गुरुवार, 13 सितंबर 2012

आलमी होचुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी किश्त )


आलमी होचुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी किश्त )

कुछ महीने और गुजर गए इस दरमियान सरकार ने लेब रिपोर्ट्स की  चुपचाप पुष्टि कर दी .

बेशक अपनी  बातचीत में विश्वस्वास्थ्य संगठन के करता धरता और अधिकारी गण मानतें हैं :तपेदिक की एक केटेगरी के रूप में बेशक हमने "टोटल ड्रग रेज़ीस्तेंट "को मानने से परहेज़ किया है ,अपने आपको अदबदाकर रोके रखा है इस शब्द प्रयोग से .लेकिन इसकी वजह यह नहीं रही है कि परिपूर्ण दवा रोधी मरीज़ (टोटल ड्रग रेज़ीस्तेंट पेशेंट )हैं नहीं .बल्कि असल बात यह है कि प्रयोगशाला के अन्वेषणों को रेप्लीकेट नहीं किया जा सकता ,हू -बा -हू दोहराया नहीं जा सकता .मरीज़ इस शब्द प्रयोग से खौफ भी खा सकता है सुन के ही सकते में आसकता है अपनी प्रोग्नोसिस को लेकर .प्रोग्नोसिस बोले तो ठीक होने की संभावना ,आगे रोग क्या रुख लेगा इसका पूर्व अनुमान .

आखिरकार रहीमा ने इतने पर भी हौसला नहीं छोड़ा उसने दुनिया के चोटी के तपेदिक माहिर डॉ .उद्वाडिया की शरण में जाने का मन बना लिया .जिद पकड़ ली एक तरह से उनका इलाज़ लेने की .

डॉ .उद्वाडिया भी उतने उत्साहित नहीं दिखे उसकी प्रोग्नोसिस को लेकर .कम ही उम्मीद बची थी रहीमा के लिए अब लेकिन उन्होंने अपने कयास को ज़ाहिर नहीं किया .

'
"To be honest , I was alarmed and horrified ,"the Dr ,said .

डॉ उद्वाडिया ने जो चार दवाएं रहीमा पहले ही ले रही थी उसमें  दो का और इजाफा कर दिया .ये दोनों ही दवाएं एक्सपेरीमेंटल थीं .जिनमें से एक बेहद पीदायक और जिसके  टोक्सिक प्रभाव पहले से ही ज्ञात हैं थी .

गत अप्रैल  (अप्रैल २०१२ )में पहली मर्तबा पिछले एक साल में रहीमा रोगमुक्त दिखलाई दीं.तपेदिक टेस्ट निगेटिव दिखा आया .

डॉ .उद्वाडिया ने बेहद खुश होते हुए कहा आदमी को आस का पल्लू कभी नहीं छोड़ना चाहिए .

"This shows that you should never give up on a patient ,"said Dr.Udwadia,ecstatic at the news ."There is hope."

रहीमा उम्मीद के इस मोड़ पे आके भी बहुत उत्साहित नहीं दिखीं .वजह ?

दवा के पार्श्व प्रभाव से विक्षिप्त थीं .इसी उन्माद में उन्होंने अपने किशोर बेटे की कनिष्ठा (pinkie,कनिष्ठा सबसे ,छोटी ऊंगली )जोम में ,आवेश में आकर तोड़ दी .दवा के अवांछित असर से उनके पैर मानो जलने ही लगे थे .

रमजान (रमादान )का पाकीज़ा महीना पास आरहा था .रहीमा ने अपने गाँव लौट आने का मन बना लिया .उसने इच्छा ज़ाहिर की उसे एक माह की अग्रिम दवाएं दे दी जाएं .अधिकारियों ने नियम का हवाला देते हुए अनिच्छा दिखाई .रहीमा के वापसी के दिन  पास आने लगे .ट्रंक ज़रूरी कपडे लत्ते से लगाया गया .खाबिन्द ने  पूछा मेडिकल रिकोर्ड -"फैंक दो "-ज़वाब मिला .

गाँव की और रुखसत होने  से दो दिन पहले अधिकारियों का मन पसीजा .रहीमा को एक महीने की दवाएं दे दी गईं .लेकिन साथ ही चेतावनी भी दे डाली -अब और दवाएं मुंबई आने पर ही मिलेंगी .घर बैठे बैठे नहीं .

१७ जुलाई २०१२ को वह रामपुर पहुँच गईं अपने खाबिन्द के साथ .अपने पैत्रिक निवास (मायके )में अपनी माँ की गोद में सिर रखे लेटी रहीमा धान की बालियों को घर के दरवाज़े के पार लहलहाता देख रही थी .

उसका संतुलन लौटता दिखलाई  दिया .दोनों ने मिलकर अपना खुद का बंद पड़ा मकान खोला . तकरीबन डेढ़ बरस के बाद यह मौक़ा आया था .छतपर शाम के धुंधलके में बैठ दोनों ने खाना खाया .दूर मस्जिद से अजान की आवाज़ आई .रमजान का पवित्र महीना पूरा हो रहा था .

दवाएं खत्म होते देख उसने मुंबई के चिकित्सकों को और दवा भेजने के लिए बारहा इल्तजा करके राजी किया .प्रार्थना की उसे दवाएं कूरियर से भेज दी जाएं .

A few days ago ,she looked down a dirt lane and into the distance ,wondering when the courier would arrive.

"'May be it's not in God's plan for me to die quite yet ,"she said .

"Sometimes ,I think that maybe I can get well ".

गौ धूलि की  बेला में गाएं धूल उडाती घर की और लौट रहीं थीं . 

(समाप्त )

सन्दर्भ -सामिग्री :-A  woman's Drug-Resistance TB Echoes Around the World(THE WALL STREET JOURNAL ,WEEKEND /SATURDAY /SUNDAY ,SEPTEMBER 8-9 ,2012 ,P1 , A12  VOL .CCLX NO.58 /  A NEWS CORPORATION COMPANY /DOWJONES

Also ,see more of Rahima's story and details of global health efforts at WSJ.com/Page One



ये भारत है मेरे दोस्त 


हाँ !यह भारत है जहां मज़े से लोग वीरसावरकर को भगोड़ा और अंग्रेजों का माफ़ीखोर पिठ्ठू बताते हैं और  आखिर तक इंदिराजी के पाद सूंघते रहें हैं.यही असीमजी को कटहरे में ले गएँ हैं जिन्होंने  १९६२ के भारत चीन युद्ध को भारत की सीमा का अतिक्रमण करने वाला हमलावर घोषित करने से इनकार कर दिया था .आज़ादी के वक्त भारत का तिरंगा स्वीकार करने से मना  कर दिया था इन रक्त रंगी वक्र मुखी ,दुर्मुखों ने .

राजनीति के ये बहरूपिये ये बौद्धिक भकुवे कल तक  जिस सोवियत संघ का पिठ्ठू बने लाल सलाम ठोकते रहे अब तो वह साम्राज्य भी खंडित है .लेकिन वही बात हैं न बान हारे की बान न जाए ,कुत्ता मूते टांग उठाय .

असीम त्रिवेदी और यदि उनकी भारत धर्मी विचारधारा के लोग देशद्रोही हैं तो उस सूची में मेरा भी नामांकन होना चाहिए .

वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वरवुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ,४८,१८८ ,यू एस ए . 

राष्ट्रीय प्रतीकों से छेड़छाड क्या उचित है ? ( चर्चा - 1001 )

आज की चर्चा में आपका स्वागत है
 
असीम त्रिवेदी का समर्थन हर और से हो रहा है , सबकी अपनी अपनी राय हो सकती है लेकिन यहाँ तक मेरा निजी विचार है राष्ट्रिय प्रतीकों से छेड़छाड  नहीं होनी चाहिए । भ्रष्ट देश के नेता हो सकते हैं लेकिन देश के प्रतीकों का उनमें क्या दोष ? अगर हम देश के प्रतीकों को इस रूप में प्रस्तुत करेंगे तो देश के दुश्मनों को देश को अपमानित करने कैसे रोकेंगे ? ये मेरे विचार हैं, हो सकता है आप मेरी बजाए ये भारत है मेरे दोस्त ब्लॉग से भी सहमत हों, लेकिन मैं चाहता हूँ अन्धानुकरण करने का बजाए हमें विचार अवश्य होना चाहिए ।

3 टिप्‍पणियां:

अरुन अनन्त ने कहा…

बेहद सुन्दरता से लिखा है आपने, भारत का हाल कुछ ऐसा ही है

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब ... कहानी का अंत यही कहता है .. आस का दामन छोड़ना नहीं चाहिए ...
राम राम जी ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

साँस रहने तक आस बँधी रहे।