आपने क्यों लिखी ! “

è  लेख-लिखी को वीरुभाई जानें ..!!!

n  कृपया अन्यथा न लें . न ही शेखर जी से कोई शिकायत है.”

è  अंत में, आप से भी ( और आप सब विज्ञ जनों से से भी )  गुज़ारिश है कि मेरे प्रतिवेदन को कृपया अन्यथा न लें  और न ही इसे किसी भी अर्थ मेंमेरी तरफ से किसी के भी प्रति, किसी भी प्रकार की शिकायत समझा जाए...!

शेखर जेमिनी के प्रणाम