रविवार, 22 सितंबर 2013

श्रुति ,पुराणों में राधा

श्रुति एवं पुराणों  में राधा 

मेंशन ऑफ़ राधा रानी इन स्क्रिप्चर्स (Mention of Radha Rani in Scriptures)

देखें वेद (श्रुति )क्या कहते हैं ?

इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते पिवा त्वस्य गिर्वण :(ऋग्वेद ३. ५ १. १ ० )

ओ राधापति श्रीकृष्ण ! जैसे गोपियाँ तुम्हें भजती हैं वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं। उनके द्वारा सोमरस पान करो।

विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य  राधस : सवितारं नृचक्षसं (ऋग्वेद १ .  २ २.  ७). 

ओ सब के हृदय में विराजमान सर्वज्ञाता दृष्टा जो राधा को गोपियों में से ले गए हमारी रक्षा करो। 

त्वं नृचक्सम वृषभानुपूर्वी : कृष्नास्वग्ने अरुषोविभाही (ऋग्वेद )

इस मन्त्र में श्री राधा के पिता वृषभानु का उल्लेख किया गया है जो अन्य किसी भी प्रकार के संदेह को मिटा देता है ,क्योंकि वही तो राधा के पिता हैं। 

यस्या रेणुं   पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त :

                             -(अथर्व वेदीय राधिकोपनिषद )

राधा वह शख्शियत है जिसके कमल वत   चरणों की रज श्रीकृष्ण अपने माथे पे लगाते हैं। 

पुराणों में श्री राधे :

वेदव्यास जी ने श्रीमदभागवतम के अलावा १७ और पुराण रचे हैं इनमें से छ :में श्री राधारानी का उल्लेख है। 

यथा राधा प्रिया विष्णो : (पद्म पुराण )

राधा वामांश संभूता महालक्ष्मीर्प्रकीर्तिता (नारद पुराण ) 

तत्रापि राधिका शश्वत (आदि पुराण )

रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने (मतस्य पुराण १३. ३७ )

राध्नोति सकलान कामान तेन राधा प्रकीर्तित :(देवी भागवत पुराण )

अब भागवत से भी एक उद्धरण देखिये :

शुकदेव परमहंस ने  परीक्षित को यह भागवत पुराण सुनाई थी। शुकदेव जी महाराज श्री राधे के चिरंतन  सहचर  (eternal associate )हैं।लीला शुक हैं शुक देव महाराज जो गोलोक में जहां श्री राधे निवास करती हैं  अत्युत्तम बातें सुनाया करते हैं। राधा रानी के प्रति उनका अनन्य प्रेम इतना प्रगाढ़ है कि एक मर्तबा  राधा नाम मुख से  लेने पर वह छ :माह के लिए समाधिस्थ हो रहते हैं। परीक्षित को सात दिनों के बाद सर्प दंश की लपेट में आना ही था शापित थे वह इसीलिए वह सीधे सीधे राधा नाम अपने मुख से नहीं ले सकते थे। नहीं लेते  हैं। उसके पर्यायवाची ही कहते हैं।

 राधोपनिषद में श्री राधा रानी के २८ नामों का उल्लेख है। गोपी ,रमा तथा "श्री "राधा के लिए ही प्रयुक्त हुए हैं। 

कामयामह एतस्य श्रीमत्पादरज : श्रिय :

कुंचकुंकु मगंधाढयं मूर्ध्ना वोढुम गदाभृत : (श्रीमदभागवतम )

हमें राधा के चरण कमलों की रज चाहिए जिसका कुंकुम श्रीकृष्ण के पैरों से चस्पां है (क्योंकि राधा उनके चरण अपने ऊपर रखतीं हैं ). यहाँ "श्री "राधा के लिए ही प्रयुक्त हुआ है महालक्ष्मी के लिए नहीं। क्योंकि द्वारिका की रानियाँ तो महालक्ष्मी की ही वंशवेळ हैं। वह महालक्ष्मी के चरण रज के लिए उतावली क्यों रहेंगी। 

रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिर्यथार्भक : स्वप्रतिबिम्ब विभ्रम :

                                     -(श्रीमदभागवतम १ ०. ३३.१ ६ )

रमापति (रमा के स्वामी )गोपियों के संग रास करते हैं। यहाँ रमा राधा के लिए ही आया है। रमा का मतलब लक्ष्मी  भी होता है लेकिन यहाँ इसका प्रयोग  प्रयोजन नहीं है.लक्ष्मीपति रास नहीं करते हैं। रास तो लीलापुरुष घनश्याम ही करते हैं। 

आक्षिप्तचित्ता : प्रमदा रमापतेस्तास्ता विचेष्टा जगृहुस्त्दात्मिका :

                                                       -(श्रीमदभागवतम १०. ३०.२ )

जब श्री कृष्ण महारास के दरमियान अप्रकट(दृष्टि ओझल ,अगोचर ) हो गए गोपियाँ प्रलाप करते हुए महाभाव को प्राप्त हुईं। 

वे रमापति (रमा के पति ) के रास का अनुकरण करने लगीं।  स्वांग भरने  लगीं। यहाँ भी रमा का अर्थ  राधा ही है  लक्ष्मी नहीं हो सकता क्योंकि  विष्णु रासरचैया नहीं रहे हैं।

यां गोपीमनयत कृष्णो (श्रीमद भागवतम १०.  ३०. ३५ )

श्री कृष्ण एक गोपी को साथ लेकर अगोचर (अप्रकट )हो गए।महारास से विलग हो गए। गोपी राधा का भी एक नाम है। 

अन्याअ अराधितो (अन्याययराधितो )नूनं भगवान् हरिरीश्वर :

                                                          -(श्रीमद भागवतम )

इस गोपी ने कृष्ण  की अनन्य भक्ति की है।इसीलिए कृष्ण उन्हें अपने (संग रखे हैं )संग ले गए.

अलावा इसके राधा का उल्लेख अनेक पौराणिक ग्रंथों में हुआ है। उनकी चर्चा फिर कभी। इस सन्दर्भ में इतना ही ,इति ।

ॐ शान्ति    



  


2 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

इस ज्ञानवर्धक चर्चा के लिए हृदय से आभार आपका ....!!

Anita ने कहा…

राधा रस से ओतप्रोत पोस्ट !