शनिवार, 18 सितंबर 2010

बेड बोसिज़ की वजह से नहीं टिकटें हैं लोग कितनी भी अच्छी हो फिर फर्म

बेड बोसिज़ बिहाइंड रेज़िग्नेश्न्स (दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया ,मुंबई ,सितम्बर १८ ,२०१० ,पृष्ठ १९ )।
यदि आप अच्छे बोस नहीं है ,तब अकसर आपको अपने मातहतों (सब -ओर्दिनेट्स )से सुनने को मिलेगा :"आई क्विट".इसमें चौंकने जैसा ज़रा भी कुछ नहीं है यह सब तो आपको सुनना ही पड़ेगा .आखिर किसी भी संगठन ,ओर्गेनाई -जेशन ,फर्म या कम्पनी की साख उसके बोस के भी बहुत कुछ हाथों में होती
ही है .उसका मिजाज़ अच्छा हो तो मुलाजिम भी टिके रहतें हैं दिल से काम करते हैं वगरना :"राम राम भाई ".हम चले ,तुम अपनी ढपली ऐसे ही बजावो .
एक ग्लोबल (ग्लोबी ,भू -मंडलीय )रिसर्च ओर्गेनाई -जेशन ने एक गेलाप पोल में पता लगाया है :बोस की क्षमता (केलिबर )पर बहुत कुछ मुलाज़िमों का संगठन के साथ बने रहना निर्भर करता है .लेकिन उनके संगठन से छिटकने की बड़ी वजह भी बोस की बदमिजाजीही बनती है ।
वर्क प्लेस प्रबंधन के माहिर टोनी विल्सन कहतें हैं ,जब मुलाजिम फर्म छोड़कर जातें हैं तब यह मालिकान के लिए आत्मालोचन का वक्त होना चाहिए .आप इंडियाना विश्व विद्यालय में संपन्न एक रिसर्च का हवाला देतें हैं .रिसर्च का मूल स्वर काबिले गौर है :बोस का रिश्ता उतना ही एहम होता है अपने मुलाज़िमों के संग जितना अपने जीवन संगी के लिए होता है .केवल ऑपरेशंस पर तवज्जो देते रहना काफी नहीं है .सिस्टम्स, स्ट्रे -टे -जीज़(रण -नीतियाँ ) अपनी जगह एहम हैं ,उत्पाद और सेवायें भी महत्त्व पूर्ण हैं लेकिन इन सबसे ऊपर आपका आपके मुलाज़िमों के संग अन्तरंग रिश्ता है .बिन रिश्ते सब सून .अकेला चना क्या भाड़ झौंकेगा ?

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