सोमवार, 30 सितंबर 2013

श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (१५ - २० )

श्रीमदभगवद गीता अध्याय चार :श्लोक (१५ - २०      )




एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म , पूर्वैर अपि मुमुक्षुभि :

कुरु कर्मैव तस्मात् त्वं ,पूर्वै: पूर्वतरं कृतं (४. १५) 


प्राचीन काल  के मुमुक्षुओं ने इस रहस्य को जानकार कर्म किये हैं। इसलिए तुम भी अपने कर्मों 

का 

पालन उन्हीं की तरह करों। 


सकाम ,निष्काम ,और निषिद्ध कर्म 


किं कर्म किम अकर्मेति ,कवयोप्य अत्र मोहिता :

तत ते कर्म प्रवक्ष्यामी ,यज ज्ञात्वा मोक्ष्यसे अशुभात (४. १६ )


विद्वान मनुष्य भी भ्रमित हो जाते हैं कि कर्म क्या है तथा अकर्म क्या है ,इसलिए मैं तुम्हें कर्म के रहस्य को समझाता हूँ ;जिसे जानकर तुम कर्म के बंधनों से मुक्त हो जाओगे। 


कर्मणो हियपि बोद्धव्यं ,बोद्धव्यं च विकर्मण :

अकर्मणश्च बोद्धव्यं ,गहना कर्मणो गति :(४. १७ )


सकाम कर्म ,विकर्म अर्थात पापकर्म तथा निष्काम- कर्म (अर्थात अकर्म )के स्वरूप को भलीभाँति जान लेना चाहिए ,क्योंकि कर्म की गति बहुत ही न्यारी है। 

सकामकर्म स्वार्थपूर्ण कर्म है ,जो कर्मबंधन पैदा करता है। निषिद्ध कर्म को विकर्म कहते हैं ,जो करता और समाज दोनों के लिए हानिकारक है। अकर्म या निष्काम कर्म निस्वार्थ सेवा है ,जो मुक्ति की ओर ले जाता है। 



कर्मयोगी को कर्मबंधन नहीं 


कर्मण्य अकर्म य : पश्येद ,अकर्मणि च कर्म य :

स बुद्धिमान मनुष्येशु ,स युक्त : कृत्स्नकर्मकृत (४.  १८ )


जो मनुष्य कर्म में अकर्म तथा अकर्म में कर्म देखता है ,वही ग्यानी ,योगी तथा समस्त कर्मों का करनेवाला है। (अपने को कर्ता नहीं मानकर प्रकृति के गुणों को ही कर्ता मानना कर्म में अकर्म तथा अकर्म  में कर्म देखना कहलाता है। ). 

सभी कर्म निष्काम सक्रिय कर्ता ब्रह्म के हैं। बाइबिल का कथन है -शब्द ,जो तुम बोलते हो ,तुम्हारे नहीं हैं। उनमें तुम्हारे परमपिता ,प्रभु की आत्मा बोलती है। सुधिजन ब्रह्म की अन्तर्निहित ऊर्जा (Potential Energy ) के निष्क्रिय ,अनंत और अदृश्य भण्डार में ब्रह्माण्ड की समस्त प्रभासित गतिमान ऊर्जा (Kinetic Energy )का मूल स्रोत देखते हैं,वैसे ही जैसे बिजली के पंखे की गति अदृश्य विद्युत् के संचरण से होती है। कर्म की प्रेरणा और शक्ति ब्रह्म से ही आती है। अत :व्यक्ति को समस्त कर्मों को अध्यात्ममय  बना देना चाहिए ,यह आभास कर  कि व्यक्ति स्वयं कुछ भी नहीं करता है ;सब कुछ हमें मात्र माध्यम बनाते हुए ब्रह्म की ऊर्जा से ही होता है। 

त्यक्त्वा कर्मफलासंगगं ,नित्यतृप्तो निराश्रय :

कर्मण्य अभिप्रवृत्तो अपि ,नैव किंचित करोति स :(४.२० )

जो मनुष्य कर्मफल में आसक्ति का सर्वथा त्यागकर ,परमात्मा में नित्यतृप्त रहता है तथा भगवान् के सिवा किसी का आश्रय नहीं लेता ,वह कर्म करते हुए भी (वास्तव में )कुछ भी नहीं कर्ता (तथा अकर्म रहने के कारण कर्म बंधनों से सदा मुक्त रहता है। )


CUTTING EDGE MEDICAL TECHNOLOGY 


अभिनव चिकित्सा प्रोद्योगिकी का शिखर है -नैनो नाइफ़ 


What is NanoKnife  ?

कुछ मामले ऐसे होते हैं जहां कैंसरगांठ ,कैंसर ग्रस्त अंग को  को काट के नहीं फैंका  जा सकता परम्परागत शल्य के दायरे से ये बाहर बने रहते हैं जैसे यकृत का कैंसर (Liver Cancer ),अग्नाशय का कैंसर (Pancreatic Cancer ).,गुर्दों और अधिवृक्क ग्रंथि के कैंसर (Cancers of Kidneys and Adrenal glands )लसिका (Lymph nodes )  श्रोणी क्षेत्र (Pelvis )का कैंसर आदि , जहां मरीज़ के रोगमुक्त हो जाने की संभावना बहुत क्षीण बनी रहती है (Poor prognoses)वहां भी एक आस की किरण है नैनोनाइफ़ जिसमें  न कोई चीरा है न चाक़ू, सिर्फ बिजली की ताकत (विद्युत ऊर्जा ,विद्युत धारा ),Electric current का इस्तेमाल किया जाता है। 

परम्परागत रेडिओफ्रीकुवेंसी एबलेशन (Radiofrequency ablation )एवं माइक्रोवेव एबलेशन(Microwave ablation ) में ताप ऊर्जा (Heat energy )का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें ट्यूमर के पास के हिस्से भी नष्ट हो सकते हैं ,क्षति पहुँच सकती है कैंसर गांठ के आसपास वाले हिस्सों को। यहाँ ट्यूमर एबलेशन का काम विद्युत् स्पन्दें करती हैं। एक दमसे संकेंद्रित रहतीं हैं ये स्पंद।



Irreversible -electroporation (अ -परिवर्त्य विद्युत् छिद्रण )कहा जाता है इस प्राविधि को जिसमें सुईंनुमा इलेक्ट्रोड अर्बुद (Tumor)के गिर्द फिट कर दिए जाते हैं।
दरअसल  मृदु ऊतक से बनी कैंसर गांठ हमारे बहुत ही मह्त्वपूर्ण  अंगों को ,रक्त वाहिकाओं ( Blood vessels )और तंत्रिका तंतुओं (नर्व्ज़ )को घेरे रहतीं हैं। इसीलिए इनको अलग करना बड़ा दुस्साध्य क्या असम्भव ही सिद्ध होता है।

यहीं पर नैनोनाइफ़ की प्रासंगिकता और कारगरता दोनों काम आतीं हैं बा -शर्ते ट्यूमर्स का आकार तीन सेंटीमीटर या उससे भी कम रहा हो। इससे बड़ी कैंसर गांठों को कभी कभार क्रमिक (श्रृंखला बद्ध )इर्रिवर्सिबिल इलेक्टोफोरेशन (विद्युत् छिद्रण )से ठीक कर लिया जा सकता है। 

जहां शल्य मुमकिन ही न हो उन अंगों के लिए ही इसका अपना अप्रतिम स्थान है फिलाल। 

किनके लिए नहीं है यह प्राविधि ?

जिन्हें, जिनको  या तो कार्डिएक पेसमेकर लगा हुआ है या फिर जिनकी हार्ट बीट असामान्य रहती है ,जिन्हें नर्व उद्दीपन का सहारा लेना पड़ता है उनके लिए नहीं है यह अभिनव प्राविधि।  

4 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…


कर्म से अकर्म की ओर ले जाता मार्ग ....
आभार ।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

अकर्म की गहन व्याख्या

रविकर ने कहा…

सुन्दर भावानुवाद -
आभार आदरणीय वीरू भाई-

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही सुंदर व्याख्या.

रामराम.