बुधवार, 22 सितंबर 2010

टोक्सिक फूड्स का मिथ ?(ज़ारी )

(गत पोस्ट से आगे ......)
विधाता ने मनुष्य को दो टाँगे दी है ,तो बैठे रहने के लिए नहीं चलने के लिए दी हैं फिर चाहे वह साइकिल हो या मर्क .दोनों का ही आदर्श स्तेमाल ज़रूरी है .व्यायाम कोशाओं तक बेहतर रक्तापूर्ति और पुष्टिकर तत्व पहुंचाने का ज़रिया बनता है .टोक्सिंस की शरीर से निकासी में मददगार रहता है .यह एक प्रभावी तरीका है हमारे शरीर तंत्र को पुष्ट और उसे विषाक्त पदार्थों से मुक्त बनाए रखने का .जो लोग नियमित व्यायाम करतें हैं उनका पेट साफ़ रहता है .कोई विरेचक लेने की ज़रुरत पडती है ना एनीमाज़ लगाने की .व्यायाम कुदरती निकासी का ज़रिया है मल- मूत्र और अपशिष्ट पदार्थ ,वेस्ट मैटरगंदगी अवांछित तत्वों के लिए ।
पिल्स, पाऊ -डर्स ,स्टीम, सौना आदि से ज़बरिया दस्त करवाना शरीर से ज़रूरी विटामिन -डी को भी बाहर कर देता है ,इंटेस -टिनल फ्लोरा और फौना को भी .ऐसे में पाचन बाधित हो जाता है जिससे शरीर में विषाक्त पदार्थों की मात्रा घटने की जगह और बढने लगती है ।
गौर तलब है :नियमित व्यायाम शरीर की तीसरी किडनी त्वचा या चमड़ी को भी उत्तेजन प्रदान कर सक्रीय कर देता है .पसीना अपने साथ सारा विषाक्त पदार्थ बहा ले जाता है .इसीलिए तो लोग डी -टोक्स करने के लिए व्यायाम करतें हैं .मेहनत की कमाई खातें हैं (हराम की खाने वालों की बात हम नहीं करतें ,उनकी वो जाने ).
और अब आखिर में मन की गति की, मानसिक स्थिति की बात करतें हैं .वेट को लेकर कई लोग बे -तरह ओब्सेस्ड रहतें हैं ,कमतर वेस्ट लाइन वाले कपडे खरीद लेतें हैं फिर उनमे फिट होने की हाड तोड़ कोशिश भी करतें हैं .जब आप एक फिटनेस फैशन ट्रेंड के पीछे वगैर अपनी सीमाएं पहचाने चल पडतें हैं ,एक फैड- डाइट के दीवाने हो जातें हैं तब इसे फोलो करने से पहले ही आप अपना कबाड़ा कर लेतें हैं .डी -टोक्सिफिकेशन तभी कारगर रहता है जब दिमाग शरीर को जैसा भी वह है स्वीकृति प्रदान कर देता है .और एक जिम्मेदाराना एहसास के साथ उसे आवश्यक पोषक तत्व से पोषित पल्लवित भी करता है मौज मस्ती के साथ .शर्मो -हया या फिर किसी हीन भावना से ग्रस्त हो इसे आवश्यक तत्वों से महरूम रखना अक्लमंदी नहीं है .(समाप्त )

कोई टिप्पणी नहीं: