पढ़िए कवि रसखान साहब को- हमने इंटरमिडी -एट साइंस में यह छंद
पढ़ा था डीएवीइण्टर कालिज बुलंदशहर में हमारे शिक्षक थे
वागीश -
डॉ जगदीश चन्द्र शर्मा. आज अचानक भक्ति योग के सन्दर्भ में इसकी
स्मृति ताज़ा हो आई जगदगुरु कृपालुजी महाराज का प्रवचन
सुनते हुए।
पढ़ा था डीएवीइण्टर कालिज बुलंदशहर में हमारे शिक्षक थे
वागीश -
डॉ जगदीश चन्द्र शर्मा. आज अचानक भक्ति योग के सन्दर्भ में इसकी
स्मृति ताज़ा हो आई जगदगुरु कृपालुजी महाराज का प्रवचन
सुनते हुए।
सेष महेस दिनेस गनेस सुरेसहुं जाहि निरंतर ध्यावैं ,
संकर से सुक व्यास रटै,पचिहारि तउ पुनि पार न पावैं ,
ताहि अहीर की छोहरियाँ ,छछिया भर छाछ पे नांच नचावैं.
व्याख्या :रसखान कवि कृष्ण की महिमा का बखान करते हुए कहते हैं
:जिस परात्पर (पर ब्रह्म )कृष्ण का शेषनाग ,महादेव ,सूर्यदेव
,गणेशजी और इंद्र भी निरंतर ध्यान करते हैं और वेद जिसके लिए
अनादि ,अखंड ,अछेद्य ,अभेद जैसे विशेषणों का प्रयोग करते हैं
,भगवान् शंकर ,शुकदेव और व्यास मुनि जैसे जिनका जप करते हैं और
फिर भी उनका भेद पाने में सफल नहीं होते हैं ऐसे परात्पर
परब्रह्म अनादि अखंड और अनन्त कृष्ण को बाल रूप में पाकर अहीरों
की छोरियां (गोप बालाएं )छाछ के हंडिया और मख्खन का
लालच दिखाकर मनमाना नांच नचवाती हैं।कभी कहती हैं -
:जिस परात्पर (पर ब्रह्म )कृष्ण का शेषनाग ,महादेव ,सूर्यदेव
,गणेशजी और इंद्र भी निरंतर ध्यान करते हैं और वेद जिसके लिए
अनादि ,अखंड ,अछेद्य ,अभेद जैसे विशेषणों का प्रयोग करते हैं
,भगवान् शंकर ,शुकदेव और व्यास मुनि जैसे जिनका जप करते हैं और
फिर भी उनका भेद पाने में सफल नहीं होते हैं ऐसे परात्पर
परब्रह्म अनादि अखंड और अनन्त कृष्ण को बाल रूप में पाकर अहीरों
की छोरियां (गोप बालाएं )छाछ के हंडिया और मख्खन का
लालच दिखाकर मनमाना नांच नचवाती हैं।कभी कहती हैं -
ऐसे नाँचो कभी कहती हैं वैसे नाँचो ,त्रिभंगी हो जाओ -
जो तुम आवो लला बरसाने नाकन चना चबाऊँ ,
लहंगा पहराऊँ तोहे बाँधूँ पैजनियाँ ,
बहुत ही नांच नचाऊँ लला,
मैं अबके फाग रचाऊँ लला मैं ,..... ,
13 टिप्पणियां:
आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 26/09/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" पर.
आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा
प्रेम का प्रताप अनन्त है।
रसखान जी को पढना हमेशा सुखद रहा है-
कल नरोत्तमदास को भी पढ़ा
बहुत बढ़िया आदरणीय-
आभार आपका-
bahut badhiya kuchh hatkar ....
बहुत खूब,रसखान जी की रचनाओ को पढना अच्छा लगा ! आभार
नई रचना : सुधि नहि आवत.( विरह गीत )
प्रीत की रीत निराली..
Jai मुरलीधर सरकार
प्रेम जगत का सार जय गोवेर्धन गिरधारी
Very interesting
प्राकृत भाषा की बात ही निराली है .
Ram Ram Bhaiyaaaa
अनुपम...!
एक टिप्पणी भेजें